नई दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में रविवार को Rau's IAS कोचिंग सेंटर में पानी भरने से तीन छात्र-छात्राओं की मौत हो गई. ये छात्र यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे. कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में चल रही लाइब्रेरी में बारिश का पानी भरने से यह हादसा हुआ. इस घटना के बाद छात्रों ने अभ्यर्थियों के लिए न्याय की मांग करते हुए दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है तो सरकार ने मामले पर जांच बैठा दी है जो 30 दिन में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.
पिछले वर्ष 15 जून को नई दिल्ली के ही मुखर्जी नगर की कोचिंग में बिजली के मीटर में आग लगने से 60 से ज़्यादा छात्र घायल हो गए थे. 2019 में सूरत की कोचिंग में आग लगने की घटना और उससे हुई छात्रों की मौत बहुत कम लोगों को याद होगी. 2020 में भजनपुरा में कोचिंग क्लास के दौरान ही दो छतें भरभराकर गिर गई थीं और चार छात्रों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था.
कोचिंग सिटी कहे जाने वाले राजस्थान के कोटा शहर में छात्र-छात्राओं के सुसाइड करने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. जन सरोकारों के लिए राजनीति करने की बात करने वाले राजनैतिक दल सिर्फ़ राजनीति कर रहे हैं, कभी धरना तो कभी सदन में चर्चा कर रहे हैं. लेकिन यह चर्चा कभी किसी जरूरी हल तक नहीं पहुंच पाती. आज के हालात चीख-चीखकर कह रहे हैं कि अगर कोई कठोर कानून न बना तो होते ही रहेंगे.
इसी साल सिलचर(असम), जयपुर और पंचकूला की कोचिंग में भीषड़ आग दुर्घटना हुई यानी देश में शहर कोई भी हो परंतु कोचिंग में छात्र- छात्राओं की जान भगवान भरोसे ही है. हमें यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि नई दिल्ली में जो दुखद घटना घटी है, वह घटना 11 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद घटी है जिसमें न्यायालय ने MCD को चार हफ्ते के भीतर दिल्ली की सभी अनसेफ बिल्डिंग को सील करने का आदेश दिया था.
अदालत के उस आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ, ये जिम्मेदारी किसकी थी
सभी जानते हैं कि नई दिल्ली के 80% कोचिंग संस्थान बेसमेंट में चलाए जा रहे हैं. बेसमेंट में पार्किंग या स्टोर के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं किया जा सकता है तो फिर बड़ा प्रश्न यह है कि हजारों करोड़ का करोबार बेसमेंट में किसके इशारे पर और किसके प्रभाव में चलता रहता है और कोई कार्रवाई नहीं हो पाती. इससे भी बड़ी बात यह है कि इस बड़े कारोबार से सरकार भी ठीक से लगाम नहीं लगा पाती क्योंकि कोई स्पष्ट नियम नहीं है. जहां तक नई दिल्ली की घटना की बात है तो अभिमन्यु गर्ग नाम के छात्र के अनुसार इसी वर्ष 26 जून को शिकायत की गई थी कि राव IAS कोचिंग सेंटर बेसमेंट में बगैर एनओसी के ही चल रही है. किसी दिन कोई घटना घट सकती है लेकिन एमसीडी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
ये है मनमानी का बड़ा कारण
वास्तविकता यह है कि देश में कोचिंग संस्थानों को लेकर के कोई रेगुलेशन नियम, मॉनिटरिंंग नहीं है या फिर इन संस्थाओं के ऊपर लगाम लगाने के लिए कोई स्वतंत्र संस्था यह विभाग का ना होना भी मनमानी का बड़ा कारण है. यही कारण है कि चाहे बाढ़ की घटना हो, आग लगने की घटना हो या फिर सुरक्षा मानक को नजरअंदाज कर बनाई गई बिल्डिंग में कोचिंग का संचालन हो या संस्थानों में बढ़ रही छात्रों के द्वारा आत्महत्या की घटनाएं हों. इन पर सिर्फ और सिर्फ घटना के बाद चर्चा-परिचर्चा या कार्यवाही का वायदा हो. यह सब ज्यादा से ज्यादा जांच कमेटी बैठाकर मामले को समाप्त कर दिया जाता है. फिर अगले कुछ दिनों के बाद एक नई घटना सामने आ जाती है इस पर हमारी सरकारों और नीति नियंताओं को सोचने की आवश्यकता है.
सोचिए, यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है
कोचिंग संस्थानों द्वारा समस्या केवल और केवल सुविधाओं की नहीं है, ना ही दुर्घटनाओं की है. समस्या कोचिंग संस्थानों के अंदर बच्चों के ऊपर अत्यधिक मानसिक तनाव देना रटंत विद्या के आधार पर शिक्षा देना भी है. यहां ध्यान देने योग्य विषय यह भी है कि इन कोचिंग सेंटर्स की एजुकेशन क्वालिटी भी उस स्तर की नहीं होती, जो छात्रों को शिक्षा के माध्यम से गहन और गूढ़ ज्ञान यात्रा पर ले जाएं, और बच्चों में विचार शीलता या विवेक को बढ़ाएं. ये बहुत छिछले स्तर पर टेक्निकल और कोर्स आधारित शिक्षा भर होती है. NEET JEE के मामलों में बच्चों को स्कूल के सिस्टम से दूर रखना, एक्स्ट्रा करकुलम, कोर करिकुलम से दूर रखना आदि भी है. पेपर आउट की घटनाओं में भी कोचिंग संस्थान के शामिल होने की खबरें मिलने पर महसूस होता है कि ये देश का कितना नुकसान कर रहे हैं और इन पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो रही.
NEP के बावजूद क्या बदला?
निश्चित रूप से 2020 में आई हुई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत सरकार ने कुछ लगाम लगाने की कोशिश की, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत कई राज्यों से हमें जो सूचनाएं प्राप्त हुईं, उसमें अभी तक इस पॉलिसी का पालन करने के लिए सचिव से लेकर जिला अधिकारी स्तर तक कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया है. सोचिए यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है.
हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो निश्चित तौर पर छात्र-छात्राओं की कोचिंग पर डिपेंडेंसी कम कर दे या खत्म कर दे लेकिन कोचिंग संस्थानो का आर्थिक प्रभाव इतना अधिक है कि कोई इसको समाप्त करने की हिम्मत या कम करने की हिम्मत दिखा हीं नहीं सकता या दिखाना नहीं चाहता. केंद्र सरकार की NEP-2020 में 4.36, 4.37, 4.42 व 2.3.4.3 जैसे बिंदु ऐसे हैं कि जो बड़े शानदार है और शिक्षा प्रणाली की कोचिंग पर निर्भरता को घटाने की वकालत करते है लेकिन उनका पालन 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार अपने अधिकारियों के माध्यम से नहीं करवा पाई है. इन घटनाओं से कोचिंग के संदर्भ में सरकारों और अधिकारियों की सक्रियता का पता चलता है.
मठाधीश भी हैं मौन
सोशल मीडिया के दौर में कोचिंग का महिमामंडन शिक्षा के क्षेत्र के तमाम मठाधीशों ने ऐसे किया है कि बच्चे इस जाल को समझ नहीं पाते. सदाचार, ईमानदारी और सत्य निष्ठा की बड़ी-बड़ी बात करने वाले कोचिंग संचालक या कोचिंग का चेहरा कह लीजिए, ये सभी विषम परिस्थितियों में मौन हो जाते हैं. इन तथाकथित शिक्षकों के पास यूट्यूब पर मिलियन में फॉलोअर हैंं, लाखों लोग इन्हें सुनते हैं. इनके पढ़ाने का तरीका इस तरह का है कि उनकी क्लास करने में मजा तो आता है लेकिन सिविल सेवा परीक्षा के कंटेंट से उसका दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं होता. ठीक वैसे ही जैसे ये अपनी नैतिकता का जमीन पर कोई इस्तेमाल नहीं दिखा पाते.
ये शिक्षक स्पष्ट रूप से कहते हैं कि कोचिंग करना अति आवश्यक है यदि सफलता नहीं मिली तो बेहतर इंसान बनने के लिए कोचिंग करिए. अपने इस वाक्य को वह एक सेफ्टी वाल्व के रूप में इस्तेमाल करते हैं और उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले छात्र पैसा देकर कोचिंग में प्रवेश लेते हैं. बाद में यह लोग ज्यादातर को केवल बेहतर इंसान बनाकर उनको उनके घर भेज देते हैं क्योंकि संघ लोक सेवा आयोग में इन लोगों का सिलेक्शन प्रतिशत अत्यंत कम या शून्य है.
यदि हम सिविल सेवा परीक्षा में चयनित छात्रों की बात करें तो इसमें चयन की संभावना एक प्रतिशत भी नहीं है. आंकड़ों के अनुसार यदि बात की जाए तो 2013 में 4.30 लाख छात्रों ने परीक्षा में भाग लिया जिसमें चयन केवल 990 छात्रों का हुआ इस तरह से पास प्रतिशत 0.2 रहा. रही बात 2024 की तो पिछले 10 वर्ष में कोचिंग का व्यापार इतना बड़ा हुआ कि इस वर्ष 13 लाख छात्रों ने परीक्षा दी है जिसमें से अधिकतम 1000 छात्रों का चयन होना है. इससे यह पता चलता है कि सिर्फ और सिर्फ मार्केट को बड़ा किया गया है. भले ही चयन की गुंजाइश एक प्रतिशत भी ना हो.
मजे की बात तो यह है कि सरकार ने क़रीब 58,000 करोड़ रुपये के बिज़नेस वाले कोचिंग संस्थानों के लिए इसी जनवरी 2024 में एक गाइडलाइंस जारी की और 3 महीने में उसके पालन होने की उम्मीद जताई. विडंबना देखिए पालन तो दूर ऐसा लगता है जैसे इसके बारे में लोकल अथॉरिटीज, एजुकेशन सिस्टम व उच्च शिक्षा विभाग को भी कोई जानकारी तक नहीं है. ध्यान रहे, ये वो कोचिंग के बच्चे हैं जो कॉम्पिटिशन में भाग लेकर अपना और अपने परिवार का भविष्य सुधारना चाहते है लेकिन हमारा सिस्टम इनकी जान से खेलने में ज़रा भी नहीं शर्माता, क्या ऐसे ही हम विश्वगुरु बनेंगे? यह हमारे देश का दुर्भाग्य है. निश्चित रूप से यदि इस तरह की कार्यशैली हमारे सरकारों और अधिकारियों की रहेगी तो ऐसी घटनाएं लगातार होती रहेंगी.