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मुसहर बनाम पासवान: नवादा कांड से नई 'दबंग' जातीय व्यवस्था उजागर, और खून बहाएगा भूमि सर्वे । Opinion

बिहार के नवादा में महादलित कहे जाने वाले मुसहर समुदाय के कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया. शुरुआती खबरों में ये खबर दबंगों की बताई गई. जैसी की परिपाटी है, मान लिया जाता है कि दबंग यानी सवर्ण. यही सोचकर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा. लेकिन, नवादा कांड के आरोपी दलित समुदाय से आने वाले पासवान थे.

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नवादा कांड जातिगत नफरत का नतीजा नहीं है.
नवादा कांड जातिगत नफरत का नतीजा नहीं है.

तीन दिन पहले जब खबर आई कि बिहार में दबंगों ने दलितों की बस्ती में आग लगा दिया. देश के बड़े नेताओं की तरह दिल्ली में बैठे प्रशासनिक अधिकारियों और पत्रकारों तक को भी यही भान था कि बिहार में दबंगों का मतलब ठाकुर या भूमिहारों ने यह काम किया होगा. देशभर के राजनेता बिहार के नवादा की घटना को लेकर नीतीश सरकार पर टूट पड़े. राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से लेकर, मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी आदि के दलित उत्पीड़न वाले बयानों की झड़ी लग गई. पर जैसे-जैसे तथ्य सामने आ रहे हैं- बिहार की राजनीति या बिहार में राजनीति करने वाले अब चुप्पी साध लेंगे. अब इस मुद्दे पर बड़े लेवल पर चर्चा भी नहीं होगी. नवादा कांड के आरोपी दलित समुदाय से आने वाले पासवान हैं. यानी, लड़ाई महादलित और दलित के बीच हुई. इस घटना से यह भी साबित हुआ कि जहां पर जो ताकत में है, वो दबंग है. जो शोषित है, वो दलित है. अब आप दबंग को सवर्ण मानें, ये आपकी मर्जी. लेकिन, यह सवर्ण कोई दबंगई करने वाला दलित या महादलित भी हो सकता है.

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1-नवादा हिंसा के पीछे जातिगत नफरत है या कुछ और
 
नवादा कांड की असल में जिस कारण से चर्चा होनी चाहिए थी उस कारण से नहीं हो रही है. जिस वजह से नवादा में मुसहरों और पासवानों में संघर्ष हुआ उसे समझना बहुत जरूरी है. क्योंकि बिहार में इस हिंसा के पीछे जातिगत नफरत नहीं बल्कि बिना पूरी तैयारी के हो रहा भूमि सर्वे है. बिहार सरकार प्रदेश में भूमि सर्वे करा रही है. इस सर्वे का मतलब यह नहीं कि किस जाति के पास कितनी जमीन है. क्योंकि बिहार में हर सर्वे को जाति से जोड़ दिया जाता है. यह सर्वे मूलतः जमीन विवाद खत्म करने के लिए भूमि के मालिकाना हक का प्रॉपर कागज तैयार कराना है. सरकार की सोच तो बड़ी अच्छी है पर उसके क्रियान्यवन का तरीकी बेहद लचर है. जाहिर है कि बवाल तो होना है .अभी तो यह झलकी है. चिंगारी फूटनी शुरू हो गई है. आए दिन बिहार में अखबारों के पन्ने भूमि पर कब्जे और कागजात के लिए होने वाली मारपीट से भरे जा रहे हैं.

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2- बिहार में हो रहा भूमि सर्वे अभी और खून बहाएगा

बिहार में करीब 50 हजार एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध लोगों का अवैध कब्जा है.नवादा में नदी किनारे करीब 15 एकड़ भूमि जमीन के कुछ भाग पर मुसहर (मांझी) और रविदास समाज के लोग झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं और बाकी जमीन पर खेती कर रहे हैं. इस जमीन पर 1995 से टाइटल सूट (22/1995) नवादा व्यवहार न्यायालय में चल रहा है. यानी, जमीन पर हक की लड़ाई कोर्ट में है. अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार नए सर्वे में यह जमीन खतियान पर रमजान मियां के नाम पर दर्ज नजर आई. रमजान मियां के परिजनों से कृष्णा नगर के ही पासवान समाज, लोहानी बिगहा के यादव समाज और प्राण बिगहा के चौहान समाज (बेलदार जाति) के अलावा नालंदा जिला के रहुई थाना के रघुनाथपुर के चौहान समाज (बेलदार जाति) के लोगों ने रजिस्ट्री करवा ली. मतलब, जमीन रमजान मियां से इन लोगों ने खरीद ली. कागज पर तो यह हो गया, लेकिन म्युटेशन न होने के चलते रजिस्टर पर जमीन पहले जैसी स्थिति में ही रही.मुसहर और रविदास समाज के लोग जमीन पर कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं. जमीन खरीदने वाले भू-सर्वे की प्रक्रिया के समय ही उस कब्जे को हटाने पर आमादा हुए. 

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जमीन सर्वे के चलते पूरे देश भर में रोजी रोटी के लिए गए हुए लोग अपना दादा परदादा से मिले खेतों को बचाने के लिए गांव पहुंच रहे हैं. इनमें बहुतेरे लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई कागज नहीं है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आधे-अधूरे कागजात हैं. कुल लोग बरसों ऐसी जमीन पर काबिज हैं जिसकी रजिस्ट्री कई लोगों को हुई है. बहुत सी ऐसी जमीनें हैं जहां प्रॉपर्टी डीलरों और दबंगों ने कई लोगों को जमीन बेची हुई है. कब्जे पर कोई और है.बहुत लोगों के पास कैथी लिपि में लिखे हुए डॉक्यूमेंट्स हैं . जिन्हें आज की तारीख में पढ़ने वाले ही नहीं बचे हैं.

3-मगर चर्चा इस पर हो रही है कि कौन है आरोपी, सवर्ण-यादव या पासी?

बिहार में हुई इस घटना पर पूरे देश का ध्यान क्यों गया? इसलिए नहीं कि इस कांड में दलितों पर अत्याचार हुआ. इस कांड की चर्चा इसलिए देशव्यापी हो गई क्योंकि दबंगों का अर्थ नेताओं ने यह समझ लिया कि शायद सवर्ण हों. यह भी हो सकता है कि जानबूझकर ऐसा फैलाया गया हो. क्योंकि आज कर मीडिया में इस तरह बढ़त लेने के लिए पार्टियों में होड़ लगी होती है. देश के बड़े से बड़े नेता अपना एजेंडा सेट करने के लिए जानबूझकर ऐसी हरकत करते हैं.शायद यही इस बात पर भी हुआ है. अगर केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने क्लियर नहीं किया होता पूरा इंडिया गठबंधन अभी भी हवा में तलवार चला रहा होता.

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केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के बयान आने के बाद असली मामला समझ में आया कि यह सवर्ण और दलित के बीच झगड़ा नहीं है. यह केवल सवर्णों और दलितों के बीच नफरत फैलाने के लिए कुछ लोगों की साजिश है. जीतन राम मांझी ने कहा कि जमीन कारोबार से जुड़े यादव जाति के लोग दलितों को निशाना बना रहे हैं. नवादा की घटना में भी पुलिस ने जिन लोगों को हिरासत में लिया है वह यादव जाति के ही लोग हैं. जिस जमीन को लेकर विवाद हुआ वहां वर्षों से मुसहर और चमार जाति के लोग रहते आ रहे हैं. दुसाध जाति के कुछ लोगों को आगे कर दबंग यादवों ने सारा खेल खेला.

जीतनराम मांझी के बयान पर आरजेडी भड़क गई. आरजेडी नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि जीतनराम मांझी ने अपना होश खो दिया है. वहीं मीसा भारती ने कहा कि केंद्रीय मंत्री को समाज के एक वर्ग पर ऐसे बयान नहीं देना चाहिए था. जबकि चिराग पासवान ने सरकार से न्यायिक जांच की मांग की है. 

दूसरी तरफ बिहार सरकार में मंत्री जनक राम ने नवादा की घटना को महागठबंधन की साजिश बताया है. उन्होंने कहा कि बिहार जिस तरह विकास कर रहा है, उसे और अस्थिर करने के लिए इस तरह की साजिश रची जा रही है.महागठबंधन का चाल चरित्र बिहार के लोग जानते हैं.

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जनक राम ने कहा, जिस तरह तेजस्वी यादव के माता-पिता के शासनकाल में समाज के अंदर नफरत फैलाया गया, अगड़ा और पिछड़ा की लड़ाई की गई. एक बार फिर उसी को हवा देने की कोशिश हो रही है. दलितों को निशाना बनाया जा रहा है.

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