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जवान वाले शाहरुख भाई, किसान और डॉ. कफील न्याय पाने के लिए नक्सली नहीं बने!

शाहरुख खान की मूवी जवान पर राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं. कर्ज में डूबे किसानों, सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा दिखाती फिल्म में इन समस्याओं का हल हिंसा के जरिए दिखाया गया है. पर अंत में फिल्म का नायक आपके एक वोट की कीमत भी समझाता है. आइये देखते हैं कि फिल्म में दिखाई गई समस्याएं कितनी हकीकत और कितनी फंसाना हैं?

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शाहरुख खान की मूवी जवान और देश की समस्याएं
शाहरुख खान की मूवी जवान और देश की समस्याएं

शाहरुख खान की फिल्म जवान बॉक्‍स ऑफिस पर रोज नए रिकॉर्ड बना रही है. समीक्षकों से मिले-जुले रिव्यू आ रहे हैं पर फिल्म लगातार हाउसफुल जा रही है.शाहरुख खान देश के सुपर सितारे हैं उनकी फिल्म चलना लाजिमी है. पर जवान को लेकर विवाद हो गया है. उन्होंने फिल्म में कुछ ऐसे मुद्दे उठाए हैं जो सीधे केंद्र की एनडीए सरकार पर हमलावर की तरह महसूस होती है.

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यहां तक तो सही है. हर फिल्मकार के अपने विचार होते हैं और वो अपने विचारों को रखने के लिए स्वतंत्र भी है. पर फिल्म को लेकर चिंता की ये बात है कि फिल्म देश की समस्याओं का हल हिंसा में बताता है. फिल्‍म में किसानों के कर्ज और डॉ. कफील खान जैसे मुद्दे उठाए गए थे, उस पर शाहरुख खान और फिल्‍म के निर्माताओं से इतना ही कहा जा सकता है कि फिल्म में दिखाई गई हर समस्या का समाधान हमारे देश की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों में पहले ही होता रहा है. जबकि हमें नक्सलवाद की राह पर ले जाती है.

किसानों के हक के लिए ट्रेन को किडनैप करना क्या नक्सलवाद का समर्थन करना नहीं है?

जवान फिल्म में शाहरुख खान एक रॉबिनहुड टाइप के कैरेक्टर में हैं. देश में किसानों की हो रही आत्महत्या के पीछे बैंकों के कर्ज को वो जिम्मेदार ठहराते हैं. देश के किसानों को न्याय दिलाने के लिए फिल्म का नायक एक ट्रेन को किडनैप कर लेता है. ट्रेन के यात्रियों से वह कहता है कि एक ट्रैक्टर खरीदने के लिए किसान को 13 परसेंट ब्याज पर लोन मिलता है जबकि मर्सिडीज के लिए केवल 8 परसेंट का ब्याज देना होता है.

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किडनैप लोगों को रिलीज करने के नाम पर सरकार से डिमांड रखता है कि देश भर के किसानों का कर्ज माफ किया जाए. सरकार के पास इतनी रकम नहीं है इसलिए एक उद्योगपति की बेटी जो उसी ट्रेन में सवार होती है उससे 40 हजार करोड़ रुपये ट्रांसफर कराए जाते हैं. ट्रेन के यात्री नायक के फैन हो जाते हैं, थियेटर में भी दर्शक तालियां बजाते हैं. 

पर फिल्मकार ये भूल जाते हैं कि उनका ये कृत्य किस तरह एक नए किस्म का नक्सलवाद को जन्म दे सकता है. शाहरुख खान अतिशय लोकप्रिय कलाकार हैं. उनके फैन्स उनको किस तरह फॉलो करते हैं यह हम सभी जानते हैं. कल को कोई उनसे प्रेरणा लेकर इस तरीके की हरकत करता है तो क्या इसके लिए  उनकी जवाबदेही नहीं बनेगी?

फिल्म ने मुद्दे तो सही उठाएं हैं पर यह नहीं बताया है कि बिना बंदूक उठाए ही किसानों के लिए लोकतांत्रिक सरकारों ने कितना कार्य किया है. देश के कई राज्यों में ट्रैक्टर खरीद पर भारी सब्सिडी दी जाती है.मध्य प्रदेश में 20 से लेकर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है तो यूपी में एक लाख रुपए तक अनुदान दिया जाता है. हरियाणा में किसानों को ट्रैक्टर की खरीद पर 3 लाख रुपए या अधिकतम 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है. राजस्थान में भी और महाराष्ट्र में इस तरह की सुविधाएं मिल रही हैं. भारत में कोई भी दल, चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी सभी दलों ने किसानों के लिए कर्जमाफी की योजनाएं चलाईं हैं.अब तक केंद्र और राज्य सरकारों ने किसानों के लिए हजारों करोड़ की कर्जमाफी योजनाएं चलाईं जा चुकी हैं.

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डॉक्टर ईरम बंदूक क्यों उठाएं, डॉक्टर कफील को इसी व्यवस्था में न्याय मिला

फिल्म में एक कैरेक्टर हैं डॉक्टर ईरम. वो जिस सरकार अस्पताल में काम करती हैं वहां ऑक्सिजन की कमी हो गई है. इंसेफलाइटिस से पीड़ित बच्चे मर रहे हैं पर अस्पताल प्रशासन सिलिंडर की व्यवस्था नहीं करता. डॉक्टर ईरम खुद इनिशिएटिव लेकर सिंलिंडर की व्यवस्था करती हैं लेकिन देर हो जाती है करीब 56 बच्चों की मौत होती है. प्रशासन पर चूंकि वो सवाल उठाती हैं इसलिए उन्हें गलत तरीके से फंसाकर जेल भेज दिया जाता है.

दरअसल फिल्म अपने एजेंडे में गोरखपुर इंसेफलाइटिस कांड (2017) के हीरो डॉक्टर कफील का मुद्दा उठाना चाहती है. डॉक्टर कफील की भी यही कहानी थी जिन्हें बाद में जेल भेज दिया जाता है. पर कफील को अपने देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा होता है. बाद में वो बरी किए जाते हैं और हीरो की तरह उनकी वापसी होती है. हो सकता है यह फिल्म पहले देख लिए होते तो उन्हें बंदूक उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता. उसके बाद क्या होता ये खुदा जाने. ये सही है उनके 9 महीने जेल के वापस नहीं आएंगे. पर यह भी सही है कि अगर सभी लोग बंदूक उठाना शुरू कर दें तो यह देश गृहयुद्ध वाला देश बनकर रह जाएगा.

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क्या 2024 चुनावों के लिए विपक्ष का एजेंडा सेट कर रही जवान

2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पक्ष और विपक्ष अपने अपने तरीके से एजेंडा सेट करने में लगा हुआ है. अगर किसी मूवी में किसानों की समस्या, अमीरों लोगों की कर्जमाफी, सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति, सेना में रद्दी हथियारों की सप्लाई आदि के बारे में बताया जाए तो आप इसके लिए निश्चित ही अपनी सरकार से नाराज हो जाएंगे. फिल्म के अंत में ईवीएम के दुरुपयोग और सोच समझकर वोट देने की नसीहत भी मिल जाए तो आप क्या करेंगे? निश्चित रूप से अपने पसंदीदा कलाकार के आह्वान पर विपक्ष को वोट देंगे. तो क्या यह मान लिया जाए कि शाहरुख खान अभिनीति जवान एक एजेंडा धारी फिल्म है. जिसका एजेंडा वर्तमान सरकार को बदनाम कर विपक्ष के समर्थन में देश की जनता का मोबलाइजेशन करना है. फिलहाल फिल्म देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. पर हद तो ये हो गया कि फिल्म में कई तथ्यों को जबरन सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है. 

कांग्रेस से शाहरुख की नजदीकियां जगजाहिर हैं

शाहरुख खान यूपीए गवर्नमेंट में सरकार के बहुत नजदीक रहे हैं. हर सुपरस्टार सरकार से अच्छे संबंध चाहता है.अमिताभ बच्चन कभी कांग्रेस और गांधी परिवार की नाक के बाल होते थे. कांग्रेस से उनके रिश्ते खराब होने के बाद उनके संबंध गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बहुच अच्छे हो गए थे. अब शाहरुख खान भी बच्चन की कदम ताल ही चलते हैं. देश में यूपीए की सरकार बनने के पहले से ही उनके कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और प्रियंका गांधी से आत्मीय संबंध किसी से छुपे नहीं रहे हैं.

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यूपीए सरकार जाने के बाद सत्ता से दूर होने का दंश वो देख चुके हैं. वो जानते हैं कि अगर कांग्रेस सरकार रही होती उनके बेटे आर्यन खान को ड्रग केस में कुछ दिन जेल में नहीं बिताने पड़ते. अमिताभ बच्चन की 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के पहले एक फिल्म आई थी इंकलाब. इस फिल्म की कहानी थी कि देश में सारी गंदगी की जड़ विपक्ष होता है. इंदिरा गांधी की देश में सरकार थी. कहा गया कि इंदिरा गांधी को 1985 के लोकसभा चुनावों में फिर से जिताने के लिए विपक्ष को टार्गेट करते हुए यह फिल्म बनाई गई थी. तो क्या यह नहीं माना जा सकता 2024 के चुनावों को प्रभावित करने के लिए एक एजेंडे के तहत शाहरुख खान ने यह फिल्म बनाई हो.

 

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