यूपीए की मनमोहन सिंह की 10 साल की सरकार को बीते हुए भी 10 साल हो चुके हैं. और मोदी सरकार के भी 10 साल पूरे हो चुके हैं - लेकिन लोकसभा के चुनाव प्रचार में भी वही बातें गूंज रही हैं, जो 2014 के आम चुनाव में सुनने को मिली थीं.
ये बिलकुल वैसे ही है जैसे बिहार में जंगलराज का जिक्र आये बिना कोई चुनाव अभियान शुरू ही नहीं हो पाता. ऐसा तब भी होता था जब लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासन को 15 साल पूरे हो रहे थे - और उसके डेढ़ दशक बाद भी जब नीतीश कुमार को भी मुख्यमंत्री बने 15 साल हो चुके थे - सवाल ये है कि 15 साल से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी आखिर बिहार में जंगलराज की चर्चा हो रही है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी बिहार दौरे में जोरशोर से जंगलराज का जिक्र कर रहे थे.
मोदी बनाम मनमोहन और मुस्लिम
देखा जाये तो बीजेपी और कांग्रेस की जाती दुश्मनी मुस्लिम वोट पर ही आकर खत्म होती है. कांग्रेस और बीजेपी शुरू से ही एक दूसरे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं - ये तब भी होता था जब कांग्रेस मजबूत और बीजेपी कमजोर हुआ करती थी, और अब भी हो रहा है जबकि समीकरण बदल चुके हैं. बीजेपी लगातार मजबूत होती जा रही है, और कांग्रेस जैसे तैसे उठ खड़े होने के लिए लगातार संघर्षरत और प्रयासरत है.
राजस्थान के बांसवाड़ा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर जो आरोप लगाया वो पहले के मुकाबले ज्यादा घातक लगता है. अभी तक तो मोदी और बीजेपी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के ही आरोप लगाते थे, लेकिन ये मामला तो चार कदम आगे बढ़ गया लगता है.
मोदी का कहना है कि कांग्रेस अगर केंद्र की सत्ता में आती है तो वो लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों में बांट देगी. हालांकि, मोदी ने मुसलमान शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन इशारा मजबूत है - मोदी ने 'ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले' और 'घुसपैठिये' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
और अपने इल्जाम को मजबूती देने के लिए मोदी पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के एक बयान का हवाला दे रहे हैं, जिसमें उन्होंने ने देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक मुसलमानों का बताया था.
मोदी के बयान पर यूथ कांग्रेस नेता श्रीनिवास बीवी का कहना है, 'हार की बौखलाहट के चलते खुलेआम भारत के प्रधानमंत्री नफरत का बीज बो रहे हैं, मनमोहन सिंह जी के 18 साल पुराने अधूरे बयान को मिसकोट कर कर रहे है, लेकिन चुनाव आयोग नतमस्तक है.'
मनमोहन सिंह के बयान का हवाला देते हुए मोदी इसे अर्बन नक्सल वाली सोच बताते हैं, और कहते हैं, मेरी माताओं... बहनों... ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे... इस हद तक चले जाएंगे.
रैली में मोदी ने कहा, ये कांग्रेस का मेनिफेस्टो कह रहा है कि वो मां-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे... उसकी जानकारी लेंगे, और फिर उसे बांट देंगे... और उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है.
कांग्रेस के खिलाफ हमले की धार को तेज करते हुए मोदी का भाषण आगे बढ़ता है, पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था... देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, मतलब, ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे... जिनके ज्यादा बच्चे हैं... उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे. क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंज़ूर है ये?
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने मोदी को चुनौती देते हुए कहा है, हमारे घोषणापत्र में कहीं भी हिंदू-मुसलमान लिखा हो तो दिखा दें. ध्यान देने वाली बात ये है कि मनमोहन सिंह के अंग्रेजी भाषण में पहला हक या पहला अधिकार जैसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं हुआ था, बल्कि फर्स्ट क्लेम (... They must have the first claim on resources.) शब्द का इस्तेमाल हुआ था.
बीजेपी को हिन्दू-मुस्लिम की जरूरत क्यों है
1. कब्रिस्तान बनाम श्मशान : 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में मोदी ने कहा था, अगर रमजान में बिजली आती है तो दीवाली में भी आनी चाहिये... अगर कब्रिस्तान के चारों तरफ दीवार बनती है, तो श्मशान भी वैसा ही होना चाहिये.
2. कपड़ों से पहचान सकते हैं : 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी का कहना था, ये कांग्रेस और उसके साथी हो-हल्ला मचा रहे हैं... तूफान खड़ा कर रहे हैं, उनकी बात चलती नहीं है तो आगजनी फैला रहे हैं... ये जो आग लगा रहे हैं... टीवी पर जो उनके दृश्य आ रहे हैं... ये आग लगाने वाले कौन हैं - उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है.
3. ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले : और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों के लिए 'घुसपैठिया' और 'ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले' जैसे विशेषणों का इस्तेमाल किया है.
सबसे बड़ा सवाल है कि जब मोदी सरकार के पास देश के वोटर को बताने के लिए तमाम उपलब्धियां हैं, फिर बीजेपी को चुनावों में अन्य मुद्दों की जरूरत क्यों पड़ती है?
जब बीजेपी ये चुनाव 'मोदी की गारंटी' पर लड़ रही है, और कांग्रेस अपने 5 न्याय और 25 गारंटी के नाम पर - तो भला चुनावों में ऐसी चीजों की जरूरत क्यों पड़ रही है?
मान लेते हैं कि कांग्रेस को जैसे तैसे सत्ता में वापसी करनी है. जैसे भी मुमकिन हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट कर उनकी लोकप्रियता को काउंटर करना है. सूट-बूट की सरकार और चौकीदार चोर से लेकर नफरत की दुकान तक - कांग्रेस बारी बारी हर संभव उपाय आजमा रही है, ये बात अलग है कि उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही है.
और जब कांग्रेस इतनी बेदम नजर आ रही है, INDIA गठबंधन तो बस नाम भर का है. सुनीता केजरीवाल और कल्पना सोरेन के मंच पर आ जाने से कुछ नया नजर आने लगा है लेकिन बाकी तो मामला वैसा ही पुराना है. पुराना झगड़ा जहां का तहां बना हुआ है.
मोदी को गुजरात दंगों में क्लीन चिट मिल जाने के बाद भी कांग्रेस अब भी उसी चीज को उनकी कमजोर कड़ी मानती है, ये बात अलग है कि अब कांग्रेस नेता 'मौत का सौदागर' जैसी बातें नहीं करते - लेकिन राहुल गांधी नफरत के खिलाफ मोहब्बत की दुकान खोलने के दावे में भी भाव तो वही है.
देखा जाये गुजरात दंगे का मामला जंगलराज विमर्श से भी पुराना है. गुजरात में दंगा 2002 में हुआ था, और उसके बाद ही बिहार में नीतीश कुमार ने जंगलराज को मुद्दा बनाया. ये गुजरात का ही मामला है, जिसकी वजह से नीतीश कुमार को 2013 से पहले लगता था कि एनडीए में मोदी की जगह उनको तरजीह मिलेगी, लेकिन दांव उलटा पड़ गया. तभी तो बात गरीब की थाली छीन लेने से लेकर डीएनए में खोट तक बात पहुंच गई थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव मैनिफेस्टो को निशाना बनाते हुए आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी देश की महिलाओं के सोने का हिसाब करके उसे बांटना चाहती है और जिसके बीच बांटना चाहती है, उनके लिए मोदी ने एक खास फ्रेज का इस्तेमाल किया है, 'ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले' - ये तो अपनेआप में चुनाव प्रचार का जंगलराज लगता है!