कुणाल कामरा की परफॉर्मेंस, कॉमेडी का रेयरेस्ट ऑफ द रेयर इवेंट ही लगता है, जिसमें मनोरंजन सबके लिए नहीं है. ये मनोरंजन कुछ खास लोगों के लिए ही है.
कुणाल कामरा की ताजा कॉमेडी देखकर मजा उन लोगों को ही आ रहा है, जिनके मन की बात हो रही है - और बाकी लोग ताली इसलिए बजा रहे हैं क्योंकि कोई एक पक्ष निशाने पर है.
जैसे राजनीति में लोग एक दूसरे के विरोधी होते हैं, दुश्मन नहीं. वैसे ही कॉमेडी मजाक उड़ाकर मनोरंजन के साथ साथ मैसेज देने की कोशिश भी रहती है. लेकिन, कुणाल कामरा ने तो वो तरीका अपनाया है जो कैंपसों में सीनियर छात्रों का गैंग जूनियर छात्रों के साथ रैगिंग के नाम पर दुश्मन की तरह पेश आता है.
बेशक कुणाल कामरा ने 'दिल तो पागल है' के एक गीत पर पैरोडी में कुछ पंक्तियां गुनगुनाई हैं, लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को टार्गेट किया है, वो करने वाला आर्टिस्ट नहीं कहा जा सकता. ऐसा क्यों लगता है जैसे कुणाल कामरा की कॉमेडी में शार्ली ऐब्दो टाइप फील देने की मंशा छुपी हुई हो.
कुणाल कामरा और समय रैना कॉमेडी के नाम पर क्या कर रहे हैं?
समय रैना का कहना है कि इंडिया गॉट लैटेंट में वो सब कुछ फ्लो में बोल गये, हो सकता है. थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं. लेकिन, कुणाल कामरा ने ऐसा नहीं किया है. कुणाल कामरा तो स्क्रिप्ट के साथ शो कर रहे हैं. कुणाल कामरा को पूरे होशो-हवास में मालूम है कि कहना क्या है. हो सकता है, समय रैना ने भी ऐसा ही किया हो, स्क्रिप्ट देख कर भी पढ़ी जा सकती है, और याद करके भी बोली जा सकती है.
समय रैना ने अपने बयान में कहा है, 'मैंने जो कहा उसके लिए मुझे गहरा खेद है… ये शो के फ्लो में हुआ, और मेरा ऐसा कहने का कोई इरादा नहीं था.'
अपनी गलती को स्वीकार करते हुए समय रैना कहते हैं, 'मुझे एहसास है कि मैंने जो कहा वो गलत था'. बताया है कि विवाद ने उनकी मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा है… और, उसकी वजह से वो कनाडा का शो नहीं कर पाये.
कुणाल कामरा डंके की चोट पर कह रहे हैं कि वो माफी नहीं मांगेंगे. यानी, अपनी बात पर कायम रहेंगे.
कुणाल कामरा की तरफ से एक पोस्टस्क्रिप्ट भी आई है. बयान जारी कर कुणाल कामरा ने कहा है, एक ताकतवर शख्सियत की कीमत पर मजाक को बर्दाश्त न कर पाने की आपकी अक्षमता मेरे अधिकार की प्रकृति को नहीं बदलती… जहां तक मुझे पता है, हमारे नेताओं और हमारी राजनीतिक व्यवस्था के सर्कस का मजाक उड़ाना कानून के खिलाफ नहीं है.'
निश्चित तौर पर ये बात है. लेकिन, ये भी नहीं भूलना चाहिये कि अभिव्यक्ति की आजादी या संविधान से किसी को भी उतनी ही स्वतंत्रता मिली है, जिसका दायरा लांघ कर किसी और की आजादी में खलल न पहुंचाई जाती हो - क्योंकि उसके आगे क्राइम सीन क्रिएट हो जाता है. अगर वो सरकारी पक्ष है, तो ह्यूमन राइट्स का मुद्दा भी उठता है. और संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है, किसी के हक पर हमले का हक किसी को नहीं है.
कुणाल कामरा का ये कहना भी बिल्कुल वाजिब है कि कोई जगह या वेन्यू किसी की कॉमेडी के लिए जिम्मेदार नहीं है. और उनके ये कहने में भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये, ‘शायद मेरा अगला वेन्यू एलफिंस्टन ब्रिज होगा, या मुंबई में कोई और जगह, जिसको ढहाने की सख्त जरूरत है.’ अभी ये चलेगा.
सोशल साइट एक्स पर शेयर अपने बयान में कुणाल कामरा लिखते हैं, एंटरटेनमेंट वेन्यू महज एक प्लेटफॉर्म है… हर किस्म के शो का मंच है… मेरी कॉमेडी के लिए जिम्मेदार नहीं है, और जो भी मैं कहता या करता हूं, उस पर उसका कोई अधिकार या नियंत्रण नहीं है. न ही किसी और पार्टी का कोई अधिकार है.
बिल्कुल सही बात है. लेकिन, ऐसी दलीलों से कुणाल कामरा ने कॉमेडी के बहाने जो कहा है, उसे सही हरगिज नहीं ठहराया जा सकता.
मोचीराम कविता में धूमिल कहते हैं, ‘जिंदा रहने के पीछे, अगर सही तर्क नहीं है... तो रामनामी बेचकर या *** की दलाली करके रोजी कमाने में कोई फर्क नहीं है.’
कुछ कहने के पीछे मंशा क्या है, वो महत्वपूर्ण है
कुणाल कामरा के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी गई है, और शिवसेना-शिंदे की तरफ से ये मामला अपने तरीके से सुलझाने का संदेश भी दिया जा रहा है.
शिंदे सेना ने सुलझाने के तरीके का ट्रेलर तो दे ही दिया है, स्टूडियो में तोड़फोड़ करके. आगे के लिए धमकी भी आ चुकी है. धमकी का एक ऑडियो भी वायरल है, जिसमें कुणाल कामरा खुद को तमिलनाडु में होने के बात कर रहे हैं, और धमकाने वाले मुन्ना भाई वाले सर्किट की तरह पूछ रहे हैं, अब तमिलनाडु कैसे जाएंगे भाई.
बहरहाल, मुद्दा ये है कि कुणाल कामरा के काम से कौन गुस्से में है और किसको मजा आ रहा है. सब कुछ साफ है. सामने है. एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक गुस्से में हैं. और, उद्धव ठाकरे और उनके सपोर्टर मजा ले रहे हैं - अगर शिवसेना के दो टुकड़े नहीं हुए होते तो कुणाल कामरा तमिलनाडु में होकर भी उनकी पहुंच से बाहर नहीं होते.
अपनी पैरोडी में कुणाल कामरा ने सिर्फ गद्दार शब्द का इस्तेमाल किया है. कह सकते हैं, एकनाथ शिंदे का नाम नहीं लिया है. लेकिन, अगली ही लाइन में देवेंद्र फडणवीस की गोद में खेलने की बात भी कर रहे हैं. और, बाद में बाप बदल लेने की भी - और, ये सारे शब्द उद्धव ठाकरे के भाषण से ही लिये गये हैं.
सिर्फ उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे, संजय राउत और कुछ समर्थक ही एकनाथ शिंदे के लिए ‘गद्दार’ शब्द का इस्तेमाल करते आ रहे हैं - कुणाल कामरा इस फेहरिस्त में नया नाम है.
यही वो बात है जो कुणाल कामरा को अलग थलग कर देती है. सवाल ये है कि कुणाल कामरा जनता के कॉमेडियन हैं, या उद्धव ठाकरे के. अगर जनता के कॉमेडियन होते तो भला उद्धव ठाकरे के मन की बात क्यों करते?
एकनाथ शिंदे जिन बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत के दावेदार बने हैं, वो भी कार्टूनिस्ट थे. कार्टून और कॉमेडी में माध्यम भर का फर्क होता है, भाव और मकसद करीब करीब एक ही होता है. लेकिन, कुणाल कामरा की कॉमेडी बाल ठाकरे के कार्टून जैसी तो बिल्कुल नहीं है, जिनके राजनीतिक वारिस उद्धव ठाकरे उनका समर्थन कर रहे हैं.
महाराष्ट्र की जनता चुनावों में उद्धव ठाकरे को करीब करीब ठुकरा चुकी है. मतलब, वो उद्धव ठाकरे के एकनाथ शिंदे को गद्दार कहने के दावे को भी ठुकरा चुकी है - और एकनाथ शिंदे को उद्धव ठाकरे के मुकाबले बेहतर मैंडेट दिया है.
बड़े से बड़े आपराधिक मामलों में मंशा देखी जाती है. जिन मामलों में अपराध को अंजाम देने की मंशा नहीं होती, वो हादसा माने जाते हैं.
एकनाथ शिंदे को ‘गद्दार’ कहने के पीछे कुणाल कामरा की मंशा क्या है, वो ज्यादा महत्वपूर्ण है - और वो मंशा ही उनकी बातों को सुपारी कॉमेडी का तमगा दे रही है.