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INDIA गुट से खफा नीतीश कुमार ने उठाया नया कदम, फिर पलटी मारेंगे या सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स है?

यह कहना बहुत मुश्किल है कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन छोड़ने जा रहे हैं. इसलिए इस बारे में चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही है. हां यह जरूर हो सकता है कि गठबंधन में अपने गिरते महत्व को फिर से स्थापित करने के लिए वो प्रेशर गेम खेल रहे हों. आइये देखते हैं कि नीतीश कुमार को लेकर चल रही अटकलों में क्या-क्या संभावनाएं बन रही हैं.

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नीतीश कुमार हमेशा अपने फैसले से चौंकाते रहे हैं.
नीतीश कुमार हमेशा अपने फैसले से चौंकाते रहे हैं.

नीतीश कुमार राजनीति के बहुत मंझे हुए खिलाड़ी है. जो लोग उनको व्यक्तिगत रूप से जानते हैं या जो लोग उनके राजनीतिक जीवन को पहलुओं को ठीक से समझते हैं उन्हें पता है कि उनके किसी भी राजनीतिक कदम का फैसला लगाना बहुत मुश्किल है. इंडिया गठबंधन की मंगलवार को हुई चौथी बैठक के एक दिन बाद ही जेडीयू की ओर से दिल्ली में 29 दिसंबर को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाने की घोषणा कई तरह के अटकलों को जन्म दे रही है. तो क्या नीतीश कुमार फिर कोई चौंकाने वाला फैसला करने जा रहे हैं? जिस तरह कल इंडिया गठबंधन की बैठक में उन्होंने अपना तेवर दिखाया है उससे तो यही लगता है कि वे कुछ बड़ा फैसला करने जा रहे हैं. 

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कहा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. पर जब संभावनाएं ही शून्य हों तो क्या किया जा सकता है. बात यह है कि नीतीश कुमार के तेवरों से तो लगता है कि वो बहुत बड़ा फैसला ले सकते हैं. जैसे कि वो इंडिया गठबंधन छोड़ने का भी फैसला भी ले सकते हैं. पर दुर्भाग्य से उनके सामने  संभावनाओं के नाम पर अभी कुछ भी नहीं दिख रहा है. इसलिए यह कहना बहुत मुश्किल है कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन छोड़ने जा रहे हैं. हां यह जरूर हो सकता है कि गठबंधन में अपने गिरते महत्व को फिर से उठाने के लिए वो प्रेशर गेम खेल रहे हैं.आइये देखते हैं कि नीतीश कुमार को लेकर चल रही अटकलों में किसकी संभावनाएं बन रही हैं.

क्या कांग्रेस को सबक सिखाना चाहते हैं नीतीश 

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इंडिया के अगुवा नीतीश ही रहे हैं पर कांग्रेस ने उनको किनारे लगा दिया है. ये सभी जानते हैं कि विपक्ष को एकजुट कर एक मंच पर लाने का काम उन्होंने ही किया. सभी दलों के लोगों से पहले अलग-अलग मुलाकात की फिर उन्हें पटना बुलाकर एक गठबंधन का शक्ल दिया. बाद के दिनों में ही इस एकजुट हुए विपक्ष को ही I.N.D.I.A.नाम दिया गया. शुरू शुरू में जब तक नीतीश के पास आभासी रूप में नेतृत्व था तब तक गठबंधन दिन प्रति दिन मजबूत हो रहा था. एक समय से तो ऐसा आ गया कि केंद्र में सत्तासीन एनडीए सरकार भी इंडिया गठबंधन की लोकप्रियता से भयभीत हो गई दिख रही थी.

पीएम मोदी और बीजेपी नेताओं का लगातार इंडिया शब्द पर किया जा रहा हमला उस डर का ही प्रतीक था.पर कांग्रेस ने जिस तरह पूरे गठबंधन पर कब्जा कर लिया उससे नीतीश कुमार जैसे महत्वाकांक्षी शख्सियत को जरूर धक्का लगा. हालांकि नीतीश कुमार ने कभी कांग्रेस के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की पर इतना तय था कि वे जरूर था कि कांग्रेस से नाराज थे.5 राज्यों की विधानसभा चुनावों के दौरान उनका एक बयान भी आया था कि कांग्रेस चुनावों में व्यस्त है और इंडिया गठबंधन के जरूरी फैसलों को महत्व नहीं दे रही है.

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नीतीश कुमार की बात तो सही थी कि कांग्रेस जानभूझकर इंडिया गठबंधन से जुड़े फैसलों में देरी कर रही थी. कांग्रेस चाहती थी कि राज्यों के चुनावों में अगर परिणाम अच्छे रहे तो वो इंडिया गठबंधन के साथियों से और बढ़िया बार्गेनिंग कर सकेगी. पर ऐसा हो न सका. अब कांग्रेस फिर इंडिया गठबंधन को मजबूत करने के लिए मचल रही है. और नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर कांग्रेस को कंट्रोल करना है तो कुछ अलग करना होगा. यही कारण है कि नीतीश कुमार ने यह फैला दिया है कि 29 दिसंबर को जेडीयू कोई बड़ा फैसला ले सकती है.

क्या ममता और केजरीवाल के प्रस्ताव को धोने का इरादा है

कहा जा रहा है कि खरगे का नाम बैठक में पीएम पद के लिए प्रस्तावित किए जाने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू यादव नाखुश नजर आए थे. द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि नीतीश कुमार अपने भाषण को अंग्रेजी में अनुवाद करने के नाम पर भड़क गए. नीतीश मजे हुए नेता हैं मुद्दे को अपने हिसाब से कब और कैसे मोड़ना है अच्छी तरह जानते हैं. मनोज झा हमेशा से ऐसे मौकों पर नीतीश कुमार और लालू यादव के भाषणों का अनुवाद करते रहे हैं. इसमें नई बात कुछ नहीं थी. ऐसे में जब मंगलवार को नीतीश कुमार का भाषण ख़त्म हुआ, डीएमके नेता बालू ने मनोज झा से अनुवाद करने के लिए कहा.द हिंदू ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि बालू के कहने पर मनोज झा अनुवाद शुरू ही करने वाले थे, तभी नीतीश कुमार डीएमके नेताओं पर भड़क उठे. 

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नीतीश कुमार ने कहीं का गुस्सा कहीं निकाला. और हिंदी के नाम पर खेल गए . जबकि उस समय कहीं से भी इसकी जरूरत नहीं थी. पर यही तो मंजे हुए नेता का कमाल होता है. नीतीश ने  कहा कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है और ये भाषा सभी को समझ में आनी चाहिए. नीतीश कुमार अगले कुछ मिनट तक इसी पर बोलते रहे. सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ी थोपने के ख़िलाफ़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में बात करने लगे. कई नेताओं ने नीतीश कुमार को शांत करवाने की कोशिश की. इसके बाद नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही के भाषणों का इंग्लिश में अनुवाद नहीं हुआ. तात्कालिक इफेक्ट यह हुआ कि जो नेता आमतौर पर हिंदी बोलते हैं, वो भी इंग्लिश बोलने लगे. इनमें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का नाम भी शामिल रहे. हो सकता है कि इसी के चलते दोनों नेता बैठक को बीच में ही छोड़कर चले गए हों और बैठक के बाद होने वाली पीसी में भी शामिल नहीं हुए. नाराजगी के कारण स्पष्ट दिख रहे हैं. नीतीश कुमार प्रेशर बनाकर सभी पार्टियों को सजग कर सकते हैं कि खरगे को पीएम कैंडिडेट न घोषित किया जाए. हो सकता है कि 29 दिसंबर को पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के पहले तक यह मामला सुलझा लिया जाए.

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नीतीश कुमार के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए रिस्क लेना बेहतर है

बुधवार को इंडिया गठबंधन की बैठक के पहले जेडीयू और आरजेडी दोनों ही तरफ से सार्वजनिक रूप से यह मांग की गई थी कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए नीतीश कुमार को विपक्ष के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाए.यह सभी जानते हैं कि लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच एक अघोषित समझौता हुआ था कि नीतीश कुमार केंद्र में पीएम कैंडिडेट बनेंगे और बिहार का सत्ता तेजस्वी को सौंपी जाएगी.

यही कारण है कि लालू यादव भी नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि बिहार में तेजस्वी यादव का रास्ता साफ हो सके और वह राज्य के मुख्यमंत्री बन सकें. इस बीच, इंडिया ब्लॉक कल की बैठक में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति तो नहीं बनी पर माहौल मल्लिकार्जुन खरगे का बन गया. जिस तरह ममता बनर्जी ने खरगे के नाम का प्रस्ताव अचानक दे दिया और केजरीवाल ने उसे सपोर्ट दे दिया उससे लालू और नीतीश को बहुत हैरानी हुई है. नीतीश कुमार जानते हैं कि ममता के इस प्रस्ताव को पंचर करना है तो कुछ नया करना होगा. यही कारण है कि आनन फानन में जेडीयू कार्यकारिणी और राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई है. इस बीच में कांग्रेस के साथ तगड़ी बार्गेनिंग होनी तय है. अगर कुछ नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं होता है नीतीश कुमार पलटी मारने का संकेत दे सकते हैं . नीतीश के पास खोने के लिए कुछ नहीं बचा है . रिस्क लेने में बुराई क्या है.

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कार्यकारिणी के साथ राष्ट्रीय परिषद की बैठक पर उठ रहे सवाल

 नीतीश कुमार ने कई बार चौंकाने वाले फैसले लिए हैं.जेडीयू ने 29 दिसंबर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है.चर्चा इसलिए ज्यादा हो रही है क्योंकि पहले सिर्फ राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी लेकिन बाद में राष्ट्रीय परिषद की भी बैठक बुला ली गई है. दोनों बैठकों को एक साथ बुला लिए जाने पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि आखिरकार नीतीश कुमार  क्या फिर कुछ बड़ा करने वाले हैं?
जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस वक्त 99 सदस्य हैं जबकि राष्ट्रीय परिषद में दो सौ सदस्य हैं. नीतीश कुमार को संयोजक बनाने और पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने की मांग पार्टी की तरफ से कई बार की जा चुकी है . पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि नीतीश कुमार इतनी जल्दी कोई फैसला लेने वाले नहीं हैं. अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय सभा से केवल इतनी राइट लेंगे कि वो हर फैसला करने के स्वतंत्र होंगे.उम्मीद है कि उनको संयोजक का पद मिल जाए. जिस पर उनकी बहुत पहले से ही नजर है. 

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