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राहुल गांधी ने नहीं मानी सेना की अग्निवीर योजना पर चुनाव आयोग की हिदायत- आगे क्या होगा?

चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए जो गाइडलाइन जारी की है, उसमें अग्निवीर पर भी टिप्पणी करने की मनाही है, लेकिन राहुल गांधी सरेआम डंके की चोट पर कह रहे हैं कि INDIA ब्लॉक के सत्ता में आने पर ये स्कीम कूड़ेदान में डाल दी जाएगी - जाहिर है, चुनाव आयोग भी सुन ही रहा होगा.

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क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि अग्निवीर स्कीम की आलोचना के लिए चुनाव आयोग का नोटिस फिर मिल सकता है?
क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि अग्निवीर स्कीम की आलोचना के लिए चुनाव आयोग का नोटिस फिर मिल सकता है?

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की गाइडलाइन को वैसे ही रिजेक्ट कर दिया है, जैसे ममता बनर्जी ने कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर रिएक्ट किया है. ओबीसी दर्जा और ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने को लेकर ममता बनर्जी का कहना है हाई कोर्ट का आदेश उन्हें स्वीकार नहीं है, और पश्चिम बंगाल सरकार उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी.

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चुनाव आयोग की तरफ से लोकसभा चुनाव 2024 के लिए लागू आदर्श आचार संहिता की अवधि के दौरान एक नई गाइडलाइन जारी की गई है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे एक पत्र में चुनाव आयोग ने स्टारप्रचारकों के लिए ये दिशानिर्देश दिया है. दिशानिर्देश के मुताबिक, धार्मिक मुद्दों पर भेदभाव और अग्निवीर सहित कई मसलों पर बोलने से परहेज की सलाहियत दी है.

दिल्ली की एक चुनावी रैली में राहुल गांधी ने कहा कि सत्ता में आते ही वो अग्निवीर स्कीम को को फाड़कर कचरे के डिब्बे में फेंकने वाले हैं. कांग्रेस नेता के मुताबिक, ये स्कीम पूरी तरह सेना के खिलाफ है. 

जाहिर है, चुनाव आयोग भी राहुल गांधी का भाषण सुना ही होगा. नहीं सुन पाया होगा तो आयोग की निगरानी टीम आगे सुन सकती है. राहुल गांधी के भाषण पर चुनाव आयोग क्या कदम उठाएगा, ये तो देखना होगा - लेकिन सवाल तो ये उठता ही है कि क्या सरकार की किसी पॉलिसी की आलोचना से सेना का मनोबल कम हो सकता है, या चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है? 

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और उससे भी बड़ा सवाल है कि चुनाव आयोग की तरफ से ऐसी हिदायतें जारी करने का क्या फायदा? जिन भाषणों पर चुनाव आयोग के पास शिकायतें पहुंची थी, आयोग ने कोई एक्शन तो नहीं लिया. सिर्फ नई हिदायतें जारी कर दिया - क्या आगे भी ऐसी ही हिदायतें ही जारी होती रहेंगी, और उनका यूं ही उल्लंघन भी होता रहेगा? 
 
क्या हैं चुनाव आयोग की नई हिदायतें

चुनाव आयोग ने 22 मई को जारी नोटिस में बीजेपी और कांग्रेस के प्रमुखों से कहा है कि दोनों पार्टियां अपने स्टार प्रचारकों से सही तरीके से भाषण देने और मर्यादा बनाये रखने को कहें. आयोग ने दोनों पार्टियों के स्टार प्रचारकों को धार्मिक और सांप्रदायिक बयानबाजी न करने का निर्देश दिया है.

चुनाव आयोग ने पाया है कि बीजेपी के नेता अपने भाषण में मुसलमान और धर्म पर जोर दे रहे हैं, और राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं के भाषण में बार बार अग्निवीर का इस्तेमाल हो रहा है. 

रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों पार्टियों ने अपने अपने नेताओं के बयानों का बचाव किया है, और मांग की है कि उनकी तरफ से विरोधी पार्टी के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत पर एक्शन लिया जाये. 

चुनाव आयोग ने कांग्रेस को लिखे पत्र में कहा है कि वो संविधान को लेकर गलत बयानबाजी न करे... जैसे, भारत के संविधान को खत्म किया जा सकता है या बेचा जा सकता है. और ऐसे ही अग्निवीर पर बयानबाजी करके डिफेंस फोर्स का भी राजनीतिकरण न किया जाये. 

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चुनाव आयोग के नोटिस का राहुल गांधी पर कोई असर तो नहीं हुआ है, कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का भी वैसा ही रिएक्शन आया है जिसमें वो अग्निवीर योजना को लेकर राजनीति न करने के चुनाव आयोग के निर्देश को ही गलत बता रहे हैं. 

पी. चिदंबरम का कहना है, राजनीतिकरण का मतलब क्या है? क्या ECI का आशय आलोचना से है? अग्निवीर एक योजना है... केंद्र सरकार की नीति की देन है... सरकार की नीतियों को घेरना... और ये कहना कि जब सत्ता में आएंगे तो इसे खत्म कर देंगे... विपक्षी राजनीतिक दलों का अधिकार है.

और इसके साथ ही कांग्रेस नेता ने वे बातें भी दोहराई हैं, जो राहुल गांधी सहित पार्टी नेताओं के भाषण में लगातार सुनने को मिल रहा है. 

अग्निवीर पर क्या कह रहे हैं राहुल गांधी 

दिल्ली की ही तरह उससे पहले हरियाणा के महेंद्रगढ़-भिवानी लोकसभा क्षेत्र में आयोजित कांग्रेस की रैली में भी राहुल गांधी का कहना था, 'ये मोदी की स्कीम है न कि सेना की... सेना ऐसा नहीं चाहती.' फिर राहुल गांधी बताते हैं कि जब इंडिया ब्लॉक की सरकार बनेगी तब इस स्कीम को कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए राहुल गांधी कहते हैं, 'मोदी ने हिंदुस्तान के जवानों को मजदूर बना दिया है.'

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अग्निवीर स्कीम के बारे अपनी बात समझाते हुए राहुल गांधी समझाते हैं, वे कहते हैं... शहीद दो तरह के होंगे... एक, सामान्य जवान और अधिकारी जिन्हें पेंशन, शहीद का दर्जा और सारी सुविधाएं मिलेंगी... और दूसरा, गरीब परिवार का व्यक्ति जिसे अग्निवीर का नाम दिया गया है... अग्निवीरों को न शहीद का दर्जा मिलेगा, न पेंशन, न कैंटीन की सुविधा.

वैसे अग्निवीर योजना को लेकर एक अपडेट भी आया है. खबर है कि सेना की इस योजना में कुछ बदलाव भी किये जा सकते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना अग्निवीर योजना के तहत होने वाली भर्ती प्रक्रिया पर अब तक के प्रभावों का आकलन करने के लिए एक आंतरिक सर्वे करा रही है. सर्वे रिपोर्ट के आधार पर योजना में संभावित बदलावों की सिफारिश की जा सकती है, जिस पर आने वाली नई सरकार को फैसला लेना होगा. ये योजना जून, 2022 में शुरू की गई थी, और इसके तहत चार साल की अवधि के लिए अग्निवीरों की भर्ती सेना में की जाती है.

चुनाव आयोग को क्यों लगता है कि अग्निवीर और धार्मिक भेदभाव वाले भाषण एक जैसे हैं

चुनाव आयोग को अग्निवीर योजना की आलोचना ही नहीं, राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं का संविधान बदल डालने की आशंका वाला बयान भी रास नहीं आया है - और आयोग ने राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को साफ साफ हिदायद दी है कि वे अपने स्टार प्रचारकों को हिदायत भरे नोट देकर सुनिश्चित करें कि वे ऐसे मुद्दों पर बयान न दें. 

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कांग्रेस के स्टार प्रचारकों को लेकर चुनाव आयोग ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से कहा है कि वो बता दें कि वे 'संविधान को खत्म करने या बेच देने जैसी झूठी बातें' चुनाव कैंपेन के दौरान न किया करें. 

नोटिस को लेकर चुनाव आयोग को भेजे अपने जवाब में मल्लिकार्जुन खरगे ने स्टार प्रचारकों के बयानों पूरी तरह न्यायसंगत और सही ठहराया है, और कहा है कि विरोधियों ने भाषणों की एक छोटी सी क्लिप के साथ शिकायत की है, जबकि पूरा भाषण देखा जाये तो सब कुछ सही और प्रासंगिक है. 

चुनाव आयोग ने ये नोटिस कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से एक दूसरे के खिलाफ की गई शिकायतों पर भेजा है. कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और बीजेपी की तरफ से राहुल गांधी के भाषण के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी. 

नेताओं के राजनीतिक भाषण पर तो सुप्रीम कोर्ट भी पाबंदी नहीं लगा रहा है. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह की जमानत पर सुनवाई के दौरान ईडी की तरफ से राजनीतिक बयानबाजी पर रोक लगाने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना. और वैसे ही अरविंद केजरीवाल के जमानत पर रिहा होकर चुनावी रैलियों के भाषण पर भी ईडी ने अदालत में विरोध जताया था. सुप्रीम कोर्ट ने तब भी नहीं सुनी.

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अरविंद केजरीवाल चुनावी रैलियों में घूम घूम कर कह रहे हैं कि अगर लोग इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों को जिता कर सरकार बनवा दें तो 2 जून को उनको जेल नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को इस बात से कोई दिक्कत नहीं है.

जब राहुल गांधी लोगों से कहते हैं कि अगर बीजेपी फिर से सत्ता में आई तो संविधान बदल देगी - चुनाव आयोग इसे फेक न्यूज फैलाने जैसा अपराध मानता है. 

ऐसे देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये कहना कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आ गया तो महिलाओं का 'मंगलसूत्र' उन लोगों को दे दिया जाएगा 'जो ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं'.

मोटे तौर पर देखा जाये तो जिस तरह से अग्निवीर का जिक्र किया जा रहा है, संविधान बदले जाने की आशंका भी वैसे ही जताई जा रही है, और मंगलसूत्र दे डालने की भी - क्या राजनीतिक बयानों को जिस तरह सुप्रीम कोर्ट देखता है, चुनाव आयोग उससे इत्तेफाक नहीं रखता. मान लेते हैं कि चुनाव से संबंधित चीजों को सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव आयोग के जिम्मे ही छोड़ देता है, लेकिन राजनीतिक बयानों पर सुप्रीम कोर्ट भी रोक नहीं लगा रहा है - आखिर चुनाव आयोग को दिक्कत क्यों हो रही है?

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