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मिल्कीपुर में मुकाबला त्रिकोणीय हुआ तो कौन पड़ेगा भारी - BJP या समाजवादी पार्टी?

मिल्कीपुर उपचुनाव में भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर की एंट्री से लड़ाई दिलचस्प हुई जरूर है, लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय भी होगा कहना मुश्किल है - ये जरूर है कि समाजवादी पार्टी और बीजेपी की लड़ाई में थोड़ा असर तो पडे़गा ही.

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क्या चंद्रशेखर आजाद मिल्कीपुर का मुकाबला त्रिकोणीय बना पाएंगे?
क्या चंद्रशेखर आजाद मिल्कीपुर का मुकाबला त्रिकोणीय बना पाएंगे?

मिल्कीपुर उपचुनाव में एक ही समुदाय तीन उम्मीदवार होने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है. असल में, नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद भी पासी जाति के उम्मीदवार को भी टिकट दे दिया है. 

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समाजवादी पार्टी ने अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को पहले से ही उम्मीदवार बना रखा था. बीजेपी ने भी उसी बिरादरी से आने वाले चंद्रभान पासवान को टिकट दे दिया है.

समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अजीत प्रसाद तो स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई भी बनाना चाहते हैं, लेकिन सवाल है कि क्या एक ही जाति के तीनों उम्मीदवार होने भर से मुकाबला भी त्रिकोणीय हो जाएगा?

क्या मुकाबला वाकई त्रिकोणीय होगा?

ये तो पहले से ही साफ है कि मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है, और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ये कोई आम मुकाबला नहीं बल्कि प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है. 

मिल्कीपुर उपचुनाव को लेकर अभी तक तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ही आमने सामने थे, अब बीच में मौका देखकर भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद भी घुस गये हैं. 

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फैजाबाद लोकसभा सीट जीतकर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को बड़ी चुनौती दे डाली है, और बीजेपी हर हाल में मिल्कीपुर जीतना चाहती है. हाल में 9 सीटों पर हुए उपचुनावों में 7 सीटें जीतकर बीजेपी ने हार का गम थोड़ा कम जरूर कर लिया है, लेकिन लड़ाई की पूर्णाहूति तो मिल्कीपुर में 5 फरवरी को ही होगी - और 8 फरवरी को नतीजा भी मालूम हो जाएगा. 

अगर बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में होती तो ये लड़ाई और खास हो जाती, लेकिन हाल के उपचुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद बीएसपी मैदान छोड़ चुकी है. लेकिन, बीएसपी की जगह चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने ले ली है - देखना है क्या ASP की भूमिका भी BSP जैसी ही होती है या अलग रहती है. कांग्रेस ने दिल्ली के झगड़े के बावजूद मिल्कीपुर में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का सपोर्ट किया है. 

मिल्कीपुर का मुकाबला त्रिकोणीय होगा या नहीं ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने सूरज प्रसाद को मैदान में उतार कर लड़ाई में पेंच तो फंसा ही दिया है. ये पेंच इसलिए फंस रहा है क्योंकि सूरज प्रसाद समाजवादी पार्टी से ही बगावत करके आजाद समाज पार्टी में पहुंचे हैं. 

कहते हैं कि सूरज प्रसाद भी समाजवादी पार्टी में टिकट के दावेदार थे लेकिन अजीत प्रसाद का नाम फाइनल होने के बाद अखिलेश यादव को छोड़कर वो अपने समर्थकों के साथ चंद्रशेखर आजाद को नेता मान लिये. 

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सूरज चौधरी को फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद का करीबी बताया जा रहा है, लेकिन उनके बेटे अजीत प्रसाद को टिकट दे दिये जाने से वो बगावत कर दिये. सूरज चौधरी घूम घूम कर कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद की जीत पक्की करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी. ये भी कहते हैं कि अवधेश प्रसाद ने समाजवादी पार्टी से टिकट दिलाने का वादा भी किया था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद वो मुकर गये, और अपने बेटे को टिकट दिला दिये.

ये मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता था, अगर मायावती भी मोर्चे पर खड़ी हो जातीं. चुनाव कैंपेन में भी हिस्सा लेतीं, लेकिन सूरज प्रसाद की भूमिका सीमित लगती है. बाकी दोनो उम्मीदवारों की जाति का होने के कारण निश्चित तौर पर वोटों का बंटवारा होगा, लेकिन बराबर बंटवारा तो होने से रहा. और, अगर ऐसा नहीं होता तो वोटकटवा बन कर ही रह जाएंगे. सूरज प्रसाद की बगावत से समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है, और बीजेपी को फायदा.  

क्या चंद्रभान पासवान बाहरी माने जाएंगे?

मिल्कीपुर उपचुनाव में स्थानीय बनाम बाहरी की बहस कराने की भी शुरुआत हो चुकी है. समाजवादी पार्टी उम्मीदवार अजीत प्रसाद खुद को लोकल होने का दावा कर रहे हैं, और बीजेपी उम्मीदवार चंद्रभान पासवान को बाहरी बताने की कोशिश कर रहे हैं.

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बड़ा सवाल ये है कि जब चंद्रभान पासवान भी अयोध्या के ही रहने वाले हैं, तो बाहरी कैसे हो गये?

असल में, चंद्रभान पासवान का घर रुदौली विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है. वो रुदौली से जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं - और इसी को आधार बनाकर समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चंद्रभान को बाहरी उम्मीदवार के रूप में प्रचारित कर रहे हैं.

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