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तेजस्‍वी-नीतीश के लिए जाति सर्वे का साइड इफेक्ट प्रशांत किशोर ने समझा दिया

जातिगत गणना के आंकड़े सामने आने के बाद नीतीश कुमार से पूछा जाने लगा है कि क्यों नहीं वो किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बना देते. प्रशांत किशोर तो ये भी पूछने लगे हैं कि चाचा-भतीजा अगर कुंडली मार कर बैठे रहेंगे तो किसी मुस्लिम या अतिपिछड़े वर्ग के नेता को हक भला कहां मिल पाएगा?

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जातिगत गणना के बाद तेजस्वी यादव भी प्रशांत किशोर के निशाने पर
जातिगत गणना के बाद तेजस्वी यादव भी प्रशांत किशोर के निशाने पर

बिहार में जातिगत गणना की रिपोर्ट आने के बाद से बवाल थम नहीं रहा है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का बीजेपी नेताओं के निशाने पर आ जाना स्वाभाविक था, लेकिन जिस तरीके से बिहार में सुराज अभियान चला रहे प्रशांत किशोर ने हमला बोला है - ऐसा लगता है जैसे जातिगत गणना की पहल बैकफायर करने लगी है. 

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ये जातिगत गणना का ही मसला है जिसके जरिये नीतीश कुमार और लालू यादव फिर से करीब आये. नीतीश कुमार ने बीजेपी से लोहा लेते लेते सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर डाला. फिर एक दिन एनडीए छोड़ कर महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गये - और समझौते के तहत तेजस्वी यादव फिर से बिहार के डिप्टी सीएम बन गये. वैसे तो नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को बिहार का अगला सीएम भी बता रखा है, लेकिन ये तभी तक लागू रहेगा जब तक वो फिर से पाला नहीं बदल लेते. 

जातिगत गणना की शुरुआत से ही नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच एक होड़ भी देखने को मिली है. नीतीश कुमार को जातिगत गणना के श्रेय से वंचित करने के लिए तेजस्वी यादव लगातार ये बताते रहे हैं कि पहल और प्रयास तो लालू यादव का ही रहा है, न कि नीतीश कुमार का.

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रिपोर्ट आने के बाद से ही एक स्लोगन खूब दोहराया जा रहा है, 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी' - खास बात ये है कि प्रशांत किशोर ने इसी लाइन को आधार बना कर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर सवालों की बौछार कर दी है. 

बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री क्यों नहीं?

तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव बिहार में लंबे अर्से से मुस्लिम-यादव की राजनीति करते आ रहे हैं. इसे M-Y फैक्टर के नाम से भी जाना जाता है. ये ऐसा वोट बैंक है जिसके एकजुट हो जाने पर सारे सियासी समीकरण फेल हो जाते हैं. 

ताजा सर्वे की बात करें तो बिहार में यादव बिरादरी की आबादी 14.26 फीसदी बतायी गयी है, जबकि मुस्लिम समुदाय जनसंख्या में 17.70 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है - अब अगर 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी' के हिसाब से देखें तो बिहार में तो मुख्यमंत्री भी मुस्लिम समुदाय से होना ही चाहिये. 

देश के सबसे सफल चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर का भी सवाल यही है - 'जातिगत जनगणना के बाद तेजस्वी यादव बराबरी की बात कर रहे हैं... तो क्या वो किसी मुसलमान नेता को मुख्यमंत्री बनवाएंगे?'

प्रशांत किशोर से पहले ये सवाल लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रहे रामविलास पासवान ने उठाया था. सवाल क्या उठाया था, बल्कि मुस्लिम मुख्यमंत्री की जिद ही कर डाली थी - ये 2005 की बात है, और इसी बात पर लालू परिवार के हाथ से सत्ता फिसली तो फिर से सत्ता में हिस्सेदारी के लिए 10 साल तक इंतजार करना पड़ा, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी तो अब तक हासिल नहीं हो पायी है. वरना, जेल जाने की नौबत आने पर पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने वाले लालू यादव बेटे को सीएम बनाने के लिए पटना-दिल्ली एक किये हुए हैं. 

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फरवरी, 2005 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को 75 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि रामविलास पासवान की एलजेपी के 29 विधायक चुन कर आ गये थे. खुद को किंगमेकर की भूमिका में देख रामविलास पासवान ने मुस्लिम मुख्यमंत्री की डिमांड रख दी. तब कांग्रेस को 10 सीटें मिली थीं. 

रामविलास पासवान के सपोर्ट ने लालू यादव आरजेडी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बना सकते थे, लेकिन वो नहीं माने. त्रिशंकु विधानसभा में जब कोई भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहा तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और जब दोबारा चुनाव हुए तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गये - और तभी से अभी तक वो कुर्सी पर कब्जा जमाये हुए हैं. 

अब जबकि जातिगत गणना के हिसाब से मुस्लिम आबादी यादव समाज से ज्यादा है, क्या तेजस्वी यादव 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी' वाले फॉर्मूले के तहत किसी मुस्लिम नेता के लिए मुख्यमंत्री बनने देने का रास्ता बनाएंगे या ऐसी कोई पहल करेंगे? ये बड़ा सवाल है.

बिहार की राजनीति एक बार फिर उसी मुहाने पर आ खड़ी हुई है, जहां लालू परिवार के पास से सत्ता की चाबी दूर छिटक कर चली गयी थी - सवाल ये भी है कि अगर चुनावों में मुस्लिम समाज की तरफ से भी वही सवाल उठाया गया जो प्रशांत किशोर उठा रहे हैं तो तेजस्वी यादव क्या जवाब देंगे?

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क्या जातिगत गणना छलावा है?

संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पास होने के समय से ही तेजस्वी यादव देश में जातीय जनगणना कराये जाने की मांग करने लगे हैं. राहुल गांधी भी जातीय जनगणना की जोर शोर से मांग कर रहे हैं. 

अब तो कांग्रेस की तरफ से यहां तक कहा जाने लगा है कि देश में सरकार बनी तो जातीय जनगणना करायी जाएगी. छत्तीसगढ़ में एक चुनावी वादा ये भी किया जा रहा है. पंचायत आज तक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में पिछड़ी जातियों का 'हेड काउंट' कराने की बात तो कही, लेकिन आंकड़े कभी जारी नहीं किये गये. कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने भी ऐसा ही किया था, और यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार में भी करीब करीब ऐसा ही किया गया था. 

देखने में आया है कि जातिगत गणना के जरिये बिहार में कुल 215 जातियों का पता चला है. ये भी देखने को मिला है कि 10-12 जातियां ही हैं जो राजनीति में सक्रिय नजर आती हैं. सबसे बड़ी बात तो ये है कि आजादी के बाद से जितने भी चुनाव हुए हैं अब तक महज 20 जातियों को ही प्रतिनिधित्व मिल सका है - मतलब, देश में 195 जातियां ऐसी हैं जिनके लिए अभी तक संसद में नो एंट्री का बोर्ड लगा हुआ है.

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जातिगत गणना की प्रामाणिकता पर कई छोर से सवाल उठाये जा रहे हैं. जो लोग बिहार के हैं या करीब से जानते हैं उनका एक सवाल ये भी है कि भूमिहार से ज्यादा कुर्मी के नंबर कैसे आ गये. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी ऐसे ही सवाल उठा चुके हैं. 

प्रशांत किशोर आंकड़ों पर तो सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन कहते हैं, 'बिहार में किसको नहीं मालूम है कि 35 प्रतिशत अति पिछड़ा समाज के लोग रहते हैं.' कास्ट सर्वे रिपोर्ट में ये आंकड़ा 36.01 बताया गया है, और प्रशांत किशोर का आशय भी उसी चीज से है.

प्रशांत किशोर वे सवाल उठा रहे हैं जो जातिगत गणना को लेकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से चुनावों में पूछे जा सकते हैं. ऐसे सवाल लोगों की तरफ से पूछे जाएंगे या फिर नीतीश और तेजस्वी से बीजेपी नेता पूछेंगे, देखना होगा. 

जन सुराज यात्रा के दौरान पत्रकारों से बातचीत में प्रशांत किशोर पूछते हैं, 'जनभागीदारी की जो बात कर रहे हैं, तो इनको शुरुआत खुद से करनी चाहिए... चाचा-भतीजा कुंडली मारकर खुद कुर्सी पर बैठे हुए हैं, और दूसरे से कह रहे हैं... हक मिलना चाहिए.' 

प्रशांत किशोर की तरफ से सवालों के साथ सुझाव भी आया है, 'नीतीश कुमार कल कैबिनेट का विस्तार करें और अल्पसंख्यक और दलित समाज के लोगों को उनका प्रतिनिधित्व दें... गृह मंत्रालय और पथ निर्माण आप चलाएंगे... सारे बड़े विभाग अपने पास रखिएगा और बात कीजिएगा प्रतिनिधित्व का!'

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'ये बेवकूफ बनाया जा रहा है,' प्रशांत किशोर का सवाल है, 'आपसे ज्यादा अगड़ा है कौन बिहार में? 

कहते हैं, 'बिहार में 30 बरस से आप ही लोग राज कर रहे हैं, तो हिस्सा आप ही को न देना पड़ेगा... नीतीश कुमार अपना मुख्यमंत्री का पद छोड़ दें - और किसी अति पिछड़े या फिर दलित को मुख्यमंत्री बना दें... न भी दें तो कम से कम उपमुख्यमंत्री बना दें... आरजेडी ही किसी को उपमुख्यमंत्री बना दे.

जहां तक दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने का सवाल है, नीतीश कुमार इस मुद्दे पर जीतनराम मांझी की मिसाल पेश कर सकते हैं. अगर लालू यादव बिहार में पहली बार किसी महिला को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने का क्रेडिट ले सकते हैं, तो नीतीश कुमार क्यों नहीं - वैसे गद्दी सौंपते समय लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों के सामने मिलती जुलती ही परिस्थितियां और चुनौतियां थीं. 

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