22 जनवरी INDIA ब्लॉक के ज्यादातर नेताओं के लिए बीजेपी के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन का दिन था. सड़क पर उतर कर अयोध्या समारोह के बहिष्कार के फैसले को सही साबित करने का मौका था, लेकिन क्या ऐसा वास्तव में देखने को मिला भी?
एकबारगी तो बिलकुल नहीं. कुछ कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन एकजुटता की जगह हर तरफ बिखराव ही नजर आया. कुछ तो बिलकुल चुप रहे, कुछ थोड़ा-बहुत बोले जरूर - और इस बीच ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल अलग-अलग ध्रुवों पर नजर आये.
बीजेपी के खिलाफ सड़क पर उतरे राहुल गांधी तो असम में धरने पर ही बैठ गये थे, लेकिन ममता बनर्जी को कांग्रेस का ये एक्ट कुछ खास नहीं लगा. अरविंद केजरीवाल की तो कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखी - और नीतीश कुमार को लेकर बिहार के एक कांग्रेस नेता के दावे को भी अब जेडीयू ने खारिज कर दिया है. बहरहाल, अब तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने डीजीपी को राहुल गांधी के खिलाफ FIR दर्ज करने का भी आदेश दे चुके हैं. हालांकि, वो पहले ही कह चुके हैं कि गिरफ्तारी तो चुनाव बाद ही होगी.
कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा ने बताया था कि नीतीश कुमार भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बिहार पहुंचने पर शामिल होंगे. बाद में ये भी खबर आई कि बिहार के मुख्यमंत्री और नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दोनों ही राहुल गांधी की पूर्णिया रैली में शामिल होंगे - लेकिन अब जेडीयू की तरफ से बताया जाने लगा है कि कांग्रेस की तरफ से कोई औपचारिक निमंत्रण तो मिला ही नहीं है.
जेडीयू की तरफ से कांग्रेस के बुलावे की खबर भी ऐसे वक्त आई है जब बिहार में नीतीश कुमार की राज्यपाल से मुलाकात के बाद अलग ही हलचल मची हुई है. आगे जो भी हो, लेकिन ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल का रुख देखने के बाद तो ऐसा लगता है, जैसे INDIA ब्लॉक के रूप में बिहार के महागठबंधन से ज्यादा कुछ नहीं हैं - और वो भी तभी तक जब तक नीतीश कुमार भी महागठबंधन के नेता बने हुए हैं.
ममता बनर्जी तो बीजेपी से बड़ा दुश्मन कांग्रेस को मानती हैं
ममता बनर्जी भी कांग्रेस नेतृत्व से वैसे ही खफा हैं, जैसे नीतीश कुमार. पश्चिम बंगाल में सीटों का बंटवारा INDIA ब्लॉक को खड़ा नहीं होने दे रहा है, और ममता बनर्जी इसके लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार बता रही हैं - और कांग्रेस के खिलाफ भी वैसे ही आक्रामक होने लगी हैं, जैसे बीजेपी के खिलाफ.
असम में राहुल गांधी के धरने को भी ममता बनर्जी कोई खास महत्व नहीं दे रही हैं. राहुल गांधी वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली वाले मंदिर में जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही उनको रोक दिया गया था. बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लड़ाई को भी ममता बनर्जी नाकाफी बताने लगी हैं.
राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का बहिष्कार कर कोलकाता में रैली कर रहीं, ममता बनर्जी का कहना है कि केवल मंदिर जाना ही पर्याप्त नहीं है. पूछती हैं, कितने नेता हैं जो बीजेपी से सीधी टक्कर लेते हैं?
निशाने पर कांग्रेस है, और ममता बनर्जी कह रही हैं, 'कोई एक मंदिर जाकर सोचे की ये काफी है तो ऐसा नहीं है... मैं अकेली नेता हूं जो मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा और मस्जिद गई हूं... मैं लंबे समय से लड़ रही हूं... जब बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ और हिंसा हो रही थी उस वक्त मैं सड़कों पर थी.'
जाहिर है निशाने पर कांग्रेस नेतृत्व ही है. राहुल गांधी ही हैं. हालांकि, वो खुल कर राहुल गांधी या कांग्रेस का नाम नहीं ले रही हैं. फिर भी जो कुछ भी कह रही हैं, निशाने पर तो राहुल गांधी और कांग्रेस ही लगते हैं.
ममता बनर्जी कांग्रेस को ये भी समझा रही हैं कि चुनावों में बीजेपी के साथ मुकाबला करने के लिए तृणमूल कांग्रेस के पास ताकत भी है, और पश्चिम बंगाल में जनाधार भी. और साफ तौर पर कांग्रेस को बता भी देती हैं, अगर आप बीजेपी से नहीं लड़ना चाहते तो मत लड़ो... कम से कम हमें तो लड़ने दो... सीटें दे दो.
यहां तक कह रही हैं कि कांग्रेस चाहे तो 300 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ ले, और इस काम में मदद की भी पेशकश करती हैं. जब ममता बनर्जी कहती हैं, 'हम उन सीटों पर नहीं लड़ेंगे' तो लगता है जैसे वो क्षेत्रीय दलों की तरफ से बोल रही हों. क्योंकि ममता की ये भी सलाह है कि कांग्रेस को कुछ खास इलाकों की सीटें क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ देनी चाहिये.
ममता बनर्जी सीपीएम को भी कांग्रेस के साथ जोड़कर टारगेट कर रही हैं. 2019 में भी ममता बनर्जी नहीं चाहती थीं कि कांग्रेस और सीपीएम साथ चुनाव लड़ें. ममता बनर्जी यहां तक चाहती थीं कि भले ही कांग्रेस टीएमसी के साथ गठबंधन न करे, लेकिन सीपीएम के साथ भी न जाये. राहुल गांधी नहीं माने, और ममता बनर्जी का वो गुस्सा अब भी वैसे ही कायम है. हाल ही में ममता बनर्जी ने कहा था कि सीटों के बंटवारे में उनकी बात नहीं मानी गई तो टीएमसी पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.
सीपीएम को लेकर भी ममता बनर्जी का गुस्सा कांग्रेस पर ही उतर रहा है. ममता बनर्जी कहती हैं, INDIA नाम मैंने दिया और लेफ्ट पार्टियां गठबंधन के एजेंडे को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही हैं, और वो उनको हरगिज मंजूर नहीं है. कोलकाता में आयोजित सर्वधर्म सद्भाव रैली में ममता बनर्जी ने कहा, मैं उन लोगों से सहमत नहीं हो सकती, जिनके खिलाफ मैंने 34 साल तक संघर्ष किया है... अपमान के बावजूद मैं INDIA ब्लॉक की बैठक में शामिल हुई.
केजरीवाल ने तो दिल्ली को राममय बना दिया है
ममता बनर्जी जो भी कहें, लेकिन दिल्ली में कांग्रेस बिलकुल अलग थलग नजर आ रही थी. अयोध्या के जश्न पर पहला हक तो बीजेपी का ही बनता है, लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनके साथी जगह जगह छाये हुए दिखे. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा झंडेवालां मंदिर तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिड़ला मंदिर पहुंचे हुए थे.
आम आदमी पार्टी के नेता जगह जगह सुंदरकांड का पाठ करा रहे थे. AAP नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुंदरकांड पाठ और कीर्तनों के साथ साथ रामलीला देखने भी गये.
दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज तो रामनामी ओढ़ने के साथ जय भगवा टोपी भी लगाये हुए थे. जिन टोपियों पर कभी 'मैं हूं अन्ना' या 'मैं हूं आम आदमी' 22 जनवरी को सौरभ भारद्वाज की टोपी पर 'जय श्रीराम' लिखा हुआ था. दिल्ली सरकार की एक और मंत्री आतिशी को भी 22 जनवरी को दिल्ली में हवन करते देखा गया.
मंदिर मुद्दे पर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों के निशाने पर बीजेपी ही है, लेकिन दोनों की राजनीति में एक बुनियादी फर्क भी देखने को मिलता है. ममता बनर्जी सीधे सीधे चैलेंज कर रही हैं, लेकिन केजरीवाल घुस कर घात लगाते नजर आते हैं. इस बीच, राज्यपाल से नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद सिर्फ ये समझना मुश्किल हो रहा है कि वो तेजस्वी यादव के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करने जा रहे हैं या राहुल गांधी के लिए?