एक कहावत है कि गांव बसा नहीं लुटेरे पहले आ गए. वही कहानी चरितार्थ हो रही यूपी में. यूपी की राजनीति ही देश की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचाती रही है. यूपी में पीएम नरेंद्र मोदी को कुर्सी से हटाने के पहले ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच पीएम बनने की तगड़ी फाइट शुरू हो गई है. पर ये जंग इन दोनों पार्टियों के लिए भविष्य में नुकसानदेह साबित हो सकती है. सबसे बड़ी बात ये है कि इन दोनों के झगड़े से विपक्षी एकता के सपने इंडिया गठबंधन के लिए कब्र खुद रही है.
पहले समाजवादी पार्टी कार्यालय पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को देश का भावी पीएम बताने के पोस्टर लगाए गए. उसके तुरंत बाद अब कांग्रेस कार्यालय के बाहर राहुल गांधी को 2024 में पीएम बनाने और 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को मुख्यमंत्री बनाने के पोस्टर लगाए गए हैं. सवाल यह उठता है कि इतनी जल्दीबाजी दिखाने के पीछे का कारण क्या है? क्या जो पार्टी पहले पोस्टर लगा लेगी उसके नेता की पीएम बनने की संभावना बढ़ जाएगी? या कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है कि यूपी में समाजवादी पार्टी की राजनीति किसी तरह खत्म कर दी जाए. अभी कुछ दिनों से जिस तरह कांग्रेस आक्रामक तरीके से यूपी में समाजवादी पार्टी के पीछे पड़ी है उससे तो यही लगता है. दोनों ही पार्टी के नेता एक दूसरे के लिए हर रोज कीचड़ उछाल रहे हैं. आइये देखते हैं कि किस तरह कांग्रेस यूपी में समाजवादी पार्टी की जगह लेने के लिए छटपटा रही है.
समाजवादी पार्टी को खत्म किए बिना कांग्रेस की मंजिल संभव नहीं है
कांग्रेस पार्टी यह जान गई है कि अगर हिंदुस्तान के पीएम की गद्दी पर राहुल गांधी की ताजपोशी करानी है तो यूपी में फिलहाल समाजवादी पार्टी को खत्म करना होगा.यूपी में मंडल की राजनीति के उभार के पहले तक कांग्रेस का एकछत्र राज्य होता था. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना रहा है कि नरसिम्हा राव ने 1991 में केंद्र में सत्ता संभालने के बाज जानबूझकर यूपी में कांग्रेस को कमजोर किया.ताकि उन्हें हिंदी बेल्ट के षडयंत्रों से मुक्ति मिल सके.फिलहाल ये वो दौर था जब यूपी और बिहार में मंडल की राजनीति हॉवी हो रही थी.कांग्रेस का पूरा वोट बैंक यूपी में समाजवादी पार्टी और बीजेपी में शिफ्ट हो गया. कांग्रेस यह अच्छी तरह समझ रही है कि समाजवादी पार्टी को कमजोर किया बिना यूपी में वह अपना जगह नहीं बना सकती है. और यूपी में जगह बनाए बिना बीजेपी को केंद्र से अपदस्थ नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका चाहती है समाजवादी पार्टी से
दोनों पार्टियों के बीच छिड़े इस वाक और पोस्टर युद्ध के पीछे दोनों का अपनी पार्टी को लेकर ओवरकॉन्फिडेंस है. कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष संभालने के बाद अजय राय कुछ ज्यादा ही उत्साह में हैं. उनका बड़बोलापन ही है कि कांग्रेस सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. अजय राय इतने मासूम भी नहीं हैं कि उन्हें पता नहीं है कि 80 सीट पर लड़ने के लिए तो कांग्रेस को कैंडिडेट भी नहीं मिलेंगे. इसी तरह समाजवादी पार्टी भी 80 सीटों पर चुनाव लड़ जाए तो बीजेपी को फिर से सत्ता में लाने से कोई नहीं रोक सकता. कांग्रेस पार्टी 2009 में करीब 20 सीटें जीत ली थी , पर तब से गंगा में बहुत पानी बह चुका है.
दरअसल यह सारी कवायद इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी से अधिक से अधिक सीट हथियाने का खेल भर लगता है.2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बीएसपी के बीच जो गठबंधन हुआ उसमें बीएसपी बड़ी भूमिका में थी.गठबंधन में बसपा को 38 तो सपा को 37 सीट मिले थे. कांग्रेस चाहती है कि 2019 में जितनी सीट बीएसपी को सपा ने दी थी उतनी ही सीट इस बार कांग्रेस को मिले.
मुस्लिम वोटों के लिए जो कांग्रेस कर रही है
कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है.यही कारण है आजम खान के जेल जाते ही अजय राय सीधे उनसे जेल में मिलने पहुंच जाते हैं और समाजवादी पार्टी पर तंज कसते हैं.यह सीधे-सीधे दिखावा था कि कांग्रेस मुस्लिम नेताओं की कितनी हितैषी है. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि अजय राय कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में हैं पर पूरी तैयारी के साथ समाजवादी पार्टी के पीछे पड़े हुए हैं. उन्होंने बिना आजम परिवार से बात किए ही उनसे मिलने पहुंच जाते हैं.हालांकि उन्हें जो संदेश देना था उसमें वो कामयाब हो गए. यही कारण है समाजवादी पार्टी और अखिलेश दबाव में आ गए हैं. समाजवादी पार्टी ने कहा कि इस तरह नहीं धुलेंगे कांग्रेस और बीजेपी के पाप.
पश्चिम उत्तर प्रदेश में जमीन से जुड़े हुए तीन नेताओं का कांग्रेस में शामिल कराकर पार्टी ने समाजवादी पार्टी को संदेश पहले ही दे दिया है. इमरान मसूद ने कांग्रेस में वापसी कर ली है.बागपत जिले के कद्दावर चेहरा रहे पूर्व मंत्री कोकब हमीद के पुत्र हमीद अहमद और सहारनपुर के सपा नेता फिरोज आफताब ने भी कांग्रेस ज्वाइन किया है.
ओबीसी और दलित वोटों के लिए लगातार प्रयासरत है कांग्रेस
इस बीच कांग्रेस ने केवल मुस्लिम वोट को लेकर ही समाजवादी पार्टी पर हमले नहीं किया है, उसकी नजर समाजवादी पार्टी के ओबीसी वोट बैंक पर भी है. राहुल गांधी ने जिस तर महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरन संसद में ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग थी वो केवल एक नमूना भर है. राहुल गांधी हर सभा में जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस ने यह वादा किया है कि जिस भी स्टेट में सरकार बनती है पार्ट जाति जनगणना करवाएगी.केंद्र में भी सरकार बनने पर जाति जनगणना का वादा कांग्रेस ने किया है.
इसके साथ ही कांग्रेस यूपी में दलित वोटबैंक के लिए भी लगातार काम कर रही है. कांशीराम की पुण्यतिथि पर नौ अक्तूबर से दलित गौरव संवाद कार्यक्रम शुरू किया गया है.हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनावों में बिजी होने के चलते बड़े नेता शिरकत नहीं कर पा रहे हैं पर मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने दलित वोटरों को संदेश दे दिया है. 80 के दशक तक कभी दलित वोटबैंक कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करता था.बसपा के उभार के बाद कांग्रेस से छिटक गया. कांग्रेस लगातार दलितों के नए नेता के रूप में जगह बना रहे चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण पर भी डोरे डाल रही है. ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस मायावती से भी गठबंधन कर सकती है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि ऐसा संभव नहीं है. मायावती कभी कांग्रेस के साथ नहीं आएंगी.दरअसल कांग्रेस के साथ आने से बीएसपी को कोई फायदा नहीं होने वाला है.