बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अबूझ पहेली बन चुके हैं. पिछले तीन दशकों से बिहार की राजनीति को अपने इशारे पर चलाने वाले नीतीश कुमार शायद खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना है. फिलहाल इसके पीछे सबसे बड़ा कारण तो उनकी उम्र और स्वास्थ्य ही है. वर्ना आज भी आरजेडी हो या बीजेपी दोनों ही उन्हें इग्नोर करने की स्थिति में नहीं है. बिहार की राजनीति का यह सितारा अगर अगर चुप्पी का आवरण ओढ़ लेता है तो भी राज्य की राजनीति गोते लगाने लगती है. बिहार ही नहीं पूरे देश को लोग उनके हर कदम की बहुत उत्कंठा से प्रतीक्षा करते हैं.
रविवार को उन्होंने तमाम अटकलों को खत्म करते हुए बिहार में चल रही पार्टी की प्रगति यात्रा के दौरान कहा कि उनके द्वारा दो बार पक्ष बदलना एक गलती थी और अब वह हमेशा के लिए भाजपा-नेतृत्व वाले एनडीए के साथ रहेंगे. रविवार को वो मुजफ्फरपुर में थे. उन्होंने कहा कि जो लोग हमारे पहले सत्ता में थे… क्या उन्होंने कुछ किया? लोग सूरज ढलने के बाद घर से बाहर निकलने से डरते थे. मैंने गलती से उनके साथ कुछ बार गठबंधन किया था. पर बिहार ही नहीं पूरा देश जानता है कि इस तरह की बातों का कोई मतलब नहीं है. पिछले दिनों कई बार ऐसे मौके आए जब नेताओं ने एक घंटे के अंदर पूरा चेहरा बदल लिया. इसलिए आज की राजनीति में इस तरह की बातों को गारंटी के तौर पर नहीं लिया जा सकता. नीतीश कुमार एनडीए को नहीं छोड़ने की बात कर रहे हैं पर क्या एनडीए भी ऐसा ही सोचती है उनके बारे में?
1-नीतीश कुमार पर कितना भरोसा कर सकती है आरजेडी और बीजेपी
नीतीश कुमार इतनी बार आरजेडी और बीजेपी को लेकर अपनी निष्ठा बदल चुके हैं कि अब उन्हें और उनके समर्थकों को कोई फर्क नहीं पड़ता. नीतीश कुमार बिना संकोच कभी भी फैसला कर सकते हैं कि एनडीए का साथ उनका रिश्ता खत्म . दूसरी बात यह भी है कि नीतीश कुमार की स्थिति विशेषकर उनका गिरते स्वास्थ्य और दोनों आरजेडी और बीजेपी की महत्वाकांक्षा को देखते हुए दोनों उन्हें चुनावों के बाद मुख्यमंत्री बनाने की तैयार होंगे इसमें संदेह ही है. जाहिर है कि इस उम्र में जाने के बाद नीतीश कुमार जैसे लोगों को गारंटी की जरूरत होती है. दुबारा सीएम की गारंटी जो देगा नीतीश कुमार उसी के साथ रहेंगे. दोनों ही जगहों से गारंटी न मिलने की भी स्थिति में वह एनडीए के साथ रहना बेहतर समझेंगे. क्योंकि उन्हें पता है अभी 2029 तक केंद्र की सत्ता में बीजेपी की ही रहने वाली है. इस तरह 2027 के विधानसभा चुनावों में एनडीए चुनाव हार भी जाती है तो नीतीश कुमार कोई सम्मानित जगह मिल ही जाएगी.
2-क्या बीजेपी भी चाहती है नीतीश कुमार खुद जाएं
भारतीय जनता पार्टी में भी नीतीश कुमार को लेकर बहुत कन्फ्यूजन दिखता है.गृहमंत्री अमित शाह ने आज तक के एजेंडा में बोला था कि नीतीश कुमार के नेतृत्व पर अंतिम फैसला बीजेपी संसदीय बोर्ड और जेडीयू को लेना है. यानि कि बीजेपी नीतीश कुमार को अपना नेता बनाने के लिए कम से कम मजूबर तो बिल्कुल नहीं दिख रही है. दूसरी तरफ बिहार बीजेपी भी यही चाहती रही है कि उसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की छूट मिले. फिलहाल हाल ही में जिस तरह बिहार के स्थानीय नेताओं ने नीतीश कुमार को अपना नेता बताया है वह शायद यह दिखाने की कोशिश थी कि एनडीए एक है. और नीतीश कुमार को लेकर कोई किंतु-परंतु नहीं है.
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार के लिए भारत रत्न की मांग की है. जाहिर है बीजेपी उन्हें सम्मान देना चाहती है ताकि नीतीश कुमार के समर्थकों का हस्तांतरण भारतीय जनता पार्टी में आसानी से कराया जा सके. यह संभव है कि नीतीश कुमार के लिए भारत रत्न की घोषणा भी हो जाए पर इसके बाद भी बीजेपी यह से उम्मीद करना कि चुनाव बाद नीतीश कुमार को फिर से सीएम बनाएगी इसमें संदेह ही है. हां ये अलग बात है कि एक बार फिर ऐसी स्थिति हो जाए कि आरजेडी के बाजी मारने की आशंका हो जाए तो बात अलग है.
3-बिहार बीजेपी को छोड़ दें तो केंद्र ने नहीं दिया कोई भाव
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए के साथ रहने की टिप्पणी ने उनके राजनीतिक रुख को स्पष्ट कर दिया, जो राजद प्रमुख लालू प्रसाद द्वारा उन्हें गर्मजोशी से स्वागत करने के प्रयास के कुछ दिन बाद आई थी. लालू ने कहा था, अगर नीतीश कुमार हमारे साथ आने का फैसला करते हैं, तो उनका हमेशा स्वागत है. हम साथ काम करेंगे. पर नीतीश कुमार की पिछले एक महीने की चुप्पी के बीच भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने कोई ऐसी पहल नहीं की जिससे लगे पार्टी को उनकी चिंता है. कहा जा रहा कि मनमोहन सिंह के अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए दिल्ली आए नीतीश कुमार से पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने की बहुत संभावना थी. पर शायद दोनों तरफ से मिलने की पहल नहीं की गई. केंद्र और बिहार दोनों ही जगहों पर नीतीश कुमार सरकार की जरूरत हैं इसके बावजूद इस तरह की दूरी बहुत से लोगों को समझ नहीं आई. हालांकि इस बीच बिहार बीजेपी के तमाम नेताओं ने नीतीश कुमार के सम्मान में कशीदे पढ़े. जाहिर है कि राजनीति में यह एक तरह की रणनीति होती है. अब इसका लाभ कौन उठाएगा यह देखना होगा.
4- नीतीश कुमार के साथ नहीं रहने से एनडीए को फायदा या नुकसान
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बिना बीजेपी बिहार में अपने बलबूते सरकार बनाने में सक्षम नहीं है. दूसरे एक बात और है कि बिहार में देवेंद्र फडणवीस के टक्कर का कोई नेता बीजेपी के पास नहीं है. तीसरे नीतीश कुमार का वोट बैंक अब भी उनके साथ सॉलिड तरीके से खड़ा है . इसे हम लोकसभा चुनावों में और फिर बाद विधानसभा उपचुनावों में जेडीयू कैंडिडेट्स को मिली सफलता में देख सकते हैं.पर एनडीए को छोड़कर नीतीश कुमार एक बार फिर आरजेडी की तरफ जाते हैं तो शायद एनडीए उन्हें गंभीरता से रोकने की कोशिश भी नहीं करेगी. क्योंकि बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार के जाने से एंटी इंकंबेसी कम हो जाएगी. और बीजेपी अब राज्य में खुद के बल खड़ा होना चाहती है.