संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है. ये सत्र G20 शिखर सम्मेलन के कुछ ही दिन बाद होगा. और ये सत्र सिर्फ पांच दिनों का होगा.
अभी अभी तो संसद का मॉनसून सत्र खत्म हुआ है. 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चला मॉनसून सेशन काफी हंगामेदार रहा, खासकर मणिपुर हिंसा को लेकर.
विशेष सत्र के एजेंडे के तौर पर तो अभी कुछ भी नहीं बताया गया है, लेकिन संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना है, अमृत काल के बीच आयोजित होने वाले इस विशेष सत्र के दौरान संसद में सार्थक चर्चा को लेकर आशान्वित हैं.
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ही विशेष सत्र बुलाये जाने की जानकारी भी दी है, जो 18 सितंबर से शुरू होकर 22 सितंबर तक चलेगा. ध्यान रहे, 9 और 10 सितंबर को दिल्ली में जी20 शिखर बैठक भी आयोजित की गयी है.
संसद के विशेष सत्र में कई महत्वपूर्ण बिल लाये जाने को लेकर कयास ही लगाये जा रहे थे कि सूत्रों के हवाले से टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज आ गयी - संसद के विशेष सत्र में केंद्र की मोदी सरकार 'एक देश, एक चुनाव' बिल ला सकती है. बस इतनी सी बात है या मोदी-शाह के पिटारे में कुछ और भी है?
तस्वीर में कोई संकेत है क्या
संसद के विशेष सत्र को लेकर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने जो तस्वीर पोस्ट की है, वो भी बहुत कुछ कह रही है.
ये तस्वीर ऐसे ली गयी है कि संसद भवन की नई और पुरानी दोनों ही इमारतें दिखाई दे रही हैं. तस्वीर में बिखरी रंगों को समझने की कोशिश करें तो एक तरफ सांझ और दूसरी तरफ सवेरा हो रहा है, ऐसा महसूस किया जा सकता है. एक बार लाइटिंग के रंग पर गौर करें, आप भी ये चीज आसानी से महसूस कर सकते हैं.
Special Session of Parliament (13th Session of 17th Lok Sabha and 261st Session of Rajya Sabha) is being called from 18th to 22nd September having 5 sittings. Amid Amrit Kaal looking forward to have fruitful discussions and debate in Parliament.
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) August 31, 2023
ಸಂಸತ್ತಿನ ವಿಶೇಷ ಅಧಿವೇಶನವನ್ನು… pic.twitter.com/k5J2PA1wv2
तो क्या संसद का विशेष सत्र नई बिल्डिंग में हो सकता है? चर्चा तो यही थी कि मॉनसून सत्र ही नई बिल्डिंग में होगा, लेकिन वो तो पुरानी इमारत में ही शुरू होकर खत्म भी हो गया.
क्या ये मान कर चला जाये कि संसद का विशेष सत्र नई बिल्डिंग में प्रवेश का कोई शुभ मुहूर्त देख कर बुलाया गया है. फिर तो लगे हाथ चंद्रयान3 की उपलब्धियों पर चर्चा भी हो जाएगी. ये ऐसा टॉपिक है जिस सार्थक बहस संभव भी है - क्योंकि चंद्रयान3 को लेकर तो मणिपुर जैसा हंगामा हो भी नहीं सकता.
सिर्फ 'एक देश, एक चुनाव' बिल या कुछ और भी
संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने को लेकर लोक सभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी का भी रिएक्शन आ गया है. अधीर रंजन चौधरी का निलंबन भी वापस हो गया है.
अब कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी पूछ रहे हैं, ऐसी कौन सी इमरजेंसी है, शीतकालीन सत्र तो होना ही है.
वैसे तो सरकार के पास कई बिल हैं, लेकिन कुछ ऐसी जरूर हैं जिन्हें लेकर मोदी सरकार की खास दिलचस्पी को समझा जा सकता है.
ऐसा ही एक बिल यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर है. राजनीतिक तौर पर देखें तो यूसीसी बिल भी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए धारा 370 और मंदिर मुद्दे जैसा ही है. और उसी के आगे जनसंख्या नियंत्रण बिल का भी नंबर आता है. दोनों ही एक ही लाइन की राजनीति को साधने के साधन हैं.
यूसीसी को लेकर केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने अब तक जो कुछ कहा है उससे यही समझ आया है कि इसे पहले बीजेपी शासित राज्यों में ही प्रयोग के तौर पर लागू किया जाएगा. उत्तराखंड में पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस पर तेजी से काम भी चल रहा है.
जहां तक जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे के सवाल हैं, बीजेपी की राज्य सरकारें इस पर अपने अपने तरीके से काफी आगे बढ़ चुकी हैं. इसे भी एक बिल का जामा पहनाया जा सकता है.
लंबे समय से महिला आरक्षण बिल लाये जाने की भी मांग होती रही है, जिसे लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी को पत्र भी लिखे जा चुके हैं. विशेष सत्र में ये बिल लाये जाने की भी संभावना जतायी जा रही है.
एक देश, एक चुनाव को लेकर बहस काफी पहले से चल रही है. बीजेपी की केंद्र सरकार तो चाहती है कि सभी चुनाव एक साथ कराये जायें, लेकिन कई राजनीतिक दल तैयार नहीं हैं.
एक साथ चुनाव कराये जाने की संभावना
अगर एक देश, एक चुनाव के मुद्दे को देखें तो लॉ कमीशन ने जनवरी, 2023 में राजनीतिक दलों से छह सवालों के जवाब के रूप में उनकी राय मांगी थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिये. राज्य सभा में एक चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री का कहना रहा, सीधे सीधे कह देना कि हम इसके पक्षधर नहीं हैं… आप चर्चा तो करिए भाई… आपके विचार होंगे…यार इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए… पांच साल में एक बार चुनाव हों, महीना-दो महीना चुनाव का उत्सव चले. उसके बाद फिर काम में लग जाएं.
जहां तक बिल के संसद से पास होने का सवाल है, ऐसे समझा जा सकता है कि लाख कोशिशों के बावजूद पूरा विपक्ष मिल कर भी दिल्ली सेवाओं वाला बिल पास होने से नहीं रोक सका. मान कर चलना चाहिये कि आगे भी ऐसा ही होगा.
फिर भी सरकार एक देश एक चुनाव के मसले पर आम सहमति बनाना चाहती है, ऐसा लगता है. पूरे देश में लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की प्रक्रिया, सुरक्षा व्यवस्था और तमाम जरूरी इंतजाम अपनी जगह हैं, लेकिन राजनीतिक सहमति महत्वपूर्ण हो है ही.
एक साथ चुनाव से किसे नफा किसे नुकसान
ये देश के मौजूदा राजनीतिक हालात ही हैं जो बताते हैं कि एक साथ चुनाव कराये जाने कि कितनी संभावना है. 2024 के आम चुनाव को लेकर ये तो साफ हो चुका है कि मुकाबला NDA बनाम INDIA ही होने जा रहा है. कोई कांटे की टक्कर होने वाली है, ऐसी भी कोई बात नहीं है. इंडिया टुडे और सी-वोटर के मूड ऑफ द नेशन सर्वे से ये भी साफ हो चुका है.
रही बात 2024 के पहले होने जा रहे पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की. निश्चित तौर पर बीजेपी नेतृत्व के मन में कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसी आशंका तो चल ही रही होगी.
बीजेपी फिलहाल अपने नये गुजरात मॉडल के साथ ही आगे बढ़ रही है. लेकिन मुश्किल ये है कि ये मॉडल या तो गुजरात में चलता है, या फिर पूरे देश में होने वाले आम चुनाव में.
नये गुजरात मॉडल को मोदी लहर से जोड़ कर देखा जा सकता है. गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील की थी कि वे मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को इतने वोट दें कि खुद मोदी की जीत का रिकॉर्ड भी टूट जाये. हुआ भी वैसा ही.
आम चुनाव में तो ये मुमकिन भी है, लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों में कई अलग फैक्टर काम करते हैं. और बीजेपी जो दो-तीन मुद्दे लेकर चलती है, कई बार गच्चा भी खा जाती है.
विपक्षी गठबंधन INDIA इस बार बीजेपी को केंद्र से बेदखल करने के लिए जी जान से जुटा है. गठबंधन की तीसरी बैठक चल रही है, और उत्तरोत्तर विपक्ष मजबूत ही होता जा रहा है. बीते कई साल की विपक्ष की ऐसी बैठकों को देखें तो बमुश्किल दो बैठकें हो पाती थीं, तीसरी मीटिंग से पहले ही सब लड़ भिड़ कर बिखर जाते थे.
बीजेपी नेतृत्व के लिए विपक्षी गठबंधन की मौजूदा एकजुटता नयी चुनौती समझ में तो आने लगी है. और इसे सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया देख कर समझा जा सकता है.
जो हालात हैं, एक देश, एक चुनाव बिल पास होने के साथ साथ उस पर बात आगे बढ़ी तो बीजेपी को निश्चित तौर पर मोदी लहर का फायदा मिलेगा - और बीजेपी भला ऐसा मौका क्यों गंवाये!