नीतीश कुमार ने बड़ी शिद्दत से जातिगत जनगणना करायी है. बिहार में शराबबंदी को भी उतने ही शौक से लागू किया था. बहुत बाद की बात छोड़ भी दें तो जातिगत गणना का हाल भी शराबबंदी जैसा ही होने लगा है.
बिहार में हुई जातिगत गणना और शराबबंदी के लागू होने में एक ही जैसे सवाल उठ रहे हैं. जातिगत गणना के आंकड़े तो फर्जी बताये ही गये, जारी किये जाने में हड़बड़ी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. जातिगत गणना को लेकर बिहार में हुए एक सर्वे भी हुआ है, जिसमें सबसे ज्यादा लोग मानते हैं कि जातिगत गणना का मकसद लोक सभा और विधानसभा चुनाव में फायदा उठाना है.
सत्ता की राजनीति में राजनीतिक दल अपने कार्यक्रम और नीतियों से फायदा उठाने की कोशिश करते हैं, तो ये उनका हक भी है, लेकिन बताया कुछ जाये, और देखने को कुछ और मिले तो सवाल तो उठेंगे ही. शराबबंदी को लेकर भी नीतीश कुमार को काफी उत्साहित देखा गया, लेकिन जब जहरीली शराब से मौतें नहीं रुकीं तो सवाल भी उठाये जाने लगे - और सवालों पर नीतीश कुमार के अजीबोगरीब जवाब भी सुनने को मिले... पीयोगे तो मरोगे ही.
जातिगत गणना को लेकर मीडिया के सवाल पर भी नीतीश कुमार की करीब करीब वैसी ही प्रतिक्रिया देखी जा रही है. हंसते हंसते ही कहते हैं, 'अभी मत कुछ पूछिये.'
नीतीश कुमार का कहना है, 'जातीय गणना हम लोगों ने करवा दिया है, तो अन्य राज्यों में भी इसकी चर्चा हो रही है... 9 पार्टियों के साथ मीटिंग करके सारी बातों को बता दिया... जब हाउस शुरू होगा तो एक-एक जानकारी, आर्थिक स्थिति की भी... हर परिवार की, जिसमें सभी जातियों की है... सबका, उसी समय पूरा का पूरा करके हाउस में भी रख दिया जाएगा.'
जातिगत गणना के आंकड़ों पर उठ रहे सवालों पर नीतीश कुमार सिर्फ इतना ही कहते हैं, 'चिंता मत करिये... बहुत अच्छा हो गया. अब इसको हाउस में रखेंगे... आगे क्या करना है या जो कुछ भी करना है सबसे विमर्श करके हम लोग करेंगे.'
जातिगत गणना और शराबबंदी की कॉमन बातें
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले एक कार्यक्रम में अचानक ऐसी स्थिति बनी कि नीतीश कुमार ने सरकार बनने पर बिहार में शराबबंदी लागू करने का वादा कर दिया. 2016 में बिहार में शराबबंदी कानून लागू कर वादा भी निभाया, लेकिन जहरीली शराब से होने वाली मौतों का सिलसिला नहीं थमा - और न ही बिहार में शराब की बिक्री रुकी.
सीमा पार से शराब की तस्करी होने लगी. अलग अलग ब्रांड के कोड वर्ड भी बन गये... ग्राहक के राधे श्याम बोलते ही दुकानदार समझ जाता कि रॉयल स्टैग देना है. वैसे ही राम चंद्र यानी रॉयल चैलेंज, इंद्र भगवान यानी इंपीरियल ब्लू, राम यानी रम. खुद बिहार पुलिस भी शराबियों की महफिल में ब्लेंडर प्राइड के नाम से जानी जाने लगी.
हालत ये हो गयी कि एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार को सलाह दे डाली, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विचार करना चाहिये... जब प्रधानमंत्री कृषि कानून को वापस ले सकते हैं तो बिहार सरकार शराबबंदी कानून वापस क्यों नहीं ले सकती?'
1. जातिगत गणना और शराबबंदी की तुलना करें तो दोनों ही मामलों में किसी ने विरोध नहीं किया. विरोध शराबबंदी कानून लागू करने के तरीके पर हुआ. सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा और वहां भी सवाल उठाये गये.
जातिगत गणना की बात करें, विरोध तो बीजेपी ने भी नहीं किया. बल्कि नीतीश कुमार ने ऐसा जाल बिछाया कि एनडीए में रहते हुए तेजस्वी यादव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने तक पहुंच गये - और बिहार से गये प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी को अपना एक विधायक भी भेजना पड़ा था.
2. विरोध जातिगत गणना के आंकड़े जारी होने के बाद शुरू हुआ है, शराबबंदी के मामले में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ था. सवाल भी सिर्फ सर्वे के तौर-तरीके पर उठ रहे हैं. जातिगत गणना के लिए आंकड़े जुटाये जाने के तरीके पर और जो आंकड़े पेश किये जा रहे हैं, उन पर.
3. राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, लेकिन जातिगत गणना के बाद कई जातियों के नंबर पर सवाल उठाये जा रहे हैं. ऐसे सवाल बिहार को करीब से जानने वाले या बिहार के रहने वालों की तरफ से उठाये जा रहे हैं.
बिहार के रहने वाले लोगों ने सोशल मीडिया पर एक सवाल उठाया था कि सर्वे में कुर्मी जाति के लोगों को भूमिहार बिरादरी से ज्यादा बताया गया है. सर्वे के मुताबिक बिहार में कुर्मी की आबादी 2.8785 फीसदी है, जबकि भूमिहार की संख्या 2.8683 फीसदी पायी गयी है.
विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से बिहार के प्रभारी रहे देवेंद्र फडणवीस कहते हैं, 'सर्वे को लेकर नयी ही लड़ाई छिड़ गयी है... कुर्मी कहते हैं... हम तो इतने कम नहीं हैं. कोइरी भी कहते हैं... हम तो इतने कम नहीं हैं... और कोई कम्युनिटी कहती है... हम तो 6 परसेंट हैं, हमको 2 परसेंट दिखाया गया है.'
आरोप तो यहां तक लगे हैं कि सर्वे टीम कई लोगों के पास पहुंची ही नहीं. धीरे धीरे नीतीश कुमार के लिए जातिगत गणना भी शराबबंदी की ही तरह सिरदर्द का रूप लेती जा रही है, अभी तो ऐसा ही लग रहा है.
जातीय सर्वे में भी शराबबंदी लागू करने जैसी खामियां
जब शराबबंदी को लेकर बवाल चरम पर था तभी का एक वाकया याद आता है. उत्तर प्रदेश से निकल कर जैसे ही हम लोग बिहार की सीमा पर पहुंचे, पुलिस वालों रुकने का इशारा किया. हम लोग रुक गये. पूछे कहां से आ रहे हैं, बता दिये. फिर पूछे जाना कहां है, मैंने बताया पटना. एक पुलिसकर्मी डिक्की की तरफ बढ़ा ही था कि सामने खड़े पुलिसवाले ने एक सवाल और पूछा, पटना में कहां? मैंने बताया, एयरपोर्ट. ये सुनते ही सामने वाले पुलिसकर्मी ने अपने साथी को वापस बुला लिया. हम लोगों से बोला, जाइए... आप लोग जाइए.
चेकिंग तो खूब हो रही थी, लेकिन सभी गाड़ियों की नहीं. कई गाड़ियां तो किनारे खड़ी कर दी गयी थीं, लेकिन कुछ गाड़ियों को पुलिसवाले उनके कुछ बोलते ही छोड़ देते... जाने दो. मुझे नहीं पता एयरपोर्ट भी कोई कोड था क्या? जैसे शराब के खास ब्रांड के लिए खास नाम रख लिये गये थे.
क्या जातिगत गणना भी इसी तरह हुई है, और इसीलिए सवाल खड़े किये जा रहे हैं?
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद का दावा है कि गणना करने वाले ने न उनसे मुलाकात की, न ही उनका हस्ताक्षर लिया गया. पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि वो पटना साहिब से सांसद हैं, अगर उनके साथ ऐसा हो रहा है तो बाकी लोगों के साथ क्या हुआ होगा. बीजेपी नेता का आरोप है कि जातिगत गणना में सभी लोगों से मिले बिना ही रिपोर्ट बना दी गई - और कई जातियों की संख्या को कम बता दिया है.
वैसे रविशंकर प्रसाद ये जरूर मानते हैं कि गणना के लिए एक टीम उनके घर पहुंची थी, लेकिन गेट से ही वापस चली गयी. सवाल तो ये भी है कि अगर गेट तक टीम पहुंची थी तो लौटना क्यों पड़ा? ऐसा ही आरोप बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा का भी है कि किसी भी टीम ने उनके परिवार का सर्वे नहीं किया है.
बिहार सरकार की तरफ से ऐसे आरोपों को गलत और झूठा बताते हुए खारिज कर दिया है. पटना जिला प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि उनके पास हर जानकारी से जुड़े दस्तावेज हैं, लेकिन दिशानिर्देशों के अनुसार, व्यक्तिगत सूचना की गोपनीयता की शर्त के कारण संबंधित जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है.
मुजफ्फरपुर सहित कई जिलों से भी ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि जिनमें लोग कह रहे हैं कि उनके यहां कोई पहुंचा ही नहीं. बीजेपी के आरोप राजनीतिक हो सकते हैं, लेकिन जब जेडीयू नेता ही सवाल उठाने लगें तो क्या कहा जाये. जेडीयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने धानुक जाति की आबादी को लेकर नाराजगी जाहिर की है. वैसे ही सीतामढ़ी से जेडीयू सांसद सुनील कुमार पिंटू का कहना है कि सरकार ने उनके साथ इंसाफ नहीं किया है. आरोप लगाया है कि जातिगत गणना में तेली समाज की जो संख्या बतायी जा रही है, वो बहुत कम है. जेडीयू सांसद का आरोप है, सर्वे में तेली समाज की गणना बिल्कुल ही नहीं की गई है... अगर गणना हुई भी है, तो सही तरीके से नहीं की गई है.
सीवोटर के एक सर्वे के मुताबिक, 37 फीसदी लोगों का मानना है कि जातिगत गणना लोक सभा और विधानसभा चुनावों में फायदा उठाने के मकसद से करायी गयी है, जबकि 6 फीसदी लोग मानते हैं कि ये सब गठबंधन के दबाव में हुआ है. वैसे ये नहीं भूलना चाहिये कि नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की पहल और प्रयास तभी शुरू कर दिये थे जब वो एनडीए का हिस्सा हुआ करते थे.