scorecardresearch
 

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया: कभी सीएम पद के दावेदार थे, अब खतरे में पड़ा किला

ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से पिछला हिसाब करना चाहें तो भी भाजपा में मौका मिलना मुश्किल है. पिछले चुनाव में कांग्रेस में सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन इस बार समर्थकों का साथ छूटने से उनके सामने अपनी जमीन बचाने की चुनौती हो गई है.

Advertisement
X
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी चुनावी द्वंद्व में फंस गए हैं, जहां वे कांग्रेस में रहते पिछले चुनाव से पहले थे.
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी चुनावी द्वंद्व में फंस गए हैं, जहां वे कांग्रेस में रहते पिछले चुनाव से पहले थे.

 

Advertisement

मध्‍यप्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भोपाल में आयोजित पंचायत आजतक के कार्यक्रम में आए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया से कई सवाल हुए, लेकिन सबसे रोचक पहलू रहा आगामी चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर. राज्‍य में हुए पिछले चुनाव से आगामी चुनाव के बीच सिंधिया एक धुरी से दूसरी धुरी पर चले गए हैं. लेकिन उनके इर्द-गिर्द हालात एक जैसे ही हैं.

संसद की बहस हो या पंचायत आजतक का मंच, ज्‍यो‍तिरादित्‍य सिंधिया के जिम्‍मे मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्‍यों की तारीफ करने का जिम्‍मा रहता है. और वे इसे बखूबी निभाते भी हैं. अमेरिका की विश्‍व प्रसिद्ध हार्वर्ड युनिवर्सिटी से अर्थशास्‍त्र और स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्रबंधन में स्‍नातक सिंधिया भाजपा सरकारों में हुई तरक्‍की की कहानी आंकड़ों के जरिये बखूबी बयां करते हैं. कैसे मध्‍यप्रदेश जो कि 2003 में बीमारू राज्‍य था, अब वह तेजी से विकास की राह पर चल रहा है. जहां 20 साल पहले प्रति व्‍यक्ति आय 11,000 रुपये थी, जो अब 1,41,000 रुपये सालाना हो गई है. इसके साथ वे जीडीपी से लेकर सिंचाई के क्षेत्र में हुई क्रांति का जिक्र धारा प्रवाह कर जाते हैं.

Advertisement

लेकिन, जैसे ही मामला उनकी व्‍यक्तिगत राजनीति और मध्‍यप्रदेश में उनके प्रभाव को लेकर आता है, मामला दिलचस्‍प हो जाता है. 2018 के चुनाव से पहले सिंधिया को कांग्रेस की ओर से सीएम पद का दावेदार कहा जा रहा था. लेकिन, आखिरी वक्‍त पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने उनका पत्ता काट दिया. 2023 के चुनाव से पहले अब वे भाजपा के पाले में हैं, पार्टी में अभी सीएम पद की दावेदारी वाले कद तक नहीं पहुंचे हैं. मध्‍यप्रदेश में सीएम को लेकर सस्पेंस के सवाल पर वे अपने लिए रास्ता खोलते हुए इतना तो कहते हैं कि यहां का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्‍व में लड़ा जाएगा. लेकिन इसी के अगले वाक्य में वे ये भी कहते हैं कि मध्‍यप्रदेश ने पिछले 18 साल में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्‍व में तरक्‍की है. इससे ये मतलब तो निकाला ही जा सकता है कि यदि भाजपा के भीतर अगर सीएम पद की दावेदारी के लिए कोई कतार लगी है, तो सिंधिया उसमें शिवराज से बहुत पीछे खड़े हैं.

सिंधिया की बड़ी चुनौती अपना गढ़ बचाने की है…

ग्‍वालियर राजघराने से ताल्‍लुक रखने वाले सिंधिया ग्‍वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस पार्टी का पर्याय रहे हैं. वहां कांग्रेस का कोई नेता सिंधिया की लाइन क्रॉस नहीं कर पाया. 2020 में सिंधिया और उनके समर्थकों का कुनबा कांग्रेस छोड़ भाजपा में चला आया. लेकिन, चुनाव नजदीक आते आते उम्‍मीद के मुताबिक भाजपा के भीतर पुराने और इन नए भाजपाइयों के बीच तनातनी शुरू हो गई. नतीजे में सिंधिया समर्थकों ने मैदान छोड़ना शुरू कर दिया. सिर्फ ग्‍वालियर संभाग ही नहीं, बल्कि मध्‍यप्रदेश के अलग अलग इलाकों से पिछले 6 महीने के दौरान 40 सिंधिया समर्थकों ने वापस कांग्रेस में घर-वापसी कर ली है. जाहिर है ये हालात सिंधिया को चुभने वाले होंगे. अपने पीछे से समर्थकों के खिसकने से सिंधिया का भाजपा में वजन भी कम हुआ है. सिंधिया इसे सामान्‍य घटना मानते हैं. कहते हैं कि चुनाव नजदीक आने पर यदि कोई व्‍यक्ति अपने टिकट को लेकर आशंकित होता है, तो उसे जहां भरोसा दिया जाएगा वहां चला जाएगा. सिंधिया इसे सहज 'आवागमन' मानते हैं. लेकिन, वे यह याद दिलाना नहीं भूलते हैं कि 18 साल बाद विधायक बने कई कांग्रेसियों ने सिर्फ उनके समर्थन में पार्टी छोड़ दी थी. जो कि एक 'बलिदान' है. सवाल ये है कि राजनीति में कोई भी बलिदान चिर-फलदायी नहीं होता. 2020 में भाजपा में शामिल हुए सिंधिया केंद्र में मंत्री बना दिए गए, और उनके कई नजदीकी विधायक शिवराज सरकार में मंत्री. लेकिन, 2023 के चुनाव में नए समीकरण बनेंगे. कुछ चुनाव पूर्व सर्वे ग्‍वालियर-चंबल संभाग में भाजपा की स्थिति को खराब बता रहे हैं. ये सिंधिया के लिए परेशानी और भाजपा के लिए अवसर की तरह है.

Advertisement

संघ का विरोध और भाजपा के दो बड़े नेता हैं दीवार

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा की राजनीति अभी अभी शुरू की है, लेकिन संघ और भाजपा की दो पीढि़यों ने तो राज-महल का विरोध करते हुए ही अपनी जमीन तैयार की थी. ग्‍वालियर के नरेंद्र सिंह तोमर और नजदीक ही डबरा से आने वाले नरोत्‍तम मिश्रा मध्‍यप्रदेश की सियासत के बड़े नाम हैं. कांग्रेस पार्टी के भीतर इस इलाके में भले सिंधिया का वीटो चलता रहा हो, लेकिन भाजपा उनकी वो स्थिति नहीं रही. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्‍व भले उन्‍हें बड़ी जिम्‍मेदारी देना चाहता हो, लेकिन स्‍थानीय नेतृत्‍व सिंधिया को लेकर बहुत उत्‍साहित नहीं है. सिंधिया को इसका कोई गुमान भी नहीं है. पंचायत आजतक के कार्यक्रम में तो वे ये भी कहते हैं कि 'भाजपा में किसी को आजीवन चुनाव लड़ने के लिए वादा नहीं किया जाता. सभी जानते हैं कि यहां मेरिट के आधार पर ही अवसर मिलेगा. आज भी मैं कई लोगों के नाम दे रहा हूं, जो उपयुक्‍त हैं.' लेकिन सवाल ये है कि सिंधिया के 'उपयुक्‍त' बीजेपी नेतृत्‍व के लिए भी उसी पैमाने पर खरे उतरेंगे?
पिछले चुनाव में कांग्रेस को ग्‍वालियर चंबल क्षेत्र की 34 में 26 सीटें मिली थीं. यदि सिंधिया को भाजपा में अपना कद उसी स्‍तर पर लाना है तो कम से कम अपने प्रयासों से उन्‍हें पिछले चुनाव वाला परफॉर्मेंस दोहराना होगा. लेकिन सवाल फिर वही है कि उन्हें ये मौका देगा कौन? कम से कम 2023 के चुनाव में तो 'महाराज' को एक सामान्‍य कार्यकर्ता की तरह ही जुटना होगा. बाद में भले वे अपने 'राज' का दावा करें.

Live TV

Advertisement
Advertisement