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नीतीश कुमार और अमित शाह का INDIA गठबंधन के बहाने कांग्रेस पर एक साथ टूट पड़ना - संयोग है या प्रयोग?

नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने के अभियान में कांग्रेस नेतृत्व की कृपा का लंबा इंतजार किया है. अब उनका धैर्य जवाब दे गया. पहली बार नीतीश ने INDIA गठबंधन में गतिरोध का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ा है - और उसी दिन हरियाणा में अमित शाह कांग्रेस के साथ साथ गठबंधन के नेताओं पर बरस रहे थे.

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नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद बता चुके अमित शाह का मन तो नहीं बदल रहा है?
नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद बता चुके अमित शाह का मन तो नहीं बदल रहा है?

बीजेपी नेता अमित शाह का कांग्रेस को टारगेट करना स्वाभाविक है. नीतीश कुमार का स्वभाव भले हो, लेकिन कांग्रेस को निशाना बनाना स्वाभाविक तो नहीं है - और ये महज संयोग है या कोई प्रयोग, ये बहस का विषय जरूर है. 

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नीतीश कुमार ने INDIA गठबंधन को लेकर पहली बार कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है. ध्यान देने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार ने ये काम उसी दिन किया है, जब अमित शाह कांग्रेस को घेरते घेरते विपक्षी गठबंधन को भी लपेटे में ले लिये. अमित शाह हरियाणा में थे, और नीतीश कुमार पटना में - लेकिन दोनों ही गड़बड़ियों के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे. महागठबंधन के नेता के रूप में बिहार का मुख्यमंत्री होने की वजह से जो बात नीतीश कुमार मुस्कुराते हुए कह रहे थे, अमित शाह वैसी ही बातें गंभीर मुद्रा में कह रहे थे. 

भले ही विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश पटना से शुरू हुई हो. भले ही INDIA गठबंधन की पहली मीटिंग पटना में हुई है, वैसे ये नाम तब सामने नहीं आया था - लेकिन गठबंधन की सहयोगी पार्टियां नीतीश कुमार को महत्व नहीं दे रही हैं. हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा के बयान से भी ऐसा ही लगा था. राघव चड्ढा की बातों से तो ऐसा लगा जैसे विपक्षी गठबंधन में नीतीश कुमार से भी ज्यादा अहमियत आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को दी जा रही हो. 

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जिस तरह से नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स अपनाते रहे हैं, अमित शाह और नीतीश कुमार का कांग्रेस को एक साथ टारगेट करने के पीछे कोई खास रणनीति तो लगती ही है, भले ही चीजें खुल कर अभी सामने नहीं आ रही हों.   

हाल फिलहाल ऐसे कई मौके आये हैं जब नीतीश कुमार का झुकाव एनडीए की तरफ महसूस किया गया है, लेकिन जल्दी ही वो बैलेंस करने के लिए तेजस्वी यादव के बारे में कुछ न कुछ बोल कर काउंटर भी कर देते हैं. राष्ट्रपति के डिनर में शामिल होने के बाद जब नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में बीजेपी नेताओं से ताउम्र रिश्ते निभाने की बात की थी, तो वो अचानक से शक के दायरे में आ गये. कहीं नीतीश कुमार पाला बदलने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं? नीतीश कुमार के पास उपाय तो रहते ही हैं, फौरन ही तेजस्वी यादव को प्यार से पुचकार कर बैलेंस भी कर दिया - 'ये बच्चा हमलोगों के साथ है... यही हमारा सब कुछ है.'

INDIA गठबंधन में कांग्रेस निशाने पर क्यों आ गयी है?

ये ठीक है कि नीतीश कुमार ने पहली बार INDIA गठबंधन के रास्ते में कांग्रेस के बाधा पहुंचाने का संकेत दिया है, लेकिन कांग्रेस की ऐसी भूमिका पहली बार नहीं देखी जा रही है. अभी अभी की तो बात है, समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को उसकी हदें समझा दी है. अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि राहुल गांधी भले ही क्षेत्रीय दलों को विचारधारा के नाम पर या किसी बहाने हदें समझाते रहे हों, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो किसी की एक नहीं चलने वाली है. 

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अखिलेश यादव ने कांग्रेस को साफ साफ बता दिया है कि गठबंधन के तहत शेयर की जाने वाली 15 सीटों में कांग्रेस अपना हिसाब चाहे तो लगा ले. उत्तर प्रदेश के संभावित विपक्षी गठबंधन में समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल, अपना दल (के) और भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी शामिल हो सकती है. मैनपुरी तो नहीं, लेकिन बीते दिनों हुए उपचुनाव में चंद्रशेखर आजाद एक जगह जयंत चौधरी के उम्मीदवार के लिए तो एक जगह सपा उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार करने भी गये थे. 

अखिलेश यादव ने कहा है कि यूपी की 80 में से 65 लोक सभा सीटों पर तो समाजवादी पार्टी ही लड़ेगी, बाकी 15 सीटें गठबंधन साथियों के लिए उपलब्ध हो सकती हैं. गौर करने वाली बात ये है कि अखिलेश यादव का ये बयान मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन नहीं हो पाने के बाद आया है. 

विपक्षी गठबंधन की मुंबई मीटिंग के बाद मध्य प्रदेश में ही रैली होने वाली थी, लेकिन कांग्रेस नेता कमलनाथ ने अड़ंगा लगा दिया. कमलनाथ को रैली का नफा नुकसान समझ में आ गया होगा. कमलनाथ सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे के साथ चुनावों आगे बढ़ रहे हैं, जबकि INDIA गठबंधन तो सीधे सनातन धर्म पर हमला ही बोल देता है. फर्ज कीजिये डीएमके नेता उदयनिधि मारन शामिल होते तो क्या बोलते?

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नीतीश कुमार का कहना है कि कांग्रेस विधानसभा चुनावों में व्यस्त है. कहते हैं, 'पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक में INDIA गठबंधन का गठन हुआ था... लेकिन आजकल गठबंधन का कोई काम नहीं हो रहा है... कांग्रेस पार्टी इस पर ध्यान नहीं दे रही है.'

और ऐन उसी वक्त दूसरी छोर पर बीजेपी नेता अमित शाह का भाषण चल रहा होता है, 'सभी 27 दल परिवारवादी हैं... किसी को बेटे को समायोजित करना है... किसी को अपने बेटे को प्रधानमंत्री बनाना है... किसी को अपने बेटे को एजेंसियों से बचाना है, जबकि किसी को अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना है... कुछ को मैडम का वफादार बनना है - क्या ये लोग जनता का कुछ भला कर सकते हैं?'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अमित शाह कहते हैं, "कांग्रेस कट... कमीशन - और करप्शन की पार्टी है."

अगर आप अमित शाह की बातों पर गौर करें तो पाएंगे कि बड़े आराम से वो नीतीश कुमार को संदेह का लाभ दे रहे हैं. अमित शाह भी नीतीश कुमार को INDIA गठबंधन से  वैसे ही अलग थलग देख रहे हैं, जैसे दो दिन पहले आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा. दोनों नेताओं की बातों में एक चीज कॉमन है तो एक फर्क भी है. 

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अमित शाह जहां नीतीश कुमार को परिवारवाद की राजनीति के नाम पर INDIA गठबंधन से अलग खड़ा कर देते हैं, तो राघव चड्ढा जांच एजेंसियों के निशाने पर आये नेताओं की कतार से. अब ये संयोग हो या प्रयोग दोनों ही बातों से छवि तो नीतीश कुमार की ही निखर रही है. 

अमित शाह के भाषण में जिन नेताओं पर निशाना साधा गया है, उसमें सिर्फ एक बात नीतीश कुमार पर भी लागू हो सकती थी - 'कुछ को मैडम का वफादार बनना है,' लेकिन नीतीश कुमार ने पहले ही कांग्रेस पर हमला बोल कर अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है.   

क्या कांग्रेस को चुनाव नतीजों का वाकई इंतजार है? 

लगता है नीतीश कुमार को कांग्रेस की मंशा पहले ही समझ में आ गयी है. 2018 में भी कांग्रेस ने ऐसा ही किया था. जुलाई, 2018 तक कांग्रेस की तरफ से खबरें लीक की जाने लगी थीं कि बीजेपी और मोदी को रोकने के लिए मायावती या ममता बनर्जी को भी प्रधानमंत्री बनाने में पार्टी को कोई दिक्कत नहीं है - लेकिन 3 राज्यों में चुनाव जीतते ही कांग्रेस नेतृत्व के तेवर बदल गये थे. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह कांग्रेस 2019 में दिल्ली पर भी अकेले दम पर कब्जा जमाने के ख्वाब देखने लगी थी. 

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चुनावों से पहले एक कार्यक्रम में राहुल गांधी से मायावती और ममता बनर्जी को लेकर सवाल पूछे गये तो वो भी सहज रूप से तैयार दिखे थे, लेकिन 2019 आते आते तो वो क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के लिए भी तैयार नहीं हुए. दिल्ली, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश को लेकर ऐसे ऑफर तो थे, लेकिन यूपी में सपा-बसपा गठबंधन में तो मायावती ने घास ही नहीं डाली थी. 

पहले हिमाचल प्रदेश और फिर कर्नाटक में बीजेपी को हरा कर कांग्रेस के सरकार बना लेने के बाद राहुल गांधी का जोश पहले से ही हाई हो रखा है, 3 दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से भी करीब करीब वैसी ही उम्मीद बंध चुकी होगी. 

ये तो देखा ही जा रहा है कि कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया. आम आदमी पार्टी और नीतीश कुमार की जेडीयू भी चुनाव मैदान में उतर ही चुकी है, लेकिन कांग्रेस को जरा भी परवाह नहीं है - INDIA गठबंधन के प्रति अनमना व्यवहार भी कहीं कांग्रेस को फिर से 2024 के लिए अकेले दम पर जंग जीत लेने का भ्रम तो नहीं पैदा कर चुका है?

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