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प्रशांत किशोर के लिए चुनाव का थ्योरी पेपर आसान था, अब प्रैक्टिकल मुश्किल हो रहा है | Opinion

प्रशांत किशोर देश के सबसे सफल चुनाव रणनीतिकार रहे हैं. राजनीति में भी सफल हो सकेंगे, अभी सवाल का जवाब मिलना बाकी है - विधानसभा चुनाव तो बहुत दूर है, ये सवाल तो बेलागंज और तरारी उपचुनावों में ही उठने लगा है.

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प्रशांत किशोर ने ऐसे व्यक्ति को जन सुराज पार्टी का उम्मीदवार कैसे घोषित कर दिया, जो बिहार में वोटर ही नहीं है?
प्रशांत किशोर ने ऐसे व्यक्ति को जन सुराज पार्टी का उम्मीदवार कैसे घोषित कर दिया, जो बिहार में वोटर ही नहीं है?

बिहार में 4 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, और प्रशांत किशोर अभी तक जन सुराज के तीन उम्मीदवारों के नाम ही फाइनल कर पाये हैं - बेलागंज में बवाल तो सबने देखा ही, सबसे पहले घोषित की गई तरारी सीट पर भी संकट के बादल छाये हुए हैं.  

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बोधगया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रशांत किशोर ने बताया कि बेलागंज से प्रोफेसर खिलाफत हुसैन, इमामगंज से डॉक्टर जितेंद्र पासवान और तरारी से एसके सिंह जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार होंगे. सबसे पहले रिटायर्ड फौजी श्रीकृष्ण सिंह का नाम ही तरारी विधानसभा सीट से उम्मीदवार के तौर पर सामने आया था. 

प्रशांत किशोर बिहार चुनाव में 40 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन बेलागंज में जो हंगामा हुआ है, वो आगे की मुश्किलों की तरफ इशारा कर रहा है - और तरारी विधान सभा सीट पर उम्मीदवार बदले जाने को लेकर भी सवाल उठ रहा है कि प्रशांत किशोर जैसे मंझे हुए खिलाड़ी से इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?

बेलागंज में उम्मीदवार को लेकर हंगामा

ये तो पहले ही साफ हो गया था कि बेलागंज से प्रशांत किशोर कोई मुस्लिम उम्मीदवार ही मैदान में उतारेंगे - और इसी वजह से जन सुराज पार्टी के ये सीट निकाल लेने की संभावना भी जताई जाने लगी थी. 

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बेलागंज सीट पर उपचुनाव के लिए प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी की बैठक बुलाई थी. ये बैठक उम्मीदवार का नाम फाइनल करने के लिए ही थी. लेकिन, जब उम्मीदवार के नाम की घोषणा हुई तो कार्यकर्ता हंगामा करने लगे - क्योंकि वे जिस नाम की उम्मीद कर रहे थे, उसे उम्मीदवार नहीं बनाया गया था. 

सुनने में आया है कि बेलागंज से मोहम्मद अमजद, प्रो. सरफराज खान, प्रो. खिलाफत हुसैन, दानिश और मुस्तकीम पांच दावेदार थे - और मो. अमजद का नाम भी फाइनल हो गया था, लेकिन अचानक खिलाफत हुसैन के नाम की घोषणा हो गई और उसी पर बवाल मच गया. 

बेलागंज के हंगामे पर प्रशांत किशोर ने सफाई दी है, वो महज एक राजनीतिक बयान है और इसीलिए सवाल उठ रहे हैं. पहले बताया गया था कि जन सुराज और जनता के सर्वे में अमजद को बहुमत मिला है, और हर जबान पर उनका ही नाम है. लेकिन, फिर ये भी बताया गया कि पार्टी ने खिलाफत हुसैन का नाम तय कर दिया है, लेकिन उसमें बदलाव भी किया जा सकता है. वैसे मो. अमजद दो बार चुनाव भी लड़ चुके हैं. 

इस बीच, सोशल मीडिया पर एक वीडियो  भी वायरल है, जिसमें प्रशांत किशोर को कहते सुना गया है, “नारा लगाओगे तो गर्दन कट जाएगा... शांति से बैठिये, दबाव नहीं बना सकते हैं.” 

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लेकिन, बेलागंज के बवाल को प्रशांत किशोर जन सुराज को मिल रहे महत्व से जोड़ कर पेश कर रहे हैं. कहते हैं, जिसे हंगामा कहा जा रहा है, वो वास्तव में जन समर्थन का प्रतीक था... जिसे आप हंगामा कह रहे हैं, वो राजनीति का शृंगार है... इसे मैं जनसुराज की ताकत मानता हूं.

प्रशांत किशोर समझाते हैं कि ये सब इस बात का सबूत है कि जन सुराज की लोकप्रियता कितनी व्यापक है... अगर जन सुराज के विचार में ताकत नहीं होती, तो सैकड़ों लोग उम्मीदवार बनने के लिए नारेबाजी क्यों करते? 

प्रशांत किशोर ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने का वादा किया है. अभी जो हाल है, ये वादा निभा पाना तो काफी मुश्किल लग रहा है. 

तरारी में उम्मीदवार बदलने की नौबत क्यों?

लोकसभा के लिए तो नहीं, लेकिन विधानसभा और विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए उस राज्य के वोटर लिस्ट में नाम होना जरूरी होता है. तरारी से जन सुराज के उम्मीदवार श्रीकृष्ण सिंह भोजपुर के करथ गांव के रहने वाले हैं, लेकिन सेना से रिटायर होने के बाद वो दिल्ली में ही रह रहे हैं - और वोटर भी वो दिल्ली के लिए ही हैं, जबकि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बिहार के किसी जिले की वोटर लिस्ट में होना जरूरी है. 

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अगर पहले पता होता तो बदलाव के लिए आवेदन भी किया जा सकता था. जहां वो नाम जुड़वाना चाहते वहां का प्रूफ देकर अप्लाई कर सकते थे, और साथ में दिल्ली से नाम हटाया जा सकता था - अब तो चुनाव घोषित किये जा चुके हैं, अब तो कुछ होने से रहा.

ऐसे में प्रशांत किशोर को किसी और नेता को उम्मीदवार बनाना होगा, और श्रीकृष्ण सिंह को अगले चुनाव तक इंतजार करना होगा. लेकिन, मालूम नहीं तब तक क्या परिस्थितियां होंगी. ये भी सुनने को मिला था बीजेपी उनको आरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन तब निजी वजहों से वो नहीं तैयार थे. 

सुनने में ये अटपटा भी लग रहा है. आखिर प्रशांत किशोर से ऐसी चूक कैसे हो गई. वो तो एक एक उम्मीदवार की तह तक जांच पड़ताल करते रहे हैं, और उनके काम करने की स्टाइल से जहां जहां भी वो काम किये, काफी नेता और कार्यकर्ता नाराज रहते थे.

निश्चित तौर पर प्रशांत किशोर ऐसी चीजों को सबक के तौर पर ही ले रहे होंगे और आने वाले दिनों में पहले से ही एहतियात बरतने की कोशिश करेंगे. वो देश के सबसे सफल चुनाव रणनीतिकार माने जाते हैं. राजनीति में भी सफल हो सकेंगे, अभी सवाल का जवाब मिलना बाकी है. जो काम वो दूसरों के लिए करते रहे, अब खुद करना पड़ रहा है. क्लाइंट पर तो वो अपने सुझावों पर अमल न करने की तोहमत भी मढ़ सकते थे, लेकिन अब तो ऐसा कर भी नहीं सकते. किसी भी इम्तिहान में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनो में पास होने पर ही सफल माना जाता है. 

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