दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का धुआंधार कैंपेन चल रहा है. कभी कुछ कहना होता है तो मीडिया के जरिये, तो कभी सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कह रहे हैं, और पत्नी सुनीता केजरीवाल के साथ भी रोड शो कर रहे हैं.
बीच बीच में वो नये नये नारे भी गढ़ रहे हैं. सुनीता केजरीवाल के साथ रोड शो के दौरान अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के नारे को एक्सटेंड करते हुए कहा, 'अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी जाने वाले हैं.'
वो फिलहाल अंतरिम जमानत पर हैं, और 2 जून को सरेंडर करना है. चुनाव कैंपेन के दौरान वो खुद भी और सुनीता केजरीवाल भी लोगों को बार बार ये बताती रहती हैं कि अगर दिल्लीवालों ने इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों को वोट देकर उनकी जीत पक्की कर दी तो अरविंद केजरीवाल को जेल नहीं जाना पड़ेगा.
लेकिन इस बीच अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी समस्या है स्वाति मालीवाल केस. अरविंद केजरीवाल के पुराने साथियों में से एक रहीं स्वाति मालीवाल नई विरोधी बन गई हैं. स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री आवास पर उनके साथ मारपीट की गई, जिसमें अरविंद केजरीवाल के पीए विभव कुमार ने हमला किया - FIR दर्ज होते ही दिल्ली पुलिस विभव कुमार को उठा ले गई. फिलहाल वो पुलिस रिमांड पर हैं.
देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल के लिए स्वाति मालीवाल केस कोई नई चीज नहीं है. ऐसे समझ सकते हैं कि पुराने साथियों के दुश्मन बन जाने का एक नया मामला है - सवाल ये है कि ये मामला कहां तक जाएगा, और अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर स्वाति मालीवाल केस का कितना प्रभाव पड़ेगा?
अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर स्वाति मालीवाल केस का प्रभाव
स्वाति मालीवाल केस ने अरविंद केजरीवाल को एकाएक काफी उलझा दिया है. और इस उलझन की बड़ी वजह उनके सहयोगी और करीबी विभव कुमार की गिरफ्तारी है. स्वाति मालीवाल ने विभव कुमार पर मुख्यमंत्री आवास पर मारपीट करने का आरोप लगाया है.
अरविंद केजरीवाल के लिए अहम तो स्वाति मालीवाल भी रही हैं, लेकिन विभव कुमार का महत्व ऐसे भी समझा जा सकता है कि जेल जाने के बाद मुलाकात के लिए जेल प्रशासन को सूची दी गई उसमें उनका भी नाम शामिल था.
विभव कुमार ताजा विवाद के केंद्र में हैं, और मुश्किल ये है कि सिर्फ स्वाति मालीवाल ही नहीं, संजय सिंह की बातों से भी लगता है कि विभव कुमार ही दोषी हैं. अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट साथी आतिशी विभव कुमार को बेकसूर ठहराते हुए स्वाति मालीवाल पर ही बीजेपी के हाथों में खेलने का आरोप लगाया है.
पूरे विवाद में संजय सिंह एक अलग ही छोर पर दिखाई पड़ते हैं. अरविंद केजरीवाल के साथ विभव कुमार और संजय सिंह को सार्वजनिक रूप से आखिरी बार लखनऊ में देखा गया था. विभव कुमार को साथ लखनऊ ले जाना भी अरविंद केजरीवाल की तरफ से मैसेज ही था, और संजय सिंह का साथ होना भी ऐसे ही समझा जाना चाहिये.
प्रवर्तन निदेशालय और अन्य जांच एजेंसियों के नोटिस की तरह विभव कुमार का मामला भी अरविंद केजरीवाल राजनीतिक रूप से ही लड़ रहे हैं, लेकिन इस लड़ाई में अरविंद केजरीवाल की तरफ से मीडिया के सामने आ रहीं आतिशी भी स्वाति मालीवाल के टारगेट पर आ गई हैं.
जब से मारपीट की घटना हुई है, स्वाति मालीवाल अपनी बात या तो पुलिस को बता रही हैं, या फिर सोशल मीडिया पर. स्वाति मालीवाल का कहना है, दिल्ली के मंत्री झूठ फैला रहे हैं कि मुझ पर भ्रष्टाचार की एफआईआर हुई है... इसलिए बीजेपी के इशारे पर मैंने ये सब किया... ये एफआईआर 8 साल पहले 2016 में हो चुकी थी जिसके बाद मुझे CM और LG दोनों ने दो बार महिला आयोग की अध्यक्ष नियुक्त किया. स्वाति मालीवाल कहती हैं, केस पूरी तरह फर्जी है जिस पर डेढ़ साल से हाई कोर्ट ने स्टे लगाया हुआ है.
अरविंद केजरीवाल और विभव कुमार के अलावा स्वाति मालीवाल फिलहाल सबसे ज्यादा आतिशी के व्यवहार से दुखी हैं. असल में, प्रेस कांफ्रेंस करके संजय सिंह के विभव कुमार को दोषी बता देने के बाद आतिशी ही अरविंद केजरीवाल का पक्ष रख रही हैं. आतिशी का आरोप है कि जो कुछ हुआ वो स्वाति मालीवाल ने बीजेपी के इशारे पर किया है.
स्वाति मालीवाल का कहना है, पूरी ट्रोल आर्मी मुझ पर लगा दी गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने सच बोला... सभी लोगों को फोन करके बोला जा रहा है कि स्वाति की कोई पर्सनल वीडियो है तो भेजो... लीक करनी है... मेरे रिश्तेदारों की गाड़ियों के नंबर से उनकी डिटेल्स ट्वीट करवाकर उनकी जान खतरे में डाल रहे हैं.
बीते वाकयों को याद करें तो आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के पहले से ही बहुत सारे लोग अरविंद केजरीवाल से जुड़े हुए थे, लेकिन गुजरते वक्त के साथ बारी बारी कई लोगों का साथ छूटता गया. कई साथी तो चुपचाप अपना रास्ता अलग कर लिये, लेकिन कई ऐसे भी रहे जिन्होंने अरविंद केजरीवाल पर काफी गंभीर आरोप भी लगाये.
अरविंद केजरीवाल अपनी जगह बरकरार हैं, साथियों का कहीं कोई अता पता नहीं है. कुछ लोग कट्टर विरोधी बने हुए हैं, और लगातार आक्रामक देखे जाते हैं, लेकिन वो अपनी कोई अलग हैसियत नहीं बना पाये हैं.
अन्ना हजारे, किरण बेदी जैसे लोगों ने पहले ही मना कर दिया कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. बाद में पता चला कि उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कहीं और थी - और अरविंद केजरीवाल अपने रास्ते चलते जा रहे हैं.
स्वाति मालीवाल भी अरविंद केजरीवाल के पुराने दोस्तों उसी कतार में देखी जा सकती हैं, भले ही आम आदमी पार्टी की तरफ से उनके बीजेपी प्रभाव में होने के आरोप क्यों न लगाये जा रहे हों.
केजरीवाल के दोस्त तो शिद्दत से दुश्मनी निभा रहे हैं
आम आदमी पार्टी से बेदखल कर दिये गये अरविंद केजरीवाल के साथियों की एक लंबी फेहरिस्त है. केजरीवाल के पुराने दोस्तों में कुछ तो ऐसे हैं जो अपना अलग रास्ता अख्तियार कर चुके हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर आप नेता के खिलाफ न तो कोई मुहिम चला रहे हैं, न ही किसी मुहिम का हिस्सा हैं.
योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आशुतोष जैसे पुराने साथी अरविंद केजरीवाल को जरूर याद आते होंगे. वे साथ तो नहीं हैं, लेकिन साथ होते तो मुसीबतें भी कम होतीं. हाल फिलहाल जिस तरह का विवाद हुआ है, और जिस तरह की खबरें सामने आ रही हैं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे लोगों होते तो बात इतनी नहीं बिगड़ती.
ट्रबलशूटर के रूप में ले देकर अरविंद केजरीवाल के पास संजय सिंह बचे हुए थे, लेकिन बाहर भीतर जो चल रहा है, उसमें तो यही लगता है कि संजय सिंह भी बस कहने भर को साथ दिखाई दे रहे हैं - अब उनकी भूमिका ऐसी नहीं लगती कि राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था. जैसे पहले वो मुश्किलों के अरविंद केजरीवाल तक पहुंचने से पहले ही सामने दीवार बन कर खड़े हो जाते थे.
अरविंद केजरीवाल के पुराने साथियों में कुछ ऐसे जरूर हैं जो दिन रात पानी पिलाने की कोशिश में रहते हैं - और मौका मिलते ही आक्रामक रुख अपना लेते हैं.
1. कपिल मिश्रा ने ही सबसे पहले अरविंद केजरीवाल पर 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने जैसा गंभीर आरोप लगाया था, लेकिन हवा हवाई साबित हुआ. क्योंकि किसी ने भी उनके आरोप को गंभीरता से नहीं लिया. कहने को तो वो जांच एजेंसियों को सबूत भी सौंप आये थे, लेकिन कहीं से कोई बात सामने नहीं आई.
अरविंद केजरीवाल के साथ रहते हुए तो वो दिल्ली सरकार में मंत्री भी बने थे, लेकिन बीजेपी के टिकट पर वो विधानसभा चुनाव भी हार गये - ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल पर वो ठीक वैसे ही हमलावर रहते हैं, जैसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देखा जाता है.
2. कुमार विश्वास भी कभी अरविंद केजरीवाल के बेहद खास लोगों में शुमार हुआ करते थे, लेकिन दोस्ती खत्म होने के बाद तो वो उनके आतंकवादियों से रिश्ते होने तक का इल्जाम लगा चुके हैं. और जब भी मौका मिलता है, एक कविता ऐसी जरूर सुनने को मिलती है जिसमें निशाने पर अरविंद केजरीवाल होते हैं.
कुमार विश्वास के बारे में सुना जा रहा था कि वो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. हो सकता है इसकी बड़ी वजह ये भी रही हो कि उनकी वजह से बीजेपी को अभी तक कोई फायदा नहीं मिला है.
3. मुनीश रायजादा भी कभी अरविंद केजरीवाल के सहयोगियों में शुमार हुआ करते थे, लेकिन साथ छूटने के बाद से वो लगातार तरह तरह के आरोप लगाते रहे हैं. हाल ही में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के उपराज्यपाल ने टेरर फंडिंग को लेकर एनआईए जांच की सिफारिश की है. जानने वाली बात ये है कि अरविंद केजरीवाल पर लगे नये इल्जाम का आधार मुनीश रायजादा के लगाये आरोप ही हैं.
नाम तो ऐसे कई हैं, लेकिन राजकुमार आनंद और शाजिया इल्मी का जिक्र यहां मुनासिब लगता है. शाजिया इल्मी बीजेपी में हैं, लेकिन उनको भी तभी ज्यादा एक्टिव देखा जाता है जब मामला अरविंद केजरीवाल से जुड़ा हो. स्वाति मालीवाल केस के सामने आने पर भी उनको अरविंद केजरीवाल को निशाना बनाते देखा गया था.
राज कुमार आनंद दिल्ली सरकार में मंत्री हुआ करते थे. मनीष सिसोदिया, सुरेंद्र जैन और संजय सिंह के जेल जाने तक तो नहीं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के जेल जाते हुए उनको लगा कि अब बहुत हो गया. भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर वो अपनी तरफ से मंत्री पद से इस्तीफा दे दिये - और फिलहाल बीएसपी के टिकट पर दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
ये ठीक है कि शराब नीति केस में अरविंद केजरीवाल को जेल जाना पड़ा है, लेकिन उनकी राजनीतिक पोजीशन बरकरार है, जबकि दोस्त से दुश्मन बन चुके नेताओं के पास कहीं कोई उल्लेखनीय राजनीतिक ठिकाना नहीं है. बस जैसे तैसे गुजारा चल रहा है.