इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पीएम कैंडिडेट के रूप में नाम बढ़ाने से खफा हुए नीतीश कुमार ने कल (29 दिसंबर) अपनी पार्टी की बड़ी बैठक बुलाई हुई है. इस बैठक के बुलाए जाने के बाद से अटकलें लग रही हैं कि नीतीश कुमार फिर कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकते हैं? कहा जा रहा है कि वो एक बार एनडीए का दामन थाम सकते हैं. पर क्या इतना आसान है?
चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार का अपना राजनीति स्टाइल है. वह एक दरवाजे को खोलते हैं और पीछे से खिड़की और रोशनदान दोनों को खोलकर रखते हैं. किसकी कब जरूरत पड़ जाए.पिछले एक हफ्ते में बीजेपी के स्वर्गीय नेताओं पूर्व पीएम अटलबिहारी वाजपेयी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के कार्यक्रम में पहुंचकर नीतीश कुमार ने कुछ ऐसे ही संदेश दिया है जिससे लगता है कि वो एनडीए में फिर से वापसी करना चाहते हैं. पर उनकी वापसी केवल एनडीए की लिए ही नहीं बल्कि खुद उनके लिए भी मुश्किल होने वाली है. एनडीए तक की डगह पार करने के लिए उनके और एनडीए को कुल 5 बाधाओं को पार करना होगा.
1- सीएम पद की देनी होगी कुर्बानी
सबसे बड़ी कुर्बानी नीतीश कुमार के लिए ये होगी कि नीतीश कुमार को अपनी मुख्यमंत्री की सीट कुर्बान करनी पड़ेगी. बीजेपी अगर नीतीश के साथ डील करती है तो इस बार बिना सीएम पद के बात नहीं बनने वाली है. बिहार में अब नीतीश बड़े भाई की भूमिका में नहीं होंगे.नीतीश कुमार को दिल्ली जरूर बुलाया जा सकता है. अगर नीतीश को केंद्र सरकार में मंत्री पद नहीं चाहिए होगा तो किसी राज्यपाल बनाया जा सकता है. यह भी हो सकता है कि उन्हें जार्ज फर्नाडिस की तरह एनडीए का संयोजक भी बना दिया जाए.
2- चिराग और मांझी जैसे नेताओं के साथ खुद को एडजेस्ट करना होगा
हो सकता है कि बिहार में बीजेपी सभी सीटें जीतने के चक्कर में एक बार नीतीश कुमार को लाने के बारे में सोचे भी तो एनडीए में शामिल दूसरे दलों का क्या होगा? नीतीश कुमार की जिद की वजह से ही लोजपा रामविलास प्रमुख चिराग पासवान को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. नीतीश के एनडीए छोड़ने के बाद ही चिराग की रीएंट्री हुई है. अब स्थितियां बदल गईं हैं. नीतीश कुमार को चिराग पासवान के साथ खुद को एडजस्ट करना होगा. इसी तरह से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जो पहले जेडीयू में ही थे अब नीतीश कुमार पर हमलावर रहते हैं. इन सबके तल्खी का लेवल हाइट पर पहुंच चुका है. नीतीश कुमार को न केवल चिराग पासवान बल्कि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी खुद को एडजेस्ट करना होगा.
3- लोकसभा चुनावों में बराबर सीट लेने का मोह छोड़ना पडेगा नीतीश को
वर्ष 2014 में अकेले चुनाव लड़ कर जेडीयू ने लोकसभा की दो सीटें जीती थीं, लेकिन दबाव बना कर नीतीश कुमार ने 2019 में भाजपा को बराबर सीटें बांटने के लिए मजबूर कर दिया था. तब उनका तर्क था कि विधानसभा में जेडीयू सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी है. बीजेपी ने 2014 में जीती हुईं अपनी पांच सीटें नीतीश कुमार के नाम कुर्बान कर दी. बीजेपी ने इतना ही नहीं बल्कि नीतीश की पसंद के मुताबिक सीट भी दिए. भागलपुर से शाहनवाज हुसैन का टिकट इसलिए कटा था कि नीतीश ने उस सीट पर दावेदारी कर दी थी.नीतीश अगर फिर से एनडीए में वापसी करते हैं सीट शेयरिंग को लेकर पेंच फंसने के पूरे चांस हैं. अगर जेडीयू वापसी करती है तो बीजेपी को 30 सीटों पर लड़ने का विचार छोड़ना पड़ सकता है. लेकिन पिछली बार की तरह अब जेडीयू के बराबर सीटें मिलने की संभावना नहीं के बराबर है.
4- नीतीश के एंटी इंकंबेंसी से बीजेपी को करना पड़ेगा समझौता
जब से महागठबंधन की सरकार बनी है लगातार अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. हत्या , लूट,दंगों की दर बढ़ी है. बीजेपी कहती रही है कि बिहार में फिर से जंगलराज आ गया है. इसके साथ ही बिहार में लगातार जहरीली शराब पीकर सामूहिक मौत की खबर आती रही है. सरकार इन मौतों को रोकने में नाकाम रही है. अवैध शराब का धंधा बिहार में घरेलू उद्योंग बन चुका है. हजारों के संख्या में हर महीने नए लोगों पर तस्करी की धारा लगती है.जहरीली शराब और शराब तस्करी में हजारों की संख्या में लोग नौकरियों से सस्पेंड भी हो चुके हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी का कहना है कि बिहार को 50 हजार करोड़़ के राजस्व का चूना लगा है. भारतीय जनता पार्टी जनता की इस नाराजगी को भुनाने के लिए चुनाव का इंतजार कर रही है. इस बीच अगर नीतीश कुमार एनडीए में आ जाते हैं तो बीजेपी के लिए जनता के बीच में जाकर जंगलराज के नाम पर वोट मांगने में बहुत मुश्किल होगी.
5- स्थानीय बीजेपी नेताओं के विरोध को शांत करना
बिहार बीजेपी की कोई भी इकाई नहीं चाहती कि पार्टी नीतीश कुमार के साथ किसी तरह का कोई समझौता करे. बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी लगातार कहते रहे हैं कि बिहार में पार्टी सरकार बनाने के लिए अकेले दम पर काफी है.बीजेपी नेता सुशील मोदी और नित्यानंद राय ही केवल दो नेता ऐसे हैं जो नीतीश कुमार को सहारा बनाने के फेवर में रहे हैं.नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के अटकलों पर बिहार के 2 बीजेपी नेताओं ने जिस तरह का हमलावर अंदाज दिखाया है उससे तो यही लगता है कि बिहार में बीजेपी आलाकमान को स्थानीय नेताओं को समझाने में काफी मशक्कत करनी होगी.केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार के लिए गांव के कार्यकर्ता से लेकर दिल्ली ऑफिस तक के बीजेपी के सभी दरवाजे बंद हैं. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार इस तरह का माहौल लालू यादव को डराने के लिए बनाते रहते हैं कि मैं मयके चली जाउंगी तुम देखते रहियो. एक और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने तो नीतीश कुमार को इलाज तक कराने की सलाह दे डाली है.