'आएगा तो मोदी ही', 2019 की तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये स्लोगन अभी से दोहराने लगे हैं. और ऐसा लगता है जैसे बीजेपी ही नहीं विपक्षी खेमे की भी पूरी कायनात मोदी और बीजेपी की कामयाबी में बढ़ चढ़ कर कंट्रीब्यूट करने में लगी है.
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा, अभी चुनाव होना बाकी है... लेकिन दूसरे देशों के जुलाई से सितंबर तक के निमंत्रण हमारे पास आए हुए हैं... यानी उन्हें पता है... आएगा तो मोदी ही. लोक सभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के मकसद से बीजेपी कार्यकर्ताओं से अगले 100 दिनों तक डटकर मेहनत करने की सलाह देते हुए मोदी का कहना था, सरकार का तीसरा टर्म सत्ताभोग के लिए नहीं... भारत को विकसित बनाने के लिए मांग रहे हैं.
INDIA ब्लॉक जब अस्तित्व में आया तो एकबारगी लगा कि 2024 का आम चुनाव बीजेपी के लिए 2019 जैसा नहीं, बल्कि मुश्किल हो सकता है. तब नीतीश कुमार ने बड़े जोश में कहा था, 2014 में जो आये थे आगे 2024 में आएंगे भी या नहीं, किसे पता. और वो लगातार लगे भी रहे, लेकिन अब तो वो भी मोदी की हैट्रिक पक्की करने के मिशन में शामिल हो चुके हैं.
नीतीश कुमार की ही तरह जयंत चौधरी भी खुल कर मैदान में आ चुके हैं, जबकि कांग्रेस नेता कमलनाथ मास्क पहनकर और परदे के पीछे से बैटिंग कर रहे हैं. अब तो यहां तक चर्चा होने लगी है कि कमलनाथ को कांग्रेस आलाकमान से 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए जो खुली छूट मिली थी, उसका इस्तेमाल भी वो कांग्रेस को कमजोर और मोदी को मजबूत करने में कर रहे थे.
कमलनाथ के मामले में दोनों तरफ से थोड़ी दुविधा लगती है. हालांकि, उनकी मौजूदा राजनीति का एक ही मकसद है बेटे नकुलनाथ को सही जगह सेट कर देना. कमलनाथ के X हैंडल देखें तो लगातार कई पोस्ट में एक बात का जिक्र जरूर है, छिंदवाड़ा सांसद नकुलनाथ. और इसके लिए वो छिंदवाड़ा और आस पास के इलाके से अपने प्रभाव वाले कांग्रेस विधायकों को भी तोहफे में बीजेपी को देना चाहते हैं - लेकिन दुविधा बीजेपी की तरफ से भी है. 1984 के सिख दंगों को लेकर कमलनाथ की हालत जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार जैसे कांग्रेस नेताओं जैसी तो नहीं है, लेकिन बेदाग बरी हो जाने जैसी भी नहीं है. ये तो सबको याद होगा ही कि 2016 में विरोध के चलते कमलनाथ को पंजाब कांग्रेस प्रभारी का पद छोड़ना पड़ा था.
विपक्ष का जो फॉर्मूला था. बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार, ये सबसे खतरनाक था. और इसके चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सामने सबसे बड़ा खतरा INDIA ब्लॉक ही था, लेकिन अब वही मददगार बनने वाला है. जो भी नेता INDIA ब्लॉक के बैनर तले मोदी को चैलेंज करने की तैयारी कर रहे थे, अब तो सब के सब सपोर्टर की भूमिका निभाते लगते हैं.
बीते पांच साल में ऐसा कभी कभार ही लगा कि 2024 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के सामने कोई बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है. हाल में तो 2019 से पहले भी करीब-करीब वैसा ही रहा, और तब राम मंदिर मुद्दे को होल्ड करने के बीजेपी के फैसले से साफ हो गया था कि वो 'कोई नहीं है टक्कर में' वाले मोड में आ चुकी है, लेकिन इंडिया शाइनिंग जैसा जोखिम उठाने को लेकर बेहद सतर्क भी है.
अब भी बीजेपी के सामने चैलेंज करने वाला कोई नहीं है, लेकिन वो हर हाल में 400 का आंकड़ा पार करना चाहती है, तब भी जबकि सर्वे में इसकी संभावना कम ही जताई गई है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और पंजाब में अकाली दल को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व के मन में ख्याल एक जैसे ही चल रहे हैं.
ममता बनर्जी
ममता बनर्जी का प्रभाव क्षेत्र बंगाल से बाहर नहीं के बराबर है, लेकिन बंगाल में उनका असर विपक्षी खेमे के ज्यादातर क्षेत्रीय नेताओं से कहीं ज्यादा है. जैसा प्रभाव ममता बनर्जी का बंगाल में है, वैसा न तो नीतीश कुमार का बिहार में है, न अखिलेश यादव का उत्तर प्रदेश में - और न ही अरविंद केजरीवाल का दिल्ली में ही है.
निश्चित तौर पर दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल का एकछत्र राज है, एमसीडी में भी बीजेपी को शिकस्त दे चुके हैं, लेकिन दिल्ली की लोक सभा सीटों पर बीजेपी को टक्कर देना तो दूर, उनके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रह जाते हैं. ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव तो जीत ही जाती हैं, लोक सभा चुनाव में भी उनका दबदबा बना हुआ है.
INDIA ब्लॉक के बिखरने में ममता बनर्जी का भी उतना ही योगदान जितना राहुल गांधी का. पश्चिम बंगाल में INDIA ब्लॉक खड़ा हो जाता तो बीजेपी की राह काफी मुश्किल होती. क्योंकि ममता बनर्जी के साथ सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, सीपीएम भी साथ होती - लेकिन ममता बनर्जी के स्टैंड का पूरा फायदा अब तो बीजेपी को ही मिलेगा.
अरविंद केजरीवाल
पंजाब में तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन की स्थिति नहीं ही बनी, दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल की तरफ से जिस तरह सात में से सिर्फ एक सीट देने की बात की गई थी, कांग्रेस को भला क्यों मंजूर होता.
वैसे कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी को 'संकटमोचक' बताने वाले अरविंद केजरीवाल थोड़े नरम जरूर हुए हैं, लंच पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कोई नया रंग ला भी सकती है - लेकिन फिर भी बात नहीं बनी, तो फायदा तो मोदी और बीजेपी को ही मिलेगा.
अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव और राहुल गांधी की कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन अब भी अधर में ही लटका नजर आ रहा है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर समाजवादी पार्टी की तरफ से आया बयान तो ऐसा ही इशारा करता है.
अखिलेश यादव के हवाले से समाजवादी पार्टी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा है, अभी बातचीत चल रही है, सूचियां उधर से आई इधर से भी गईं... जिस समय सीटों का बंटवारा हो जाएगा समाजवादी पार्टी कांग्रेस की न्याय यात्रा में शामिल हो जाएगी.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 फरवरी को अखिलेश यादव को न्याय यात्रा में शामिल होने का न्योता भेजा था. अखिलेश यादव ने न्योता स्वीकार भी किया था, और रायबरेली या अमेठी में राहुल गांधी की 'न्याय यात्रा' में शामिल होने का वादा भी किया था, लेकिन अब तो लगता है पीछे ही हट गये हैं.
न्याय यात्रा के तहत राहुल गांधी 20 फरवरी को अमेठी और रायबरेली में लेकिन गठबंधन फाइनल न होने की बात कर समाजवादी पार्टी ने करीब करीब स्थिति साफ कर दी है.
आरएलडी नेता जयंत चौधरी को तो रोक नहीं सके, स्वामी प्रसाद मौर्य अलग ही नाराज हैं, और कांग्रेस के साथ भी गठबंधन की स्थिति बहुत साफ नहीं है - यूपी में जो हालात दिखाई पड़ रहे हैं, क्या लगता नहीं कि अखिलेश यादव भी मोदी और बीजेपी को फायदा पहुंचाने में जुटे हैं.
राहुल गांधी
न्याय यात्रा पर निकले राहुल गांधी तो मोदी और बीजेपी के सबसे बड़े मददगार लगते हैं, क्योंकि INDIA ब्लॉक के खड़े होने से पहले ही बिखर जाने में कांग्रेस का ही सबसे ज्यादा रोल समझ में आया है. कांग्रेस नेतृत्व की जिद के चलते ही नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों ने अलग रास्ते अख्तियार कर लिये - अब तो जो भी सूरत-ए-हाल है, फायदे में तो मोदी और बीजेपी ही रहेंगे.
ऐसे नेताओं को नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी की कैटेगरी में तो नहीं रखा जा सकता, लेकिन मोदी और बीजेपी को ये नेता उनसे कहीं ज्यादा फायदा पहुंचा रहे हैं. ये ठीक है कि ममता बनर्जी भी नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी की तरह पश्चिम बंगाल में अकेले दम पर खड़ी होने की स्थिति में भी हैं, लेकिन बाकी नेताओं का अपने इलाके में वही हाल है, जो कांग्रेस का पूरे देश में है. मतलब, एक-दूसरे का हाथ थामे बगैर कोई भी खड़ा हो पाने की स्थिति में नहीं है.
और सिर्फ नीतीश कुमार, जयंत चौधरी या कमलनाथ ही क्यों, देखा जाये तो ये कतार भी लंबी है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे नेताओं ने तो बर्बाद होकर भी बीजेपी को आबाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.