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योगी आदित्यनाथ और BJP सरकार पर मायावती का हमला क्या BSP के बाउंसबैक का संकेत है?

मायावती अब तक कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ ही हमलावर नजर आई हैं, लेकिन बड़े दिनों पर मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बीजेपी की केंद्र और यूपी सरकार को लेकर सख्त लहजे में रिएक्ट किया है - और वो भी गरीबों की दुश्मन और अमीरों की हितैषी बताते हुए.

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मायावती ने योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के खिलाफ वैसी बातें कही हैं, जो राहुल गांधी को पसंद आएंगी.
मायावती ने योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के खिलाफ वैसी बातें कही हैं, जो राहुल गांधी को पसंद आएंगी.

मायावती का तेवर तो वही है, लेकिन रुख अचानक बदल गया है. कांग्रेस और गांधी परिवार पर बात बात पर हमला बोलने वाली बीएसपी नेता ने अचानक अपनी पॉलिटिकल मिसाइल का रुख बीजेपी की तरफ मोड़ दिया है - और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.

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मायावती का कहना है कि सरकार की आर्थिक नीतियां और स्कीम गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और बाकी मेहनतकश लोगों के हित में नहीं हैं.

बीएसपी के भीतर हुए ताबड़तोड़ एक्शन के बाद बाहर मायावती का नया रूप देखने को मिला है - क्या मायावती वास्तव में बीएसपी लेकर उठते सवालों का जवाब एक्शन से देने का फैसला कर चुकी हैं?

मायावती का बीजेपी और योगी पर हमला

अब तक मायावती ज्यादातर जानकारियां सोशल मीडिया के जरिये ही साझा करती रहीं, लेकिन बीजेपी को घेरने के लिए मायावती ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर अपनी बात कही है. बीएसपी नेता ने बीजेपी की सरकार को गरीबों का दुश्मन करार दिया है. 

मायावती का कहना है, सरकार की नीतियों से केवल बड़े पूंजीपति और धन्नासेठों को ही फायदा हो रहा है, जबकि गरीबों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है.

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मायावती ने एक साथ बीजेपी की केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार पर वंचित तबके के कल्याण के लिए पैसे का इस्तेमाल करने में फेल रहने का आरोप लगाया है - और उससे भी बड़ा आरोप ये है कि सरकार अमीरों के लिए ही काम कर रही है. 

मायावती कहती हैं, उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य को देश का ग्रोथ इंजन बनाया जा रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं… राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जिसका गरीबों की जिंदगी पर सीधा और बुरा असर हो रहा है. 

बीएसपी नेता ने मध्य प्रदेश सरकार के एक सीनियर मंत्री के बयान की भी निंंदा की है. मायावती का कहना है कि उनकी टिप्पणी गरीबों के प्रति सरकार की हीन और संकीर्ण सोच दिखा रही है. मायावती की नाराजगी उस बयान से है,  जिसमें मंत्री का कहना था, सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी असल में 'भिखारियों की फौज' जैसे हैं. 

क्या मायावती किसी नये प्लान पर काम कर रही हैं

मायावती के बयान के बाद सवाल ये उठ रहा है कि बीएसपी नेता ऐसी बातें क्यों कर रही हैं. जो अक्सर राहुल गांधी के मुंह से सुनने को मिलता रहा है. सूट-बूट की सरकार जैसा नारा देने वाले राहुल गांधी जब भी मौका मिलता है, मशहूर कारोबारियों गौतम अडानी और मुकेश अंबानी का नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की बीजेपी सरकार पर टूट पड़ते हैं. 

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हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली पहुंचे राहुल गांधी ने खास तौर पर मायावती का नाम लिया था, और बीएसी की राजनीति और चुनाव लड़ने के तौर तरीके पर सवाल उठाया था. राहुल गांधी ने पहले भी एक बार मायावती को कांग्रेस का वो ऑफर ठुकरा देने का दावा किया था, जिसमें कांग्रेस के सपोर्ट से उनको मुख्यमंत्री बनाये जाने की बात हुई थी. 

क्या मायावती का ताजा बयान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के तंज का असर है? 

या अंदर ही अंदर कोई नई खिचड़ी पक रही है? 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए?

बीच-बीच में आमने-सामने नजर आने के बावजूद, अभी तक कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन तो बना ही हुआ है. भले ही राहुल गांधी का क्षेत्रीय दलों के प्रति रुख न बदल रहा हो, और अखिलेश यादव भी संसद में भी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर देते हों - लेकिन दोनो दलों का गठबंधन टूट जाने की कोई सार्वजनिक घोषणा तो सामने आई नहीं है.
 
अब तक मायावती का ऐसा कड़ा रुख कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ ही देखने को मिलता रहा है, लेकिन बड़े दिनों पर मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बीजेपी की केंद्र और यूपी सरकार को लेकर सख्त लहजे में रिएक्ट किया है - और वो भी गरीबों की दुश्मन और अमीरों की हितैषी करार दिया है.
 
यहां तक कि आंबेडकर पर केंद्री गृह मंत्री अमित शाह के बयान के बाद भी मायावती की प्रतिक्रिया रस्मअदायगी भर ही लगी थी, जबकि कांग्रेस के स्टैंड और राहुल गांधी से नाराजगी के बावजूद विपक्ष के तमाम नेता एकजुट नजर आ रहे थे. 

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आंबेडकर पर अमित शाह के खिलाफ मुहिम राहुल गांधी ने ही शुरू की थी, और उस मुद्दे पर भी मायावती ने बीजेपी से ज्यादा तीखा लहजा कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए दिखाया था - कुछ तो बात है, वरना यूं ही कोई ऐसी बात नहीं होती.  

क्या कांशीराम के बहुजन आंदोलन को बढ़ाने की कवायद है

हाल ही में मायावती ने बीएसपी के अंदर फटाफट एक के बाद एक कई एक्शन लिये हैं. और, अशोक सिद्धार्थ से शुरू होकर मामला आकाश आनंद और भाई आनंद कुमार तक पहुंच गया है. 

ऐसा लगता है जैसे मायावती ने ये सब नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए किया हो - क्योंकि मायावती पर बहुजन आंदोलन से भटक जाने का आरोप लगने लगा है. 

बीजेपी और उसकी सरकारों को घेरने के साथ ही मायावती ने बीएसपी शासन की उपलब्धियां भी गिनाई हैं. कहती हैं, हमारी सरकार ने सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक सशक्तिकरण लाने के लिए जमीनी स्तर पर काम किया… वर्तमान प्रशासन के विपरीत, हमने ग्रामीण क्षेत्रों में 17 आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित की, जिससे लोगों के जीवन में उल्लेखनीय सुधार हुआ.

मायावती के बहुजन आंदोलन से भटक जाने का आरोप, चंद्रशेखर आजाद की ही तरह उनके पुराने साथी भी लगा रहे हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी और इंद्रजीत सरोज - ये वे नेता हैं जो बीएसपी में लंबे समय तक रहने के बाद सपा और कांग्रेस में चले गये हैं. 

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नसीमुद्दीन सिद्धीकी को मायावती ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर 2017 में निकाल दिया था, लेकिन अब भी वो नाम बड़े सम्मान के साथ लेते हैं. कांग्रेस नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बहनजी कह कर ही संबोधित करते हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इसकी वजह भी बताते हैं, ‘वो हमारी नेता रही हैं.’ मायावती को नसीमुद्दीन सिद्धीकी आयरन लेडी कहते हैं - लेकिन आरोप उनके भी चंद्रशेखर और बाकी नेताओं जैसे ही हैं.

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