ममता बनर्जी ने एक दशक बाद फुरफुरा शरीफ दौरा कर अपने खास वोटर को मैसेज दे दिया है. और, ये खास वोटर वही है जो राम मंदिर उद्घाटन समारोह के बहिष्कार के ममता बनर्जी के फैसले से खुश होता है, और तृणमूल कांग्रेस को वोट देता है. ये खास वोटर वही है जो प्रयागराज महाकुंभ के बारे में ममता बनर्जी के मुंह से ‘मृत्युकुंभ’ शब्द सुनकर बहुत ज्यादा खुश हो जाता है.
कोई दो राय तो है नहीं कि 2026 के चुनाव को देखते हुए ममता बनर्जी मुस्लिम वोट पर पूरा जोर दे रही हैं. ममता बनर्जी को ये भी मालूम है कि ऐसी सूरत में बीजेपी का रिएक्शन क्या होगा, और ममता बनर्जी यही तो चाहती हैं, यही तो तृणमूल कांग्रेस की चुनावी रणनीति है - ममता बनर्जी तो यही चाहती हैं कि आने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी का मुकाबला बीजेपी से ही हो. और, हिस्सेदारी कांग्रेस या लेफ्ट से न निभानी पड़े.
ऐसा हुआ तो पश्चिम बंगाल के मुस्लिम समुदाय के पास बीजेपी को रोकने के लिए टीएमसी और ममता बनर्जी के अलावा किसी पार्टी या नेता की तरफ ध्यान नहीं जाएगा. बस और क्या चाहिये.
और, पिछड़े मुस्लिम समुदाय को वापस ओबीसी आरक्षण के दायरे में लाने का प्रयास भी तो तृणमूल कांग्रेस की उसी रणनीति का हिस्सा है.
ममता बनर्जी को फिर याद आया फुरफुरा शरीफ
देखा जाये तो बरसों बाद बरसों बाद ममता बनर्जी के फुरफुरा शरीफ जाने के पीछे वजह बिल्कुल वही है, जो लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर उद्घाटन
के बहिष्कार का कारण था - और मौनी अमावस्या पर मची भगदड़ में हुई मौतों को लेकर महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ करार देने के पीछे था.
रमजान के महीने में फुरफुरा शरीफ के मौलवियों के साथ मीटिंग और इफ्तार दावत में शामिल होने पर विपक्ष ममता बनर्जी को कठघरे में खड़ा कर रहा है. विपक्ष की नजर में ममता बनर्जी चुनावी और धार्मिक यात्रा पर गई थीं.
बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने टीएमसी नेता के फुरफुरा शरीफ दौरे को ममता बनर्जी का चुनावी अनुष्ठान बताया है. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने चुनावों के लिए मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने की राजनीतिक चाल बताई है, और सीपीएम नेता सुजान चक्रवर्ती का दावा है कि चुनावों से पहले ममता बनर्जी मुस्लिम समुदाय की नब्ज टटोलने फुरफरा शरीफ गई थीं.
लेकिन, ममता बनर्जी अपनी स्टाइल में काउंटर कर रही हैं, क्योंकि उनकी नजर उन वोटों पर भी है जो बीजेपी की तरफ जा सकते हैं.
विपक्ष से ममता बनर्जी पूछती हैं, जब मैं काशी विश्वनाथ मंदिर या पुष्कर जाती हूं, तो आप ये सवाल क्यों नहीं पूछते? जब मैं दुर्गा पूजा और काली पूजा करती हूं या क्रिसमस समारोह में भाग लेती हूं, तो आप चुप क्यों रहते हैं? होली पर जब मैंने सबको शुभकामनाएं दी, तो सवाल क्यों नहीं पूछे गये?
और फिर ममता बनर्जी दावे के साथ याद दिलाती हैं कि ये उनकी कोई पहली फुरफुरा शरीफ यात्रा नहीं है, वो पहले भी दर्जन भर से ज्यादा बार वहां जा चुकी हैं.
ममता बनर्जी के लिए ‘खेला’ आसान नहीं होगा
ममता बनर्जी के लिए अगली चुनौती 2026 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव है. 2021 के चुनाव में लड़ाई बेहद मुश्किल थी, लेकिन ममता बनर्जी ने खुद चुनाव हार कर भी तृणमूल कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा दी थी.
लोकसभा चुनाव 2024 भी ममता बनर्जी के लिए बड़ा चैलेंज था, क्योंकि 2019 की तरह बीजेपी को लोकसभा सीटें जीतने से रोकना था. और, ममता बनर्जी अपने मकसद में कामयाब रहीं.
अगला विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी के लिए भी करीब करीब वैसा ही है, जैसा दिल्ली चुनाव अरविंद केजरीवाल के लिए रहा. दिल्ली और पश्चिम बंगाल के राजनीतिक समीकरण कुछ लिहाज से मिलते जुलते हैं. जैसे दिल्ली में लड़ाई आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच थी, लेकिन कमजोर कांग्रेस ने खेला कर दिया. कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी भी अरविंद केजरीवाल जैसा ही रुख रखती हैं - और मुद्दे की बात ये है कि दिल्ली के बाद बीजेपी का अगला टार्गेट पश्चिम बंगाल ही है.
ममता बनर्जी चाहती भी हैं कि चुनावी जंग तो तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही हो, और कांग्रेस कहीं से भी, कोई भी फायदा न उठा सके, और न ही टीएमसी को नुकसान पहुंचा सके - लेकिन ममता बनर्जी जिस तरीके से आगे बढ़ रही हैं, कांग्रेस फायदा भले न उठा सके, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक की बात आई तो डैमेज तो कर ही सकती है.
ममता बनर्जी ने 2021 के चुनाव कैंपेन के दौरान कहती रहीं कि ‘खेला’ होगा, और खेला हुआ भी. लेकिन ममता बनर्जी की वो बात पूरी नहीं हो सकी जो टीएमसी नेता ने कैंपेन के दौरान कहा था. तब नंदीग्राम में ममता बनर्जी के पैर में चोट लग गई थी, और वो व्हील चेयर पर बैठकर ही चुनाव प्रचार करती रहीं.
ममता बनर्जी ने कहा था, एक पैर से पश्चिम बंगाल और दो पैरों से दिल्ली भी जीतेंगे. अगर दिल्ली से ममता बनर्जी का आशय पश्चिम बंगाल की लोकसभा सीटें थीं, तो कहा जा सकता है कि टीएमसी नेता की दोनो बातें पूरी हुईं - लेकिन दिल्ली जीतने का मतलब प्रधानमंत्री बनने या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को केंद्र की सत्ता पर काबिज होने से रोकने पर था, तो उस पर कांग्रेस ने पानी फेर ही दिया. ये भी है कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस को भी बंगाल में आईना दिखा दिया है.