भारत त्योहारों का देश है. पिछले दशकों में इन त्योहारों की वैज्ञानिकता पर भी खूब काम हुआ है. एक के बाद एक भारत की परम्पराओं और त्योहारों की वैज्ञानिक कसौटी सामने आती रही है. तमाम किताबें और शोध इन कसौटियों को और पुख्ता कर रही हैं. हाल ही में जेएनयू के ही शोध छात्र रहे सबरीष पी. ए. की एक किताब आई थी, जिसका शीर्षक था- ‘ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ साइन्स इन इंडिया’. इस किताब में भी सबरीष ने बताया है कि कैसे भारतीय हिन्दू कलेंडर, जिसे पंचांग भी कहा जाता है, काल गणना के सटीक और वैज्ञानिक माध्यम हैं. पंचांग अथवा हिन्दू कलेंडर के हिसाब से नव वर्ष की शुरुआत चैत्र के प्रथम दिवस से होती है. और इस नव वर्ष के साथ ही पूरे भारत में अलग अलग नामों से पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं. ये त्योहार भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम भी करते हैं. काल गणना की ये तकनीक भारत की वैज्ञानिकता और कृषि प्रधानता पर आधारित है. क्योंकि ये त्योहार भारत के फसल चक्र के अनुसार बैठते हैं.
जेएनयू में ही 2 अप्रैल यानी नवसंवत्सर के दिन एक पैनल डिस्कशन का आयोजन आईसीएसएसआर और SHoDH के संयुक्त तत्वावधान में हुआ, जिसमें यह बात सामने आई कि भारत में काल गणना की पद्धति पृथ्वी के वैज्ञानिक घूर्णन पर आधारित रही है, जिसके कारण हिन्दू कलेंडर की तिथियां तारीखें मात्र नहीं होतीं, बल्कि वे ग्रहों और नक्षत्रों की गणना का प्रमाण भी होती हैं.
यहां इन बातों का ज़िक्र करना इसलिए जरूरी था क्योंकि चैत्र नवरात्रि के आखिरी दिन, जिसे राम नवमी के रूप में मनाया जाता है, को जेएनयू में वामपंथियों ने राम नवमी की पूजा कर रहे विद्यार्थियों को बुरी तरह पीटा. छात्राओं तक को नहीं छोड़ा गया. उन्हें न सिर्फ मारा पीटा गया, बल्कि उनके साथ भद्दा व्यवहार भी किया गया. दिव्यांग विद्यार्थियों को भी घसीट कर मारा गया, उनके कपड़े फाड़ दिये गए. यह सोचने वाली बात है कि आखिर वामपंथी लोग ऐसी हिंसा पर क्यों उतर आए हैं? आखिर ऐसा क्यों है कि तमाम तरह की ‘आजादियों’ का राग अलापने वाले वामपंथी आम लोगों की वैचारिक विभिन्नता पर हिंसक हो जाते हैं. आखिर ऐसा क्यों है कि महिला हितों का दंभ भरने वाले वामपंथी नक्सल कैंपों से लेकर विश्वविद्यालय के कैंपसों तक में महिलाओं के शोषण की इबारतें लिखते रहें हैं.
नक्सल कैंप में कमांडर रहीं शोभा मांड़ी ने जब अपनी किताब ‘एक नक्सली की डायरी’ में नक्सल कैंपों में होने वाली यौन शोषण की घटनाओं का ज़िक्र किया तो वामपंथ के काले चिट्ठे एक-एक करके सामने आने लगे, और इनकी मानसिकता सबके सामने आई. आज जब दुनिया इनके काले कारनामे देख रही है, समझ रही है, तो जेएनयू में हुई इस हिंसा पर किसी को आश्चर्य नहीं हो रहा. क्योंकि ऐसी हिंसा तो इनकी आम कार्यपद्धति का हिस्सा है.
सवाल ये है कि राम नवमी से इन्हें दिक्कत क्या है? जवाब आसान है! सबरीष पी ए की किताब में एक अध्याय ‘बौद्धिक चोरी’ के ऊपर भी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि कैसे औपनिवेशिक ताकतों ने भारत की ज्ञान परंपरा को भारत के आम लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया को ही खंडित कर दिया. फिर वैज्ञानिकता का ढोंग करके पश्चिमी सभ्यता को भारत में थोपना शुरू किया. उनके इस कार्य का सबसे बड़ा शिकार आज के वामपंथी हैं. वे आज भी बौद्धिक गुलामी का शिकार हैं. उन्हें आज भी अपनी परम्पराओं और ज्ञान की वैज्ञानिकता पर संदेह है. इसीलिए जब कोई समूह या व्यक्ति अपनी भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार कार्य करता है तो इन्हें कष्ट होता है. और ये वही करते हैं जो किसी जमाने में अंग्रेज़ किया करते थे- हिंसा!
दूसरा विषय ये है कि वामपंथियों की इन गतिविधियों का एक पैटर्न है. वे योजनाबद्ध तरीके से पहले हमला करते हैं, फिर इस बात का रोना रोते हैं कि उन्हें मारा गया है, फिर इस बात को मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इतना फैलाते हैं कि झूठ भी सच लगने लगे. यही पैटर्न जेएनयू में इस बार भी फॉलो किया गया है. बात 10 अप्रैल की है. जेएनयू में कावेरी हॉस्टल के छात्रों ने राम नवमी की पूजा रखी थी. पूजा के लिए तय समय था- 3.30 बजे सायं का. पूजा के आयोजनकर्ताओं ने सारी व्यवस्था कर ली थी. 3 बजे के करीब वामपंथी गिरोह बनाकर कावेरी हॉस्टल पहुंचे और आयोजकों को धमकाना शुरू कर दिया, कि उन्हें ये पूजा नहीं करने दिया जाएगा.
आयोजक नहीं माने तो उनके साथ हाथापाई भी की गयी. लेकिन तबतक पूजा के लिए बड़ी संख्या में आम छात्र-छात्राएं पहुंचने लगे थे. सबके सामने यदि ये वामपंथी बिना मुद्दे के हिंसा करते तो फंस जाते. इसलिए बात वहां ज्यादा नहीं बढ़ पायी. पर इन सब कारणों से पूजा 2 घंटे की देरी से शुरू हुई. यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि इस देरी कि वजह से शाम का इफ्तार का समय भी हो गया और पूजा चल ही रही थी. ऐसे में बेहद सुंदर दृश्य कावेरी हॉस्टल में बना. हॉस्टल की मैस में मुसलमान छात्र इफ्तार कर रहे थे, और मैस से सटे हुए लॉन में हिन्दू छात्र- छात्राएं हवन कर रहे थे. पर ये खूबसूरती बाहर खड़े वामपंथियों से देखी नहीं जा रही थी. उन्हें तो लगा था कि यहां हिन्दू मुस्लिम विवाद होगा और उनका काम बन जाएगा. पर यहां तो मामला उलट ही गया था. इसी दौरान कावेरी में मांस पहुंचाने वाला वेंडर पहुंचा. उसे इन वामपंथियों ने मौके की तरह लिया. वेंडर को गेट पर ही रोक लिया गया. उसे कावेरी में मांस पहुंचाने से मना कर दिया गया. ऐसे में कावेरी के कुछ आम छात्र वहां पहुंचे जिन्होंने वामपंथियों को ऐसा न करने को कहा. पर वामपंथी कहां मानने वाले थे. उन्हें मालूम था कि उन्होंने मुद्दा बना लिया है.
पूजा समाप्त करके जब छात्र बाहर निकालने लगे तो उन्होने देखा कि कावेरी के गेट पर सैकड़ों की संख्या में वामपंथियों की भीड़ खड़ी है. इन तमाम छत्रों में से कितनों ने ही सुबह से व्रत रखा हुआ था, कितनों ने 9 दिन का उपवास रखा था. इन सबने सोचा एक साथ कतारबद्ध होकर बाहर निकलेंगे. किन्तु वामपंथियों ने योजना बना हमला किया. उन्होंने चुन-चुनकर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं पर हमला किया. इस हमले में तमाम कार्यकर्ता बुरी तरह घायल हुए. कई को तो एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवाना पड़ा. लाठी डंडे, रॉड और पत्थरों से किए गए इस हमले में किसी का सिर फटा, किसी के हाथ में चोटें आईं, किसी के गले पर डंडे से चोट लगी तो किसी को पेट में घूसों से मारा गया.
इतना सब करने के बाद इनकी योजना इतनी पुख्ता थी कि तुरंत एबीवीपी पर आरोप भी मढ़ दिये गए. एबीवीपी के कार्यकर्ता तो रात भर इधर उधर भागते रहे. जिन्हें चोट लगी उन्हें अस्पताल पहुंचाना. जो बचे थे वे किसी तरह छुप रहे थे कि कहीं उन पर भी हमला न हो जाए. जब तक एबीवीपी के कार्यकर्ता इस स्थिति को समझते तबतक ये माहौल भी बना दिया गया कि हमला एबीवीपी ने ही किया था. ये बिल्कुल वही स्थिति थी कि जिसने बस्ती जलायी, वही मातम भी मना रहा था.
अगले दिन एबीवीपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी बात मीडिया के सामने रखी. जेएनयू की वाइस चांसलर को शिकायत पत्र सौंपा और उनसे शीघ्र प्रोक्टोरियल जांच कराने की मांग की. साथ ही एबीवीपी ने पुलिस एफआईआर भी दायर कारवाई. ये सब कुछ होने के बाद जैसे ही धीरे-धीरे सच सामने आना शुरू हुआ, वैसे ही वामपंथ की योजना का अगला चरण सामने आना शुरू हुआ. जैसा कि सभी को विदित ही है कि कोरोना के दौरान पढ़ाई लिखाई पूर्णतः ऑनलाइन हो गयी थी. ऐसे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भी महत्व काफी बढ़ गया था. ऐसे में वॉट्सएप ग्रुप बनाए गए जिनमें पढ़ाई लिखाई से जुड़ी जानकारी साझा की जाती रही. वामपंथी लोगों ने ऐसे ग्रुपों से एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को निकालना शुरू कर दिया. इन्होंने यह माहौल बनाना शुरू किया कि एबीवीपी से जुड़े हर छात्र का बहिष्कार करना है.
हमें यह सोचना होगा कि इस ‘बहिष्कार’ का मतलब क्या है. ये बहिष्कार दरअसल और कुछ नहीं केवल ‘छुआछूत’ या ‘अछूत’ बनाने का नया नाम है. इनका यह प्रयास है कि भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय संस्कारों तथा भारतीय उत्सवों को मनाने और मानने वालों को ‘अकादमिक अछूत’ घोषित कर दिया जाए. लेकिन इनके कारनामे और मंसूबे ध्वस्त होंगे यह तय है. पूरी दुनिया ने जिस तरह से इन्हें नकार दिया है, उसी तरह से जेएनयू ने भी एबीवीपी को स्वीकार करके इन्हें नकार देने का संदेश दे दिया है. यही कारण है कि ये बौखलाए हुए हैं, और हर बार हिंसा करने पर उतारू हो रहे हैं. ये बौखलाए हुए हैं कि कैसे उस जेएनयू में जिसमें सन 2014 में भगवान राम का पुतला बनाकर इन्होंने फांसी पर लटका दिया था, उस जेएनयू में आज राम नवमी की पूजा और हवन हो रहा है.
प्रशांत शाही,
कार्यकर्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,
शोधछात्र, जेएनयू