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लाडकी बहन, हिंदुत्व और विपक्ष का पतन... रजत सेठी से जानिए महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव के 10 फैक्टर

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में सबसे अहम निष्कर्ष यह है कि महिला मतदाताओं ने नतीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महिलाओं पर केंद्रित नीतियां, विशेषकर सीधे कैश ट्रांसफर ने सबसे अधिक चुनावी लाभ दिए हैं. इसे राजनीतिक रणनीति अब अहम भूमिका में देखा जा रहा है. 

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महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम
महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम अब सामने हैं. मतगणना अब अंतिम चरण में हैं और जो अभी तक रुझान बने हैं, उससे ये स्पष्ट दिख रहा है कि महाराष्ट्र में महायुति ने बंपर जीत हासिल कर रही है तो वहीं झारखंड में भी हेमंत सोरेन की वापसी हो रही है. इन चुनाव परिणाम में क्या खास बात हैं और इनमें क्या संदेश छिपे हैं, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार रजत सेठी.

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निर्णायक भूमिका में महिलाएं
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में सबसे अहम निष्कर्ष यह है कि महिला मतदाताओं ने नतीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महिलाओं पर केंद्रित नीतियां, विशेषकर सीधे कैश ट्रांसफर ने सबसे अधिक चुनावी लाभ दिए हैं. इसे राजनीतिक रणनीति अब अहम भूमिका में देखा जा रहा है. 

2. हिंदुत्व ने जाति की राजनीति को दी मात
महाराष्ट्र में बीजेपी की हिंदुत्व वोटों को संगठित करने की रणनीति ने बिखरी हुई जाति आधारित राजनीति को पछाड़ दिया. इससे साबित होता है कि पार्टी व्यापक वैचारिक अपील के जरिए मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही है.

3. मेहनत बनाम आत्मसंतोष
चुनावी सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता. महाराष्ट्र में बीजेपी की मेहनती चुनावी तैयारी ने शानदार परिणाम दिए, जबकि कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) पिछली लोकसभा प्रवृत्तियों पर निर्भर रहकर गलतफहमी में रहीं.

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4. कल्पना सोरेन का राजनीतिक अभियान रंग लाया
झारखंड में जेएमएम+ गठबंधन के लिए कल्पना सोरेन का जमीनी स्तर पर सशक्त अभियान एक मिसाल रहा है. उनकी नेतृत्व क्षमता ने दिखाया कि कड़ी मेहनत और मतदाताओं से जुड़ाव का चुनावी नतीजों पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है.

5. महाराष्ट्र में विपक्ष का पतन
महाराष्ट्र में विपक्ष इस हद तक कमजोर हो चुका है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी खतरे में है. महाविकास अघाड़ी (एमवीए) दलों से बीजेपी-नेतृत्व वाली महायुति में और अधिक नेताओं के जाने की संभावना है, जिससे राज्य में बीजेपी की ताकत और बढ़ेगी.

6. प्रमुख मुद्दों पर चूक
किसानों की समस्याएं और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दे महाराष्ट्र में चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते थे, लेकिन एमवीए के कमजोर अभियान और ठोस वादों की कमी ने इन मुद्दों को चुनावी चर्चा से बाहर कर दिया. कांग्रेस के "गारंटी कार्ड" जैसे प्रयास भी इस बार असर नहीं दिखा सके हैं. 

7. झारखंड के आदिवासियों पर घुसपैठ का मुद्दा बेअसर
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा आदिवासी मतदाताओं पर असर डालने में असफल रहा है.आदिवासी समुदाय, जो राज्य की राजनीतिक संरचना में एक बड़ा हिस्सा है, ने इस विषय पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

8. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और चंपई सोरेन का जाना
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और चंपई सोरेन के पाला बदलने से जेएमएम+ के लिए सहानुभूति लहर पैदा हुई. इन घटनाओं ने जनता की भावनाओं को गठबंधन के पक्ष में कर दिया और खोई हुई ताकत को फिर से पाने में मदद की.

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9. बीजेपी की वापसी आत्मविश्वास के साथ
राष्ट्रीय स्तर पर, बीजेपी की फिर से मजबूती साफ तौर नजर आती है. प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी को लेकर आलोचनाओं के बीच यह प्रदर्शन साबित करता है कि उन्हें खारिज करना जल्दबाजी होगी. यह प्रदर्शन आगामी दिल्ली और बिहार चुनावों के लिए बीजेपी को आत्मविश्वास देगा.

10. कांग्रेस: आत्ममंथन की कमी
कांग्रेस के सामने गंभीर चुनौतियां हैं, लेकिन वह आत्ममंथन करने से बचती दिख रही है. संविधान, जाति सर्वेक्षण और अडानी विवाद जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सका. जनता ने रोटी, कपड़ा और मकान जैसे ठोस मुद्दों को प्राथमिकता दी है. कांग्रेस को अपनी प्राथमिकताएं जनता की आकांक्षाओं के साथ जोड़नी होंगी, तभी वह प्रासंगिकता हासिल कर पाएगी.

रिपोर्टः रजत सेठी
 

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