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राहुल गांधी क्या बिहार में भी दिखाएंगे दिल्ली जैसा तेवर? कांग्रेस ने आरजेडी को दिया कड़ा संदेश

कांग्रेस अपनी खोई हुई ताकत हासिल करने में जुट गई है, और लगता नहीं कि अब वो हार और जीत की कोई परवाह करने वाली है. सफर का अगला पड़ाव बिहार चुनाव है. और, जो लक्षण सामने नजर आ रहे हैं, वहां भी दिल्ली दोहराये जाने के प्रबल संकेत मिल रहे हैं.

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बिहार चुनाव में राहुल गांधी का तेजस्वी यादव के साथ अलग तेवर देखने को मिल सकता है.
बिहार चुनाव में राहुल गांधी का तेजस्वी यादव के साथ अलग तेवर देखने को मिल सकता है.

राहुल गांधी का पूरा फोकस अब बिहार पर ही रहने वाला है. लोकसभा चुनाव के बाद हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की कोशिश और प्रदर्शन को देखते हुए 2024 के आखिर तक लगने लगा था कि राहुल गांधी अगर चाहें तो 2025 यूं ही गुजार सकते हैं, और पूरी एनर्जी अगले आम चुनाव की तैयारी में लगा सकते हैं - क्योंकि दिल्ली और बिहार चुनाव में कांग्रेस को कुछ खास हासिल होने के कम ही चांस थे. 

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दिल्ली चुनाव के नतीजों को नंबर के नजरिये से देखें तो कांग्रेस जीरो बैलेंस अकाउंट वाली ही लगती है, लेकिन राजनीति के हिसाब से देखें तो कांग्रेस लड़ती हुई नजर आने लगी है. दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिला है - और सबसे बड़ा हासिल तो कांग्रेस को खोखला कर देने वाली आम आदमी की हार है. 

दिल्ली चुनाव ने हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र की हार से डगमगा चुके कांग्रेस के आत्मविश्वास को वापस दिला दिया है - और कांग्रेस की बिहार की टीम की बातों और सक्रियता से तो ऐसा ही लगता है कि वो लालू और तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल को कोई खास भाव देने वाली नहीं है. 

बीजेपी भले ही बिहार चुनाव के लिए फिर से नीतीश कुमार को बड़ा भाई स्वीकार कर चुकी हो, लेकिन कांग्रेस ने लालू परिवार को साफ कर दिया है कि वो आरजेडी की बी-टीम बिल्कुल नहीं है. 
 
क्या बिहार में कांग्रेस दिल्ली से बेहतर कर पाएगी?

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बिहार में कांग्रेस के लिए दिल्ली से बेहतर स्कोप है. दिल्ली की तरह वो बिहार से ऑल-आउट नहीें हुई है. नंबर तो उत्तर प्रदेश में भी 2 विधायकों तक पहुंच गया है, प्रियंका गांधी जैसी बड़ी नेता के हद से ज्यादा एक्टिव होने के बावजूद - लेकिन बिहार में यूपी के मुकाबले कांग्रेस बेहतर पोजीशन में अब भी है.

जैसे 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन से अखिलेश यादव खफा हो गये थे, 2020 के बिहार चुनाव के बाद तो आरजेडी नेता आक्रामक हो गये थे, और राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी वाड्रा को भी खरी खोटी सुनाने लगे थे - क्योंकि कांग्रेस ने सीटों पर डील तो अच्छी कर ली थी लेकिन स्ट्राइक रेट में गच्चा खा गई थी. 

बाद में कभी कन्हैया कुमार की वजह से तो कभी पप्पू यादव की वजह से कांग्रेस नेतृत्व और आरजेडी लीडरशिप के बीच तीखी तकरार भी हुई, लेकिन फिर दोनो पक्षों ने संभाल भी लिया. 

असल में, लालू यादव नहीं चाहते थे कि किसी भी सूरत में कन्हैया कुमार और पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हों. कन्हैया कुमार के मामले में तो उनकी नहीं चली, लेकिन पप्पू यादव के केस में तेजस्वी यादव का विरोध भारी पड़ा. ये बात अलग है कि पूरी ताकत झोंककर भी तेजस्वी यादव पूर्णिया में पप्पू यादव को नहीं हरा पाये. निर्दलीय पप्पू यादव ने डंके की चोट पर आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती को चुनाव हरा डाला. 

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लोकसभा चुनाव में तो पप्पू यादव को कांग्रेस से दूर रखने में लालू यादव कामयाब हो गये, लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनावों में वो पप्पू यादव ने कांग्रेस के लिए प्रचार करने से नहीं रोक पाये - और अब बारी बिहार की है. 

राहुल गांधी ने तो साल के शुरू में ही ताबड़तोड़ बिहार दौराकर लालू यादव और तेजस्वी यादव को कांग्रेस का इरादा जता दिया है, उनकी बिहार टीम भी लगता है जैसे कहर ढा रही है. 

बिहार कांग्रेस के नये प्रभारी कृष्णा अल्लावरु भी पटना में जमे हुए हैं, लगातार कांग्रेस नेताओं के साथ मीटिंग कर रहे हैं, और समझा रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में क्या और कैसे करना है.

बिहार चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर सवाल तो तब तक बना रहेगा जब तक नतीजे नहीं आ जाते, लेकिन संकेत तो तैयारियों में भी मिल ही जाते हैं - और दिल्ली चुनाव में जिस तरह आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस ने मुश्किलें खड़ी की, आरजेडी को भी अभी से तैयार रहना चाहिये. 

दिल्ली की तरह बिहार में भी मोर्चा संभालेंगे राहुल गांधी

सुनने में आ रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर राहुल गांधी की बिहार यात्रा के बारे में भी सोचा जा रहा है. सोचने में क्या है, अमल में भी आये तब तो. यात्रा तो दिल्ली में भी हुई थी, लेकिन तब राहुल गांधी झांकने तक नहीं गये थे. क्या पता, बिहार का प्लान कुछ और हो. बिहार में तो नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और यहां तक कि नये प्लेयर प्रशांत किशोर भी यात्रा कर रहे हैं - राहुल गांधी और कुछ न सही, कांग्रेस की बिहार यात्रा को हरी झंडी तो दिखा ही सकते हैं. 

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बिहार में चुनावी तैयारियां जोर पकड़ रही हैं, और इस बीच कांग्रेस नेताओं के बयान काफी महत्वपूर्ण लगते हैं. स्वामी सहजानंद सरस्वती के जयंती समारोह में पहुंचे बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु का कहना था, कांग्रेस आरजेडी की 'बी' टीम नहीं है… आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस 'ए' टीम की तरह लड़ेगी.

हो सकता है ये सब सीटों के मोलभाव के लिए माहौल बनाने की कोशिश हो, लेकिन दिल्ली चुनावों को सामने रख कर देखें तो ये लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए बेहद सख्त संदेश है. 

मतलब, अगर आरजेडी ने कांग्रेस की सीटों की डिमांड पूरी नहीं की, तो वो अकेले ही सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है - कृष्णा अल्लावरु की सक्रियता के साथ साथ कन्हैया कुमार और पप्पू यादव के तेवर देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. 

बेगूसराय में युवा कांग्रेस की समीक्षा बैठक में पहुंचे कन्हैया कुमार ने नेताओं को समझाया कि क्यों कांग्रेस को गांव-गांव और वार्ड तक ले जाने की जरूरत है. क्योंकि, तभी कांग्रेस अपने दम पर चुनाव में मजबूत प्रदर्शन कर सकती है.

कन्हैया कुमार की तरह पप्पू यादव का कांग्रेस में अभी औपचारिक इंडक्शन नहीं हुआ है, लेकिन अपने तौर पर वो कांग्रेस के रंग में पूरी तरह रंग चुके हैं. पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस में पहले से ही हैं. 

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कृष्णा अल्लावरु की ही तरह पप्पू यादव भी बिहार में कांग्रेस के इरादे समझाते हैं. तरीका काफी अलग है, उनके खांटी स्वभाव के मुताबिक. शायद. 

पप्पू यादव से मीडिया का सवाल होता है, क्या कांग्रेस बिहार चुनाव में इस बार भी लालू यादव और आरजेडी के पीछे-पीछे ही चलेगी? 

पप्पू यादव अपने अंदाज में शुरू हो जाते हैं, ‘ये किसने कहा? कांग्रेस पार्टी ऊंट है. कांग्रेस पार्टी बैठ भी जाती है… तो गधा से हमेशा ऊंट ऊंचा ही रहेगा.
बाद में वो बात बदल देते हैं, ‘लालू यादव बुजुर्ग हैं, और सम्मानित नेता हैं. आरजेडी लालू यादव की पार्टी है… जबकि, कांग्रेस अलग पार्टी है, जिसके नेता प्रियंका गांधी और राहुल गांधी हैं. 

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