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महाराष्ट्र मंत्रिपरिषद को लेकर रहस्य बरकरार, शिंदे के बाद अजित पवार के अस्तित्व की लड़ाई | Opinion

एकनाथ शिंदे को अब जो भी मिल रहा है, सब कुछ बीजेपी की कृपा पर निर्भर है. मुख्यमंत्री बनाना तो दूर, उनको मनमाफिक मंत्रालय भी नहीं मिल रहा है - और ये सब अजित पवार के लिए भी सबक है, क्योंकि अगला टार्गेट वही हैं.

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देवेंद्र फडणवीस को तो गद्दी वापस मिल गई, लेकिन एकनाथ शिंदे की ही तरह अजित पवार के सामने भी चुनौतियां बढ़ गई हैं.
देवेंद्र फडणवीस को तो गद्दी वापस मिल गई, लेकिन एकनाथ शिंदे की ही तरह अजित पवार के सामने भी चुनौतियां बढ़ गई हैं.

महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विस्तार भी हो गया है. 39 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है. नागपुर में हुए शपथग्रहण समारोह में बीजेपी के हिस्से में 19 मंत्री पद, एकनाथ शिंदे के हिस्से में 11 और अजित पवार को 9 मंत्री पद मिले हैं. 

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नंबर के हिसाब से देखा जाये तो अजित पवार को विधानसभा सीटों के अनुसार मंत्रालय मिले हैं, लेकिन महत्व के लिहाज से अजित पवार बाजी मारते नजर आ रहे हैं. एकनाथ शिंदे को उनके मनमाफिक विभाग नहीं मिल रहे हैं, लेकिन अजित पवार के हिस्से में उनका पसंदीदा वित्त मंत्रालय जरूर मिल रहा है - और ये बात दोनो ही नेताओं की गठबंधन में हैसियत का सबूत है.

जिस तरह मंच पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, और दोनो डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और अजित पवार देखे गये, वो भी सत्ता समीकरण की असलियत बता रहे थे. साफ साफ देखने को मिल रहा था कि देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार जैसी करीबी एकनाथ शिंदे के साथ नहीं रह गई है. 

एकनाथ शिंदे पूरी तरह इस्तेमाल हो चुके हैं

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में बुरी तरह घिर चुके हैं. उनकी स्थिति आगे कुआं, पीछे खाई जैसी हो गई है. ऐसा भी नहीं है कि उनके प्रदर्शन में कोई कमी आई है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लोकसभा से बेहतर नतीजे आये हैं, और जितने विधायकों के साथ जून, 2022 में बगावत किया था उसके मुकाबले अभी का नंबर ज्यादा ही है. 

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2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना को 56 सीटें मिली थी, और बंटवारे के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में उनके हिस्से वाली शिवसेना को 57 सीटें मिली हैं. देखा जाये तो जितने विधायकों के साथ शिवसेना में बगावत करके एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के सपोर्ट से सरकार बनाई थी, उससे ज्यादा विधायक अभी उनके साथ हैं. लेकिन, बीजेपी के 132 विधानसभा सीटें जीत लेने के कारण सारे समीकरण ही बदल गये हैं. अब तो हालत ये है कि एकनाथ शिंदे के लिए चाहकर भी पाला बदलना मुश्किल हो गया है. 

एकनाथ शिंदे की मजबूरी ये हो गई है कि अब जो भी बीजेपी कहेगी उनको मानना ही होगा. पहले तो एकनाथ शिंदे फिर से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री ही बनना चाहते थे, लेकिन बीजेपी नेता अमित शाह ने तो साफ साफ संकेत दे दिया कि वो चुनाव होने तक ही उस कुर्सी पर हैं. देवेंद्र फडणवीस भी कहने लगे थे कि नंबर से ही सरकार के नेतृत्व का फैसला होगा, और हुआ भी.

मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने पर एकनाथ शिंदे चाहते थे कि कम से कम रेवेन्यू और गृह मंत्रालय उनको मिल जाये, लेकिन बीजेपी वो भी नहीं देने जा रही है. दोनो ही विभाग बीजेपी अपने पास रखना चाहती है. एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री रहते देवेंद्र फडणवीस के पास गृह मंत्रालय हुआ करता था, और अदलाबदली के तहत एकनाथ शिंदे भी अपने हिस्से में होम मिनिस्ट्री चाहते थे, लेकिन बीजेपी के लिए एकनाथ शिंदे की बातें मानना मजबूरी नहीं रह गई है. 

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अब एकनाथ शिंदे को जो भी मिल रहा है, उसी पर हंसते हंसते संतोष करना है - क्योंकि, बीजेपी की निगाह में अब वो पहले की तरह उतने काम के नहीं रहे. 

सामने आये सत्ता के नये समीकरण

शपथग्रहण के दौरान मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, डिप्टी एकनाथ शिंदे और डिप्‍टी सीएम अजित पवार स्वाभाविक रूप से मंच पर मौजूद थी, लेकिन पहले की तरह एक साथ नहीं नजर आ रहे थे. जैसे, चुनावों से पहले और चुनाव जीतने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में तीनों को एक साथ देखा जा रहा था.

नागपुर के मंच पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार एक साथ बैठे नजर आ रहे थे, जबकि एकनाथ शिंदे थोड़ी दूर बैठे हुए थे. बीच में महाराष्ट्र के राज्यपाल राधाकृष्णन की कुर्सी लगी हुई थी. हालांकि, बाद में प्रेस कांफ्रेंस साथ बैठे जरूर थे. 

अगर अजित पवार देवेंद्र फडणवीस के साथ बैठ सकते थे, तो एकनाथ शिंदे क्यों नहीं? और ऐसा एकनाथ शिंदे खुद नहीं चाहते थे, या देवेंद्र फडणवीस ने ही उनको पास नहीं बैठेने देने का फैसला कर लिया था. ऐसे सवालों के जवाब कुछ हद तक नेताओं के हाव-भाव भी दे रहे थे. 

चुनाव नतीजे आने के बाद एकनाथ शिंदे ने पहले की तरह ये तो बोल दिया था कि वो मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हैं, लेकिन बाद में उनके रूठ कर गांव चले जाने की भी खबर आई थी. खुद उनकी बातों और उनके समर्थकों की बातों से भी लगा कि वो आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के मूड में नहीं थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व की सख्ती के आगे उनकी एक न चली. 

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और उसी दौरान अजित पवार ने बोल दिया कि वो बीजेपी के मुख्यमंत्री के सपोर्ट में हैं. अजित पवार के बयान से बीजेपी का काम थोड़ा आसान भी हो गया - और अजित पवार इसी बहाने बीजेपी के थोड़े करीब आ गये. अजित पवार के बीजेपी करीब आते ही एकनाथ शिंदे से दूरी अपने आप भी बढ़ गई लगती है. 

अस्तित्व की चुनौती दोनो के लिए, अब निशाने पर अजित पवार

देखा जाये तो एकनाथ शिंदे का मौजूदा हाल ही अजित पवार का भविष्य है. जो महत्व एकनाथ शिंदे पा चुके हैं, अजित पवार को अब जाकर मिल पा रहा है. फिर तो जाहिर है अजित पवार का हाल भी आगे चलकर एकनाथ शिंदे जैसा हो जाएगा. 

जो काम बीजेपी के लिए एकनाथ शिंदे ने किया है, वही काम अजित पवार ने भी किया है. जैसे एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की राजनीति को करीब करीब मिट्टी में मिला दी है, वैसे ही अजित पवार ने भी अपने चाचा शरद पवार के साथ किया है. 

उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनो ही महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी के पांव जमाने की राह में आड़े आ रहे थे. एकनाथ शिंदे और अजित पवार के जरिये बीजेपी ने दोनो ही मामलों में करीब करीब फतह हासिल कर ली है, लेकिन कुछ काम अभी बाकी है.

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वही बाकी बचे काम के लिए अजित पवार को अहमियत मिल रही है - और, मान कर चलना चाहिये, आगे चलकर अजित पवार का हाल भी एकनाथ शिंदे जैसा ही होने वाला है. 

कोई थोड़ा आगे है, और कोई थोड़ा पीछे. लेकिन, अस्तित्व की लड़ाई लड़ने की चुनौती एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनो के सामने पैदा हो गई है.

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