गरीबी हटाओ का नारा भारतीय राजनीति का पुराना और आजमाया हुआ हथियार रहा है. गरीबी हटे न हटे, लोगों को राहत और निजात मिले न मिले - लेकिन गरीबी का मुद्दा चुनाव जीतने का रामबाण नुस्खा तो साबित होता ही है.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी ने बारी बारी गरीबी के मुद्दे का मौका देखकर इस्तेमाल किया है, लेकिन सच तो यही है कि गरीबी हटने का नाम ही नहीं लेती. प्रधानमंत्री मोदी ने तो गरीबी को जातीय राजनीति को काउंटर करने का औजार बनाने की भी कोशिश की है. बिहार में जातिगत गणना के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जिन प्रमुख जातियों के नाम गिनाये थे, एक नाम 'गरीब' भी था, जिसका बजट पेश करते समय निर्मला सीतारमण के भाषण में भी जिक्र आया था.
और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वही आजमाया हुआ कारगर हथियार उठा लिया है. योगी आदित्यनाथ का दावा है कि वो उत्तर प्रदेश से गरीबी मिटा कर रहेंगे - मतलब, देश में गुजरात मॉडल की तरह अब यूपी मॉडल भी जल्दी ही आने वाला है.
यूपी में योगी का 'गरीबी हटाओ' अभियान
महाराजगंज पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने संकल्प लिया है कि अगले 3 साल में यूपी से गरीबी को खत्म करके सूबे को देश का नंबर 1 राज्य बनाया जाएगा.
हफ्ता भर पहले ही योगी आदित्यनाथ का बयान आया था कि राजनीति में वो लंबी पारी खेलने वाले नहीं हैं, लेकिन ये संकल्प तो कुछ और ही इशारा करता है.
क्या संकल्प पूरा किये बगैर योगी आदित्यनाथ राजनीति छोड़ देंगे? कोई नेता तो ऐसा कभी भी कर सकता है, लेकिन योगी आदित्यनाथ भला ऐसा कैसे कर सकते हैं, वो तो योगी हैं. वैसे तो बीजेपी का चुनाव मैनिफेस्टो भी संकल्प पत्र कहलाता है, लेकिन ये कोई बीजेपी का संकल्प तो है नहीं - ये तो एक योगी का संकल्प है.
योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कहा था कि एक दिन वो अपने मठ लौट जाएंगे - लेकिन, अब तो मठ लौटने से पहले योगी आदित्यनाथ को यूपी से गरीबी मिटाने का संकल्प तो पूरा करना ही होगा.
योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि जैसे जीवन के बाकी फील्ड में एक समय सीमा होती है, राजनीति में भी बिल्कुल वही बात लागू होती है - और नये संकल्प के लिए योगी आदित्यनाथ ने 3 साल की डेडलाइन तय की है.
गुजरात मॉडल बनाम यूपी मॉडल
अब तो ये पक्का हो गया है कि देश को विकास का एक नया मॉडल मिलने वाला है, यूपी मॉडल - और वो भी गरीब मुक्त उत्तर प्रदेश के रूप में, जो बाकी सभी मॉडल पर भारी पड़ सकता है, बशर्ते टार्गेट पूरा हो जाता है.
योगी आदित्यनाथ के पास अब तक गिनाने के लिए बहुत सारे काम रहे हैं. वो राजनीतिक विरोधियों की गर्मी शांत कर सकते हैं. वो अपराधियों को ठोक डालने के लिए पुलिस वाली की भी पीठ ठोकते रहते हैं. वो अयोध्या में दिवाली और मथुरा में होली मनाते रहे हैं - और मथुरा-काशी के समानांतर संभल को भी बड़ा मुद्दा बना चुके हैं, लेकिन विकास के नाम पर अब तक कोई खास उपलब्धि न तो वो खुद बता पाते हैं, न ही कहीं नजर ही आती है.
गिनाने को तो योगी आदित्यनाथ के पास अयोध्या में भव्य मंदिर, प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन के अलावा बहुत सारे शहरों के नाम बदलने और बदलवाने का श्रेय भी उनके खाते में दर्ज है, लेकिन गुजरात की तरह विकास का यूपी मॉडल अब तक सामने नहीं आ सका है.
लेकिन, लगता है योगी आदित्यनाथ अब सीरियस हो गये हैं. वो तीन साल में यूपी से गरीबी हटाने के साथ ही सूबे को देश में नंबर 1 बनाने का संकल्प ले चुके हैं - मुश्किल ये है कि तकनीकी तौर पर उनके कार्यकाल में दो साल ही बचे हुए हैं.
मतलब, ये संकल्प तभी पूरा हो पाएगा जब 2027 के बाद भी योगी आदित्यनाथ चुनाव जीत लें, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन पायें.