पप्पू यादव इन दिनों लॉरेंस बिश्नोई के नेटवर्क खत्म कर देने के दावे को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. अपने बयान के बाद से वो सोशल मीडिया पर भी छाये हुए हैं - और आलम ये है कि ट्रोल्स उनको उनसे जुड़े बीते वाकयों की याद दिलाने लगे हैं.
पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दल सांसद पप्पू यादव के समर्थक सोशल मीडिया पर उनकी बहादुरी के तमाम किस्से सुना रहे हैं, तो विरोध में खड़े हो गये लोग श्रीप्रकाश शुक्ला को लेकर यूपी एसटीएफ के पुलिस अफसरों के सामने अपनी जान बचाने को लेकर उनके गिड़गिड़ाने के किस्से शेयर कर रहे हैं.
ये सब शुरू हुआ है लॉरेंस बिश्नोई को लेकर उनके बयान के बाद. लॉरेंस बिश्नोई, असल में, एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद से चर्चा में है - और उसका गैंग खत्म कर देने के दावे को लेकर पप्पू यादव अपने विरोधियों के निशाने पर आ गये हैं.
लॉरेंस बिश्नोई पर बयान देकर फंसे पप्पू यादव
कोई दो राय नहीं कि कोविड के संकट काल में जब हर किसी ने हाथ खड़े कर दिये थे, उम्मीद की आखिरी किरण पप्पू यादव ही थी. और पटना की बाढ़ जैसी न जाने कितनी घटनाएं हैं जब पप्पू यादव को मुसीबत की घड़ी में जरूरतमंदों के साथ खड़े देखा है - और तब भी पप्पू यादव को कोरोना के दौर में ही जेल जाते भी देखा है.
पप्पू यादव के साथ तमाम विवाद भी जुड़े हैं, और उनका बड़बोलापन संसद सत्र की शुरुआत में भी देखा गया जब वो भरी संसद में अपने अंदाज में अपना परिचय दे रहे थे, 'छठी बार सांसद बने हैं... आप हमको सिखाइएगा... आप कृपा पर जीत कर आए हैं, हम अपने दम पर.'
बात तो सही थी, लेकिन बताने के अंदाज से लोग भौंचक्के थे. निश्चित तौर पर पप्पू यादव डंके की चोट पर बिहार में आरजेडी और जेडीयू उम्मीदवारों को अपने दम पर हराकर लोकसभा पहुंचे हैं, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई के बारे में उनका दावा पुलिस एनकाउंटर के किस्से जैसा ही लगता है.
लॉरेंस बिश्नोई के कारनामों की चर्चा के बीच पप्पू यादव ने सोशल साइट X पर लिखा है, ये देश है या हिजड़ों की फौज... एक अपराधी जेल में बैठ चुनौती दे लोगों को मार रहा है, सब मूकदर्शक बने हैं... कभी मूसेवाला, कभी करणी सेना के मुखिया... अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला... कानून अनुमति दे तो 24 घंटे में इस लॉरेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा.'
पप्पू यादव के नाम से मशहूर राजेश रंजन के ऐसे किसी भी दावे से शायद ही किसी को आपत्ति होगी, लेकिन उनकी एक लाइन, 'ये हिजड़ों का देश', बेहद आपत्तिजनक है. देश का अपमान तो कर ही रहे हैं, LGBTQ लोगों का भी मजाक उड़ा रहे हैं, वो भी देश के चुने हुए जनप्रतिनिधि होकर भी - और, लोगों को ये बात काफी नागवार गुजर रही है, और उनका गुस्सा सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है.
क्या है श्रीप्रकाश शुक्ला का किस्सा जो पप्पू यादव से जुड़ा है?
सोशल मीडिया पर लोग उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम लेकर लॉरेंस बिश्नोई को लेकर पप्पू यादव के दावे की हवा निकाल देने की कोशिश कर रहे हैं. पप्पू यादव को घेरने के लिए ऐसे लोग एक किताब का हवाला दे रहे हैं, जिसे यूपी एसटीएफ के एक अधिकारी ने लिखी है. पुलिस सेवा से रिटायर हो चुके राजेश पांडेय ने अपनी किताब 'वर्चस्व' में श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बारे में विस्तार से बताया है.
यूपी में बीजेपी नेता कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते एसटीएफ का गठन किया गया था, जिसमें राजेश पांडेय डीएसपी थे, और अरुण कुमार एसएसपी. वर्चस्व के पेज नंबर 200-201 पर उस वाकये का जिक्र है, जिसमें पप्पू यादव एसटीएफ के अथिकारियों से मिलने पहुंचे हैं.
वर्चस्व में राजेश पांडेय ने लिखा है कि अरुण कुमार ऑपरेशन के सिलसिले में पटना में थे, तभी पप्पू यादव मिलने आये थे. वो लिखते हैं, पप्पू यादव सीधे भीतर आए और उन्होंने सभी के पैर छूए... बहुत भारी शरीर के पप्पू यादव हाथ जोड़ कर खड़े रहे, फिर थोड़ी देर बाद नीचे कालीन पर ही बैठ गए.
'विधायक जी, ऊपर बैठ जाइए,' अरुण कुमार ने कहा.
'सर, यहीं आराम से ठीक हैं,' पप्पू यादव ने कहा.
'बताइए, क्या बात है?' अरुण कुमार ने पूछा.
'सर, वृज बिहारी प्रसाद की जब हत्या हुई थी तो यह श्रीप्रकाश वृज बिहारी के कमरे के आसपास ही कहीं फर्जी मेडिकल बनवाकर भर्ती हुआ था.'
फिर विस्तार से पप्पू यादव बताने लगे, 'मेरी बहन पीजीआई में ही रेजीडेंट डॉक्टर है, उसकी शादी नहीं हुई है. वृज बिहारी प्रसाद की हत्या के पन्द्रह-बीस दिन बाद एक दिन वह अकेले पार्किंग में आकर मेरी बहन के सामने खड़ा हो गया.'
जब अरुण कुमार, श्रीप्रकाश शुक्ला की बोलचाल के बारे में जानना चाहते हैं, तो पप्पू यादव बताते हैं, 'किस तरह की भाषा बोल रहा था?'
पप्पू यादव बताते हैं कि बिलकुल ठेठ गोरखपुरिया भाषा लग रही थी. कहते हैं, 'इधर बिहार की भाषा नहीं थी, लेकिन लहजा पूर्वी उत्तर प्रदेश का ही था.'
'फिर क्या हुआ?' अरुण कुमार पूछते हैं. पप्पू यादव बोले, 'मैंने अपनी बहन को गाड़ी से भेजना शुरू किया, साथ में दो आदमी भेजता था... एक दिन वह फिर पीजीआई गेट के सामने जब मेरी गाड़ी से बहन उतरकर गेट के भीतर जा रही थी, मिल गया... मेरी बहन डरकर भीतर भागने लगी. भीतर जाकर उसने शोर भी मचाया, लेकिन तब तक वह चला गया था.
पप्पू यादव बड़े दीन भाव से बोले, 'सर, मुझे बचा लीजिए! जिसने वृज बिहारी प्रसाद को दिन-दहाड़े दर्जनों सुरक्षाकर्मियों के बीच मार दिया हो, भला मुझे मारने में उसे कितनी देर लगेगी... मुझे तो चुटकी बजाते मार सकता है.'
फिर पप्पू यादव बताते हैं, 'मुझे अपनी बहन की इज्जत की बहुत चिंता है. अब मैंने उसका पीजीआई जाना भी बंद करा दिया है, लेकिन वह दिन में कई-कई बार फोन करके उससे बात करने की कोशिश करता है.'
बहन की चिंता समझ में आती है, और पप्पू यादव को अपने जान की फिक्र भी. हर किसी को अपने जान की फिक्र होती है, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई के नेटवर्क को खत्म करने की बात करते हुए वो अपनी पुरानी बात भूल जाते हैं.
बिहार के एक पत्रकार के सवाल पर पप्पू यादव, श्रीप्रकाश शुक्ला को कुत्ते-बिल्ली जैसा बता रहे हैं - लेकिन उनकी वो बात हास्यास्पद लगती है, और तब तक लगेगी जब तक पप्पू यादव वर्चस्व किताब और उसके लेखक पुलिस अफसर के खिलाफ मानहानि का केस नहीं दर्ज कराते.