उत्तर प्रदेश में संभल शहर को लेकर चर्चा वहां की जामा मस्जिद पर हुई हिंसा से आगे निकल चुकी है. संभल जामा मस्जिद के सर्वे का विरोध कर रहे मुस्लिम समुदाय के चार युवकों के मारे जाने के बाद संभल करीब हफ्ते भर अशांत रहा. बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी सड़क से लेकर संसद तक माहौल को गर्म बनाए रखा. पर यूपी विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस तरह संभल को लेकर तर्क गढ़ें हैं उससे यही लगता है कि योगी आदित्यनाथ के लिए संभल नई अयोध्या है. क्योंकि आज संभल हिंसा की चर्चा खत्म हो चुकी है. अब यह शहर अन्य दूसरे कारणों से चर्चा में है. संभल में हर रोज हिंदू धर्म से संबंधित मंदिर, मूर्तियां, कुएं और बावड़ियां मिल रही हैं. इन सभी के तार पुराणों, बौद्ध शास्त्रों आदि से जोड़े जा रहे हैं. शंभाला जिसका उच्चारण बहुत कुछ संभल की तरह हो रहा है, जो दुनिया के लिए एक रहस्य रहा है. दुनिया भर के बहुत से इतिहासकारों, खोजकर्ताओं ने शंभाला पर बहुत रिसर्च की है. यह हो सकता है कि बौद्ध कथाओं और हिंदू पुराणों में जिस शहर की इतनी चर्चा है वह उत्तर प्रदेश का संभल ही हो. तो क्या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार संभल शहर को उसी तर्ज पर विकसित करने की योजना बना रही है. क्या यह देश का नया अयोध्या है? अब योगी आदित्यनाथ इस पौराणिक शहर को उसका वजूद वापस दिला पाएंगे?
शंभाला और संभल
इसी साल अमिताभ बच्चन और प्रभाष अभिनीत एक मूवी आई थी, कल्कि 2028. जिन लोगों ने यह फिल्म देखी होगी उन्हें शंभाला के बारे में जरूर याद होगा. दरअसल, फिल्म की कहानी विष्णु के दशावतार भगवान कल्कि के अवतरित होने की है. पृथ्वी पर अत्याचार बहुत बढ़ गया है और भगवान कल्कि के अवतार का इंतजार हो रहा है. फिल्म हिंदू राष्ट्र की अवधारणा रखने वालों को प्राउड फील कराती है. देश में हिंदू राष्ट्र के नाम पर जंग मची हुई है पर इस फिल्म में पूरी दुनिया के लोग विष्णु के दशावतार का इंतजार कर रहे हैं. कहानी करीब 800 साल आगे की चल रही थी. जिस समय तक दुनिया के सारे शहर खत्म हो चुके हैं बस हिंदुओं का पवित्र शहर काशी का ही शेष है. पर एक दुनिया और है जो सुप्रीम यास्किन (यानि कल्कि अवतार के समय का रावण) के खिलाफ संघर्ष कर रही है. यह जगह शंभाला है. फिलहाल यह तो फिल्म की कहानी है. फिल्म में जिस शंभाला नाम की जगह की परिकल्पना की गई है वह बहुत कुछ हिंदू पुराणों और बौद्ध शास्त्रों को मिलाकर बनाई हुई लगती है. जाहिर है कि शंभाला और संभल सुनने में तो एक जैसे शब्द लगते हैं और दोनों ही जगह विष्णु के दशावतार से संबंधित है. तो क्या हम दावा करने वाले हैं कि जिसे दुनिया बहुत दिनों से ढूंढ रही है वह शंभाला असल में यूपी का संभल ही है. पर यह को-इंसिडेंस भी हो सकता है, इसमें कोई दो राय नहीं है.
शंभाला की रिसर्च और खोज
निकोलस और हेलेना रोएरिच ने 1924-1928 में शंभाला के लिए अभियान चलाया. उनका यह भी मानना था कि अल्ताई पर्वत में बेलुखा पर्वत शम्भाला का प्रवेश द्वार था, जो उस क्षेत्र में एक आम धारणा थी. उन्होंने 1934 और 1935 के बीच मंगोलिया में शम्भाला की तलाश के लिए एक दूसरे अभियान का नेतृत्व किया. बोल्शेविक क्रिप्टोग्राफर और सोवियत गुप्त पुलिस के कर्णधारों में से एक ग्लेब बोकी ने अपने लेखक मित्र अलेक्जेंडर बारचेंको के साथ मिलकर 1920 के दशक में कालचक्र-तंत्र और साम्यवाद के विचारों को मिलाने की कोशिश में शम्भाला की खोज शुरू की थी. फ्रांसीसी बौद्ध एलेक्जेंड्रा डेविड-नील ने शम्भाला को वर्तमान अफ़गानिस्तान के बल्ख से जोड़ा.कहा जाता है कि हिटलर ने 1930 के दशक में तिब्बत में अगरथा और शंभाला से संपर्क साधने के लिए कई मिशन भेजे पर सफलता नहीं मिली.
संभल की कहानी
बताया जाता है कि सतयुग में संभल का नाम सत्यव्रत था, त्रेता में महदगिरि, द्वापर में पिंगल और कलियुग में संभल है. प्राचीन शास्त्रों में यहां 68 तीर्थ और 19 कुओं का जिक्र मिलता है. यहां एक अति विशाल प्राचीन मन्दिर है, इसके अतिरिक्त तीन मुख्य शिवलिंग है, पूर्व में चन्द्रशेखर, उत्तर में भुबनेश्वर और दक्षिण में सम्भलेश्वर हैं. प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और पंचमी को यहाँ मेला लगता है और यात्री इसकी परिक्रमा करते हैं.
इतिहास बताता है कि संभल की जामा मस्जिद 1529 में (राम जन्मभूमि को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाने के ठीक एक साल बाद) बाबर के निर्देश पर हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. इस बात का उल्लेख मस्जिद पर भी है. बाबारनामा और अकबरनामा से भी यह संकेत मिलता है कि यहां पहले मंदिर हुआ करता था. पर यह मंदिर विष्णु के दशावतार से संबंधित होने के चलते और चर्चा में आ गया है. एक बात और ध्यान देने वाली है कि संभल में ही कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल्कि अवतार मंदिर का शिलान्यास करने भी पहुंचे थे.
जैसे पौराणिक कथाओं के अनुसार मथुरा भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है. जैसे भगवान राम त्रेता युग में विष्णु के सातवें अवतार थे, वैसे ही कल्कि दसवें और अंतिम अवतार होंगे. जो कलियुग के अंत में घोड़े पर सवार होकर आएंगे. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कल्कि का अवतरण अंधकारमय, पतित और अराजक कलियुग को समाप्त कर देगा और अगले, सत्य युग की शुरुआत करेगा.
बृजेन्द्र मोहन शंखधर ने अपनी पुस्तक, संभल: ए हिस्टॉरिकल सर्वे में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं शताब्दी में संभल में भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना की होगी. संभल वह भूमि है जहां 'पुनर्जन्म लेने वाले भगवान' के मंदिर का निर्माण हुआ और फिर उसे नष्ट कर दिया गया. बाद में जिस तरह अहिल्याबाई होल्कर ने देश के कई तीर्थ स्थलों का निर्माण करवाया उसी क्रम में कल्कि को समर्पित एक मंदिर 18वीं शताब्दी में संभल में भी बनवाया था. रिपोर्टों के अनुसार, 'कल्कि मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण मूल मंदिर के नष्ट होने के लगभग 300 वर्ष बाद, संभल में बाबर की शाही जामा मस्जिद के ठीक बगल में, किया गया था. कल्कि मंदिर संभल के कोट पूर्वी मोहल्ले में है और शाही जामा मस्जिद के पास है.