21 मई को मनीष सिसोदिया को दिल्ली हाई कोर्ट और राउज एवेन्यू कोर्ट दोनों ही से राहत नहीं मिलने के कारण मायूस होना पड़ा. निचली अदालत ने जमानत नहीं मिलने पर सिसोदिया ने हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन वहां भी जमानत अर्जी खारिज हो गई - और राउज एवेन्यू कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 31 मई तक बढ़ा दी है.
जमानत खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने सिसोदिया को लेकर कई बातें कही जिनमें सबसे अहम बात थी केस की पैरवी को लेकर. दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन जहां आम आदमी पार्टी के नेता के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपना केस रखने में सफल रहा, वहीं जमानत के लिए आधार बनाने में याचिकाकर्ता मनीष सिसोदिया असफल रहे.
अदालत का ये बेहद अहम ऑब्जर्वेशिन है - और ये जानकर ही लगता है कि कहीं न कहीं मनीष सिसोदिया के केस की पैरवी में कोई कमी रह जा रही है.
ये बात तब और भी स्पष्ट हो जाती है, जब उसी केस में मनीष सिसोदिया के बाद गिरफ्तार किये जाने वाले संजय सिंह जेल से छूट कर बाहर चले आते हैं, और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल भी - और इसीलिए मनीष सिसोदिया के केस की पैरवी को लेकर शक पैदा होता है.
मनीष सिसोदिया को जमानत क्यों नहीं मिल पा रही है?
मनीष सिसोदिया को अब तक अदालत से एक ही राहत मिली है. और वो भी बहुत बड़ी राहत है. अदालत ने मनीष सिसोदिया को अपनी बीमार पत्नी से मिली मुलाकात की छूट कायम रखी है - लेकिन ये मामला तो पैरवी का मोहताज लगता भी नहीं है. ये तो कोर्ट मानवीय आधार पर तय करता है. अदालत अपनी तरफ से परखती है कि मामला सही है या नहीं, और उसी के हिसाब से ऐसे आदेश जारी किये जाते हैं.
दिल्ली शराब नीति केस से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मनीष सिसोदिया की ही तरह अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह भी आरोपी हैं और गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने के बाद फिलहाल जमानत पर बाहर हैं - दोनों नेता बढ़ चढ़ कर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं, और जोर शोर से चुनाव कैंपेन भी कर रहे हैं, लेकिन मनीष सिसोदिया अंतरिम जमानत के लिए भी जूझ रहे हैं.
1. केस तो एक ही है, लेकिन क्या अरविंद केजरीवाल के मुकाबले मनीष सिसोदिया पर लगे आरोप ज्यादा गंभीर हैं?
दिल्ली सरकार के हिसाब से देखें तो अरविंद केजरीवाल चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो रहे हैं, और मनीष सिसोदिया 18 विभागों के मंत्री - दिल्ली हाई कोर्ट ने इस चीज को काफी गंभीरता से लिया है. हाई कोर्ट का मानना है कि इतने सारे विभाग संभालने के कारण, और आम आदमी पार्टी का सीनियर नेता होने के कारण मनीष सिसोदिया सरकार और पार्टी दोनों पर प्रभाव रखते हैं. वो सत्ता के गलियारे में एक ताकतवर और असरदार शख्स हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट का मानना है, मनीष सिसोदिया प्रभावशाली व्यक्ति हैं... कई लोगों ने उनके खिलाफ बयान दिया है... इसलिए इस संभावना को नहीं नकारा जा सकता कि जमानत पर बाहर जाकर वो लोगों को बयान बदलने के लिए कह सकते हैं.
क्या बचाव पक्ष अभियोजन पक्ष की ये दलील काउंटर कर पाने में नाकाम रहा? क्या बचाव पक्ष कोर्ट में ये दलील नहीं पेश कर पाया कि मनीष सिसोदिया का प्रभाव भी संजय सिंह जैसा ही है, लेकिन अरविंद केजरीवाल जितना प्रभावी दोनों में से कोई भी नहीं हो सकता.
2. अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल अपने वकील अभिषेक मनु सिंघवी को थैंक यू बोलने के लिए उनके घर गये थे. और अभिषेक मनु सिंघवी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए सोशल साइट एक्स पर लिखा था, 'वो हमेशा हम सभी के लिए शक्ति का स्रोत रहे हैं.'
क्या मनीष सिसोदिया को ऐसी सुविधाएं नहीं हासिल हैं? क्या मनीष सिसोदिया को मिल रही कानूनी मदद जरूरत के हिसाब से नाकाफी है?
3. अरविंद केजरीवाल, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह सभी जेल से बाहर आ जाते हैं, लेकिन मनीष सिसोदिया पर लोगों की दुआओं का कोई असर ही नहीं हो रहा है. दिल्ली में चुनाव कैंपेन के दौरान जगह जगह अरविंद केजरीवाल लोगों से कहते फिर रहे हैं कि वो उनकी दुआओं की वजह से बाहर निकल कर आये हुए हैं.
एक कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया को मिस करने की बात कही थी, और तब उनकी आंखों से आंसू भी निकल आये थे. अपने जन्म दिन पर भी अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया को मिस करने की बात कही थी, लेकिन चुनाव प्रचार में तो एक बार भी ऐसी बात सुनने को नहीं मिली है.
स्वाति मालीवाल केस में विभव कुमार की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल के मुंह से आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी की मोदी सरकार पर हमला बोलते जरूर देखा गया है, लेकिन मनीष सिसोदिया का अलग से कोई जिक्र हुआ हो ऐसा तो नहीं सुनने को मिला है.
पहले तो बात बात पर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था सहित तमाम बदलावों के लिए अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया का ही नाम लेते रहते थे, लेकिन हाल फिलहाल या चुनाव कैंपेन में तो ऐसी बातें कम ही सुनाई देती हैं - अब तो दिल्ली की हर बात का क्रेडिट वो खुद ले रहे हैं.
4. क्या अरविंद केजरीवाल के प्रति स्वाति मालीवाल और संजय सिंह के हालिया रुख से मनीष सिसोदिया की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है?
ये तो बार बार देखा गया है कि अरविंद केजरीवाल को अपने साथियों की बहुत परवाह नहीं होती? और दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिये जाने वाले ऐसे पुराने साथियों की फेहरिस्त भी लंबी है.
जिस तरह से स्वाति मालीवाल केस में संजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल से अलग लाइन ली है, अंदर की राजनीति साफ साफ बाहर आ जाती है. अरविंद केजरीवाल की तरफ से आतिशी ने मोर्चा संभाला है, और वो स्वाति मालीवाल पर धावा बोल देती हैं, जबकि संजय सिंह पहले ही समझा चुके होते हैं कि अरविंद केजरीवाल, विभव कुमार के मामले में एक्शन लेंगे.
कहीं अरविंद केजरीवाल अब मनीष सिसोदिया को कम मिस तो नहीं करने लगे हैं? और इसी वजह से मनीष सिसोदिया केस की पैरवी में तो कहीं कमजोर तो नहीं पड़ रहे हैं?
5. दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के नाते शराब नीति केस में जो कुछ भी हुआ है, अरविंद केजरीवाल की मर्जी के बगैर नहीं हो सकता. और अब तो आम आदमी पार्टी भी केस में एक पार्टी बनाई जा चुकी है, ऐसे में मनीष सिसोदिया पर लगे आरोप अरविंद केजरीवाल से गंभीर हो ही नहीं सकते - लेकिन ऐसी बातों का महत्व तो तभी है जब अदालत को भी बचाव पक्ष ये सब अच्छे से समझाने की कोशिश करे.
पैरवी में गलती का सबसे बड़ा उदाहरण झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में देखने को मिला है. सुप्रीम कोर्ट में हेमंत सोरेन का पक्ष रख रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ के सामने अपनी गलती स्वीकार की है.
हेमंत सोरेन के केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है कि वकीलों ने तथ्यों को छिपाया, और मामले को स्पष्टता के साथ नहीं रखा गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आप (हेमंत सोरेन) राहत के लिए एक साथ दो अदालतों में पहुंचे... ये उचित नहीं है... एक में आपने जमानत मांगी, और दूसरी में अंतरिम जमानत... आप समानांतर उपाय अपनाते रहे... आपने हमें कभी नहीं बताया कि आपने निचली अदालत में जमानत याचिका दाखिल की है... आपने हमसे ये तथ्य छिपाया है... हमें गुमराह किया गया.
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने अपनी भूल कबूल करते हुए कहा, 'ये मेरी व्यक्तिगत गलती है, मेरे मुवक्किल की नहीं... मुवक्किल जेल में है और हम वकील हैं... और उसकी पैरवी कर रहे हैं... हमारा इरादा कोर्ट को गुमराह करना नहीं था... हमने ऐसा कभी नहीं किया है.'
हेमंत सोरेन केस में तो पैरवी की गलती सामने आ गई है, लेकिन मनीष सिसोदिया के मामले में भी ऐसा कुछ हुआ है या नहीं, नहीं मालूम.