बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक साथ लालू यादव और राहुल गांधी दोनों ही नेताओं को साफ कर दिया है कि वो किसी के भी दबाव में नहीं आने वाले हैं. अब वो बिलकुल वही करेंगे जो उनका मन करेगा - और नीतीश कुमार के ऐसा सख्त रुख अख्तियार करने में सबसे ज्यादा मदद मिली है बीजेपी नेता अमित शाह के बाद केंद्रीय गृह मंत्री गिरिराज सिंह के बयानों से.
जो गिरिराज सिंह हरदम नीतीश कुमार के खिलाफ ही आक्रामक रवैया अपनाये रहते हैं, वो अभी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के आगे लालू यादव ने घुटने टेक दिये हैं. पहले ठीक इसके उलट बातें किया करते थे. नीतीश कुमार चाहे महागठबंधन के साथ बने रहें, या फिर पाला बदलने पर विचार कर रहे हों, अमित शाह के बयान से उनको विपक्षी गठबंधन में फैसले लेने में काफी मदद मिली है. एक इंटरव्यू में नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी से जुड़े सवाल पर अमित शाह का कहना था कि ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो वो विचार करेंगे. पहले तो अमित शाह की तरफ से लगातार यही बताया जाता रहा कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.
बिहार में मंत्रियों के विभागों के बंटवारे की बात करें, या फिर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने की - नीतीश कुमार अपने मन वाली ही कर रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे लालू यादव और कांग्रेस नेतृत्व दोनों पर एहसान जता रहे हों.
INDIA ब्लॉक की गतिविधियों को लेकर नीतीश कुमार की सबसे ज्यादा नाराजगी कांग्रेस से है, और कई बार ये बात वो सार्वजनिक तौर पर कह भी चुके हैं. हाल फिलहाल नीतीश कुमार की नाराजगी की जो वजह सामने आई है, वो विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व को लेकर. INDIA ब्लॉक की बैठक में नीतीश कुमार इतने खफा थे कि जब राहुल गांधी की तरफ से उनको संयोजक बनाने का प्रस्ताव आया तो न सिर्फ ठुकरा दिया, बल्कि तंज भरे लहजे में लालू यादव को ही संयोजक बना देने का सुझाव दे डाला.
बहरहाल, लालू यादव और राहुल गांधी दोनों के लिए फिलहाल राहत की बात है कि नीतीश कुमार भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं. जेडीयू नेता केसी त्यागी की बातों से तो अब तक यही लगता था कि अकेले अकेले कांग्रेस के यात्रा प्लान करने के मुद्दे पर ही विपक्षी टूट कर बिखर जाएगा.
नीतीश कुमार ने कांग्रेस को दी बड़ी राहत
जैसे नीतीश कुमार कांग्रेस को INDIA ब्लॉक के खड़ा होने में सबसे बड़ी बाधा बताने लगे थे, जेडीयू नेता केसी त्यागी भारत जोड़ो न्याय यात्रा की घोषणा के बाद उनसे भी ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे थे. और केसी त्यागी की बातों से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो सिर्फ अपनी नहीं बल्कि दूसरे क्षेत्रीय दलों के मन की बात कर रहे हों. वो बार बार यही सवाल पूछ रहे थे कि कांग्रेस नेतृत्व ने यात्रा फाइनल करने से पहले सहयोगी दलों से बात क्यों नहीं की?
लेकिन अब खबर आ रही है कि नीतीश कुमार भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बिहार पहुंचने पर उसमें शामिल होने जा रहे हैं. ये जानकारी कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा की तरफ से दी गई है. बताते हैं कि राहुल गांधी की एक जनसभा में नीतीश कुमार ने शामिल होने की हामी भर दी है.
राहुल गांधी न्याय यात्रा के साथ 29 जनवरी को बिहार में दाखिल होने जा रहे हैं. उस दिन राहुल गांधी किशनगंज जाएंगे, वो 30 जनवरी को पूर्णिया और 31 जनवरी को कटिहार में रैली करेंगे - नीतीश कुमार की तरफ से 30 जनवरी को राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने की पुष्टि की गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस की तरफ से नीतीश कुमार के साथ ही लालू यादव और तेजस्वी यादव के अलावा सीपीआई-एमएल नेता दीपांकर भट्टाचार्य को भी बुलावा भेजा गया है. बिहार सरकार में कांग्रेस और सीपीआई-एमएल सहित कुल सात राजनीतिक दल शामिल हैं - देखना है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में कौन कौन शामिल होता है?
नीतीश कुमार काफी दिनों से महसूस कर रहे थे कि उनको भी कांग्रेस नेतृत्व और लालू यादव मिल कर विपक्षी खेमे से ममता बनर्जी की तरह की किनारे करने की कोशिश कर रहे हैं. मौके नजाकत देख कर नीतीश कुमार ने प्रेशर पॉलिटिक्स का पैंतरा लिया, और अलग अलग तरीके से संकेत देने लगे कि अगर कांग्रेस और आरजेडी नेतृत्व के रवैये में सुधार नहीं आया तो उनको बीजेपी के साथ जाने से परहेज नहीं होगी.
राम मंदिर उद्घाटन के मौके का भी नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से फायदा उठाया. न्योता को लेकर नीतीश कुमार ने तो चुप्पी साध ही ली थी, विश्व हिंदू परिषद की तरफ से भी मामले को वैसे तूल देने की कोशिश नहीं की गई जैसे अखिलेश यादव के मामले में देखने को मिला.
और नीतीश कुमार ने भी न तो ममता बनर्जी की तरह अयोध्या समारोह को लेकर बहिष्कार जैसा स्टैंड लिया, न ही कांग्रेस की तरह न्योता ससम्मान अस्वीकार करने जैसा व्यवहार किया. नीतीश कुमार ने राम मंदिर समारोह को लेकर ऐसा रवैया अपनाया कि किसी भी पक्ष को नाखुश नहीं किया. अयोध्या न जाकर अपनी सेक्युलर छवि भी बरकरार रखी, और विपक्षी साथियों के बहिष्कार में साथ न देकर हिंदुत्व की लाइन से भी कोई दूरी नहीं बनाई - और सबसे बड़ी बात अपने ही मंत्री चंद्रशेखर सिंह के खिलाफ एक्शन लेकर अलग से संदेश दे दिया. चंद्रशेखर कुछ दिनों से हिंदुत्व को लेकर विवादित बयानों की वजह से काफी चर्चा में थे.
अब किसी और की नहीं, सिर्फ नीतीश की मनमानी चलेगी
चंद्रशेखर के मामले में भी नीतीश कुमार ने लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ वैसा ही व्यवहार किया है, जैसा न्याय यात्रा के मामले में राहुल गांधी के साथ. चंद्रशेखर को शिक्षा विभाग से चलता तो किया है, उनका विभाग आरजेडी कोटे के नेता को ही दिया है - लेकिन आरजेडी नेतृत्व को जता दिया है कि कैबिनेट मामलों में वो जो भी करेंगे, अपने मन से ही करेंगे.
बिहार में फिलहाल चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि जिन तीन मंत्रियों के विभाग बदले गये हैं, सभी आरजेडी के नेता हैं. चंद्रशेखर की जगह जिसे शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी दी गई है, वो आलोक मेहता हैं.
बेशक आलोक मेहता आरजेडी के नेता हैं, लेकिन वो कुशवाहा बिरादरी से आते हैं, जबकि चंद्रशेखर यादव समुदाय से. ध्यान देने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार की राजनीति में लव-कुश समीकरण काफी महत्व रखता है.
काफी चर्चा रही कि चंद्रशेखर पिछले एक महीने से दफ्तर नहीं आ रहे थे - और शिक्षा विभाग के सबसे बड़े अफसर केके पाठक भी छुट्टी पर चले गये थे. चंद्रशेखर की केके पाठक सहित कई अधिकारियों से तनातनी चल रही थी.
केके पाठक के छुट्टी पर चले जाने के बाद उनके तबादले से लेकर इस्तीफे तक की चर्चा होने लगी थी. लेकिन उनके दफ्तर आ जाने के बाद ये सब बंद हो गया. नई बात ये हुई कि चंद्रशेखर को ही हटा दिया गया. चंद्रशेखर को शिक्षा विभाग से हटाकर गन्ना विभाग दिया गया है, जिसे कम महत्वपूर्ण माना जाता है.
नीतीश कुमार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने भी चंद्रशेखर की अफसरों से विवाद को ही बड़ी वजह माना है, और कह रहे हैं उसका बुरा असर शिक्षा विभाग और सरकार की छवि पर पड़ रहा था, जिसकी वजह से मुख्यमंत्री को ये फैसला लेना पड़ा.
अशोक चौधरी ने ये संकेत भी दिया है कि चंद्रशेखर को हटाये जाने में लालू यादव और तेजस्वी यादव की भी सहमति थी. बिलकुल रही होगी, लेकिन राम मंदिर उद्घाटन समारोह से ठीक पहले ये कदम उठाकर नीतीश कुमार ने अपनी ताकत तो दिखा ही दिया है.
विवाद मंत्री और अफसर के बीच था, ऐसे में तबादला तो अधिकारी का भी हो सकता था. आखिर मंत्री को हटाये जाने की जरूरत क्यों पड़ी? जैसे केके पाठक शिक्षा विभाग देख रहे थे, वो किसी और विभाग में भेज दिये जाते और शिक्षा विभाग में कोई और आ जाता - चंद्रशेखर सिंह अपनी जगह बने रहते, लेकिन नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया.