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मनमोहन सिंह को एक्सिडेंटल पीएम कह सकते हैं पर कमजोर पॉलिटिशियन नहीं, ये 5 उदाहरण काफी हैं| Opinion

मनमोहन सिंह के नाम दर्जनों उपलब्धियां होते हुए भी उन्हें केवल नाम का पीएम ही माना जाता रहा. लोगों के दिमाग में यह बात बहुत गहरे तक बैठ चुकी है कि शासन तो सोनिया गांधी चला रही थीं. पर मनमोहन सरकार की तमाम उपलब्धियां ऐसी थीं जो सिर्फ उनकी वजह से हासिल हुईं. और सबसे बड़ी बात यह भी है कि उन उपलब्धियों को हासिल करने के लिए उन्होंने धुर राजनीतिज्ञों वाली चतुराई भी दिखाई. 

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मुलायम सिंह यादव और मनमोहन सिंह
मुलायम सिंह यादव और मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल किया गया कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी (गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री) आप पर कमज़ोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगाते हैं. सवाल बहुत कॉमन था पर मनमोहन सिंह का जवाब ऐसा था जिसे कोई गूढ़ पॉलिटिशियन ही दे सकता था. उन्होंने बहुत विनम्रता से कहा, कि वो नहीं मानते कि वो एक कमज़ोर प्रधानमंत्री हैं. वो आगे कहते हैं कि यह फ़ैसला इतिहास को करना है. बीजेपी और इसके सहयोगी को जो बोलना चाहते हैं, वो बोल सकते हैं. अगर आपके मज़बूत प्रधानमंत्री बनने का मतलब अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोष नागरिकों का क़त्ल है, तो मैं नहीं मानता कि देश को ऐसे मज़बूत प्रधानमंत्री की ज़रूरत है. जाहिर है कि मनमोहन सिंह के इस उत्तर से बेहतर जवाब की उम्मीद नहीं की जा सकती थी. दरअसल मनमोहन सिंह के नाम देश में सुशासन की दर्जनों उपलब्धियां होते हुए भी उन्हें नाम मात्र का पीएम ही माना जाता रहा. लोगों के दिमाग में यह बात बहुत गहरे तक बैठ चुकी है कि शासन तो सोनिया गांधी चला रही थीं. पर हकीकत कुछ और ही था. मनमोहन सरकार की तमाम उपलब्धियां ऐसी थीं जो सिर्फ उनकी वजह से हासिल हुईं. और सबसे बड़ी बात यह भी है कि उन उपलब्धियों को हासिल करने के लिए उन्होंने धुर राजनीतिज्ञों वाली चतुराई भी दिखाई. 

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1-न्यूक्लियर डील में समाजवादी पार्टी और बीजेपी का साथ लेना

साल 2008 में मनमोहन सिंह की सरकार समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियों के सहयोग से चल रही थी. साल 2008 में अमेरिका से न्यूक्लीयर डील को लेकर मनमोहन सरकार पर खतरा मंडराने लगा था. वामपंथी दल और समाजवादी पार्टी इसका विरोध कर रहे थे. हिंदुस्तान टाइम्स की समिट में जिस तरह का इशारा सोनिया गांधी ने दिया था उससे तय था कि पार्टी सरकार बचाने पर जोर देगी न कि मनमोहन सरकार की अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील को. पर मनमोहन सिंह अपने फैसले से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए. हालात ऐसे बने कि मनमोहन सरकार पर गिरने का खतरा मंडराने लगा था. वामपंथी दलों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले ले लिया था.ऐसे समय में मनमोहन सिंह भारतीय जनता पार्टी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव को समर्थन के लिए राजी करने का काम खुद मनमोहन सिंह के प्रयासों से संभव हो सका था. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहते हुए भी हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर उनके घर जाना नहीं भूलते थे. एक धुर पॉलिटिशयन की तरह मनमोहन जानते थे कि कैसे अपने विरोधियों से भी अपने रिश्ते मधुर बनाकर चलना होता है.

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2-मनरेगा पर फाइनली श्रेय मनमोहन ही ले गए

मनरेगा यूपीए सरकार की एक बहुत ही महत्वाकांक्षी स्कीम थी. इस स्कीम की बदौलत ही 2009 में यूपीए सरकार दुबारा सत्ता हासिल कर सकी थी. 2007 में कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि इस रोजगार स्कीम ( तब नरेगा के नाम से जाना जाता था) का श्रेय राहुल गांधी को मिले. मनमोहन सिंह के बर्थडे पर राहुल गांधी मनमोहन सिंह से मिलने पहुंचते हैं. पीएम के तत्कालीन मीडिया सलाहकार संजय बारू से कहा जाता है कि वो एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी (उस वक्त पार्टी के महासचिव थे) ने पूरे देश में नरेगा को लागू करने की डिमांड की है.

बारू ने तब अहमद पटेल को यह बात बताई कि मनमोहन सिंह ने लाल किले की प्राचीर से देश को ये बात पहले ही बता चुके हैं कि नरेगा पूरे देश में लागू होने जा रही है. और इसे लागू करने का श्रेय मनमोहन और उनके मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को मिलना चाहिए. बारू ने जो विज्ञप्ति जारी कि उसमें नरेगा को मनमोहन सिंह का जनता को बर्थडे गिफ्ट बताया. इंडियन एक्सप्रेस सहित कुछ अखबारों ने संजय बारू ने जो कहा वो छापा पर बहुत से अन्य अखबारों ने कांग्रेस के विज्ञप्ति को छापते हुए इस योजना का श्रेय राहुल गांधी को दिया. इस योजना का श्रेय मनमोहन सिंह को देने के चलते बाद में संजय बारू को त्यागपत्र भी देना पड़ा पर आखिर दुनिया तक असली बात पहुंच ही गई.

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3- 1984 दंगों के लिए माफी मांगना

मनमोहन सिंह जानते थे कि कांग्रेस पार्टी के साथ जो 84 दंगों का दाग है वो एक सिख के पीएम बना देने से भी नहीं खत्म होने वाला है. उन्होंने दूर दृष्टि दिखाते हुए इसके लिए सिख समुदाय से माफी मांगना उचित समझा.उन्होंने राज्यसभा में नानावती आयोग पर चल रही चर्चा के दौरान दोहराया कि जो कुछ हुआ वह पूरे राष्ट्र के लिए शर्म की बात थी.

उन्होंने सदन में कहा कि प्रतिपक्ष के नेता ने कहा है कि मुझे माफ़ी मांगनी चाहिए तो मैं बताना चाहता हूं कि पांच- छह साल पहले मैं कांग्रेस अध्यक्ष के साथ हरमंदर साहब गया था और वहां हमने सर झुकाकर कहा था कि हमें वे रास्ता दिखाएं कि जो कुछ हुआ वैसा कभी न हो.उन्होंने कहा कि मुझे न केवल सिख समुदाय से बल्कि पूरे भारत राष्ट्र से फिर माफ़ी मांगने में कोई झिझक नहीं है.जो कुछ हुआ वह राष्ट्रीय भावना के ख़िलाफ़ था और इसलिए सरकार और राष्ट्र की ओर से मेरा सर शर्म से झुक जाता है.

यह मनमोहन सिंह का ही कमाल था कि आज देश में सिख समुदाय कांग्रेस के साथ है. पंजाब में भी सिख समुदाय को अब कांग्रेस से कोई गिला शिकवा नहीं है. कांग्रेस पार्टी पंजाब में सत्ता में नहीं है पर दूसरी अन्य पार्टियों से कहीं बहुत अच्छी पोजिशन में है. आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के पहले राज्य में कांग्रेस की ही सरकार थी.

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4-डीएमके के समर्थन वापसी के बाद भी सरकार को बचाए रखना

श्रीलंकाई तमिलों पर हो अत्याचार के मुद्दे पर डीएमके ने यूपीए सरकार से 2013 में समर्थन वापस ले लिया था. राजनीतिक परिदृश्य में उनके समर्थन वापस लेने का अर्थ यह था कि सरकार कभी भी गिर सकती थी.  पर मायावती और मुलायम सिंह यादव का मनमोहन सिंह को फुल सपोर्ट था. हालांकि बाहर से सहारा देने वाले मुलायम सिंह ने अपने बयानों से उस समय इस कदर खलबली मचा दी थी कि अकसर चुप रहने वाले मनमोहन सिंह को सरकार की स्थिरता पर बयान देना पड़ा. मुलायम सिंह यादव कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमला बोल रहे थे. लखनऊ में पार्टी के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि कांग्रेस से लड़ना आसान नहीं है. जेल में डाल देगी. सीबीआई पीछे लगा देगी. यहां तक कि उन्होंने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की भी तारीफ भी कर डाली थी. इसके बावजूद अगर सरकार बची तो इसके पीछे कांग्रेस नहीं मनमोहन सिंह के व्यक्तिगत संबंध थे. 

5- एक बार फिर से पीएम बनना राजनीतिक परिपक्वता की ही निशानी थी

मनमोहन सिंह को आप चाहे जो भी कह लें पर प्राइम मिनिस्टर जैसे पद को दुबारा पाना इतना आसान नहीं होता. वह भी ऐसे समय जब 2009 लोकसभा चुनावों में जीत का श्रेय पूरी पार्टी राहुल गांधी को दे रही थी. चुनाव के पहले भी मनमोहन सिंह से यही कहा गया था कि आप की तबीयत ठीक नहीं इसलिए चुनाव का नेतृत्व आप नहीं राहुल करेंगे . चुनावों के दौरान कांग्रेस भी ये मानकर नहीं चल रही थी 2009 के चुनावों में पार्टी को 2004 से अच्छी सीटें मिलेंगी. पर मनमोहन सिंह ने अपनी राजनीतिक बुद्धिमत्ता से अपनी इमेज इस लायक बना रखी थी कि कांग्रेस में उनकी जगह लेने वाला कोई नहीं था.

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मनमोहन सिंह सरकार पर विपक्ष आरोप लगाता था कि वो सोनिया गांधी या राहुल गांधी के इशारे पर चलते हैं. इसके जवाब में उन्होंने एक पीसी में कहा था कि इसमें कोई नुक़सान नहीं है. पार्टी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को लगता है कि उनका कोई नज़रिया सरकार की सोच में झलकना चाहिए तो इसमें कोई बुराई नहीं है. सोनिया गांधी या राहुल गांधी सरकार की मदद के लिए ही हैं, अगर उन्हें लगता है कि सरकार में यह सुधार होना चाहिए.
 

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