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बिहार में दही-चूड़ा भोज फीका लग रहा था, नीतीश ने एक झटके में राजनीतिक रंग चढ़ा दिया

बिहार के दही-चूड़ा भोज पर इफ्तार की दावतों से कहीं ज्यादा सियासी रंग चढ़ा होता है. अक्सर ये भोज कई बार खासा चर्चित भी रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के इस बार कहीं-नहीं-जाने वाले स्टैंड के चलते सब कुछ सामान्य लगने लगा था - लेकिन चिराग पासवान का न्योता पाने के बाद नीतीश कुमार ने इसे सुर्खियों में ला दिया है.

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क्या नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को फिर झटका दिया है.
क्या नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को फिर झटका दिया है.

14 जनवरी से पहले बिहार में दही-चूड़ा भोज की चर्चा तो ठीक ठीक चल रही थी, लेकिन नीतीश कुमार उस पर सियासत का ऐसा रंग चढ़ा देंगे, चिराग पासवान ने भी नहीं सोचा होगा. 

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पटना के दही चूड़ा भोज में नीतीश कुमार को बुलाने के पीछे जो भी मकसद रहा हो, लेकिन चिराग पासवान का नाम लेकर अब जो हो रहा है वो तो फजीहत ही कही जाएगी. 

नीतीश कुमार ऐसी चीजों के माहिर तो हैं ही, चिराग पासवान को फिर से समझ में आ रहा होगा. बिहार में कुछ लोग नीतीश कुमार के ऐक्ट को चिराग पासवान से 2020 के बदले के रूप में भी देख रहे हैं - लेकिन सवाल है कि बदला पूरा होना क्या अब भी बाकी रह गया है?

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच चिराग पासवान ने जो भी झेला है, वो किसी भी मायने में कम था क्या?  

सवाल तो ये भी उठना चाहिये कि कहीं नीतीश कुमार के साथ ही कोई ‘खेला’ करने की तैयारी तो नहीं थी, जिसे बिहार के मुख्यमंत्री ने पहले ही भांप लिया - और किसी संभावित नहले की आशंका में दहला जड़ दिया. 

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पटना के दही-चूड़ा भोज में किसका सिक्का चला

मकर संक्रांति के मौके पर बिहार में कई नेताओं ने भोज दिया था. लालू यादव के यहां इस बार भी परंपरागत रूप से दावत थी. दूसरी छोर पर चिराग पासवान ने दही चूड़ा भोज रखा था. 

चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने अलग से पार्टी रखी थी. वो लालू यादव के यहां भी गये थे, और बदले में लालू यादव भी पशुपति कुमार पारस के भोज में शामिल हुए - लेकिन ज्यादा चर्चा चिराग पासवान के दही चूड़ा भोज की ही हो रही है. 

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दही-चूड़ा भोज का न्योता दे रखा था. रिपोर्ट के मुताबिक, भोज का समय 11 बजे तय था, और मान कर चला जा रहा था कि 12 बजे तक लोग जुट ही जाएंगे. 

नीतीश कुमार तय वक्त को किनारे रखते हुए 10 बजे ही निर्धारित स्थान पर पहुंच गये. जो लोग मौजूद थे उनसे मिले जुले और 10 मिनट में ही लौट भी गये - और चौंकाने वाली बात ये भी थी कि होस्ट चिराग पासवान मौके से नदारद थे. 

चिराग पासवान की गैर-मौजूदगी संयोग भी हो सकती है, और जिस तरह की बिहार में राजनीति चलती आ रही है - प्रयोग भी समझा जा सकता है. 

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चिराग पासवान की तरफ से सफाई दी गई है कि वो पूजा पर बैठे हुए थे, लिहाजा उनका उठना संभव न था. हालांकि, सोशल मीडिया पर लोग उनके पुराने वीडियो शेयर करके अपनी अपनी राय भी दे रहे हैं. 

नीतीश कुमार को लेकर कुछ दिनों से उनके बिहार में एनडीए के नेता होने पर संदेह जताया जा रहा है. और, ये बहस शुरू हुई है केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बिहार में भी महाराष्ट्र मॉडल के संकेत देने वाले बयान के बाद. हालांकि, बिहार बीजेपी की तरफ से तस्वीर साफ करने की कोशिश की गई है. हाल ही में चिराग पासवान की पार्टी की सांसद शांभवी चौधरी ने भी नीतीश कुमार के सपोर्ट में भी बयान दिया था, लेकिन सवाल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.

कुछ दिनों पहले नीतीश कुमार के भूलने की आदत की भी चर्चा हो रही थी. और, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को तरह तरह से घेरा भी था - तो क्या नीतीश कुमार भोज का समय भूल जाने के कारण पहले ही पहुंच गये?

ये तो वही जानें, लेकिन नीतीश कुमार के इस कदम का जो असर हुआ है, वो तो यही बता रहा है कि ये सब यूं ही नहीं हुआ है. ये भी नीतीश कुमार की राजनीतिक चालों में से ही एक कदम है. 

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क्योंकि लाइमलाइट में तो नीतीश कुमार ही हैं, और फजीहत तो चिराग पासवान की हो रही है. 

क्या लालू यादव का दही चूड़ा भोज फीका रह गया 

बिहार में दही-चूड़ा भोज की राजनीतिक परंपरा शुरू करने वाले लालू यादव ही हैं. कहते हैं लालू यादव की ही तर्ज पर दिल्ली में चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान ने दही चूड़ा पार्टी शुरू की थी. लालू यादव तो पार्टी कर रही रहे हैं, पिता के शुरू किये रिवाज को चिराग पासवान ने भी कायम रखा है. चूंकि चिराग पासवान 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से बिहार में ही ज्यादा वक्त देते रहे हैं, और चुनावी साल होने के कारण इस बार तो बनता भी था. वैसे पिता की तरह केंद्रीय मंत्री बन जाने के बाद चिराग पासवान दिल्ली में भी पार्टी कर सकते थे, लेकिन पटना की बात ही और है. 

मकर संक्रांति के पहले से ही लालू यादव की तरफ से नीतीश कुमार की तरफ ‘चारा’ फेंका जा रहा था. नरम रुख तो तेजस्वी यादव भी अपनाये रहते हैं, लेकिन मीसा भारती और तेजप्रताप यादव भी नीतीश कुमार और लालू यादव के भाई जैसे रिश्ते की दुहाई देते हुए दरवाजा खुला होने की बात दोहरा रहे हैं. नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खुला होने की बात लालू यादव ने ही शुरू की थी.

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कुछ दिनों तक नीतीश कुमार के फिर से पाला बदल लेने के कयास भी लगाये जा रहे थे. क्योंकि, अमित शाह के बयान के बाद नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली थी.  

जब देखा की पानी ऊपर तक बहने लगा है तो एक दिन साफ साफ बोल दिया. बोल क्या दिया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं के बीच बोली हुई अपनी बात ही दोहरा दी - ‘अब कहीं नहीं जाने वाला… गलती हो गई थी… अब यहीं रहेंगे, कहीं नहीं जाएंगे.’

कम से कम बिहार में विधानसभा चुनाव होने, और उनकी अगली चाल सामने आने तक नीतीश कुमार के बयान की वैलिडिटी कायम तो रहेगी ही.

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