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क्या जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के सरकार बनाने की अब भी कोई संभावना है? | Opinion

एग्जिट पोल में बीजेपी जम्मू-कश्मीर में बहुमत से बहुत दूर, लेकिन सत्ता के काफी करीब नजर आ रही है - अगर नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन स्पष्ट बहुमत नहीं हासिल कर पाता, तो अभी से ही समझ लेना चाहिये - सत्ता उसके हाथ नहीं आने वाली है.

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जम्मू-कश्मीर में अगर INDIA ब्लॉक बहुमत की तरफ बढ़ रहा है, तो पीडीपी के साथ बीजेपी एक बार फिर बेमेल गठबंधन की तरफ अग्रसर है.
जम्मू-कश्मीर में अगर INDIA ब्लॉक बहुमत की तरफ बढ़ रहा है, तो पीडीपी के साथ बीजेपी एक बार फिर बेमेल गठबंधन की तरफ अग्रसर है.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के लिए C Voter के एग्जिट पोल के आंकड़े चाहे जो इशारे कर रहे हों, ये कतई जरूरी नहीं है कि जो गठबंधन सरकार बनाते हुए नजर रहा है, सत्ता पर काबिज भी आखिरकार वही हो पाये.

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एग्जिट पोल सर्वे के मुताबिक तो INDIA ब्लॉक के बैनर तले चुनाव लड़ रहे कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन को बढ़त मिलती नजर आ रही है, और बीजेपी साफ तौर पर पिछड़ रही है - लेकिन राजनीति हमेशा आंकड़ों की मोहताज नहीं होती. 

राजनीति में सत्ता जिसके हाथ में होती है, उसके पास बहुत सारे हथकंडे होते हैं - और लोहा भले ही आपस में एक दूसरे को काटता रहे, लेकिन सत्ता वो चुंबक है जिसकी तरफ लोहा खिंचा चला ही आता है - थोड़ा इंतजार करना होगा, जम्मू-कश्मीर में भी 2019 के हरियाणा की तरह ‘खेला’ देखने को मिल सकता है. 

काफी हद तक मुमकिन है कि हरियाणा में जो रोल 2019 में जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने निभाया था, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भी उसी भूमिका में देखने को मिल सकता है - कौन कहता है, राजनीति में पुरानी मोहब्बत जिंदाबाद नहीं बोलती है.

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जम्मू-कश्मीर में सूरत-ए-हाल 

एग्जिट पोल के मुताबिक, बीजेपी को इस बार 27-32 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, जो पिछली बार यानी 2014 में मिली 25 सीटों से ज्यादा हो सकती है. ध्यान रहे तब बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बनी थी. अव्वल तो वैसी सूरत में इस बार मुख्यमंत्री पद पर दावा बीजेपी का ही बनता है, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने तगड़ी सौदेबाजी की तो फिर से बात बन भी सकती है. 

पिछली बार पीडीपी ने 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, लेकिन इस बार उसे 6 से 12 सीटें ही मिलती लग रही हैं. कम से कम 16-22 सीटों का सीधा नुकसान समझ लीजिये. 

और वैसे ही अन्य दलों के हिस्से में इस बार 6-8 सीटें जाने का अनुमान है - हालांकि, आंकड़ों को तुलनात्मक तरीके से देखते वक्त ये भी ध्यान रखना चाहिये कि ये चुनाव  डीलिमिटेशन के बाद हो रहा है.

नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की बात करें तो इस बार उनके हिस्से में डबल सीटें आती हुई लग रही हैं, 2014 में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को मिलाकर कुल 24 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार के एग्जिट पोल में 40-48 नंबर मिलने की संभावना है. 

जिस तरह बीजेपी ने हड़बड़ी में 5 विधायकों को नॉमिनेट करने का फैसला किया है, साफ तौर पर समझा जा सकता है कि वो सरकार बनाने की कवायद में पहले से ही जुट गई है. 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश पर उप राज्यपाल मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए पांच सदस्यों को नामित करेंगे. ये प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन के बाद पहली बार अपनाई जाएगी. 

उप राज्यपाल की तरफ से 5 सदस्यों को मनोनित किये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सदस्यों की संख्या बढ़ कर 95 हो जाएगी - और इसकी वजह से सरकार बनाने के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 48 हो जाएगा.

बहुमत से दूर, सत्ता के करीब बीजेपी

जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनका वाजिब हक दिलाने का दावा और वादा करने वाली बीजेपी के हिस्से में 27 से 32 सीटें ही मिलने की संभावना जताई जा रही है - और उप राज्यपाल की तरफ से विधायकों के मनोनयन के बाद ये आंकड़ा सीधे 37 तक पहु्ंच जा रहा है.

अब अगर महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के खाते में 6-12 सीटें मिल रही हैं, और बाकी बचे क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के खाते में 6 से 11 सीटें जाने का अंदाजा है, तो बहुमत जुटाने के लिए बीजेपी को बस महबूबा मुफ्ती और निर्दलीयों को साधना होगा. 

देखें तो सारे निर्दलीय INDIA ब्लॉक और बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतरे हैं, और सत्ता का रुख देखकर आसानी से खिंचे चले आएंगे. राजनीति का इतिहास तो इसी बात का गवाह है.

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बीजेपी अगर जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की स्थिति में खड़ी हो जाती है, तो सबसे पहले वो पीडीपी का रुख करेगी. पीडीपी के लिए बीजेपी का ऑफर स्‍वीकार करना मुश्किल हो सकता है, क्‍योंकि एक बार गठबंधन सरकार चलाने के उसका बहुत बुरा अनुभव है. 

राजनीति में फैसले दिल से नहीं, दिमाग से लिये जाते हैं. जिस तरह विधानसभा चुनाव में गठबंधन से बाहर रह कर पीडीपी हाशिये की तरफ बढ़ रही है, मेनस्ट्रीम में लौटने के लिए बीजेपी से बेहतर विकल्प उसके पास नहीं है. 

अगर पीडीपी गुपकार सम्मेलन के साथ फिर से जाने का फैसला करती है, तो निर्दलीयों को लेकर भी बीजेपी कुछ नही कर पाएगी, भले ही 10 से ज्यादा निर्दलीय विधायक चुनकर क्यों न आ जायें - लेकिन बीजेपी के साथ आने से पीडीपी को जो मिल सकता है, वो हैसियत उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी तो नहीं ही देने वाले हैं. 

और अगर नेशनल कांफ्रेंस की अगुवाई वाला गठबंधन 48 सीटें हासिल कर भी लेता है, तो बहुमत मिलने के बाद भी सरकार तलवार की धार पर ही बनेगी. क्योकि एक भी विधायक के पाला बदलते ही कश्ती डगमगाने लगेगी. 

दूसरी तरफ बीजेपी अगर पीडीपी को फिर से साथ में सरकार बनाने के लिए राजी कर ली, तो उमर अब्दुल्ला के साथ 'खेला' हो जाएगा. और ऐसी प्रबल संभावना नजर आ रही है - क्योंकि जो अब्दुल्ला परिवार के साथ नही है, वो पूरी तरह खिलाफ यानी बीजेपी के साथ जा सकता है.

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