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बिहार चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की जोरदार दस्तक, नीतीश और तेजस्वी के लिए बने बड़ी मुसीबत | Opinion

बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर को मिसफिट माना जा रहा था. वजह थी राज्य की कास्ट पॉलिटिक्स. लेकिन, गांधी और जेपी के रास्ते बढ़ रहे प्रशांत किशोर के फैसले ने आलोचकों को अचंभित किया है - ये नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पॉलिटिकल लाइन के लिए सबसे बड़ा चैलेंज है.

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प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बहुत हल्के में ले रहे थे, लेकिन अचानक वो वजनदार नजर आने लगे हैं.
प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बहुत हल्के में ले रहे थे, लेकिन अचानक वो वजनदार नजर आने लगे हैं.

प्रशांत किशोर की राजनीति जिन हालात में शुरू हुई है, परिस्थितियां अरविंद केजरीवाल की शुरुआती राजनीति से मिलती जुलती ही हैं, लेकिन बहुत सारी चीजें बिल्कुल अलग हैं - और सबसे अलग है बिहार और दिल्ली की राजनीति का मिजाज. 

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बेशक दिल्ली में पूर्वांचल और पंजाब के लोगों का खास प्रभाव है, लेकिन दिल्ली का वोटर जहां कॉस्मोपॉलिटन है, बिहार की राजनीति जाति से ही शुरू होकर खत्म भी हो जाती है. 

अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली में फिट हो गये, लेकिन करीब करीब उनकी ही तरह अपनी राजनीतिक राह पर चलते हुए भी प्रशांत किशोर बुरी तरह फंसते नजर आ रहे थे. 
बीते वीकेंड पर ही दिल्ली और बिहार की राजनीति के कुछ जानकारों से बात हो रही थी, तो उनका कहना था कि प्रशांत किशोर का सवर्ण और उसमें भी ब्राह्मण होना उनकी राजनीति में आड़े आ रहा है. जानकारों के मुंह से ये भी सुनने को मिला कि अगर प्रशांत किशोर ओबीसी समुदाय से होते तो कामयाबी की संभावना बढ़ जाती - ऐसे एक्सपर्ट अभी तक प्रशांत किशोर की राजनीत को पुष्पम प्रिया चौधरी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की तरह देखते रहे हैं. पुष्पम प्रिया ने अपनी पार्टी टीपीपी के बैनर तले 2020 के चुनावों में हिस्सा लिया था, लेकिन पुरी तरह फेल भी हुई थीं.  

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प्रशांत किशोर जिस तरह कंबल विवाद से उबर कर, धरना देने का निर्णय लिया और गिरफ्तारी के बाद जमानत की शर्तें मानने के बजाय जेल जाने का फैसला किया, वो उनके राजनीतिक विरोधियों के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है. 

पटना पुलिस ने गांधी मैदान में धरना दे रहे प्रशांत किशोर को सुबह होने से पहले ही गिरफ्तार उठा लिया था. करीब 6-7 घंटे एंबुलेंस में घुमाने के बाद पटना सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था.

प्रशांत किशोर ने सशर्त जमानत लेने से इनकार कर दिया, जिस पर उनको बेऊर जेल ले जाया गया. लेकिन जेल भेजे जाने से पहले ही जमानत की शर्तें हटाकर अदालत ने उनको रिहा भी कर दिया.

प्रशांत किशोर की राजनीति चमकाने में नीतीश कुमार की पुलिस और प्रशासन का ही ज्यादा लगता है - प्रशांत किशोर ने तो सिर्फ राजनीतिक चातुर्य से मौके का फायदा उठाया है.

रिहा होते ही नीतीश कुमार को चैलेंज

जमानत पर छूटते ही प्रशांत किशोर पूरे फॉर्म में आ गये थे. नीतीश कुमार के साथ साथ बीजेपी नेताओं को भी कठघरे में खड़ा कर दिया. प्रशांत किशोर ने कहा कि युवाओं की बात करने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी के नेता छात्रों पर हुए लाठीचार्ज पर एक शब्द भी नहीं बोले - और ऐलान किया कि जो मामला गांधी मैदान से शुरू हुआ था, गांधी मैदान में ही निबटाया जाएगा. 

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प्रशांत किशोर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ये मुद्दा उनका खुद का नहीं है, नीतीश कुमार की जिद के आगे युवाओं की जिद है… और जीत बिहार के युवाओं की ही होगी.

तेजस्वी और राहुल गांधी को सीधा चैलेंज 

तेजस्वी यादव को चुनौती देते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि ये आंदोलन किसी एक व्यक्ति का नहीं है… ये बिहार की खराब व्यवस्था के खिलाफ है… मैं तमाम राजनीतिक पार्टियों से आंदोलन में सहयोग देने की अपील करता हूं.

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को प्रशांत किशोर ने सलाह दी है कि बच्चों के खातिर उनको सड़क पर उतरना चाहिये. कहते हैं, तेजस्वी यादव हों, राहुल गांधी हों, या कोई और नेता, वे बच्चों के भविष्य के लिए हमारे साथ आएं… मैं उनके पीछे बैठकर इस आंदोलन का समर्थन करूंगा.

अब ये प्रशांत किशोर की तरफ से अपने राजनीतिक विरोधियों की चुनौती है, या वास्तव में वो नीतीश कुमार और बीजेपी के खिलाफ सबको साथ लेकर लड़ाई लड़ना चाहते हैं, ये बात अभी ठीक से समझ नहीं आएगी, थोड़ा इंतजार करना होगा - क्योंकि ये दौर प्रशांत किशोर की राजनीति का शैशवकाल है. 

अब तो PK के भी नेता बन जाने का स्कोप बढ़ गया है

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जमानत बॉन्ड न भरने, और शर्तें मानने के बजाय प्रशांत किशोर का जेल जाने का फैसला सभी को भी प्रभावित करने वाला है.

प्रशांत किशोर ऐसे दौर में उभर रहे हैं जब बिहार की राजनीति के पुराने दिग्गजों की पारी खत्म हो चुकी है, या खत्म हो चुकी है. और, नई पीढ़ी में भी गिनती के लोग ही नजर आ रहे हैं - और उनकी राजनीति भी वही घिसे पिटे पुराने परंपरागत रास्ते पर ही चलती चली जा रही है. 

बिहार की मौजूदा राजनीति में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के अलावा कोई और चेहरा नजर तो नहीं आता - बीजेपी तो बीते 10 साल में एक भी चेहरा सामने नहीं ला पाई है. 

प्रशांत किशोर संसाधनों से पूरी तरह लैस हैं. और, जिस तरह से उनको पटना में रहने के लिए घर और वैनिटी वैन मुहैया कराया गया है, सोशल मीडिया पर परोसी जा रही जानकारियों के मुताबिक, वो बता रहा है कि बिहार में भी लोग बरसों से चली आ रही राजनीति से आगे बढ़कर कुछ नया देखना चाहते हैं. 

प्रशांत किशोर, बिहार के बीते तीन दशक की राजनीतिक व्यवस्था को टार्गेट कर रहे हैं, जिसमें नीतीश कुमार अब तक लोगों को बिहार में 15 साल के जंगलराज के नाम पर डराते आये हैं, और बीजेपी भी उसी में शामिल रहती है. 

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पूरे जनसुराज कैंपेन में प्रशांत किशोर लोगों से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात समझाते रहे हैं - और नौजवानों को बिहार में रोजगार न दिला पाने के लिए नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और बीजेपी निशाना बनाते रहे हैं. 

प्रशांत किशोर का ये कहना कि उनको मौका मिला तो छठ पर घर आये युवाओं को काम के लिए लौट कर जाना नहीं पड़ेगा. कहने में ये जरूर आसान है, लेकिन मुश्किल है - लेकिन नामुमकिन तो नहीं ही है. 

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