कांग्रेस में राम मंदिर उद्घाटन समारोह में पार्टी के नेता शामिल हों या ना हो इसे लेकर अभी फैसला नहीं हो सका है. पर कर्नाटक में राम मंदिर समारोह को लेकर जो हो रहा है वैसा तो बीजेपी शासित राज्यों में भी नहीं हो रहा है.कर्नाटक सरकार में डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने आदेश दिया है कि प्रदेश के 34 हजार मंदिरों में 22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान विशेष पूजन का आयोजन किया जाए. तो क्या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी शिव की आवाज सुन रही हैं?
दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को मंदिर निर्माण समिति ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया है.तीनों समारोह में जाने को लेकर अभी तक फैसला नहीं कर पाए हैं. पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने आमंत्रण मिलने के बाद यह जरूर कहा था कि हम सही समय आने पर बताएंगे कि तीनों नेता समारोह में शामिल होंगे या नहीं.जयराम रमेश के इस बयान को भी आए करीब 2 हफ्ते से ऊपर हो गए हैं. गंगा से और ज्यादा न पानी बह जाए इसके पहले ही शिवकुमार ने यह फैसला लेकर पार्टी को राह दिखाई है.हालांकि कर्नाटक और दक्षिण में भी यह फैसला लेना इतना आसान नहीं रहा होगा.पर शिवकुमार यूं ही नहीं दक्षिण में पार्टी के तारणहार माने जातें हैं. वे कई मौकों पर पार्टी को बचाने के लिए धूमकेतु की तरह आगे आए हैं. लगता है राम के नाम पर भी पार्टी को अंधकार में प्रकाश दिखाने का काम शिवकुमार के हिस्से ही आने वाला है.
कर्नाटक में क्या होने वाला है
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन यानी 22 जनवरी को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश सरकार से सहायता प्राप्त 34 हजार मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित करने के निर्देश जारी किए हैं. इस फैसले को लेकर कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा है कि आखिरकार हम सभी हिंदू हैं. रामचंद्रन फाउंडेशन पुरस्कार समारोह में भाग लेने के लिए केरल के तिरुवनंतपुरम पहुंचे शिवकुमार ने कहा कि राम मंदिर कोई निजी संपत्ति नहीं है. उन्होंने कहा, ‘नेताओं को बुलाने के लिए बीजेपी चुनिंदा रवैया अपना रही है. देश में बहुत सारे नेता और मुख्यमंत्री हैं. यह कोई निजी संपत्ति नहीं है. यह सार्वजनिक संपत्ति है. कोई भी धर्म और प्रतीक किसी व्यक्ति का नहीं है’ शिवकुमार कहते हैं ‘हम सभी लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हैं, हमारी सरकार में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और हिंदू धर्म के लिए विभाग हैं. डीके शिवकुमार यह भी कहते हैं कि बहुत जल्दी आल इंडिया कांग्रेस कमेटी अयोध्या में राम मंदिर समारोह में भाग लेने का फैसला हो जाएगा.
साऊथ में हिंदू पॉलिटिक्स
कर्नाटक के मुख्यमंत्री इसके पहले के कार्यकाल (2013-18) में ही नियमित रूप से राम और हनुमान के उपासक के रूप में अपनी धार्मिक पहचान की घोषणा करते रहे हैं. केरल के एक कांग्रेसी सांसद ने हिंदू धर्म के प्रति अपनी भक्ति जाहिर करने के लिए एक किताब लिखी. यहां तक कि केरल के कम्युनिस्टों ने भी, जो धर्म को अफ़ीम के रूप में देखते हैं, कृष्ण के जन्म का जश्न मनाने के लिए परेड निकाली और मंदिर के अनुष्ठानों की प्रशंसा कर चुके हैं. सनातन की आलोचना करने वाले उदयनिधि भी गणेश प्रतिमा और हिंदू चिह्नों के साथ देखे गए हैं. पर दक्षिण भारत में इस प्रवृत्ति को केवल "नरम हिंदुत्व की राजनीति" के रूप में मानना एक बहुत बड़ी गलती होगी क्योंकि यहां की राजनीति दक्षिणपंथी रुख वाले मतदाताओं पर केंद्रित है.
यह आम धारणा रही है कि दक्षिण भारत के हिंदू उत्तर भारत के मुकाबले अधिक धर्मभीरू रहे हैं.कर्नाटक में जो हो रहा है वह उनकी मजबूरी है और समझदारी भी है. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि कर्नाटक में ही नहीं उत्तर भारत में भी कांग्रेस को मंदिर समारोह में आना ही पड़ेगा , चाहे स्वांग रचकर आए या अपनी श्रद्धा से पार्टी नेता अयोध्या जरूर जाएंगे. नहीं तो बीजेपी इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने का मौका नहीं गंवाने वाली है.
खरगे और हिंदू राजनीति
मल्लिकार्जुन खरगे दलित समुदाय से आते हैं. दक्षिण में दलित आंदोलन उत्तर भारत के मुकाबले काफी मुखर रहा है. दक्षिण में सनातन का असल विरोध इसी तबके के चलते जोर पकड़ा था. पिछले दिनों जब द्रमुक नेता उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से की थी तो मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे जो कर्नाटक में मंत्री हैं उन्होंने उदयनिधि का खुलकर समर्थन किया था. इसके अलावा सनातन के खिलाफ बयान भी दिया था. यही नहीं सनातन विवाद के बीच मल्लिकार्जुन खरगे का भी एक विडियो बीजेपी ने ट्वीट किया था जिसमें वो सनातन धर्म की आलोचना करते दिख रहे हैं. मल्लिकार्जुन खरगे इस विडियो में कहते दिख रहे हैं कि अगर मोदी को एक और मौका पीएम बनने का मिलता है तो देश में सनातन धर्म और आरएसएस का राज हो जाएगा. खरगे अब कांग्रेस पार्टी के प्रेसिडेंट हैं. उनसे यही उम्मीद की जानी चाहिए कि वो शिवकुमार के तर्क सुन रहे होंगे . उनके पास एक मौका है कि वो कांग्रेस में सभी वर्गों के नेता बनकर उभरें. इंडिया गठबंधन की ओर से उन्हें पीएम कैंडिडेट बनाने की मांग उठ रहे हैं. उनके पास एक मौका है कि कांग्रेस की छवि को सुधार दें.
सोनिया गांधी और हिंदू राजनीति
कहा जाता है कि जब से सोनिया गांधी का कांग्रेस पर वर्चस्व हुआ तब से कांग्रेस पर हिंदू विरोधी का ठप्पा लग गया. यही कारण है कि कांग्रेस कमजोर होती गई. राजनीतिक विश्वलेषकों का मानना है कि राजीव गांधी और नरसिम्हा राव तक कांगेस हिंदू कांग्रेस थी. सोनिया बीजेपी विरोध में इतना उलझ गईं कि कांग्रेस को हिंदू विरोधी बना दिया.नीरजा चौधरी की मानें तो सोनिया बहुत पहले से आरएसएस और हिंदुत्व की विरोधी रही हैं. नीरजा चौधरी अनिल बाली के हवाले से लिखती हैं कि बाली झंडेवालान से जुड़ी हर बात इंदिरा गांधी को बताते थे. वह बातचीत की रिपोर्ट देने एकदम सबेरे जाते, ताकि इसकी भनक आरके धवन जैसे इंदिरा के दूसरे सहयोगियों को ना लगे. इन मुलाकातों को आयोजित कराने वाले इंदिरा गांधी के राजनीतिक सचिव एमएल फोतेदार थे. नीरजा चौधरी लिखती हैं कि फोतेदार ने एक बातचीत के दौरान खुलासा किया था कि इंदिरा जी ने एक बार मुझसे कहा था कि राजीव से कहो कि खाने की मेज पर आरएसएस से अपनी बातचीत के बारे में बात ना करें. क्योंकि वह जानती थीं कि सोनिया गांधी आरएसएस को पसंद नहीं करतीं.सोनिया गांधी के पास भी मौका है कि राम मंदिर समारोह में शामिल होकर अपनी छवि में सुधार कर लें.
कांग्रेस पार्टी को हिंदू विरोधी पार्टी के तगमे से हुआ नुकसान
2014 में कंग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने मान लिया था कि पार्टी को हिंदू विरोधी छवि से नुकसान हुआ है. केरल में पार्टी कार्यकर्ताओं से उन्होंने कहा था कि ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ और अल्पसंख्यकों के प्रति झुकाव रखने वाली छवि सुधारनी होगी. उनके बयान से कांग्रेस में खूब बवाल मचा पर जल्द ही उसे भुला दिया गया. पर शायद यही कारण रहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मंदिरों के चक्कर लगाते रहे हैं. कांग्रेस लीडरशिप को यह समझना होगा कि कांग्रेस आजादी के पहले और आजादी के 4 दशक बाद तक हिंदूवादी पार्टी रही है. यही कारण है कि देश में जनसंघ को उभरने का मौका नहीं मिला. बंटवारे के समय भी एक तरफ मुस्लिम लीग थी दूसरी ओर हिंदुओं को रिप्रजेंट करने वाली कांग्रेस थी.राहुल गांधी और नरसिम्हाराव तक कांग्रेस हिंदू ही रही है.
राम मंदिर आंदोलन और बीजेपी के उभार के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई. अतिशय बीजेपी विरोध ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बना दिया या यूं कहें तो मुस्लिम परस्त छवि दे दी.
राजीव गांधी ने एक तरफ तो रामजन्मभूमि का ताला खोलवाने में मदद की पर दूसरी ओर शाहबानो केस के चलते संविधान संशोधन करके मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने झुक गए.उसके बाद कांग्रेस कभी पूर्ण बहुमत में नहीं आ सकी. कांग्रेस के पास एक मौका है कि वो रामजन्मभूमि मंदिर उद्घाटन समारोह में जाकर अपनी छवि एक बार फिर से हिंदू कांग्रेस वाली बनाए.