उत्तर प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को एक अभूतपूर्व घटना हुई. यह घटना राजनीति से हटकर थी पर प्रदेश के नेताओं को शर्मिंदा करने वाली थी. करीब 29 करोड़ जनता के प्रतिनिधि जिस सभा में बैठते हैं, उस लोकतंत्र के मंदिर में जनता द्वारा चुने गए एक प्रतिनिधि ने पान खाकर थूक दिया. बात आई गई खत्म हो जाती, पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना जी को बुरा लग गया. उन्होंने विधानसभा सदस्यों को हिदायत दी और जिस विधायक ने यह हरकत की थी उसे सफाई करवाने और कार्पेट का पैसा वसूलने की बात भी कही है.
दरअसल पूरे प्रदेश में ही नहीं देश के संस्कार में यह बात रच बस गई है कि जहां चाहो वहां थूक सकते हैं. थूकना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. विशेषकर यूपी और बिहार वालों को मान लिया गया है कि इनके मुंह में गुटखा रहता ही रहता है. महाना जी के एक छोटे से कदम ने इस घटना को चर्चा के केंद्र में ला दिया है. हो सकता है कि इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा में फिर कोई विधायक ऐसी गलती करने की जहमत न उठाए पर क्या यही मौका इस तरह की गंदगी पूरे प्रदेश में रोकने का नहीं बन सकता है? अध्यक्ष महोदय इसी बहाने कुछ ऐसा करना चाहिए कि इस प्रवृत्ति पर ही रोक लग सके. महाना चाहें तो उत्तर प्रदेश में साफ सफाई विशेषकर पान या गुटखा खाकर थूकने, पान के पीकों से रंगे सार्वजनिक शौचालयों, व्यस्ततम सड़कों के डिवाइडरों, सरकारी दफ्तरों की सीढ़ियों , सार्वजनिक उद्यानों आदि में सफाई के सख्त रूल्स बनाकर सफाई के लिए उत्तर प्रदेश के ब्रैंड ऐम्बेस्डर बन सकते हैं.
1-कानपुर शहर की छवि को भी सुधार सकते हैं
उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना देश के उस शहर कानपुर से आते हैं जहां पूरे देश का 90 प्रतिशत गुटखा बनता है. इतना ही नहीं कानपुर के लोगों की छवि बन गई है कि वे बिना मुंह में गुटखा दबाए कोई बात नहीं करते हैं. आपको याद होगा कुछ साल पहले एक क्रिकेट मैच के दौरान एक कपल ग्रीन पार्क में मैच देखने पहुंचे हुआ था. पति ने मुंह में गुटखा दबाए कैमरे पर कुछ बात की थी. उसकी बातचीत इस तरह वायरल हुई थी कि पूरे देश में उस शख्स की चर्चा तो हुई ही कानपुर की बदनामी भी हुई. अगर पूरे प्रदेश में गुटखा के खिलाफ कोई अभियान सतीश महाना चलाते हैं तो जाहिर है कि यह उनके लिए राजनीतिक रूप से भी फायेदमंद साबित हो सकता है. कम से कम कानपुर जो उनका होमटाउन है , उनकी विधानसभा सीट भी यही हैं , यहां तो गुटखा के खिलाफ अभियान चलाकर वो बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं. उनके पास विधानसभा अध्यक्ष के रूप में एक ताकतवर पोस्ट भी है. वो सरकार पर दबाव बना सकते हैं. वो विधानसभा में सभी दलों के सदस्यों से इस तरह की अपील करके एक सख्त कानून बनवा सकते हैं. अगर राजनीतिक जिजविषा दिखाएं तो प्रदेश में गुटखा प्रोडक्शन पर भी रोक लगवा सकते हैं.
2-सवाल उठेगा पान और गुटके के धंधे बंद होने लाखों का रोजगार प्रभावित होगा
हो सकता है कि महाना को गुटखे के खिलाफ एक्टिविज्म दिखाने के लिए उन्हें आलोचना भी सहना पड़े. राज्य में विपक्षी समाजवादी पार्टी यह भी कह सकती है कि पान और गुटखे के धंधे बंद होने से प्रदेश में करीब 20 लाख बेरोजगार हो जाएंगे. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हर गली कूचे पर पान और गुटखे के चलते लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. पर सतीश महाना को झुकना नहीं होगा. उन्हें यह बताना होगा कि यह केवल साफ सफाई का मामला नहीं है बल्कि गुटखा खाने की बीमारी के चलते लाखों लोग बीमार भी पड़ रहे हैं. कितने लोगों की जिंदगी ही खतरे में पड़ चुकी है. सतीश महाना को अपनी बात रखने के लिए बहुत मजबूत तर्क रखने होंगे. विपक्षी दल यह भी कह सकते हैं कि थूकना हमारा बर्थराइट है प्रदेश की बीजेपी सरकार क्या इस पर भी रोक लगानी चाहती है?
3-अध्यक्ष महोदय कुलीन पार्टी से आते हैं इसलिए उन्हें थूकना ही दिखता है
यह भी कहा जाएगा कि बीजेपी को प्रदेश के किसानों , बेरोजगार युवाओं, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की चिंता नहीं है. बीजेपी केवल थूकने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. हो सकता है कि यह भी आरोप लगे कि प्रदेश की समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष पान और गुटके की पीक पर बात कर रहे हैं. हो सकता है कि महाना जी की तुलना किसी तानाशाह से होने लगे. पर ये मौका देश सेवा के लिए है इसलिए बिना किसी डर के उन्हें अपना काम करना चाहिए. हो सकता है कि महाना की पार्टी ही उनकी बात पर न गौर करे. पर इस कार्य को अगर मिशनरी रूप में करते हैं तो न केवल प्रदेश के लिए फायदेमंद होगी बल्कि
4-आखिर मॉल और मेट्रो स्टेशनों जैसे क्यों नहीं बन सकते सरकारी दफ्तर और पब्लिक प्लेस?
लखनऊ में एक से एक बड़े मॉल खुल गए हैं. मेट्रो भी चल रही है. पर जाहिर है कि इन दोनों जगहों पर पान या गुटके की पीक नहीं दिखती है. मतलब साफ है कि साफ सफाई न करना या जहां मन किया वहीं थूक देना यहां के लोगों के डीएनए में नहीं है. मतलब कि अगर व्यवस्था बनाई जाए, सख्त कानून बनाएं जाएं तो यह लक्ष्य हासिल करना कठिन नहीं है. लोग चौतरफा सफाई देखकर, जगह-जगह टॉयलेट की उपस्थिति , जगह-जगह सिक्युरिट गार्ड आदि रहने के चलते मॉल और मेट्रो स्टेशनों पर कहीं पान या गुटखे की पीक करने से बचते हैं लोग.आखिर सरकारी दफ्तरों, बस अड्डो, रेलवे स्टेशनों, कचहरियों आदि में भी यही व्यवस्था क्यों नहीं लागू हो सकती? जाहिर है कि कभी किसी नेता ने यह जज्बा नहीं दिखाया. महाना जी आपने ने जिस तरह विधायक का नाम लिए बगैर उन्हें स्पष्ट संदेश दिया है उसी तरह प्रदेश की जनता के लिए भी आपको आगे आने की जरूरत है. आप एक कदम तो बढ़ाइये. देखिए कारवां खुद भी खुद बन जाएगा.
5-मोदी के स्वच्छता अभियान को फिर से गति दे सकते हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सत्ता संभालते ही स्वच्छता पर बहुत जोर दिया था. उनके इस कदम का प्रभाव यह हुआ कि पूरे देश में स्वच्छता पर चर्चा होने लगी. प्रदेश, जिलों और शहरों में सबसे अधिक स्वच्छ बनने की होड़ लग गई. सरकार ने खुद इस तरह की प्रतियोगिता शुरू की. गांव और शहरों में जगह-जगह शौचालय बनाए गए. नोएडा जैसे शहर में हर 50 से 100 मीटर की दूरी पर शानदार शौचालय बनाए गए. पर मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में आते आते ये मुहिम ठंढी पड़ चुकी है. महाना इस मुहिम को फिर से गति दे सकते हैं. जाहिर है कि अगर यूपी में इस तरह का वो कुछ काम करते हैं तो पूरा देश उन्हें फॉलो करेगा. जैसे सीएम योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर एक्शन पूरा देश फॉलो करने लगा है.