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मांझी-लालू विवाद है जातिवादी राजनीति का साइड इफेक्ट, लालू को दलित विरोधी क्यों बताया जा रहा है? | Opinion

बिहार में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और जीतनराम मांझी की तकरार काफी निचले स्तर पर चली गई है, जिसमें एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची लगती है - क्या जातीय जनगणना के बाद ये सब और बढ़ने वाला है?

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चुनाव तो अभी काफी दूर है, लालू परिवार और मांझी अभी से क्यों भिड़ गये?
चुनाव तो अभी काफी दूर है, लालू परिवार और मांझी अभी से क्यों भिड़ गये?

बिहार में पढ़ाई-लिखाई और डिग्री को लेकर शुरू हुई बहस अलग ही दिशा में बढ़ने लगी है. बल्कि, कह सकते हैं बेहद छिछले स्तर पर पहुंच चुकी है. ऐसा लगता है जैसे एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतियोगिता शुरू हो गई है. 

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बयान पर केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के रिएक्शन के बाद आरजेडी नेता लालू यादव की भी प्रतिक्रिया आई है, और वो प्रतिक्रिया क्या, वो तो ऐसी बात है जो गाली नहीं, तो उससे कम भी नहीं लगती है.  

लालू यादव और जीतनराम मांझी के बाद आरजेडी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के दूसरे नेताओं के भी बयान करीब करीब उसी दिशा में दिखाई पड़ रहे हैं, जबकि बीजेपी नेता अलग ही मजे ले रहे हैं, लेकिन एक नेता ऐसा भी है जिसने खुद को पूरे विवाद से अलग कर लिया है. 

लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा वाकया हो चुका है, जिसमें गाली-गलौच की नौबत आ चुकी थी - और तब तेजस्वी यादव और चिराग पासवान का अलग अलग व्यवहार सामने आया था. चिराग पासवान ने ताजा विवाद से खुद को अलग कर लिया है. 

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लालू और मांझी के बीच तकरार

जैसे पूरे देश में देखने को मिलता है, बिहार में भी एक दूसरे के विरोधी नेताओं में आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है. चुनाव के दौरान ये सब काफी निचले स्तर पर पहुंच जाता है. लोकसभा चुनाव के दौरान जमुई इलाके का एक वीडियो वायरल हुआ था, आपको याद होगा. 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो निशाने पर रहते ही हैं. तेजस्वी यादव तो कुछ परहेज भी करने लगे हैं, लेकिन मुख्यधारा की राजनीति में फिर से आने को आतुर प्रशांत किशोर के हमलों का तो अलग ही अंदाज है. पहले तो उनके निशाने पर ज्यादातर नीतीश कुमार ही रहते थे, लेकिन कुछ दिनों से वो सबसे ज्यादा तेजस्वी यादव को टारगेट कर रहे हैं, 'नौवीं फेल' नेता बोल बोलकर. 

जीतनराम मांझी को लेकर हाल ही में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कटाक्ष किया था, उनके मौजूदा राजनीतिक झुकाव को लेकर - लेकिन उसके बाद जो बयानबाजी हुई, और फिर उसमें लालू यादव भी कूद पड़े और फिर बहस बहुत ही नीचे के स्तर पर पहुंच गई.

तेजस्वी यादव ने जीतनराम मांझी को 'शर्मा' टाइटल वाला बोल दिया था. कहा था, जीतनराम मांझी और उनका बेटा आरएसएस स्कूल से पढ़े लिखे हैं. ऐसे में जो भी आरएसएस कहता है, वो वही बोलता है. वे लोग सच नहीं जानना चाहते हैं. तेजस्वी यादव का कहना था कि बिना तथ्यों के कुछ भी नहीं बोलना चाहिये. जीतनराम मांझी को लेकर तेजस्वी यादव का कहना था, वो तो केंद्रीय मंत्री हैं... मुख्यमंत्री से जाकर मिलें... कार्रवाई करें... जिसने आग लगाई है, उसको जेल में डालो. 

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तेजस्वी यादव के बाद उनकी बहन और आरजेडी सांसद मीसा भारती भी कहने लगीं, अब लगता है कि पूरे बिहार को प्रमाण पत्र मांझी से ही लेना पड़ेगा... वो इतने सीनियर नेता हैं. 

ये सब चल ही रहा था, तभी जीतनराम मांझी की हम पार्टी के प्रवक्ता श्याम सुंदर शरण भी मोर्चे पर आ धमके, हिम्मत है तो लालू परिवार अपनी तीन पीढ़ी की वंशावली जारी करे... लालू प्रसाद की जाति को लेकर सब कुछ साफ हो जाएगा. 

और इसके साथ ही लालू प्रसाद यादव पर दलित विरोधी बताने की कोशिश चल पड़ी. श्याम सुंदर शरण कहने लगे, हकीकत ये है कि लालू प्रसाद दलित विरोधी मानसिकता के व्यक्ति हैं... उन्होंने दलितों को हमेशा पैरों से दबाकर रखा.

तभी जीतनराम मांझी और लालू यादव भी आमने सामने आ धमके. लालू यादव की जाति को लेकर मांझी कहने लगे, 'अगर तेजस्वी हमें शर्मा कहते हैं, तो पहले वो अपने पिताजी का बतायें... उनके पिताजी किसके जन्मे हुए हैं... वो तो गड़ेरिया के जन्मे हुए हैं, तो लालू यादव गड़ेरिया हैं... यादव नहीं हैं. 

अव्वल तो ये कोई नई बहस नहीं है. पहले भी ऐसी बातें होती रही हैं, लेकिन ताजा बहस ने अलग रास्ता अख्तियार कर ली है. मांझी की बात पर लालू प्रसाद यादव भी उन्हीं के अंदाज में पूछ बैठे हैं, वो मुसहर हैं? वो मुसहर हैं क्या?

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लालू और मांझी तकरार का किसे फायदा

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने तो आसानी से पल्ला झाड़ लिया है. चिराग पासवान का कहना है कि दोनो नेता उम्र और अनुभव में उनसे बड़े हैं, इसलिए उनका बीच में पड़ना ठीक नहीं होगा - लेकिन बीजेपी लालू परिवार के खिलाफ जीतनराम मांझी के सपोर्ट में खड़ी हो गई है. 

बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी कहते हैं, लालू प्रसाद मानने को तैयार नहीं हैं, क्या किया जाये? मांझी ने तो लालू को ब्रह्म ज्ञान दे दिया है. मांझी तो बोल रहे हैं कि वो मूसहर के बेटे हैं, लेकिन लालू क्यों नहीं कह रहे हैं कि वो किनके बेटे हैं?

बीजेपी नेता की भाषा और भाव तो वैसा ही है जैसे वो एक पक्ष में खड़े होकर हमला बोल रहे हों. बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल तेजस्वी यादव को बोलने में परहेज की सलाह देते हुए चेताया भी है. कहते हैं, अगर जीतन राम मांझी एससी-एसटी कोर्ट में जाते हैं तो तेजस्वी यादव ने जिस तरह से उनकी जाति को ठेस पहुंचाई है उनको जमानत भी नहीं मिल पाएगी.

जो बहस चल रही है, उसका कोई अंत नहीं है. और जिस तरह से बीजेपी भी शामिल हो गई है, वो सिलसिला भी अनंत की ही तरफ इशारा करता है. अगले साल 2025 में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं, और तब तो ये बहस और भी नीचे गिर सकती है. 

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अव्वल तो ऐसी बहसों का कोई फायदा नहीं होने वाला, लेकिन अगर समर्थक प्रभावित हुए, और वोटर तक बात पहुंची तो मुश्किल हो सकती है. अगर लालू प्रसाद के वोटर को लगा कि जीतनराम मांझी उनके नेता का अपमान कर रहे हैं, तो असर जरूर पड़ सकता है. और वैसे ही जीतनराम मांझी के समर्थक भी नाराज हो सकते हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान जमुई का एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें आरजेडी समर्थक गाली-गलौच कर रहे थे, वो भी तब जब मंच पर तेजस्वी यादव मौजूद थे. तब चिराग पासवान ने कहा था कि वो तो ऐसी बातें राबड़ी देवी के लिए भी बर्दाश्त नहीं करते क्योंकि उनको भी वो मां की तरह ही मानते हैं. लेकिन तेजस्वी यादव को ऐसी बातों से कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा नहीं लगा. 

बिहार में जातीय राजनीति तो पहले से ही हावी रही है, कहीं ये जातिगत गणना का साइड इफेक्ट तो नहीं नजर आ रहा है? अगर बिहार का ये हाल है, तो जातीय जनगणना होने पर पूरे देश में क्या हालत होगी?

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