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जमानत पर रिहा मनीष सिसोदिया क्या अरविंद केजरीवाल की कमी को पूरा कर पाएंगे?

मनीष सिसोदिया का जेल से बाहर आना अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ी राहत है, और आम आदमी पार्टी के लिए उम्मीद की किरण है. संगठन तो नहीं, लेकिन जेल जाने से पहले दिल्ली सरकार वही चला रहे थे. अभी वो सरकार तो नहीं चला सकते, संगठन का नेतृत्व जरूर कर सकते हैं - लेकिन क्या वो केजरीवाल की कमी पूरी कर पाएंगे?

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मनीष सिसोदिया पर दारोमदार तो बहुत है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में कुछ कर पाना भी बहुत मुश्किल है.
मनीष सिसोदिया पर दारोमदार तो बहुत है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में कुछ कर पाना भी बहुत मुश्किल है.

मनीष सिसोदिया का जेल से बाहर आना निजी तौर पर उनके लिए राहत तो है ही, अरविंद केजरीवाल के लिए तो और भी बड़ी राहत है - और फिलहाल सबसे बड़ी राहत तो आम आदमी पार्टी के लिए है. अगर कहीं कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, तो वो है दिल्ली की सरकार.

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जेल जाने से पहले मनीष सिसोदिया दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के करीब करीब सर्वेसर्वा हुआ करते थे. तकनीकी तौर पर वो डिप्टी सीएम थे, लेकिन मुख्यमंत्री होते हुए भी अरविंद केजरीवाल के पास कोई भी विभाग न होने की वजह से तकरीबन सब कुछ उनको ही देखना पड़ता था. 

गिरफ्तार होने के बाद मनीष सिसोदिया ने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल अब भी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने उनके हिस्से की करीब करीब सभी जिम्मेदारियां आतिशी को दे डाली थी, और तब भी अपने पास कोई भी विभाग नहीं लिया. 

मनीष सिसोदिया वापस तो आ रहे हैं, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है. अब वो सिर्फ अपने इलाके के विधायक भर हैं. अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद ही मनीष सिसोदिया का एक पत्र सामने आया था. 

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मनीष सिसोदिया ने अपने इलाके के लोगों को संबोधित चार पन्नों का एक पत्र लिखा था. पत्र पर अंकित तारीख से मालूम हुआ कि मनीष सिसोदिया ने 15 मार्च को लिखा था. अरविंद केजरीवाल को सीबीआई ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया था, यानी पत्र हफ्ता भर पहले लिखा गया था जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात थी - 'जल्द ही बाहर मिलेंगे.'

पत्र में लिखा था, 'पिछले एक साल में मुझे सभी बहुत याद आये... सबने बहुत ईमानदारी से मिलकर काम किया... जैसे आजादी के समय सबने लड़ाई लड़ी, वैसे ही हम अच्छी शिक्षा और स्कूल के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं... अंग्रेजों की तानाशाही के बाद भी आजादी का सपना सच हुआ... उसी तरह एक दिन हर बच्चे को सही और अच्छी शिक्षा मिलेगी... अंग्रेजों को भी अपनी सत्ता का बहुत घमंड था... अंग्रेज भी झूठे आरोप लगाकर लोगों के जेल में बंद रखते थे... अंग्रेजों ने कई सालों तक गांधी जी को जेल में रखा... अंग्रेजों ने नेल्सन मंडेला को भी जेल में डाला... ये लोग मेरी प्रेरणा हैं और आप सब मेरी ताकत... विकसित देश होने के लिए अच्छी शिक्षा-स्कूल का होना बहुत जरूरी है.' 

और अंत में सिसोदिया ने लिखा था, 'जल्द ही बाहर मिलेंगे... शिक्षा क्रांति जिंदाबाद... लव यू ऑल.'

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मनीष सिसोदिया की जमानत मंजूर होने पर सुनीता केजरीवाल ने सोशल साइट X पर लिखा है, 'भगवान के घर देर है अंधेर नहीं.' निश्चित रूप में अपने पति अरविंद केजरीवाल के लिए भी सुनीता केजरीवाल के मन में यही बात होगी. 

अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में मनीष सिसोदिया का बाहर आना महत्वपूर्ण तो है, लेकिन कुछ सवाल भी हैं - और सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अरविंद केजरीवाल की कमी को मनीष सिसोदिया कुछ हद तक भी पूरी कर पाएंगे? 

1. केजरीवाल जितने असरदार तो नहीं हो सकते: बेशक मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी और दिल्ली में पार्टी की सरकार में नंबर 2 रहे हैं, लेकिन उनकी बातों का लोगों पर अरविंद केजरीवाल जितना असर होना मुश्किल है. 

अगर वो डिप्टी सीएम होते तो सरकारी कामकाज में पहले की तरह ही प्रभावी होते, लेकिन संगठन के काम या विपक्षी गठबंधन के साथ तालमेल के मुद्दे पर मनीष सिसोदिया को थोड़ी मुश्किल आ सकती है. 

आम आदमी पार्टी को लोग अरविंद केजरीवाल के नाम से ही जानते और पहचानते हैं, मनीष सिसोदिया की पहचान हमेशा ही उनके मजबूत सहयोगी की रही है, और सहयोगी को लोग नेता जैसे तो लेते नहीं. 

ये बातें इस वक्त इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि दिल्ली में 6 महीने बाद ही चुनाव होने जा रहे हैं - और सत्ता में वापसी फिलहाल आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. अरविंद केजरीवाल के जेल में रहते ये काम ज्यादा मुश्किल हो गया है. 

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कहने को तो ये भी कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल तो लोकसभा चुनाव के दौरान बाहर ही थे, लेकिन आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई. अगर कोई इस तरह सोचता है तो उसे ये भी नहीं भूलना चाहिये कि पिछले चुनावों के भी नतीजे ऐसे ही आये हैं. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक दूसरे से प्रभावित नहीं होते. 

2. फिर से डिप्टी सीएम बन पाना मुश्किल है: संवैधानिक व्यवस्था तो यही है कि मुख्यमंत्री ही कैबिनेट में फेरबदल या एक्सटेंशन के लिए राज्यपाल से सिफारिश करता है, दिल्ली में उप राज्यपाल से. ऐसे में जबकि अरविंद केजरीवाल जेल में हैं, ऐसा हो पाना मौजूदा हालात में संभव तो नहीं लगता. 

अरविंद केजरीवाल जब अंतरिम जमानत पर बाहर आये थे तब भी उनको दफ्तर जाने की इजाजत नहीं मिली थी. सरकारी फाइलों में भी सिर्फ वहीं दस्तखत करने की अनुमति थी जहां बतौर मुख्यमंत्री ऐसा करना निहायत ही जरूरी हो - फिर कैसे उम्मीद की जाये कि जेल से अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया को कैबिनेट में लेने की सिफारिश कर पाएंगे. 

ये कोई ऐसा मामला तो है नहीं कि सर्वे कराकर जेल से सरकार चलाने को लेकर दिल्ली के लोगों से राय ली जा सके - ये तो तभी मुमकिन है जब उप राज्यपाल या कोर्ट इसके लिए परमिशन दे. 

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3. वर्चस्व की लड़ाई से भी जूझना होगा: संजय सिंह, मनीष सिसोदिया के बाद जेल गये थे और पहले ही चले भी आये. तभी से पार्टी से जुड़े मामलों में जगह जगह वही प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं. INDIA ब्लॉक की बैठकों में भी संजय सिंह ही आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. 

बीच में तो सोशल मीडिया पर एक कैंपेन भी चलाने की कोशिश हुई थी, जिसमें संजय सिंह को अरविंद केजरीवाल की जगह मुख्यमंत्री बनाने की मांग हो रही थी. शुरू में तो स्वाति मालीवाल केस में भी संजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल से अलग राजनीतिक लाइन ली थी. हालांकि, बाद में वो अरविंद केजरीवाल और बिभव कुमार के साथ भी देखे गये थे. 

संजय सिंह के तब के रुख से ऐसा महसूस किया गया था कि वो अपनी अहमियत और ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर अब भी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, तो मनीष सिसोदिया को ऐसी चीजों से भी जूझना पड़ सकता है. अब तो संजय सिंह की हैसियत इतनी बढ़ ही गई है कि अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में वो मनीष सिसोदिया को लेकर एक म्यान में दो-दो तलवार टाइप महसूस करने लगें.

4. स्वाति मालीवाल केस में कोई भूमिका हो सकती है क्या? देखा जाये तो स्वाति मालीवाल केस अरविंद केजरीवाल के गले की हड्डी बन चुका है. और ये वैसा मामला भी नहीं है जैसे नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद वो माफी मांग कर पीछा छुड़ा लेते रहे हैं. 

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मनीष सिसोदिया को जमानत मिलने पर स्वाति मालीवाल की प्रतिक्रिया गौर फरमाने वाली है. स्वाति मालीवाल ने X पर लिखा है, 'मनीष जी की बेल से बहुत खुशी है... उम्मीद है अब वो लीड लेकर सरकार को सही दिशा में लेके चलेंगे.'

ऐसे वक्त जबकि स्वाति मालीवाल और अरविंद केजरीवाल के बीच खुलेआम दुश्मनी देखने को मिल रही हो, स्वाति मालीवाल की ये पोस्ट बहुत कुछ कहती है. एकबारगी तो स्वाति मालीवाल के इस पोस्ट को सीजफायर के ऑफर के तौर पर भी समझा जा सकता है. 

दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर कथित मारपीट की घटना के बाद शुरुआती तौर पर संजय सिंह सहित कुछ लोगों ने बीच बचाव की कोशिश जरूर की थी, लेकिन दोनो पक्षों के अड़ जाने के कारण बातचीत टूट गई, और मामला थाने से कोर्ट तक पहुंच गया. 

घटना के वक्त जेल में होने के कारण मनीष सिसोदिया इस मामले को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं - और लगता है कम से कम ये मामला ऐसा है जिसमें अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में भी मनीष सिसोदिया प्रभावी साबित हों. 
 

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