नीतीश कुमार को लेकर लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कह रहे थे कि उनको INDIA ब्लॉक छोड़ने का अफसोस होगा, लेकिन ऐसा हुआ है क्या?
चुनाव नतीजों से तो यही लगता है कि बिहार की 12 लोकसभा सीटें जीत कर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया है कि अफसोस तो कांग्रेस को होना चाहिये, जो जेडीयू नेता को अपने साथ नहीं रख सकी. क्योंकि कांग्रेस और राहुल गांधी के बिहार में पार्टनर तेजस्वी यादव मिलकर भी अपने लोकसभा सीटों के मामले में नीतीश कुमार की बराबरी नहीं कर पाये.
नीतीश कुमार ने कांग्रेस और आरजेडी ही नहीं बीजेपी के बराबर लोकसभा सीटें जीती है. बीजेपी को भी बिहार में 12 लोकसभा सीटें मिली हैं. नुकसान तो दोनों दलों को उठाना पड़ा है. 2019 में बीजेपी 17 और जेडीयू 16 सीटें जीते थे.
हर चुनाव में जंगलराज की याद दिलाकर नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक जमीन बचाये हुए हैं - लेकिन 2024 की चुनावी जीत ने नीतीश कुमार को फिर से ऐसी स्थिति में ला दिया है कि कहा जा सकता है, उनकी राजनीति में जंग अभी उतनी जंग नहीं लगी है, अभी जान बाकी है.
अब तक बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की डिमांड करते आ रहे नीतीश कुमार को संसदीय चुनाव ने ऐसा मौका दे डाला है कि वो पटना में दबदबा कायम रखते हुए दिल्ली में भी बेहतर मोलभाव के लायक हो गये हैं.
1. मोदी के लिए फिर से चैलेंजर बने नीतीश कुमार
एक समय था जब नीतीश कुमार देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी के प्रमुख चैलेंजर होते थे, लेकिन वक्त गुजरने के साथ साथ धीरे धीरे वो बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए संघर्ष करते देखे गये.
अब तो वक्त ने एक झटके में नीतीश कुमार को फिर से मोदी को चैलेंज करने की स्थिति में खड़ा कर दिया है - और ये तो नीतीश कुमार के लिए आपदा में बेहतरीन अवसर जैसा ही है. वरना, एग्जिट पोल और चुनाव नतीजों के बीच के वक्त में उनको किसी सूबे का राज्यपाल तक बनाये जाने की भी चर्चा होने लगी थी.
ये नीतीश कुमार ही हैं जो 2014 से पहले एनडीए को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर रहे थे. तब उनको उम्मीद थी कि मोदी के नाम पर तो कोई तैयार होगा नहीं, ऐसे में वो खुद को ही दावेदार मान रहे थे. जैसे ही बीजेपी ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, नीतीश ने एनडीए ही छोड़ दिया.
राष्ट्रपति चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने एक चर्चा छेड़ी थी. मीडिया के साथ बातचीत में नीतीश कुमार ने राज्यसभा जाने की इच्छा जताई थी, और ये चर्चा होने लगी थी कि वो उपराष्ट्रपति बनना चाहते हैं, लेकिन बीजेपी की तरफ से भाव नहीं मिला - और बात आई गई हो गई.
लोकसभा चुनाव बीजेपी को अकेले बहुमत न मिलने के कारण मोदी थोड़े कमजोर हुए हैं, और बिहार में बीजेपी के बराबर लोकसभा सीटें जीतकर नीतीश कुमार थोड़े मजबूत हो गये हैं. वैसे नीतीश कुमार के फिलहाल मजबूत नजर आने की सबसे बड़ी वजह विपक्ष अच्छा खासा नंबर जुटा लेना - और उनकी पलटीमार छवि भी है.
नीतीश कुमार खुद किंगमेकर के रूप में देख रहे हैं - और अपनी राजनीति को ऐसे मोड़ पर पहुंचा चुके हैं कि दोनो गठबंधन उनको साधने की कोशिश कर रहे हैं. टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार के साथ साथ टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू को भी सलाह दी है कि वे एनडीए के खिलाफ खड़े हों, यानी इंडिया ब्लॉक को सपोर्ट करें.
लेकिन नीतीश कुमार यूं ही बिहार की राजनीति के चाणक्य तो कहे नहीं जाते. तेजस्वी यादव के साथ एक ही फ्लाइट में पटना से दिल्ली का सफर तय कर अपना मैसेज भी दे दिया है - अब इसे कोई संयोग समझे या प्रयोग समझे.
2. जंगल-राज और स्पेशल पैकेज के बीच झूलती नीतीश की पॉलिटिक्स
आरजेडी के खिलाफ जंगल-राज को नीतीश कु्मार ने वैसे ही इस्तेमाल किया है, जैसे बीजेपी के खिलाफ बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की पेंडिंग मांग को प्रचारित करते रहे हैं - और जब किसी एक के पाले में रहते हैं, दूसरे को उसी अंदाज में टारगेट करते हैं.
फिलहाल तो उनको जंगलराज की याद दिलाने की बहुत जरूरत नहीं है, क्योंकि ये माल तो सिर्फ पटना में बिकता है, दिल्ली की सियासी तासीर तो बिलकुल अलग है - लेकिन नीतीश कुमार की पलटी मारकर कभी भी बाजी पलट देने की आशंका हमेशा ही साथ वाले को डराती रहती है. सोशल मीडिया पर एक होर्डिंग खूब शेयर की जा रही है, जिस पर लिखा है - नीतीश कुमार सबके हैं.
अब तो नीतीश कुमार को लोगों ने ये मैंडेट भी दे दिया है कि वो बिहार ही क्यों खुद के लिए भी स्पेशल पैकेज मांग सकते हैं - तभी तो वो मोदी-शाह से अपने विशेष पैकेज के लिए भी मोलभाव करने लगे हैं.
3. बिहार सरकार में अब जेडीयू का होगा अपर-हैंड
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह ने नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान की मदद से ऐसा जाल बिछाया कि वो बुरी तरह फंस गये. बीजेपी के मुकाबले जेडीयू की सीटें काफी कम हो गईं. कहने को तो जेडीयू की तरफ से कम सीटें आने के लिए बार बार चिराग पासवान को टारगेट किया जा रहा था, लेकिन असली निशाने पर बीजेपी नेतृत्व ही था.
ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी मोदी-शाह ने नीतीश कुमार को वैसे ही मुख्यमंत्री बनाय जैसे 2015 में लालू यादव की पार्टी आरेडी ने किया था. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गये, लेकिन छोटी छोटी बातों के लिए बीजेपी की हरी झंडी का इंतजार करना पड़ रहा था.
कहां अपने पुराने साथी सुशील कुमार मोदी के साथ नीतीश कुमार हंसी खुशी से सरकार चलाते थे, और कहां बीजेपी ने अगल बगल दो दो नये डिप्टी सीएम बिठा दिये - चार साल बाद नीतीश कुमार को मौका मिला है जब वो विधानसभा से जुड़ी राजनीति में अपर-हैंड दिखा सकते हैं.
अगर नीतीश कुमार दिल्ली शिफ्ट होते हैं, तो ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी जेडीयू को मुख्यमंत्री की कुर्सी देगी. हां, नीतीश कुमार जिद पर अड़े रहे तो दो डिप्टी सीएम पर डील पक्की हो सकती है - और दिल्ली में आगे भी बल्ले बल्ले वाली स्थिति बनी रह सकती है.
4. बीजेपी से छिटकते दलित वोट बैंक को साध सकते हैं नीतीश
बिहार में दलित राजनीति अब तक पासवानों और जीतनराम मांझी के भरोसे चलती आई है. ये दोनों ही फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं. अतीत में इन दोनों ही नेताओं ने नीतीश कुमार को नाकों चने चबवाए हैं.
अब जबकि नीतीश कुमार की हैसियत एनडीए में एक अहम नेता की हो गई है, ऐसे में उनके लिए दलित राजनीति में अपने फैलाव को बढ़ाने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता. अब तक कुर्मी और कुछ अन्य पिछड़ी जातियां ही उनका कोर वोट बेस रही हैं. बाकी का काम उनकी 'सुशासन बाबू' वाली छवि के भरोसे चल रहा था.
लोकसभा चुनाव 2024 ने नीतीश कुमार को नई लाइफ लाइन दी है, तो वो इसका भरपूर लाभ उठाना चाहेंगे, जिसमें एक नई सोशल इंजीनियरिंग वाला फॉर्मूला तैयार हो सकता है. जब विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा रही हैं, तो बिहार के दलितों को नीतीश कुमार ये आश्वासन दे सकते हैं कि उनके एनडीए में रहते ऐसा नहीं होगा.
अब तो नीतीश कुमार भी गारंटी देने की हैसियत में आ गये हैं - और अब तो 'जय श्रीराम' की नारेबाजी के दौरान उनको बैठे बैठे मुस्काने की मजबूरी भी खत्म हो गई है.