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दिल्ली CM के तौर पर अरविंद केजरीवाल जनता की पहली पसंद हैं, लेकिन क्या इतना काफी है?

दो फरवरी को किए गए सी वोटर के सबसे ताजा सर्वे के दौरान अरविंद केजरीवाल 46 प्रतिशत वोटर्स के लिए दिल्ली के सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री थे. यह अगली पसंद, बीजेपी सांसद मनोज तिवारी से बहुत आगे है, जो सिर्फ़ 15 फीसदी लोगों की पसंद हैं.

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बजट के बाद कितना बदला दिल्ली का चुनाव
बजट के बाद कितना बदला दिल्ली का चुनाव

दिसंबर 2023 से ऐसा लगता है कि भारतीय मतदाता ने न सिर्फ पॉलिटिकल पंडितों और टिप्पणीकारों को भ्रमित करने का फैसला किया है, बल्कि चुनाव परिणामों के मामले में उन्हें निराशा की ओर धकेल दिया है. क्या वोटर्स 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के नतीजों का ऐलान होने पर राजनीतिक विश्लेषकों को शर्मिंदगी की एक और खुराक देंगे?  केंद्रीय बजट के बाद सी वोटर की ओर से किए गए सबसे ताजा सर्वे से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी की लगभग तय जीत एक कठिन मुकाबला बनती जा रही है. संभावनाएं अभी भी अरविंद केजरीवाल के पक्ष में हैं कि वे बीजेपी के हमले को सफलतापूर्वक रोक पाएंगे, लेकिन डेटा और आंकड़े उनको राहत देने वाले नहीं होंगे.

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सबसे पंसदीदा CM होना काफी नहीं?

सबसे पहले करिश्मा और लोकप्रियता पर नज़र डालते हैं, जो अक्सर चुनावों के दौरान दूसरे मुद्दों पर हावी रहते हैं. दो फरवरी को किए गए सी वोटर सर्वे के दौरान अरविंद केजरीवाल 46 प्रतिशत वोटर्स के लिए दिल्ली के सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री थे. यह अगली पसंद, बीजेपी के मनोज तिवारी से बहुत आगे है, जो सिर्फ़ 15 फीसदी लोगों की पसंद हैं. लेकिन पांच साल पहले विधानसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर दिल्ली के करीब 70 प्रतिशत मतदाता केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे. इस हिसाब से यह करीब 23 प्रतिशत की गिरावट है और यह पहला संकेत है कि  AAP के लिए मौजूदा चुनाव 2015 और 2020 की तरह आसान नहीं होगा.

हमें नवंबर 2023 और मई 2024 में क्रमशः छत्तीसगढ़ और ओडिशा विधानसभा चुनाव के नतीजों को नहीं भूलना चाहिए. छत्तीसगढ़ में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव की पूर्व संध्या पर पहली पसंद थे, जबकि ओडिशा में नवीन पटनायक और भी बड़े अंतर से पहली पसंद थे. फिर भी दोनों हार गए और बीजेपी को चौंकाने वाली जीत मिली. कुछ महीने पहले भी स्थिति कुछ अलग नहीं थी, जब हरियाणा में वोटों की गिनती से पहले ही कांग्रेस ने जश्न मनाना शुरू कर दिया था, क्योंकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री के रूप में 'पहली पसंद' थे.

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बजट के बाद बदला जनता का मूड?

दशकों से सी वोटर ने महसूस किया है कि दो और मेट्रिक्स इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हवा किस तरफ बह रही है. हालांकि यह दोहराया जाना चाहिए कि सीटों की सटीक संख्या का अनुमान लगाना बिल्कुल भी सही नहीं है. पहला मेट्रिक निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर हैं- क्या आप इस सरकार से नाराज़ हैं और क्या आप इसे बदलना चाहते हैं? 2020 में जब सी वोटर ने अपना सर्वे किया तो 27 प्रतिशत ने हां कहा और 70 प्रतिशत ने नहीं कहा था. दो फरवरी को 44 प्रतिशत लोगों ने हां कहा और 49 प्रतिशत ने ना कहा. बढ़त अभी भी AAP के पास है, लेकिन यह चाकू की धार पर है. 

दूसरा मेट्रिक निम्नलिखित प्रश्न के उत्तरों पर आधारित है- चाहे आप किसी भी पार्टी का समर्थन करें, आपको क्या लगता है कि आपके राज्य में कौन सी पार्टी चुनाव जीतेगी? 2020 में 19 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी का समर्थन किया, जबकि लगभग 70 प्रतिशत ने AAP का समर्थन किया. इस बार, लगभग 37 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी का समर्थन किया, जबकि 42 प्रतिशत ने AAP का समर्थन किया. एक चतुर और सफल राजनीतिज्ञ होने के नाते अरविंद केजरीवाल के लिए इन आंकड़ों से चिंतित होना स्वाभाविक है.

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ये फैक्टर तय करेंगे चुनावी नतीजे

इसके कई कारण हैं, सत्ता विरोधी फैक्टर्स की एक लंबी लिस्ट है. पहला है दस साल की एंटी-इंकम्बेंसी का बोझ, जिसकी कीमत बीजेपी को भी 2024 के लोकसभा चुनावों में चुकानी पड़ी. दूसरा है शराब घोटाला और 'शीश महल' विवाद जैसे मुद्दे, जिन्होंने AAP की भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा वाली छवि को नुकसान पहुंचाया है. अगर AAP यह चुनाव जीतती है, जैसा कि अभी भी संभावना है, तो ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि मतदाताओं को लगता है कि पार्टी या केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं. यह केवल इसलिए होगा क्योंकि AAP का रिकॉर्ड निचले तबके तक मुफ्त चीजें पहुंचाने का रहा है, जो आंकड़े में दिल्ली की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है.

तीसरा बड़ा मुद्दा दिल्ली नगर निगम पर AAP का कंट्रोल है. जब खराब और गड्ढेदार सड़कें, खुले सीवर, कूड़े और अन्य मुद्दों की बात आती थी जो सभी को प्रभावित करते हैं, तो AAP का कहना था कि MCD पर BJP का नियंत्रण है. अब ऐसा नहीं है क्योंकि MCD अब AAP के पास में है, लेकिन कूड़े के ढेर और खराब सीवर लाइनें अभी भी हर जगह मौजूद हैं. AAP के लिए सौभाग्य की बात यह रही कि बीजेपी ने किसी तरह खुद को 'शीश महलट पर केंद्रित रखा, बिना यह समझे कि यह मुद्दा बहुत पहले ही चरम पर पहुंच चुका था और केजरीवाल और उनकी पार्टी को शुरुआती नुकसान के इसमें ज्यादा कुछ बचा नहीं था. दरअसल, AAP 'शीश महल बनाम राजमहल' की बहस को जारी रखने में बहुत खुश थी, क्योंकि इससे एमसीडी स्तर पर AAP की विफलता से ध्यान हटा हुआ था. जिनमें विशेष रूप से कचरा, पीने के पानी और सीवेज जैसी समस्याएं शामिल हैं.

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किसकी तरफ मिडिल क्लास वोटर?

लेकिन अब AAP और  अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि निर्मला सीतारमण की ओर से संसद में बजट पेश किए जाने के बाद अचानक धारणा बदल गई है. दिल्ली में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए बीजेपी हमेशा मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के मतदाताओं पर निर्भर रही है. साल 2013 से निम्न मध्यम वर्ग ने निश्चित रूप से AAP के पक्ष में रुख किया है. अरविंद केजरीवाल के लिए आंकड़ों के लिहाज से मजबूत वोट बैंक की वफ़ादारी बनाए रखना अहम है. लेकिन यहां भी खतरे के संकेत हैं. बजट से पहले दिल्ली के निम्न मध्यम वर्ग के 37 प्रतिशत मतदाता बीजेपी के पक्ष में थे, जबकि 56 प्रतिशत AAP के समर्थक थे. यह वह बड़ा अंतर है जिसने 2015 और 2020 में AAP की भारी जीत सुनिश्चित की थी. बजट के बाद निम्न मध्यम वर्ग के 42 प्रतिशत मतदाता बीजेपी का समर्थन करते हैं, जबकि पहले से काफी कम 48 प्रतिशत लोग अब भी AAP के पक्ष में हैं.

जहां तक उच्च मध्यम वर्ग के वोट का सवाल है, बीजेपी हमेशा आगे रही है. बजट के बाद यह बढ़त और बढ़ गई है. बजट से बाद आठ प्रतिशत से बढ़कर बीजेपी की AAP पर बढ़त 21 प्रतिशत हो गई है. यहां एकमात्र मुद्दा यह है कि मध्यम वर्ग बेहद उत्साहित है, अपने ड्राइंग रूम में बैठा है, लेकिन मतदान के दिन वोट करने नहीं जाता. यह कुछ ऐसा है जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चुनाव में बीजेपी की मदद करना चाहेगा. दूसरी ओर AAP के मुख्य मतदाता निम्न आय वर्ग, दलित, मुस्लिम और 'झुग्गी वाले' हैं, जो मतदान के दिन हमेशा बड़ी संख्या में मतदान करते हैं. अरविंद केजरीवाल के लिए एकमात्र राहत की बात यह है कि उन्हें इन विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर खड़े वोटर ग्रुप का बहुत बड़ा समर्थन हासिल है.

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उदाहरण के लिए, 24 प्रतिशत निरक्षर मतदाता बीजेपी का समर्थन करते हैं, जबकि 67 प्रतिशत AAP का समर्थन करते हैं. यह अंतर हायर सेकेंडरी लेवल तक बना रहता है, जहां 43 प्रतिशत बीजेपी का समर्थन करते हैं, जबकि 48 प्रतिशत AAP का समर्थन करते हैं. हाई एजुकेशन प्राप्त लोगों के लिए बीजेपी, AAP से आगे है. सामान्य श्रमिक के रूप में वर्गीकृत लोगों में 36 प्रतिशत बीजेपी का समर्थन करते हैं, जबकि 56 प्रतिशत AAP का समर्थन करते हैं. वहीं, गृहणियों के बीच भी AAP को 57 प्रतिशत समर्थन हासिल है, जबकि बीजेपी को 33 प्रतिशत. बजट के बाद इन आंकड़ों में कितना बदलाव आया है, इसका विश्लेषण अभी किया जाना बाकी है.

किसके वादे ज्यादा मजबूत

तो क्या हो सकता है? चुनावों में तीन फैक्टर्स निर्णायक भूमिका निभाएंगे. पहला है महिला मतदाता, दो फरवरी के सी वोटर सर्वे के अनुसार AAP अभी भी बीजेपी पर महत्वपूर्ण बढ़त बनाए हुए है. अब यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि दिल्ली की महिलाएं किसके मुफ्त वादे पर ज्यादा भरोसा करती हैं. दूसरा है कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यक वोट में सेंध लगाना, कांग्रेस की ओर थोड़ा सा भी झुकाव AAP के लिए घातक साबित हो सकता है. हालांकि ऐसा होने की संभावना कम है. तीसरा है बीजेपी और संघ परिवार की यह सुनिश्चित करने की क्षमता कि पर्याप्त संख्या में बीजेपी समर्थक बाहर निकलें और 5 फरवरी को वास्तव में अपना वोट डालें.

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परंपरागत रूप से मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के भारतीयों का मतदान प्रतिशत गरीबों की तुलना में बहुत कम रहा है. शायद इससे अरविंद केजरीवाल को राहत मिलेगी. लेकिन जैसा कि दिसंबर 2023 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव फिर 2024 में लोकसभा चुनाव और ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में दिखा है, अगर दिल्ली का मतदाता कोई चौंकाने वाला फैसला सुनाता है तो हैरानी की बात नहीं होगी .क्योंकि आप जिस भी तरह से देखें, दिल्ली विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी की लगभग निश्चित जीत से ऐसी जीत में बदल गया है जिसे शायद बहुत करीबी कहा जा सकता है.

(यशवंत देशमुख सी वोटर रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक हैं और सुतानु गुरु कार्यकारी निदेशक हैं)

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