कन्हैया कुमार एक बार फिर बेगूसराय के मैदान में ही उतरना चाहते थे, और कांग्रेस भी बिलकुल ऐसा ही चाहती थी. फिर भी बात नहीं बन सकी - क्योंकि लालू यादव ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहते थे.
2019 में आरजेडी नेता तेजस्वी ने कन्हैया कुमार के चलते ही सीपीआई को भी गठबंधन में कोई सीट नहीं दी गई थी, और कन्हैया कुमार के न होने की वजह से ही इस बार बेगूसराय लोकसभा सीट सीपीआई को मिल पाई है - और कांग्रेस हाथ मलती रह गई, क्योंकि पप्पू यादव का मामला भी कन्हैया कुमार जैसा ही था.
जाहिर है, कांग्रेस को कन्हैया कुमार को किसी भी तरह कहीं न कहीं ऐडजस्ट करना ही था. पहले वाले असाइनमेंट में तो कन्हैया कुछ कर भी नहीं पाये थे. कांग्रेस की तरफ से पहली बार बिहार में हो रहे दो उपचुनावों के लिए भेजा गया था. पटना के सदाकत आश्रम वाले दफ्तर से कन्हैया कुमार ने लालू यादव और नीतीश कुमार के खिलाफ जीभर मन की बात की थी, लेकिन उपचुनाव में कोई असर नहीं देखने को मिला था.
भारत जोड़ो यात्रा और फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा में कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी का भरपूर साथ दिया. धीरे धीरे कन्हैया कुमार भी राहुल गांधी के सबसे पसंदीदा नेताओं की सूची में शामिल हो गये. राहुल गांधी की इस सूची में कांग्रेस के नाना पटोले और रेवंत रेड्डी जैसे नेता शामिल किये जाते हैं.
कन्हैया कुमार, राहुल गांधी के उस पैमाने पर भी खरे उतरते हैं, जिसमें कांग्रेस नेताओं के निडर होने का तमगा मिलता है. दरअसल, कन्हैया कुमार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ राहुल गांधी की तरह ही आक्रामक बने रहते हैं - फर्क बस ये है कि कन्हैया कुमार, राहुल गांधी के मुकाबले ज्यादा अच्छा भाषण देते हैं.
बहरहाल, बिहार में तो कन्हैया कुमार के लिए लोकसभा सीट का इंतजाम नहीं हो सका था, लेकिन उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीट के समीकरण में कन्हैया कुमार फिट भी हो रहे हैं - कांग्रेस में कन्हैया कुमार को भविष्य के नेता के रूप में देखा जाने लगा है.
क्या दिल्ली के मुकाबले को राहुल बनाम मोदी समझा जाये?
जब से कन्हैया कुमार को दिल्ली से चुनाव लड़ाने की चर्चा शुरू हुई थी, पूरा माहौल उनके खिलाफ ही बताया जाता रहा. प्रदेश कांग्रेस के नेता किसी भी स्थानीय नेता के पक्ष में थे, बनिस्बत किसी बाहरी के. और यही वजह रही कि दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली और सांसद रह चुके दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी मजबूत दावेदार माने जा रहे थे.
कन्हैया कुमार की छवि भी बीजेपी उम्मीदवार के मुकाबले उनके लिए कमजोरी समझी जा रही थी. सारी बातें अपनी जगह थीं, लेकिन राहुल गांधी का वीटो फाइनल शॉट था - और कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार घोषित कर दिया.
कांग्रेस में खासकर राहुल गांधी मानते हैं कि दोनों यात्राओं में कन्हैया कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, विशेष रूप से युवाओं को जोड़ने में. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तो एक बार कन्हैया कुमार को राहुल गांधी के बाद सबसे लोकप्रिय नेता तक बताया गया था.
कांग्रेस से लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने पर कन्हैया का कहना है, हम न्याय की बात कर रहे हैं... युवाओं के लिए न्याय, महिलाओं के लिए न्याय, या किसी भी तरह का अन्याय जो हो रहा है... हम अपने न्याय-पत्र को लागू करने का प्रयास करेंगे - और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश होगी.
लेकिन बीजेपी उम्मीदवार और दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके मनोज तिवारी का कहना है कि कन्हैया कुमार 40 दिनों के भ्रमण पर आये हैं. देखा जाये तो 2014 में मनोज तिवारी भी बाहर से आकर ही दिल्ली से चुनाव लड़े थे. उससे पहले मनोज तिवारी भी बीजेपी उम्मीदवार से चुनाव हार चुके थे. मनोज तिवारी समाजवादी पार्टी के टिकट पर यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, और तब उनका भी हाल वैसा ही हुआ था जैसे कन्हैया कुमार को केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से शिकस्त दी थी.
मनोज तिवारी पूछते हैं, टुकड़े-टुकड़े गैंग का नेतृत्व करने वाले लोग दिल्ली और दिल्ली के लोगों के प्रति कितने जिम्मेदार हो सकते हैं, जो देश का सम्मान नहीं कर सकते, सेना का सम्मान नहीं कर सकते?
कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी को लेकर जिस बात का दिल्ली कांग्रेस के नेताओं को डर था, रुझान आने लगे हैं. मनोज तिवारी ही नहीं, कन्हैया कुमार अभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर भी आ चुके हैं. मोदी कह रहे हैं, कांग्रेस पार्टी टुकड़े-टुकड़े गैंग का सुल्तान बनी हुई हैं… टुकड़े-टुकड़े का नारा लगाने वालों को टिकट दे रही है… कांग्रेस के इरादे अब भी देश को बांटने, तोड़ने और कमजोर करने के हैं…
और उसी क्रम में मोदी जोड़ देते हैं, इंडिया गठबंधन के लोग सनातन को खत्म करना चाहते हैं.
देखा जाये तो उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट की लड़ाई न तो कांग्रेस बनाम बीजेपी है, न ही कांग्रेस बनाम मनोज तिवारी है - ये तो कन्हैया बनाम बीजेपी होने जा रही है.
ऐसे में ये भी कह सकते हैं कि दिल्ली की ये लड़ाई राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी होने जा रही है.
2020 दिल्ली दंगे की पृष्ठभूमि और 21 फीसदी मुस्लिम वोट
नॉर्थ ईस्ट दिल्ली वही इलाका है, जहां 2020 में भयंकर दंगा हुआ था. और कन्हैया कुमार के जेएनयू के साथी उमर खालिद अब भी जेल में बंद हैं. जब कन्हैया कुमार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष हुआ करते थे, और उनके जेल जाने के बाद उमर खालिद और शेहला रशीद ही छात्रों का नेतृत्व कर रहे थे. शेहला रशीद भी अब कंगना रनौत की ही तरह घूम घूम कर बीजेपी की खासियतें गिना रही हैं.
2019 के आम चुनाव में शेहला रशीद बेगूसराय भी गई थीं, कन्हैया कुमार के लिए वोट मांगने - हैरानी नहीं होनी चाहिये, अगर इस बार वो मनोज तिवारी के पक्ष में कन्हैया कुमार को टुकड़े-टुकड़े गैंग का नेता बताने लगें.
रही बात उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में वोटों के समीकरण की तो दो मुख्य फैक्टर साफ साफ नजर आते हैं. एक है, मुस्लिम वोट और दूसरा, पूर्वांचल के लोग. मनोज तिवारी को बीजेपी ने पूर्वांचल के वोटर को ध्यान में रखते हुए ही दिल्ली से चुनाव लड़ाया था - और मनोज तिवारी अकेले सांसद हैं जिन्हें बीजेपी ने दिल्ली से लगातार तीसरी बार टिकट दिया है, जबकि बाकी सभी छह सीटों पर बीजेपी अपने नेता बदल चुकी है.
असल में, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली की सीमा यूपी से भी लगती है. और लोकसभा सीट के तहत आने वाले सभी 10 विधानसभा क्षेत्रों में ज्यादातर वही आबादी है, जो यूपी, बिहार और हरियाणा से आई हुई है - धीरे धीरे मनोज तिवारी इलाके को अपना गढ़ बना चुके हैं, जिसके पीछे मजबूती से बीजेपी खड़ी है.
मनोज तिवारी के खिलाफ उनके इलाके में एक भी फैक्टर बनता है. और वो है मुस्लिम वोटर - उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में करीब 21 फीसदी मुस्लिम आबादी भी है.
मुस्तफाबाद, सीलमपुर और करावल नगर जैसे इलाकों में इतनी मुस्लिम आबादी है, जो हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकती है - और अभी तो यही मान कर चलना चाहिये कि पूरा मुस्लिम वोट कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैया कुमार के पक्ष में ही जाना चाहिये.
चूंकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए भी थोड़ा माहौल कन्हैया कुमार के पक्ष में ही बनता है. आप के साथ गठबंधन का कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा, कहना मुश्किल है - क्योंकि 2019 में तो हर जगह अरविंद केजरीवाल की पार्टी तीसरे स्थान पर रही, और कई उम्मीदवार तो जमानत तक नहीं बचा पाये थे.
2019 में कन्हैया कुमार को हराने वाले बीजेपी नेता गिरिराज कहते हैं, कांग्रेस के पास उम्मीदवार की कमी है... चेहरे की कमी है... जितने रिजेक्टेड हैं उन सबको लेकर झुनझुना बजा रहे हैं... जिसको जहां से चाहें लड़ायें... दुनिया की कोई ताकत नहीं है जो मनोज तिवारी को हरा दे.
बेशक कन्हैया कुमार का इस बार भी बीजेपी के लोकप्रिय चेहरे से मुकाबला हो रहा है, लेकिन दिल्ली और बेगूसराय के वोटर में थोड़ा फर्क भी है. ये तो है कि दिल्ली में भी कन्हैया कुमार के खिलाफ बीजेपी उनके खिलाफ देशद्रोह के केस को चुनावी मुद्दा बनाएगी, लेकिन बेगूसराय जैसा कास्ट फैक्टर तो हावी नहीं ही होने वाला है. उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर 25 मई को वोटिंग होगी - और नतीजे 4 जून को आएंगे.