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क्या भारत में किंगमेकर बन रहा है मिडिल क्लास? बजट 2025 की घोषणाओं के राजनीतिक मायने

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती इस बार का बजट देश के मिडिल क्लास को खासतौर पर ध्‍यान में रखकर बनाया गया है. आम तौर पर देश का बजट हो राजनीतिक दल, दोनों ही के फोकस में हमेशा गरीब और किसान होते थे. पर अब नेता भी मिडिल क्लास की चर्चा कर रहे हैं. तो क्या समझा जाए कि मध्य वर्ग का समय बदलने वाला है?

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निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट में किसे फायदा पहुंचाया?
निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट में किसे फायदा पहुंचाया?

भारत की राजनीति शुरू से ही गरीब केंद्रित रही है. कांग्रेस हो या बीजेपी सभी की रणनीति गरीबी हटाने के इर्दगिर्द ही रहती रही है. देश में उदारीकरण के बाद लगातार ऐसी नीतियां और नियम कानून बने जो अमीरों के लिए हित में थे. इसके बाद भी मूल फोकस पर गरीब ही रहे. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह जैसा उदारीकरण का समर्थक अर्थशास्त्री भी अपने 10 साल के कार्यकाल में ऐसी योजनाओं पर खूब पैसा बहाया जो गरीबों के उत्थान के लिए बनी थीं. 2014 के बाद नरेंद्र मोदी सरकार से उम्मीद थी कि मध्यवर्ग को ध्यान में रखकर फैसले लिए जाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जितनी गरीबोन्मुख योजनाएं बनाईं गईं तो उतनी तो इंदिरा गांधी के समय भी नहीं बनीं. पर अब स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही हैं. 2025 का बजट बताता है कि अब सरकार मिडिल क्लास को एक बहुत बड़े वोट बैंक के रूप में देख रही है. आइये देखते हैं कि कैसे अगले चुनावों तक भारत में मिडिल क्लास किंगमेकर की भूमिका पहुंचने वाला है?

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1- देश की कुल आबादी में मध्यवर्ग का बढ़ता अनुपात

मध्यम वर्ग को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न स्रोत अलग-अलग मानक अपनाते हैं. PRICE के अनुसार भारत में 2020-21 में  43.2 करोड़ लोग मध्यवर्ग में थे जो 2046-47 तक 100 करोड़ तक बढ़ सकते हैं. ऑक्सफोर्ड इकॉनॉमिक्स के अनुसार 46 करोड़ भारतीय मध्य वर्ग से बिलॉन्ग करते हैं. जबकि  प्यू रिसर्च सेंटर कोविड से पहले 9.9 करोड़ की आबादी को मध्यम वर्ग में मानती थी. इसी तरह सेंटर फॉर एडवांस स्डटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 50 फीसदी इंडियन्स का मानना है कि वो मिडिल क्लास हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक इंडिया के 80 परसेंट लोग महीने में 5000 से लेकर 25000 तक खर्च करते हैं. सवाल उठता है कि क्या देश की इतनी बड़ी तादाद मिडिल क्लास में आती है? इसका उत्तर सीधा है कि देश में जो लोग भुखमरी के शिकार नहीं हैं और जिनके सर पर एक अदद छत है,  वो सभी मध्य वर्ग में खुद को महसूस करते हैं. जाहिर है कि इस तरह देश का बहुसंख्यक हिस्सा अब खुद को मध्यवर्ग में मानकर गर्वान्वित महसूस करता है. हो सकता है कि कुछ इंटरनेशनल मानदंडों पर वह गरीब ही हो. पर राजनीतिक दलों के लिए ये जनता मध्य वर्ग का हिस्सा बन चुका है. यानि कि अगर हम गरीब की बात करेंगे तो उसे लगेगा कि उसकी बात नहीं हो रही है. इसलिए राजनीतिक दलों ने शायद गरीब की बजाए मध्यवर्ग की तरह सबको ट्रीट करना शुरू किया है.

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2-सभी नेताओं का फोकस मध्यवर्ग पर

शनिवार को संसद में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार 3.0 का पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग के लिए कई घोषणाएं कीं. उन्होंने आयकर स्लैब में बड़े बदलाव की घोषणा करते हुए कहा कि 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर कोई इनकम टैक्स नहीं लगेगा. शुक्रवार को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारत की आर्थिक प्रगति को मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं और उनकी पूर्ति से जोड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शुक्रवार को मध्यम वर्ग का जिक्र किया और कहा, मैं प्रार्थना करता हूं कि मां लक्ष्मी हमारे देश के गरीबों और मध्यम वर्ग पर अपनी कृपा बनाए रखें और उन पर अपना आशीर्वाद बरसाती रहें. पीएम मोदी ने बजट पास होने के बाद जो प्रेस ब्रीफिंग की उसमें भी उन्होंने बजट को मध्यवर्ग के लिए बहुत हितकारी बताया . इसके पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 जनवरी को आम आदमी पार्टी का  मिडल-क्लास घोषणापत्र जारी किया, जिसमें शिक्षा और स्वास्थ्य बजट बढ़ाने और कर छूट की सीमा को बढ़ाने जैसी कई मांगें केंद्र सरकार से की गईं.अपनी मांगों में केजरीवाल 10 लाख तक की इनकम को टैक्स मुक्त कराने की बात की थी. हाल ही में कांग्रेस ने भी टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने की मांग की थी.

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4-कांग्रेस भी मध्यवर्ग के लिए समर्पित हो रही है

कांग्रेस पार्टी आम आदमी के रूप में हमेशा से गरीबों की बात करती रही है, लेकिन अब इस पार्टी ने भी मध्यम वर्ग को आम आदमी मान लिया है. अभी हाल ही में कांग्रेस ने इनकम टैक्स स्लैब बढ़ाने की डिमांड रखी थी. 2013 में ही जयपुर में आयोजित एक तीन दिवसीय चिंतन शिविर में कांग्रेस ने यह मान लिया था कि भविष्य में मध्य वर्ग पर खास तौर से फोकस करना है. उस समय ही कांग्रेस की आम आदमी की परिभाषा में समाज का मध्यम वर्ग भी शामिल हो गया था. दरअसल यूपीए सरकार के विरुद्ध मिडिल क्लास की भागीदारी वाले आंदोलनों का ही नतीजा था कि भाजपा को दिल्ली का तख्त मिला था. लोकसभा में अभी कुछ दिन पहले नेता विपक्ष राहुल गांधी भी घटते रोजगार, खेती-मैन्यूफैक्चरिंग की गिरावट के साथ टैक्स का बोझ उठा रहे आम लोगों विशेषकर मध्यम वर्ग की बढ़ी मुश्किलों का जिक्र किया था. राहुल गांधी मध्य वर्ग की तकलीफों को ध्यान में रखकर सरकार पर निशाना साधते हैं और टैक्स में राहत दिए जाने की पैरोकारी भी करते हैं.

4- क्या सिर्फ दिल्ली चुनावों के लेकर मध्य वर्ग को लुभाने की कोशिश है?

लोगों का मानना है कि बजट में मध्यवर्ग को फोकस में रखकर इसलिए फैसले लिए गए हैं ताकि दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी को हरा सके. कुछ एजेंसियों का दावा है  कि दिल्ली में करीब 67% आबादी मध्यम वर्ग की है, जो इसे भारत के सबसे अमीर राज्यों में सबसे बड़ा मध्यम वर्गीय समूह बनाता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर मध्यवर्ग के लिए पिटारा खोल दिया है,क्योंकि यहां बहुत बड़ी आबादी मध्यवर्ग वाली है. पर सवाल उठता है कि ये कोई पहली बार नहीं हुआ है कि दिल्ली में मध्य वर्ग की संख्या बढ़ गई है. पहले भी ऐसा रहा है कि दिल्ली में मध्य वर्ग बहुमत में रहा है. दरअसल आम आदमी पार्टी के लगातार झुग्गीवासियों और गरीबों के लिए बात करने चलते मध्यवर्ग को अपनी उपेक्षा महसूस हो रही थी. दूसरे लोअर मिडिल क्लास भी खुद को अब मिडिल क्लास मानने लगा है. उसे भी महसूस होता है कि साफ सुथरी सड़कें , साफ सुधरे पार्क आदि जरूर सरकार को उपलब्ध कराने चाहिए. केवल मुफ्त की बस यात्रा और 200 यूनिट बिजली ही नहीं सब कुछ है.इस मध्य वर्ग अब गरीब तबके से बड़ा वोट बैंक बनकर पूरे देश में उभर रहा है.

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5. 2025 के बजट में मध्य वर्ग के फायदे वाले कुछ खास फैसले

-आयकर स्लैब में बड़ा बदलाव 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा.

- किराए पर स्रोत पर कर कटौती (TDS) की सीमा बढ़ाई. पहले 2.4 लाख की वार्षिक किराए की आय पर TDS कटता था, अब यह सीमा बढ़ाकर 6 लाख कर दी गई है. इसका फायदा छोटे मकान मालिकों और छोटे करदाताओं को मिलेगा.

-नया आयकर विधेयक (Income Tax Bill) अगले हफ्ते संसद में पेश किया जाएगा, जिससे भविष्य में और भी बदलाव संभव हैं.
 

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