मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की अटकलें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं. पर जिन लोगों ने सीएम हाउस में होली मिलन समारोह देखा उन्होंने महसूस किया कि निशांत को उत्तराधिकारी बनाने की बस औपचारिकता ही बाकी रह गई है. होली मिलन समारोह में निशांत कुमार जिस तरह एक्टिव नजर आ रहे थे वो अपने आप में बहुत कुछ कहता है. शनिवार शाम सीएम आवास पर इस समारोह में हमेंशा शांत और अलग-थलग रहने वाले निशांत अपने पिता के साथ जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं, प्रदेश के आला अधिकारियों से मिलते जुलते नजर आ रहे थे. उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि अब वो सीएम पुत्र से कुछ अधिक हो गए हैं.
होली मिलन के आयोजन में पहुंचे प्रत्यक्षदर्शियों का मानना था कि पार्टी कार्यकर्ता और नेता उन्हें कुछ ज्यादा ही तवज्जो दे रहे थे. नीतीश कुमार के आंख और कान माने जाने वाले जेडीयू नेता प्रदेश में मंत्री संजय झा और विजय चौधरी जिस तरह निशांत के साथ गुफ्तगू कर रहे थे वो भी बहुत कुछ कह रहा था. इस तरह नीतीश कुमार ने निशांत के जेडीयू में आने की खुद कोई औपचारिक घोषणा तो नहीं की पर औपचारिक तरीके से बहुत कुछ कह दिया है. सोशल मीडिया पर कई पत्रकारों ने इसे जेडीयू में पावर ट्रांसफर की प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत कहा है. पत्रकारों , विश्वलेषकों की अटकलें हैं कि सीएम नीतीश कुमार अपने बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपने राजनीतिक विरोधियों को यह संदेश देना चाहते हैं कि चाहे कुछ भी हो अभी बिहार में कुछ साल और पावर सेंटर वही रहने वाले हैं. आइये देखते हैं ऐसा क्यों कहा जा रहा है?
होली के अवसर पर लगे पोस्टरों में निशांत कुमार
होली मिलन के अवसर पर पटना में जनता दल यूनाइटेड के दफ्तर के बाहर लगे पोस्टरों में निशांत कुमार की पार्टी में एंट्री की तैयारियों को समझा जा सकता है. निशांत को पार्टी में लाने की मांग करने वाले पोस्टर पहले भी लगते रहे हैं. पर होली मिलन को ध्यान में रखकर पोस्टर लगे कि बिहार करे पुकार-आइये निशांत कुमार. होली मिलन में जिस तरह निशांत कुमार ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया, कार्यकर्ताओं और नेताओं से उनका कुशल क्षेम पूछा उससे देखकर नीतीश समर्थक बहुत खुश थे. नीतीश समर्थकों की खुशी का अंदाजा होली के दूसरे दिन जेडीयू दफ्तर के बाहर लगे एक और पोस्टर में देख सकते हैं. 16 मार्च को लगे इस पोस्टर पर लिखा है , बिहार की मांग सुन लिए निशांत-बहुत बहुत धन्यवाद. मतलब कार्यकर्ताओं तक यह बात पहुंच गई है कि बस निशांत को उत्तराधिकारी घोषित करने की घोषणा ही बाकी है.
वहीं, जेडीयू के कार्यकर्ताओं ने पार्टी ऑफिस पर निशांत के स्वागत वाले कई पोस्टर लगाए हैं. जदयू कार्यकर्ताओं का दावा है कि निशांत ने पॉलिटिक्स में एंट्री के लिए अपनी सहमति दे दी है. होली के दिन कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकात में उन्होंने हामी भरी है. पार्टी नेताओं का कहना है कि अब नीतीश कुमार को फैसला लेना है.
नीतीश कुमार के खास सिपहसलारों के हाथ निशांत के कंधों पर
होली के मौके पर निशांत काफी एक्टिव नजर आए. होली मिलन समारोह में निशांत अपने पिता के साथ जेडीयू के सीनियर नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते दिखे. इस दौरान जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा और सीनियर लीडर मंत्री विजय कुमार चौधरी के साथ निशांत ने लंबी बातचीत की. सोशल मीडिया पर एक फोटो चल रहा है जिसमें निशांत का एक हाथ संजय झा के कंधे पर है तो दूसरा हाथ विजय चौधरी के कंधे पर है. जिन लोगों को जेडीयू की राजनीति के बारे में पता है उन्हें ये भी जानकारी होगी कि संजय झा और विजय चौधरी ही आजकल पार्टी चला रहे हैं. नीतीश कुमार के सबसे खास लोगों की अगर बात की जाए तो संजय झा और विजय चौधरी का नाम ही लिया जाता है. जाहिर है कि निशांत कुमार जैसा शख्स जो इस तरह के समारोहों से हमेशा अलग थलग रहता था इस बार आगे बढ़कर सबसे मिल जुल रहा है. होली मिलन के बहाने निशांत को बिहार सरकार के तमाम बड़े अफसरों से भी रूबरू करवाया गया.
नीतीश कुमा्र के लिए जरूरी है कि निशांत के बहाने पावर सेंटर उनके पास रहे
सत्ता में पावर सेंटर बहुत मायने रखता है. राजनीति में आने का मतलब ही होता है कि पावर सेंटर हमेशा अपने हाथ में रखना है. जो इस खेल में सफल होता है वो लंबी पारी खेलता है. नीतीश कुमार के इस खेल के मास्टर रहे हैं यही कारण है कि कई दशक से वो बिहार की राजनीति के सिरमौर बने हुए हैं. जेडीयू में शुरू से ही कई बार कई पावर सेंटर बनाने की कोशिश हुई. पर नीतीश कुमार ने अपने सिवा किसी और को पार्टी में पावर सेंटर नहीं बनने दिया. नीतीश कुमार ही नहीं देश का हर राजनीतिज्ञ अपना पावर को बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा भरोसा अपने परिवार पर करता रहा है. इसी धारणा के चलते राजनीति में परिवारवाद ने पैर पसारा. बिहार में आरजेडी और लोजपा ही नहीं परिवारवाद के आधार पर खड़े हैं बीजेपी में भी तमाम नेता अपने पिता और दादा के नाम भुनाकर एमपी , एमएलए और मंत्री पद पर बने हुए हैं.
नीतीश कुमार ने कई दशकों से अगर बिहार में पावर सेंटर बने हुए हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें पता है कि कहीं और पावर का केंद्र बनने ही नहीं देना है. 2005 से पहले जब समता पार्टी थी. तब जॉर्ज अध्यक्ष हुआ करते थे. उन्होंने भी पावर सेंटर बनने की कोशिश की थी. पर नीतीश कुमार ने सीएम बनते ही बहुत ही जल्दी उन्हें किनारे लगा दिया.2005 के बाद पार्टी में उपेंद्र कुशवाहा , ललन सिंह ने भी पावर सेंटर बनाने की कोशिश की पर बाहर जाना पड़ा. बाद में सरेंडर के साथ ही उनकी वापसी हो सकी.यही नहीं
जीतन राम मांझी, आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर, मनीष वर्मा जैसे नेताओं को भी लोगों ने देखा है कि पैरलल पावर सेंटर बनना कितना खतरनाक साबित हुआ.
शायद यही कारण है कि नेता अपनी पत्नी, अपनी बेटी या बेटा को ही राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने में ज्यादा इंट्रेस्ट लेते हैं.कम से कम इससे सत्ता अपने परिवार में रहने की गुंजाइश रहती है. नीतीश कुमार यह जानते हैं कि अगर किसी और को उत्तराधिकारी बनाया तो उनका किनारे लगना तय है. इसके साथ ही पार्टी के भी टूटने का खतरा बढ़ जाएगा.क्योंकि किसी एक नेता या गुट को तवज्जो मिलने पर दूसरे नेताओं के बागी होने का खतरा रहेगा. कम से नीतीश के बेटे के नाम पर सभी क्षत्रप खुश रहेंगे.
लालू के बेटों के मुकाबले मिस्टर क्लीन निशांत कुमार चुनावों में फायदेमंद साबित होंगे
बिहार में लालू यादव नीतीश कुमार के दोस्त , साथी ,विरोधी और तगड़े प्रतिद्वंद्वी भी रहे हैं. लालू यादव अपने परिवार को राजनीति में लाकर जेपी का सच्चा अनुयायी होने कारुतबा खो दिया है. नीतीश कुमार उन्हें परिवारवादी राजनीति के चलते ही हमेशा कोसते रहे हैं.पर अब नीतीश कुमार का परिवार खासकर उनके भाई अब ये चाहते हैं कि निशांत कुमार भी राजनीति में आएं. जेडीयू कार्यकर्ता और समर्थकों की इच्छा को देखते हुए नीतीश भी शायद अब यही चाहते हैं कि निशांत राजनीति में एंट्री करें.
जाहिर है कि ऐसे मौके पर लालू पुत्रों और निशांत की तुलना होगी. लालू पुत्रों तेजस्वी और तेजप्रताप की शिक्षा और निशांत के एजुकेशन की अगर तुलना किया जाए तो नीतीश पुत्र भारी पड़ेंगे.निशांत कुमार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.
निशांत कुमार मुख्यमंत्री आवास में रहते हैं. सत्ता की हनक, विरासत देखते रहे हैं, उसके बावजूद वे कभी तेजप्रताप या तेजस्वी की तरह विवाद में नहीं आए.लालू के पुत्रों पर आय से अधिक धन का मामला चल रहा है. इसके साथ ही तेजप्रताप की उदंडता की खबरें अकसर मीडिया की सुर्खियां बन जाती हैं. जबकि निशांत कुमार एक दम से मिस्टर क्लीन राजीव गांधी की तरह पार्टी में एंट्री करेंगे.
भाजपा का मुख्यमंत्री, निशांत उपमुख्यमंत्री
सोशल मीडिया में ऐसी अटकलें लगाईं जा रही हैं कि नीतीश कुमार अपने पुत्र को उत्तराधिकार थमाकर एक तीर से कई शिकार कर सकते हैं. उनके सामने कई विकल्प हो सकते हैं. पहला विकल्प यह है कि बिहार में बीजेपी के मुख्यमंत्री के साथ अपने बेटे को डिप्टी सीएम बनवाकर लांचिंग कर सकते हैं . और अपने लिए राज्यसभा या कैबिनेट में कोई जगह देख सकते हैं.
दूसरे बिहार की राजनीति में लालू यादव की तरह अपने बेटे को आगे रखकर राजनीति में एक्टिव बने रह सकते हैं.इस तरह उन्हें बीमार रहने का आरोप लगाकर कमजोर करने की जो कोशिशें हो रही हैं उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं. परिवार वाद के सबसे बड़े विरोधी खांटी समाजवादी नेता पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे को रामानाथ ठाकुर को केंद्र में मंत्री बनाकर नीतीश ने ये संकेत पहले ही दे दिया है कि उन्हें परिवार वाद से कोई परहेज नहीं है. आरजेडी हो या बीजेपी या लोजपा सभी पार्टियों में परिवार वाद के नाम पर बहुतेरे लोग सत्ता का मजा ले चुके हैं या ले रहे हैं. नीतीश के लिए निशांत को उत्तराधिकारी बनाने में अब परिवारवाद का आरोप लगने का कोई मतलब नहीं रह गया है.