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'रामनामी' केजरीवाल ने क्‍या भुला दिया है मुस्लिम वोटरों को? दिल्‍ली में उभरती कांग्रेस को होगा फायदा | Opinion

अरविंद केजरीवाल ने राम मंदिर उद्घाटन के वक्त सुंदरकांड और हनुमान चालीसा पाठ से दिल्ली को राममय बनाने की कोशिश की थी. चुनावी तैयारियों में भी अभी वैसी ही झलक दिखाने की कोशिश हो रही है. केजरीवाल को क्या मुस्लिम वोटर की फिक्र नहीं है - फिर तो कांग्रेस ही फायदा उठाएगी.

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क्या केजरीवाल एंड कंपनी को मालूम है कि दिल्ली में राम-दरबार की राजनीति का फायदा सीधे कांग्रेस को भी मिल सकता है?
क्या केजरीवाल एंड कंपनी को मालूम है कि दिल्ली में राम-दरबार की राजनीति का फायदा सीधे कांग्रेस को भी मिल सकता है?

अरविंद केजरीवाल दिल्ली में राम राज्य लाने में जुटे हुए हैं. अब तक दिल्ली में क्या चल रहा था, ये तो वही जानें. आतिशी के दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने से पहले मिलजुल कर बताया जाने लगा था कि वो तो इंद्रप्रस्थ का शासन वैसे ही चलाएंगी, जैसे अयोध्या में खड़ाऊं लेकर भरत राजकाज चलाते रहे - और कार्यभार संभालने के बाद आतिशी ने दफ्तर में दो कुर्सियां रख कर नमूना भी पेश कर दिया. 

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जनता की अदालत बुलाकर अरविंद केजरीवाल ने जब बताया कि वो माता सीता की तरह ही अग्निपरीक्षा देने जा रहे हैं, तो मनीष सिसोदिया ने भी राम-लक्ष्मण का नजारा दिखाने को पूरी कोशिश की.

अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के वक्त जैसे सुंदरकांड और हनुमान चालीसा पाठ से दिल्ली को राममय बनाने की अरविंद केजरीवाल ने कोशिश की थी, मौजूदा चुनावी तैयारियों में भी वैसी ही झलक दिखाने की कोशिश हो रही है. 

सवाल ये उठता है कि अरविंद केजरीवाल को क्या मुस्लिम वोटों की बिलकुल भी फिक्र नहीं है? 

हो सकता है ये सोचकर ही राहुल गांधी के साथ दोबारा चुनावी गठबंधन न किया हो, लेकिन ये सब तो अब कांग्रेस को ही फायदा पहुंचाएगा.

रामायण के भरोसे केजरीवाल एंड कंपनी

अयोध्या के मुद्दे पर राम मंदिर उद्घाटन के वक्त वो आधे मन से ही विपक्ष के साथ रहे. बहुत ही सोच समझकर बोले भी, एक ही व्यक्ति के लिए बुलावा है, लेकिन वो पूरे परिवार के साथ जाना चाहते हैं. हो सकता है सुरक्षा का मामला हो. बाद में अयोध्या गये भी. अपने साथ साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की भी पूरी कंपनी लिये. 

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राम मंदिर उद्घाटन के दौरान दिल्ली में चल रहा सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ भी तो आपको याद होगा ही..

1. 'आप' के 'राम' केजरीवाल 

दिल्ली में जनता की अदालत में अरविंद केजरीवाल ने तिहाड़ जेल में बिताये अपने 6 महीने के समय को राम वनवास के तौर पर पेश किया. 

2. 'आप' के राम, लक्ष्मण, सीता - और भरत

दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त भी अग्नि परीक्षा का जिक्र किया, ‘इन्होंने मेरे ऊपर आरोप लगाया है… जब भगवान राम वनवास से आये थे, सीता मैया को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी… आज मैं अग्निपरीक्षा देने जा रहा हूं.’
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में कामकाज संभालते वक्त आतिशी ने भी वही कहानी सुनाई, ‘जैसे राम के वनवास जाने के बाद भरत ने खड़ाऊं रखकर अयोध्या का सिंहासन संभाला… मैं उसी तरह दिल्ली सीएम की कुर्सी संभालूंगी… चार महीने बाद दिल्ली के लोग केजरीवाल को फिर से इसी कुर्सी पर बैठाएंगे… तब तक ये कुर्सी इसी कमरे में रहेगी और केजरीवाल जी का इंतजार करेगी.’

'आप' का राम राज्य बजट

मार्च, 2024 में दिल्ली सरकार का बजट आतिशी ने पेश किया था, जिसे राम राज्य बजट के तौर पर प्रचारित किया गया. 90 मिनट के आतिशी के भाषण में 40 बार राम राज्य या राम का नाम लिया गया था.

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जब लोकसभा चुनाव 2024 में कैंपेन के लिए सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिलने पर अरविंद केजरीवाल बाहर आये तो बोले, हम राम राज्य में यकीन रखते हैं... हमने इसकी बात पहले भी बजट के दौरान की है... जब मनीष सिसोदिया बजट पेश करते थे, तब भी ऐसा हुआ था. 

2020 का चुनाव और दिल्ली दंगा

2020 के दिल्ली चुनाव में भी बीजेपी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बेहद आक्रामक दिखी थी. तब शाहीन बाग में धरना और प्रदर्शन भी चल रहा था, और नारे लगाये जाते थे ‘देश के गद्दारों को… गोली मारो…‘ 

बीजेपी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को भड़काने की काफी कोशिश की, लेकिन वो वहां नहीं ही गये - बल्कि टीवी पर भी हनुमान चालीसा पढ़ते रहे.

बीजेपी नेताओं ने बार बार आरोप लगाया कि केजरीवाल और उनके सभी साथी शाहीन बाग आंदोलन के साथ हैं, और बीजेपी नेताओं के उकसाने के बावजूद केजरीवाल बीच से होकर निकल गये. तब आम आदमी पार्टी का चुनाव कैंपेन प्रशांत किशोर संभाल रहे थे, कुछ उसका भी असर था. 

उसी साल दिल्ली में दंगे हो रहे थे, और केजरीवाल आखिरी वक्त तक घर बैठे रहे. दंगा रोकने की उनकी तरफ से कोई कोशिश नहीं देखी गई. वो तो इस चक्कर में थे कि दिल्ली पुलिस तो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, इसलिए उन्हें क्या. वैसे बाद में सफाई भी देते फिर रहे थे. 

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मुस्लिम मुद्दों पर आप और केजरीवाल की बदलती राजनीति

चुनावी राजनीति में कदम रखने के बाद केजरीवाल ने मुसलमानेां के बीच पैठ बनाने के लिए काफी जतन किये थे. एक कार्यक्रम में तो वे यह तक गए थे कि तन-मन-धन से केरीवाल और दिल्‍ली सरकार पूरी तरह वक्‍फ बोर्ड के साथ है. आने वाला वक्‍त ऐसा होगा, जब वक्‍फ बोर्ड के पास इतना पैसा होगा, इतना पैसा होगा कि कोई हिसाब नहीं. वक्‍फ बोर्ड को जब भी जितनी जरूरत होगी, हम उसे देंगे. फिर वे धीरे धीरे मध्‍यम मार्ग लेते लेते हिंदू बाना पहनने लगे. बिलकिस बानो वाले मामले में उनकी चुप्‍पी की खूब आलोचना हुई. लेकिन, चुनाव में मुसलमानों का उन्‍हें समर्थन बदस्‍तूर जारी रहा. समझने वाली बात ये है कि केजरीवाल और आप के प्रति मुस्लिम वोटरों में रुझान इसलिए नहीं है कि वे मुसलमानों को अलग से कुछ फायदा पहुंचा रहे हैं. मुसलमान जानते हैं कि दिल्‍ली में बीजेपी को यदि कोई चुनौती दे रहा है तो आप है. इसलिए मुसलमानों का एकमुश्‍त वोट आप को मिल रहा है. लेकिन, इस बात की कोई गारंटी नहीं कि ऐसा हमेशा हो. खासतौर पर यदि कांग्रेस ने अपनी जमीन वापस लेना शरू की, तब.

दिल्ली में कांग्रेस के लिए मौका

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अरविंद केजरीवाल भले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत से सवाल पूछ रहे हों, या फिर आम आदमी पार्टी में श्रीराम दरबार की झांकी पेश कर रहे हों, आम आदमी पार्टी के कैंपेन में मुस्लिम वोट बैंक की कोई फिक्र तो नहीं ही नजर आ रही है. ये तो साफ है कि देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट कांग्रेस को ही मिलते हैं. कांग्रेस केवल वहीं पीछे रह जाती है, जहां अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव या ममता बनर्जी का प्रभाव ज्यादा होता है. 

दिल्ली में कांग्रेस फिर से पांव जमाने की कोशिश कर रही है, और आप के साथ गठबंधन न होने से मुकाबला त्रिकोणीय होता लग रहा है. अरविंद केजरीवाल और बीजेपी की इस लड़ाई में कांग्रेस को फायदा मिलना तो पक्का लग रहा है.
 

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