कांग्रेस के आकाश में नेताओं के रूप में कई ग्रह मौजूद हैं, लेकिन उनके बीच प्रियंका गांधी की स्थिति अब तक एक धूमकेतु/पुच्छल तारे (comet) की तरह रही है. बाकी ग्रहों की तरह वे भी अपने सूर्य यानी राहुल गांधी के आसपास चक्कर लगाती रही हैं. उनके मामले में मनोहारी यह लगता है कि वे जब दिखाई पड़ती हैं, उनके पीछे धूमकेतु की तरह चमकीले आभामंडल की एक पूंछ दिखाई पड़ जाती है. लेकिन, धूमकेतु की तरह दुर्लभ बने रहना प्रियंका की नियती रही है. बाकी नेताओं की तरह उनका अब तक कोई चुनावी वजूद नहीं है. लोकसभा चुनाव 2024 में भी उनकी स्थिति क्या धूमकेतु की तरह ही होगी, या कांग्रेस नेतृत्व उन्हें एक ग्रह की तरह स्थापित करेगा? सोनिया गांधी के लोकसभा से राज्यसभा जाने के बाद प्रियंका पर फोकस अचानक बढ़ गया है.
प्रियंका गांधी के राजनीतिक वजूद पर कांग्रेस पार्टी के फैसले ही सवालिया निशान लगाते रहे हैं. प्रियंका भले कम नजर आती हों, लेकिन उनसे जुड़ी हेडलाइंस पहेलियां बुझाती रही हैं. आइये, पिछले छह महीने में उनके इर्द-गिर्द हुई बातों की समीक्षा करते हैं.
प्रियंका को लेकर तीन तरह की चर्चा, और कई तरह के समीकरण:
1. चुनाव नहीं लड़ेंगी? - लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ प्रियंका को लेकर तरह-तरह की खबरें आने लगीं. छह महीने पहले खबर उड़ी कि सोनिया की मौजूदगी में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने तय किया है कि प्रियंका 2024 का चुनाव नहीं लड़ेंगी, सिर्फ प्रचार करेंगी. इस बार उनके प्रचार अभियान का दायरा यूपी से बाहर पूरे देश में होगा. जब उन्हें यूपी के प्रभारी पद से हटाया गया, तो इस खबर में दम भी लगने लगा. लेकिन, उनकी राजनीतिक गतिविधि में कोई तेजी दिखाई नहीं दी.
2. राज्यसभा जाएंगी? - सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने की खबर से पहले चर्चा तो यही थी कि प्रियंका गांधी को राजस्थान या हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा में भेजा जा सकता है. खबर तो यह भी बनी थी कि छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद प्रियंका के लिए इस्तीफा देने को तैयार हैं, ताकि उनकी जगह प्रियंका राज्यसभा चली जाएं. खैर, गांधी परिवार के किसी भी सदस्य के लिए कांग्रेस सरकारों वाले राज्यों से ऐसी पेशकश आना नई बात नहीं है. लेकिन, प्रियंका के राज्यसभा जाने की उम्मीद अब कम है.
3. रायबरेली जाएंगी या अमेठी लड़ेंगी? - जब तक सोनिया के राज्यसभा जाने की चर्चा नहीं थी, तब तक कहा जा रहा था कि प्रियंका दक्षिण के किसी राज्य तेलंगाना या कर्नाटक से लोकसभा का चुनाव लड़ सकती हैं. अब जबकि सोनिया गांधी ने राज्यसभा का नामांकन भरकर रायबरेली सीट को बाय-बाय कर दिया है, तो उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रियंका गांधी का नाम सामने आ गया है. लेकिन, ऐसा होना उतना भी सरल नहीं है, जितना दिखता है. दरअसल, अमेठी से पिछला चुनाव हारकर राहुल गांधी ने गांधी परिवार की इन सीटों पर कांग्रेस के लिए हालात मुश्किल बना दिये हैं. राहुल खुद तो वायनाड सेटल हो गए हैं. ऐसे में अमेठी और रायबरेली की सीटें प्रियंका की ओर देख रही हैं. C-voter का एक सर्वे बताता है कि यदि रायबरेली से प्रियंका चुनाव लड़ें तो कांग्रेस यह सीट बचा सकती है. वरना नहीं. इसके अलावा अमेठी से राहुल दोबारा चुनाव लड़ते हैं, तो वे और बुरी तरह हारेंगे. मतलब, इस सीट पर मुकाबला करने के लिए भी स्मृति इरानी के सामने प्रियंका को उतारने के अलावा कांग्रेस के पास चारा नहीं है. हां, राहुल यदि यूपी में एक बार और किस्मत आजमाना चाहते हैं, तो वे अमेठी के बजाय तुलनात्मक रूप से आसान रायबरेली से किस्मत आजमा सकते हैं. लेकिन, ऐसा करके वे प्रियंका को ज्यादा कठिन मुकाबले में डालेंगे. ऐसा करना उनकी छवि के अनुकूल नहीं होगा. यदि प्रियंका रायबरेली से ही चुनाव लड़ती हैं और राहुल वायनाड से ही, तो यह अमेठी से स्मृति इरानी को वॉकओवर देने जैसा भी होगा.
यूपी में प्रियंका की तीसरी परीक्षा कहीं एक और कुर्बानी तो नहीं?
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सक्रिय राजनीति में आने से लेकर अब तक उनके हिस्से खास कामयाबी नहीं लगी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया था. यह उनकी पहली परीक्षा थी लेकिन चुनावों में न सिर्फ कांग्रेस का वोट प्रतिशत इस सूबे में साढ़े सात से घटकर साढ़े छह फीसदी के भी नीचे आ गया, बल्कि उनके प्रभार क्षेत्र वाले इलाके से अमेठी सीट भी पार्टी हार गई. विश्लेषकों ने उन्हें नौसिखिया होने का मार्जिन दिया. फिर 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी छोड़ी तो उनके पास पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभार आ गया. और 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने पूरी तरह प्रियंका के नेतृत्व में लड़ा भी. यूपी में यह उनकी दूसरी चुनावी परीक्षा थी. उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनावी मुद्दे और प्रचार की रणनीति सब प्रियंका के इशारों पर ही तय हुई. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला रहा. विधानसभा में कांग्रेस दुर्गति को प्राप्त हुई. नतीजा यह हुआ कि प्रियंका यूपी की राजनीति से कटती चली गईं. दो महीने पहले प्रियंका गांधी से यूपी का प्रभार लेकर अविनाश पांडे को सौंप दिया गया है. तब से वह इक्का-दुक्का बार राहुल गांधी के साथ ही दिखाई दी हैं.
अब जिस शून्य में प्रियंका हैं, उसी में राहुल गांधी और कांग्रेस भी हैं. 2019 का अमेठी से चुनाव हार जाने के बाद राहुल भी दोबारा, तीन बार ही अमेठी गए हैं. उनका आखिरी दौरा दो साल पहले यूपी चुनाव से ठीक पहले 15 फरवरी 2022 को हुआ था. अब वे अगले हफ्ते भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अमेठी और रायबरेली में पड़ाव डालकर कुछ जनसभाएं करेंगे. उम्मीद है, इस दौरान प्रियंका भी उनके साथ होंगी. राहुल और कांग्रेस नेतृत्व के पास यही मौका है कि गांधी परिवार की विरासत वाली इन दोनों सीटों पर से वे अनिश्चितता के बादल साफ करेंगे. वे भले यह न बताएं कि अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस का उम्मीदवार कौन होगा, लेकिन इतना तो साफ करेंगे ही कि अमेठी-रायबरेली की लाज बचाने की जिम्मेदारी अब प्रियंका की होगी. समझदारी इसी में होगी कि वे इसे प्रियंका की नाक का सवाल बिल्कुल न बनाएं. वो नाक जिसमें इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. प्रियंका को अपनी बहुत सी अमेठी-रायबरेली तैयार करनी हैं. जिसका अभी समय नहीं आया है.