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उमर अब्दुल्ला की दो शपथ के फर्क से समझिए कश्मीर में 370 के खात्मे से क्या बदल गया |Opinion

जम्मू कश्मीर के विशेष प्रावधानों वाले कानून 370 के खात्मे के बाद इस राज्य में बहुत कुछ बदल गया है. उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह भारत के संविधान के नाम पर शपथ ली वह भी इसी के चलते संभव हो सका.

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उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए
उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए

उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद अब्दुल्ला यहां के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले पहले व्यक्ति हैं. जम्मू कश्मीर में किसी संवैधानिक पद की शपथ लेने वाले भी वो पहले ही शख्स हैं. इसलिए उनके शपथ से पहले सबकी निगाहें इस बात पर थीं कि अब्दुल्ला की शपथ में भारतीय संविधान का जिक्र होता है कि नहीं. क्योंकि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के पहले जम्मू कश्मीर में जब कोई सीएम पद की शपथ लेता था तो वो जम्मू कश्मीर के संविधान की शपथ लेता था. 6 जनवरी 2009 को जब उमर ने जम्मू कश्मीर के सीएम पद की शपथ ली थी तो उन्होंने जम्‍मू-कश्‍मीर के संविधान की कसम ली थी. अब जब एक बार उन्होंने सीएम पद की शपथ ली है उसमें भारतीय संविधान के नाम पर शपथ लेते हुए वो दिखाई दे रहे हैं. जिन्हें 370 को खत्म करने से भारत में कोई बदलाव नहीं दिखता उन्हें उमर अब्दुल्ला की शपथ का वीडियो जरूर देखना चाहिए. हालांकि जम्मू कश्मीर का संविधान भी राज्य को भारत का अखंड हिस्सा मानता था. 

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1- जम्मू कश्मीर का न अलग संविधान रहा, न ही अलग झंडा 

जम्मू कश्मीर का भारत में विलय करने के पहले लिए गए फैसले के चलते भारतीय संविधान के भाग XXI में अनुच्छेद 370 को शामिल किया गया.इस प्रावधान के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया. इस अनुच्छेद के अनुसार ही जम्मू और कश्मीर को एक अलग संविधान, एक अलग राज्य ध्वज और आंतरिक प्रशासन से संबंधित स्वायत्तता का अधिकार भी मिल गया. जम्मू और कश्मीर का संविधान  17 नवंबर 1956 को अपनाया गया था, और 26 जनवरी 1957 को लागू किया गया. शुरू में तो सब ठीक चला पर बाद में इस विशेष प्रावधान का दुरुपयोग शुरू हुआ. जम्मू कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन के विस्तार में भी इस प्रावधान का लाभ उठाया गया. हालत यहां तक हो गई कि कश्मीर में आम बातचीत में  भी भारत को विदेश की तरह ट्रीट किया जाने लगा. फिर एक समय ऐसा आ गया कि कश्मीर में भारतीय झंडा तक फहराना मुश्किल हो गया. 5 अगस्त 2029 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद से जम्मू कश्मीर का संविधान और झंडा वगैरह अपने आप ही खत्म हो गया. 

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2- और भी कश्मीर में बहुत कुछ बदला है

भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे, पर अब खरीद सकते हैं. राज्यों में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला अनुच्छेद 360 भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता था. अब संसद अपनी इच्छानुसार जम्मू में इन अनुच्छेद को भी लागू कर सकेगी. भारत की संसद जम्मू-कश्मीर में रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा कोई अन्य कानून नहीं बना सकती थी पर अब बना सकेगी.
संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन जरूरी होता था. पर 370 की समाप्ति के बाद यह अनुमोदन भी जरूरी नहीं रह गया है.

3- अनुच्छेद 370 हटने के बाद सही मायने में जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र उतरा है 

अनुच्छेद 370 की समाप्त कर केंद्र ने जम्मू कश्मीर में सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना हुई.2024 के विधानसभा चुनावों के पहले तक जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए के लिए सीटें आरक्षित नहीं थीं. भारतीय संविधान के अनुसार देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी सीटें आरक्षित की गईं. अनुसूचित जन जातियों के लिए  नौ सीटें आरक्षित की गईं हैं, जबकि अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित की गईं हैं. यही नहीं जम्मू कश्मीर के चुनावों में वाल्मीकि, गुरखा भारत पाक विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे नागरिकों को वोट डालने का अधिकार नहीं था.कोई भी लोकतंत्र अगर अपने सभी नागरिकों को वोटिग राइट नहीं देगा वह अधूरा ही कहलाएगा.

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