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नीतीश कुमार ने G20 डिनर में जाकर INDIA गठबंधन को अल्टीमेटम दे दिया!

G20 डिनर में शामिल होकर नीतीश कुमार ने ये संदेश तो भेज ही दिया है कि वो विपक्षी गठबंधन के साथ तभी तक हैं जब तक उनको वो इज्जत बख्शी जाये, जिसके वो हकदार हैं. डिनर के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हिमंत बिस्वा सरमा और अनुप्रिया पटेल की हंसी भी तो काफी कुछ कह रही है.

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ये हंसी, ये हसीं मुलाकात और ये नया रिश्ता क्या कहलाता है?
ये हंसी, ये हसीं मुलाकात और ये नया रिश्ता क्या कहलाता है?

नीतीश कुमार की कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं. ये तस्वीरें बिहार की नहीं, दिल्ली की हैं. दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू की तरफ से G20 मेहमानों को दी गयी डिनर पार्टी की ही ये तस्वीरें हैं. बाकी तो जो हैं, हैं ही - कम से कम दो तस्वीरें ज्यादा खास लगती हैं. 

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एक तस्वीर में तो नीतीश कुमार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुखातिब हैं. नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अगल बगल खड़े हैं. ये तस्वीर अलग संदेश दे रही है, लेकिन दूसरी तस्वीर कुछ अलग ही मैसेज देती नजर आ रही है. एक तस्वीर को देख कर लगता है, जैसे नीतीश कुमार विपक्ष के अपने उन साथियों को कोई संदेश देना चाह रहे हों, जो हाल फिलहाल कम तवज्जो देने लगे हैं. और ऐसे साथियों में नीतीश कुमार के सबसे पुराने दोस्त लालू यादव का नाम प्रमुख है.

हो सकता है महज संयोग हो, लेकिन ये सब नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रयोग भी तो हो सकता है. नीतीश कुमार ऐसे कुछ होने तो नहीं ही देते. बोलने और चुप रह जाने से लेकर उठने बैठने तक, नीतीश कुमार का हर एक्शन पूरी तरह राजनीतिक होता है.

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एक और तस्वीर में नीतीश कुमार खाने बैठे हैं. डिनर टेबल पर जो उनके बैठने की पोजीशन है वो भी बहुत कुछ कहती है. एक तरफ केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल बैठी हैं, दूसरी तरफ बीजेपी के अति सक्रिय मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बैठे हैं - ये तस्वीर बताती है कि नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी की नाराजगी खत्म होने लगी है. 

हो सकता है इसमें विपक्षी गठबंधन INDIA की भी खास भूमिका हो. 2024 के आम चुनाव के लिए आखिर विपक्ष को एकजुट करने की पहल भी तो नीतीश कुमार ने ही की थी. ये बात अलग है कि पटना की पहली मीटिंग के बाद से ही नीतीश कुमार अपने करीबियों की आंखों में ही खटकने लगे थे - और मुंबई की मीटिंग तक पहुंचते पहुंचते बड़ी दरार सामने आने लगी.

नीतीश कुमार ने डिनर में शामिल होकर क्या संदेश देना चाहते हैं

G20 डिनर में शामिल होने की नीतीश कुमार की कोई मजबूरी नहीं थी. अव्वल तो वो विपक्षी गठबंधन के प्रमुख नेता हैं, ऊपर से उनके बहुत अच्छे दोस्त ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी नहीं शामिल होने वाले थे. जगनमोहन रेड्डी भी देश से बाहर होने के चलते नहीं पहुंचे थे. अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव जैसे मुख्यमंत्रियों के अलावा केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने तो पहले ही डिनर का न्योता ठुकरा दिया था. 

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INDIA गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी पहुंचे थे, लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी हुई डिनर में पहुंचे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले मिलते देख कर. पता चला है कि कांग्रेस नेतृत्व ने डिनर में शामिल होने या न होने का फैसला अपने मुख्यमंत्रियों पर ही छोड़ दिया था. भूपेश बघेल और अशोक गहलोत के पहले से ही स्टैंड ले लेने के बाद सुखविंदर सिंह का डिनर में पहुंचना थोड़ा हैरान तो करता ही है. 

सबसे ज्यादा हैरान तो करता है, डिनर के बाद नीतीश कुमार का बयान. मीडिया से बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा, राष्ट्रपति ने आने का निमंत्रण दिया था कि आना चाहिये, इसलिए हम लोग आ गये.

बहुत अच्छी बात है, बुलाने पर जाना ही चाहिये. लेकिन नीतीश कुमार को तो राष्ट्रपति के शपथग्रहण में भी बुलाया गया था, और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की विदाई वाले रात्रिभोज में - आखिर तब नीतीश कुमार क्यों नहीं पहुंचे थे. तब तो वो एनडीए में ही रहे. राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मूर्मू का सपोर्ट भी किया था. ये भी ध्यान रहे कि उसके महीने भर बाद ही नीतीश कुमार पाला बदल कर महागठबंधन के नेता बन गये थे.

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और अब चहक कर कह रहे हैं, आप लोगों ने देखा ही होगा कि हम लोग 4 घंटा से ज्यादा समय वहां रहे. फिर यहां आ गये और आकर फिर जा रहे हैं. 

ये पूछे जाने पर कि डिनर कार्यक्रम कैसा रहा, नीतीश कुमार ने उसी उत्साह से बताया, 'अच्छा ही है, अच्छा ही रहा.' वहीं गए और लौट के फिर आ गए और यहां से जा रहे हैं. 

नीतीश कुमार के इस कदम से कभी उनके साथ रहे प्रशांत किशोर को फिर से मौका मिल गया है. प्रशांत किशोर का कहना है, नीतीश कुमार के राजनीति करने का अपना तरीका है. एक दरवाजे को खोलते हैं, और पीछे से खिड़की और रोशनदान दोनों खोलकर रखते हैं. कहते हैं, 'किसकी कब जरूरत पड़ जाये, अपना रास्ता खोले हुए हैं.'

प्रशांत किशोर तो ऐसी बातें शुरू से करते रहे हैं. बीजेपी नेता अमित शाह भी अपनी रैलियों के जरिये लालू यादव को समझा चुके हैं कि नीतीश कुमार फिर पलटी मार सकते हैं. 

तो क्या बीजेपी भी अब दरवाजा खोल देगी?

बिहार की ही एक रैली में अमित शाह ने साफ तौर पर कह दिया था, नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद हो चुके हैं. और उससे पहले नीतीश कुमार भी कह चुके थे कि मर जाएंगे, लेकिन बीजेपी में नहीं जाएंगे. 

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बिहार की एक रैली में नीतीश कुमार सहित जेडीयू नेताओं संबोधित कर अमित शाह ने कहा था, 'मैं एक बात आज फिर स्पष्ट कर देता हूं... किसी के भी मन में ये संशय हो कि चुनाव के परिणामों के बाद नीतीश कुमार को भाजपा एनडीए में लेगी... तो स्पष्ट कहना चाहता हूं कि आप लोगों के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.'

बीच में राज्य  सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के जरिये नीतीश कुमार के बीजेपी नेतृत्व के संपर्क में होने की बातें भी चल रही थीं. 

वे बातें सच होने जा रही हैं क्या?

क्या होगा नीतीश कुमार का एक्शन प्लान

INDIA गठबंधन में अभी नीतीश कुमार के खिलाफ जो भी चल रहा है, वो तो खून का घूंट पीकर रह जाते होंगे. ऐसे में विपक्षी साथियों को ये बताने और जताने का उनका हक तो बनता ही है कि अपने मन की बात का एक्शन से इजहार कर दें.

G20 डिनर में शामिल होकर नीतीश कुमार ने ये संदेश तो भेज ही दिया है कि वो विपक्षी गठबंधन के साथ तभी तक हैं जब तक उनको वो इज्जत बख्शी जाये, जिसके वो हकदार हैं. 

जरा INDIA गठबंधन की तीसरी बैठक को याद कीजिये. नीतीश कुमार और लालू यादव पटना से अलग अलग गये थे, जबकि बेंगलुरू दौरे में ऐसा नहीं था. 

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दरार पड़नी तब शुरू हुई जब लालू यादव ने बोल दिया कि INDIA का कोई एक संयोजक नहीं होगा, बल्कि कई होंगे. नतीजा ये हुआ कि कोई संयोजक नहीं बना, और कमेटियों की घोषणा कर दी गयी.

ये तो शुरू से ही देखा जा रहा है कि लालू यादव नीतीश कुमार को कांग्रेस के दबाव में किनारे लगाने में जुटे हुए हैं. क्योंकि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे हैं.

लेकिन लालू यादव ये बात भूल जा रहे हैं कि वो कांग्रेस का भला करने के चक्कर में तेजस्वी यादव का बुरा कर रहे हैं. अगर नीतीश कुमार का साथ छूटा तो तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री बनने की तारीख और टल जाएगी. 

जिस तरीके से नीतीश कुमार कह चुके हैं कि वो 2025 में तेजस्वी यादव कमान संभालेंगे, मतलब तो ये भी निकलता है कि वो मुख्यमंत्री बनने का इरादा छोड़ चुके हैं. ये सब वो खुशी खुशी तो करेंगे नहीं, मजबूरी में ही कर रहे होंगे. 

नीतीश की दोबारा घर वापसी से बीजेपी को तो ज्यादा ही फायदा है. बीजेपी की जो रणनीति रही है, फिर से प्रयास कर सकती है. नीतीश कुमार के सुशासन की विरासत पर काबिज होने की - और अमित शाह तो ये कह ही चुके हैं कि 2024 के चुनावों के बाद बिहार में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया जाएगा.

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