दिल्ली में तो राहुल गांधी का रुख अब जाकर सामने आया है, बिहार को लेकर तो पहले ही साफ हो गया था. पटना दौरे में जिस तरह राहुल गांधी लालू यादव के पूरे परिवार से हाथ मिलाते और गले मिलते जुलते नजर आये, राजनीतिक नजरिया बिल्कुल अलग देखने को मिला था.
तेजस्वी यादव को लेकर राहुल गांधी के बयान में करीब करीब वही टोन सुनाई पड़ा था, जो सीलमपुर की रैली में अरविंद केजरीवाल के लिए.
दिल्ली चुनाव कैंपेन के तहत सीलमपुर की कांग्रेस रैली में हाल फिलहाल पहली बार राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल को नाम लेकर टार्गेट किया था. राहुल गांधी रैली में समझा रहे थे कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक जैसे ही हैं. मोदी के खिलाफ तो राहुल गांधी के बयान अक्सर ही सुनने को मिलते रहे हैं. 2020 के दिल्ली चुनाव में तो राहुल का एक बयान काफी चर्चित रहा था, ‘... तो युवा डंडे मारेंगे.’
बिहार दौरे के बाद तबीयत ठीक न होने की वजह से राहुल गांधी के कार्यक्रम रद्द कर दिये गये थे, जिसमें नई दिल्ली सीट पर उनकी पदयात्रा भी शामिल है. पदयात्रा की नई तारीख तो अभी नहीं आई है, लेकिन दिल्ली में राहुल गांधी की रैलियां शुरू हो गई हैं - और अब अरविंद केजरीवाल सीधे सीधे कांग्रेस नेता के निशाने पर आ गये हैं.
दिल्ली चुनाव की पहली रैली में राहुल गांधी के भाषण पर अरविंद केजरीवाल का कहना था कि वो कोई टिप्पणी नहीं कहना चाहेंगे, क्योंकि दोनो अलग अलग लड़ाई लड़ रहे हैं. अरविंद केजरीवाल के मुताबिक राहुल गांधी कांग्रेस को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, और वो देश की.
लेकिन जब राहुल गांधी ने यहां तक बोल दिया कि मोदी के नाम से अरविंद केजरीवाल कांपने लगते हैं, और दिल्ली शराब घोटाला, ‘शीशमहल’ और 2020 के दिल्ली दंगों को लेकर घेरने लगे तो पलटकर जवाब भी मिलने लगा.
अरविंद केजरीवाल ने नेशनल हेराल्ड केस की याद दिलाते हुए राहुल से पूछ लिया, आप और आपका परिवार अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? अरविंद केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा का भी नाम लिया. रॉबर्ट वाड्रा वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति हैं.
दिल्ली चुनाव में दिखे ये राजनीतिक लक्षण तो यही बताते हैं कि साल के आखिर में होने वाले बिहार चुनाव में भी यही सब देखने को मिलने वाला है - बस अरविंद केजरीवाल की जगह राहुल गांधी के निशाने पर लालू यादव और उनका परिवार होगा.
बिहार में भी दिखेगी दिल्ली चुनाव की झलक
पटना पहुंचते ही राहुल गांधी ने बिहार में कराये गये जातिगत गणना को फर्जी करार दिया था, जिसे तेजस्वी यादव अपनी राजनीतिक उपलब्धियों में बताते रहते हैं. राहुल गांधी का कहना है कि कास्ट सेंसस के नाम पर बिहार के लोगों को बेवकूफ बनाया गया - और, फिर ये भी दावा करते हैं कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर जातिगत जनगणना कराकर ही दम लेगी - वैसे ये बात दिल्ली में भी राहुल गांधी के भाषण में सुनाई दे रही है.
जिस तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक में दो हिस्सों में साफ साफ बंटा हुआ देखने को मिल रहा है, बिहार में भी वैसा ही होने वाला है. आखिर लालू यादव के ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाये जाने की सलाह कुछ न कुछ असर तो होगा ही - राहुल गांधी के लालू यादव और उनके परिवार से खफा होने की क्या ये वजह काफी नहीं है.
1. फिर तो जैसे दिल्ली में शराब घोटाले को लेकर अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी के निशाने पर आ गये हैं, चारा घोटाला को लेकर बिहार में लालू यादव और तेजस्वी यादव टार्गेट किये जाएंगे.
2. बीजेपी और नीतीश कुमार की तरह आगे से राहुल गांधी भी बिहार में ‘जंगलराज’ के शासन की याद दिलाकर लोगों को डराएंगे.
3. ये भी हो सकता है तेलंगाना चुनाव की तरह तेजस्वी यादव पर राहुल गांधी परिवारवाद की राजनीति का वैसे ही आरोप लगायें, जैसे के. चंद्रशेखर राव के परिवार पर लगाते थे.
बिहार में ही होगा दिल्ली जैसा मुकाबला
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का पूरा फायदा उठाने वाली कांग्रेस दिल्ली में अकेले चुनाव मैदान में है, और दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी को टीएमसी और समाजवादी पार्टी का समर्थन मिला हुआ है. अरविंद केजरीवाल को ममता बनर्जी के साथ साथ अखिलेश यादव का भी पूरा समर्थन मिला हुआ है - और सुना है कि अखिलेश यादव आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में दिल्ली में रोड शो भी करने वाले हैं.
जिस तरह से बिहार में पहले से ही अखिलेश प्रताप सिंह सक्रिय नजर आ रहे हैं, और अब राहुल गांधी का तेवर देखने के बाद लगता नहीं कि कांग्रेस आरजेडी के साथ गठबंधन जारी रखने वाली है.
कास्ट सेंसस पर राहुल गांधी का ताजा बयान ऐसा ही संकेत भी दे रहा है. राजनीति के कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि दिल्ली चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक खत्म हो जाएगा - और इसीलिए बिहार चुनाव भी कांग्रेस के दिल्ली की तरह अकेले ही लड़ने की संभावना लग रही है.
वैसे भी 2029 के आम चुनाव तक इंडिया ब्लॉक का कोई मतलब तो है नहीं. और जो भी मतलब है, वो तो क्षेत्रीय दलों के लिए ही मायने रखता है - कांग्रेस का तो नुकसान ही नुकसान है.