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नारायण साकार हरि के मामले में मायावती के निशाने पर योगी आदित्यनाथ हैं या अखिलेश यादव?

जैसे मायावती, नारायण साकार हरि के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही हैं, किसी और नेता ने नहीं की है. हाथरस हादसे पर बयान तो योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के भी आये हैं, और राहुल गांधी तो पीड़ितों से मिल भी आये हैं - लेकिन भोले बाबा की भूमिका पर किसी ने भी मायावती की तरह उंगली नहीं उठाई है.

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क्या मायावती, नारायण सरकार हरि को दलित राजनीति के लिए खतरा मान रही हैं?
क्या मायावती, नारायण सरकार हरि को दलित राजनीति के लिए खतरा मान रही हैं?

मायावती हाथरस हादसे को लेकर नारायण साकार हरि के खिलाफ एक्शन न होने से बेहद नाराज हैं. हाथरस हादसे में 121 लोगों की मौत के बाद से नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा को लेकर हर रोज नई नई बातें सामने आ रही हैं - बाबा की सुरक्षा में लगाई गई लड़कियों के साथ साथ महिलाओं से मुलाकात में उसके काले चश्मे के राज भी धीरे धीरे खुलने लगे हैं. 

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हाथरस हादसे को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने एसआईटी का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट पर भी मायावती ने नाराजगी जताई है. मायावती का मानना है कि एसआईटी की रिपोर्ट घटना की गंभीरता के हिसाब से नहीं, बल्कि राजनीति से प्रेरित ज्यादा है. 

नारायण साकार हरि के मामले में मायावती का स्टैंड बाकी सभी नेताओं से बिलकुल अलग नजर आ रहा है. हाथरस हादसे पर बयान तो सबसे पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही आया था, और उसमें भी नारायण साकार हरि से ज्यादा निशाने पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ही देखे गये थे. बाद में अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया भी सामने आई थी, तब वो भी योगी आदित्यनाथ और बीजेपी पर ही फोकस नजर आये थे, नारायण साकार हरि नहीं. 

बाद में यूपी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर भी अखिलेश यादव पर ये कहते हुए हमला बोला था कि वो तो नारायण साकार हरि को भगवान की संज्ञा दे चुके हैं, और नारायण साकार हरि के साथ सोशल मीडिया पर अपनी भी तस्वीर साझा की थी.

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हादसे पर दुख सभी जता रहे हैं, लेकिन मायावती की तरह सीधे सीधे नारायण साकार हरि के खिलाफ एक्शन लेने को कोई नहीं कह रहा है - और यूपी सरकार की कार्रवाई तो सबके सामने ही है. एफआईआर तक में नारायण साकार हरि का नाम नहीं शामिल किया गया है. 

बयान तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भी हाथरस हादसे पर आ चुका है, बल्कि वो तो पीड़ितों से मुलाकात के बाद ये मुद्दा संसद में उठाये जाने का भी वादा कर चुके हैं. हाथरस पहुंचे राहुल गांधी ने भी नारायण साकार हरि को लेकर कुछ नहीं कहा था, बल्कि भीड़ प्रबंधन में स्थानीय प्रशासन की नाकामी पर सवाल जरूर उठाया था. वैसे यूपी सरकार ने एक एसडीएम सहित कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई जरूर की है. 

राहुल गांधी ने पीड़ितों को ज्यादा मुआवजा देने और उसका जल्दी से भुगतान करने की मांग भी की थी - अब संसद में वो ये मुद्दा किस रूप में उठाते हैं ये देखना है. अब तक के रूख से तो ऐसा ही लगता है कि राहुल गांधी भी नारायण साकार हरि के नाम पर चुप ही रहना चाहते हैं. 

ऐसा माना जा रहा है कि दलित वोट बैंक के कारण ही ज्यादातर नेता नारायण साकार हरि के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं - लेकिन सवाल ये है कि दलितों की नेता होकर भी मायावती ही नारायण साकार हरि को लेकर आक्रामक क्यों हो गई हैं?

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नारायण साकार हरि पर मायावती का क्या कहना है

मायावती लोगों को ये समझा रही हैं कि बीएसपी से जुड़ कर ही लोग हाथरस जैसी घटनाओं से बचा जा सकता है. मायावती की बातों से तो लगता है, जैसे वो भी आपदा में राजनीतिक अवसर देख रही हैं. 

सोशल साइट X पर मायावती की तीन पोस्ट नारायण साकार हरि और बाबा के खिलाफ यूपी सरकार की कार्रवाई को लेकर ही हैं, जिनके जरिये इस मुद्दे पर बीएसपी का स्टैंड आसानी से समझा जा सकता है. 

1. मायावती का कहना है कि हाथरस में सत्संग भगदड़ कांड में हुई 121 निर्दोष महिलाओं और बच्चों की दर्दनाक मौत सरकारी लापरवाही का जीता-जागता प्रमाण है. बीएसपी नेता ने सरकार के रवैये को भी दुखद बताया है. लिखती हैं, एसआईटी द्वारा सरकार को पेश रिपोर्ट घटना की गंभीरता के हिसाब से न होकर राजनीति से ज्यादा प्रेरित लगती है.

2. मायावती ने लिखा है, 'हाथरस कांड में, भोले बाबा सहित अन्य जो भी दोषी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए... ऐसे अन्य और बाबाओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी जरूरी है... इस मामले में सरकार को अपने राजनैतिक स्वार्थ में ढीला नहीं पड़ना चाहिये ताकि आगे लोगों को अपनी जान ना गंवानी पडे़.

3. और ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए मायावती ने जो एहतियाती उपाय बताया है, असली राजनीति वहीं नजर आ रही है. मायावती ने लिखा है, बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के बताए हुए रास्तों पर चलकर सत्ता खुद अपने हाथों में लेकर अपनी तकदीर खुद बदलनी होगी... अर्थात् इन्हें अपनी पार्टी बीएसपी से ही जुड़ना होगा, तभी ये लोग हाथरस जैसे काण्डों से बच सकते हैं.

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मायावती का ताजा बयान यूपी में बीएसपी के शासनकाल में नारायण सरकार की हनक के हिसाब से विरोधाभासी लगता है. अमर उजाला अखबार की एक रिपोर्ट में लिखा है, 'बताया जाता है कि नारायण साकार हरि यानी भोले बाबा का बसपा सरकार में डंका बजता था... इस सरकार में भोले बाबा लाल बत्ती की गाड़ी में सत्संग स्थल तक पहुंचते थे... उनकी कार के आगे आगे पुलिस एस्कॉर्ट करते हुए चलती थी... बसपा शासन के दौरान तत्कालीन जनप्रतिनिधि उनके सत्संग में शामिल होने पहुंचते रहे.' 

क्या जाटव समुदाय में किसी का दबदबा बर्दाश्त नहीं

हाथरस हादसे के पीड़ितों और नारायण सरकार हरि के अनुयायियों को मायावती के संदेश ने 2017 के सहारनपुर हिंसा के बाद के उनके बयान की याद दिला दी है. तब मायावती ने बगैर चंद्रशेखर आजाद का नाम लिये बीएसपी से जुड़ने की सलाह दी थी, ताकि उन्हें पार्टी का संरक्षण मिल सके. 

अब मायावती समझा रही हैं कि दलितों और गरीबों को ऐसे बाबाओं के चक्कर में नहीं पड़कर बाबा भीमराव अंबेडकर के बताये रास्तों पर चलकर ही तकदीर बदलने की कोशिश करनी चाहिये.

ध्यान से देखें तो नारायण साकार हरि के प्रति भी मायावती का रवैया बिलकुल वैसा ही है जैसा भीम आर्मी के नेता के रूप में सक्रिय रहे नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद को लेकर रहा है. ये् बार बार देखा गया कि जब भी चंद्रशेखर आजाद दलितों के पक्ष में कहीं कोई आंदोलन करते, मायावती तत्काल प्रभाव से अपने समर्थकों से कहना शुरू कर देतीं कि वे ऐसे लोगों से बच कर रहने की कोशिश करें. 

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खास बात ये है कि मायावती दलितों में जिस जाटव तबके से आती हैं, चंद्रशेखर आजाद और नारायण साकार हरि भी उसी तबके से आते हैं. नारायण साकार हरि तो अपने नाम में भी जाटव टाइटल लिखते रहे हैं - सूरजपाल जाटव.

तो क्या मायावती को नारायण साकार हरि से इसीलिए दिक्कत है क्योंकि वो उनकी खास बिरादरी से आते हैं - और मायावती किसी भी सूरत में अपने अलावा किसी और का प्रभाव बर्दाश्त नहीं कर पातीं. 

मायावती को कोई और रास्ता अख्तियार करना चाहिये, चंद्रशेखर आजाद की राजनीति को ठिकाने लगाने की कोशिश में मायावती ने संसद पहुंचा दिया, कहीं ऐसा न हो सूरजपाल जाटव उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा भी आने वाले दिनों में दलितों के नेता बन जाये. 

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